राजनीति विज्ञान / Political Science

युद्ध के प्रकार एंव कार्य | Types and Functions of War in Hindi

युद्ध के प्रकार एंव कार्य | Types and Functions of War in Hindi
युद्ध के प्रकार एंव कार्य | Types and Functions of War in Hindi
युद्ध के विभिन्न प्रकार एंव कार्य बताइए।

युद्ध के प्रकार

युद्धों के अनेक प्रकार हैं, जो निम्नलिखित हैं-

1. न्यायपूर्ण युद्ध और अन्यायपूर्ण युद्ध – मध्यकाल में यूरोप में धर्म की धारणा पर आधारित युद्धों को न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण रूपों में विभाजित किया गया था। वर्तमान में इस प्रकार की धारणा नहीं है तथापि राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिये किये गये युद्ध न्यायपूर्ण युद्ध तथा पड़ोसी देशों पर विस्तारवादी नीति के लक्ष्य से किये गये युद्ध अन्यायपूर्ण युद्ध कहलाते हैं।

2. सार्वजनिक और वैयक्तिक युद्ध – युद्धों का यह वर्गीकरण मध्यकाल में प्रचलित था। जब दो राजनीतिक शक्तियाँ, जिनकी अपनी निजी सम्प्रभुता होती है, आपस में युद्ध करती है तो यह सार्वजनिक युद्ध कहलाता है तथा जब दो गैर-राजनीतिक शक्तियों जैसे दो बड़े जमींदार या नवाब आपस में लड़ते हैं, तब यह वैयक्तिक युद्ध कहलाता है। वर्तमान में युद्ध राज्यों के मध्य होते हैं। गैर-सम्प्रभु समुदायों के संघर्ष को विद्रोह कहते हैं।

3. पूर्ण और अपूर्ण युद्ध- पूर्ण युद्ध में समस्त राष्ट्र प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप युद्ध से सम्बन्धित होता है जबकि अपूर्ण युद्ध कुछ व्यक्तियों और स्थानों तक ही सीमित रहता है।

4. युद्ध और गृहयुद्ध – युद्ध उस लड़ाई को कहा जाता है जो सम्प्रभुता सम्पन्न राज्यों के मध्य लड़ी जाती है जबकि युद्ध एवं सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य के अन्तर्गत विभिन्न वर्गों के बीच लड़ाई होती है। स्पेन में जनरल फ्रैंको का स्पेन की सरकार के विरुद्ध गृह-युद्ध का उदाहरण है। ओपेनहीम के शब्दों में, “गृह-युद्धों के अन्तर्गत एक राज्य में दो परस्पर विरोधी पक्ष सत्ता प्राप्त करने के लिये शस्त्रों का सहारा लेते हैं अथवा जनता का एक बड़ा भाग वैध सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करता है।”

5. औपचारिक व अनौचारिक युद्ध – औपचारिक युद्ध उस लड़ाई को कहते हैं जो विधिवत रूप से घोषणा करने के बाद छेड़ी जाती है, इसके विपरीत अनौपचारिक युद्ध उसको कहते हैं जिसमें बिना घोषणा के लड़ाई होती रहती है।

6. छापामार युद्ध – यह युद्ध जब लड़ा जाता है, जब युद्ध करने वाले पक्षों में से एक पक्ष निर्बल होता है। उसके पास इतनी सेना और युद्ध सामग्री नहीं होती है कि वह सामने आकर विपक्षी से युद्ध कर सके। इसी कारण निर्बल पक्ष छिपकर गुप्त रूप से आक्रमण करता है और उसके उपरान्त छिप जाता है। अवसर पाकर वह पुनः आक्रमण करके छिप जाता है। इसीलिये इसे ‘छापाकार’ युद्ध कहा जाता है। ओपेनहीम के शब्दों में, “यह एक ऐसा युद्ध है, जो शत्रु के द्वारा अधिकृत प्रदेश में ऐसे सशस्त्र व्यक्ति समूहों के द्वारा लड़ा जाता है, जो किसी संगठित सेना के भाग नहीं होते।”

7. समग्र युद्ध – समग्र युद्ध उस युद्ध को कहते हैं जिसमें युद्धरत राज्यों की सम्पूर्ण जनता ही संलग्न रहती है। यह युद्ध योद्धा राज्यों की सेनाओं तक ही सीमित नहीं रहता। इसके प्रभाव सम्पूर्ण जनता पर पड़ता है। वर्तमान में सभी युद्ध समग्र युद्ध ही होते हैं क्योंकि सम्पूर्ण जनता ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध से सम्बन्धित रहती है।

प्रो. ओपेनहीन ने समग्र युद्ध के पाँच कारण बतायें हैं जो निम्नलिखित हैं-

(अ) सैनिक संख्या में वृद्धि – सैनिकों की संख्या में भारी वृद्धि है।

(ब) जटिल प्रक्रिया- युद्ध की प्रक्रिया जटिल हो गई है। युद्ध की सामग्री का प्रबन्ध करने के लिये असैनिक जनता को सक्रिय होना पड़ता है।

(स) हवाई युद्ध का विकास- हवाई युद्ध का विकास होने से युद्ध का क्षेत्र व्यापक हो गया है। अब युद्ध में नागरिक ठिकानों, स्टेशनों, बन्दरगाहों, औद्योगिक केन्द्रों, आयुध कारखानों, तेल के डिपो आदि पर बम वर्षा की जाती हैं

(द) आर्थिक प्रतिबन्धों का लगाया जाना- युद्ध जीतने के लिये आर्थिक प्रतिबन्ध भी लगाये जाते हैं जिससे सैनिक और नागरिक सभी प्रभावित होते हैं।

(य) अधिनायकवादी राज्यों का उदय- सर्वाधिकारवादी व्यवस्थाओं के विकास के कारण व्यक्ति पर राज्य का पूर्ण अधिकार होता है और युद्ध की स्थिति में सभी नागरिकों के सक्रिय सहयोग को आवश्यक माना जाता है।

 युद्ध के कार्य

यद्यपि युद्ध से सदैव जीवन और सम्पत्ति की हानि होती है परन्तु यह भी सच्चाई है कि अनेक बार युद्धों ने प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक कार्य पूर्ण किये हैं। प्रो. ईगलटन के शब्दों में, ” शताब्दियों से युद्ध की अनुचित परिस्थितियों को सुधारने जैसे विवादों का निपटारा करने के लिये और अधिकारों को लागू करने के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है।”

अक्टूबर, 2001 में आतंकवाद की बुराई की समाप्ति के लिये अमरीका द्वारा अफगानिस्तान के विरूद्ध किया गया युद्ध एक बुराई को समाप्त करने के लिये किया गया युद्ध था।

पामर और पर्किन्स ने युद्ध के निम्नलिखित पाँच कार्य गिनायें हैं-

1. भूलों को सुधारना और अधिकारों को लागू करना – इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें यह ज्ञात होता है कि युद्ध के असहनीय और मानवता विरोधी अत्याचारों से बचने में सहयोग दिया है; उदाहरणार्थ- अमरीकी क्रांति ने अमरीका को इंग्लैण्ड से मुक्ति दिलायी, दूसरे विश्व युद्ध ने एशिया और अफ्रीका में यूरोपीय साम्राज्यवाद की समाप्ति का मार्ग प्रशस्त किया।”

2. शान्ति के अन्तिम साधन के रूप में युद्ध – स्टालिन के अनुसार युद्ध पूँजीवाद को समाप्त करने का साधन है। माओ के शब्दों में “राजनीतिक शक्ति तोपों द्वारा उत्पन्न होती है।” कुछ अन्य विचारक भी यह मानते हैं कि एक आदर्श व्यवस्था की स्थापना और स्थायी शान्ति की प्राप्ति के लिये युद्ध एक साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

3. राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था का पुनर्निमाण और आधुनिकीकरण – वर्तमान में इंग्लैण्ड, अमरीका, जापान, फ्रांस, स्पेन, चीन आदि देश युद्ध द्वारा ही ऊपर उठे हैं। इसीलिये यह कहा जाता है कि राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के पुनर्निमाण और आधुनिकीकरण के लिये युद्ध एक साधन होता है। क्विंसी राइट के शब्दों में, “युद्ध एक ऐसा साधन है जो आधुनिक युग के मुख्य राजनीतिक परिवर्तनों, राष्ट्रों-राज्यों के निर्माण और समस्त के विश्व में आधुनिक सभ्यता और विस्तार और उस सभ्यता के प्रमुख हितों में परिवर्तन के लिये वास्तव में प्रयोग किया गया है।”

4. नैतिक और आध्यात्मिक गुणों की उन्नति – कुछ विद्वान युद्ध के द्वारा नैतिक और आध्यात्मिक गुणों में वृद्धि करना मानते हैं। हीगल ने कहा कि युद्ध व्यक्ति को ईमानदार, देशभक्त और आत्म-बलिदानी बनाता है।

5. अन्य कार्य – डार्विन का मत हे कि युद्ध कमजोर और घटिया लोगों को निकालने के लिये एक आवश्यक प्रक्रिया होती है ताकि शक्तिशाली लोग आगे बढ़ें और उनका विकास हो सके। मुसोलिनी भी युद्ध को पुरुष के लिये उतना ही आवश्यक मानता है जितना कि स्त्री के लिये मातृत्व ।

परन्तु युद्ध के आलोचक विलार्ड वाल्टर का मत है कि, युद्ध कोई लाभ नहीं होता तथा किसी भी समस्या को इसके द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता ।”

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Anjali Yadav

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