राज्यक्षेत्रीय समुद्र क्या है? राज्यक्षेत्रीय समुद की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
राज्यक्षेत्रीय समुद्र (Territorial Seas) – यद्यपि राज्यक्षेत्रीय समुद्र को सागर खण्ड भी कहा जाता है परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री विधि में राज्यक्षेत्रीय समुद्र शब्द ही ज्यादा प्रचलित है। हेग संहिताकरण सम्मेलन 1930 (The Hague Condition Conference of 1930) में राज्यक्षेत्र समुद्र शब्द का प्रयोग किया गया है। जेनेवा सम्मेलन, 1956 के समय से ही, सामान्यतया ‘राज्य क्षेत्र समुद्र’ शब्द का प्रयोग किया गया है। समुद्र-विधि अभिसमय, 1982 में भी ‘राज्यक्षेत्र सागर खण्ड’ की अपेक्षा ‘राज्यक्षेत्र समुद्र’ शब्द का प्रयोग किया गया है। ओपेनहाइम का मत है कि राज्यक्षेत्र सागर खण्ड शब्द का प्रयोग उचित नहीं है क्योंकि कभी-कभी इसका प्रयोग आन्तरिक जलों को निर्दिष्ट करने तथा कभी-कभी आन्तरिक जल तथा राज्यक्षेत्र समुद्र को संयुक्त रूप से निर्दिष्ट करने के लिए भी किया जाता है।
राज्य की प्रभुत्व-सम्पन्नता न केवल इसकी सीमाओं के अन्तर्गत स्थित जल तथा भूमि तक सीमित है, बल्कि यह समुद्र के उस भाग तक भी विस्तारित है, जो तटवर्ती राज्य से संलग्न है। यह जल निश्चित क्षेत्र (zone) या पेटी (belt) में समाविष्ट रहता है, जिसे “सीमान्त क्षेत्र” (marginal zone) या “सीमान्त पेटी” (marginal belt) कहा जाता है। इसलिए राज्यक्षेत्र समुद्र को उस भाग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो किसी राज्य के तट से संलग्न है तथा जिस पर तटवर्ती राज्यों की प्रभुत्व-सम्पन्नता होती है। अन्य सभी राज्यों को अन्तर्राष्ट्रीय विधि केवल नौकाचालन के लिए निर्दोष यात्रा (innocent passage) के सामान्य अधिकार की अनुमति देता है। यह उस अर्थ में आन्तरिक जल से भिन्न है क्योंकि आन्तरिक जल राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत स्थित होता है तथा इनका प्रयोग स्वयं राज्यों द्वारा अनन्य रूप से किया जा सकता है। आन्तरिक जल के सम्बन्ध में दूसरे राज्यों को निर्दोष यात्रा का अधिकार उपलब्ध नहीं रहता। यह खुले समुद्र से भी भिन्न है, जो सभी राज्यों के वाणिज्य तथा नौकाचालन के लिए स्वतन्त्र होते हैं। राज्यक्षेत्र समुद्र तथा संलग्न क्षेत्र जेनेवा अभिसमय, 1958 ने अभिव्यक्त रूप से अनुच्छेद के अधीन राज्यक्षेत्र समुद्र पर तटवर्ती राज्यों की प्रभुत्व-सम्पन्न को मान्यता दिया है। “उक्त स्थिति को पुनः समुद्र-विधि अभिसमय, 1982 के अनुच्छेद 2, परिच्छेद 1 उन्हीं शब्दों के साथ में मान्यता दी गयी है, जो अधिकथित करता है कि तटवर्ती राज्य की प्रभुत्व-सम्पन्नता इसके भू-राज्यक्षेत्र तथा आन्तरिक जल के परे इसके तट से संलग्न समुद्र की पेटी तक विस्तृत है, जिसे राज्यक्षेत्र समुद्र कहा गया है।
राज्यक्षेत्रीय समुद्र की संकल्पना के प्रमुखत: दो पहलू हैं- प्रथमतः राज्य क्षेत्रीय समुद्र की चौड़ाई एवं द्वितीय उस पर राज्यों के अधिकार।
(1) राज्यक्षेत्रीय समुद्र की चौड़ाई (Breadth of Territorial Sea) – सामान्यतः यह माना जाता है कि तटवर्ती राज्य राज्यक्षेत्रीय समुद्र पर प्रभुत्व सम्पन्नता का प्रयोग करते हैं, लेकिन इसकी चौड़ाई के सम्बन्ध में विवाद चला आ रहा है। रूढ़िगत अन्तर्राष्ट्रीय विधि इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं करती। राज्यक्षेत्रीय अधिकारिता का विस्तार “तोप की मार-सीमा” (Cannon-shot) नियम पर आधारित था चूँकि तोप का गोला तीन मील तक ही जा सकता है, इसलिए इसको राज्यक्षेत्रीय समुद्र की सीमा मानी गयी। जेनेवा में 1958 में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र विधि सम्मेलन (International Conference on the Law of the Sea) भी राज्यों द्वारा अपनाये गये भिन्न मतों के कारण सीमा को विहित नहीं कर सका। लेकिन, कई राज्यों का यह मत था कि राज्य क्षेत्रीय समुद्र का विस्तार तट से 6 मील तक होना चाहिए। इस सम्बन्ध में अनिश्चितता के कारण, 1960 में महासभा द्वारा दूसरा जेनेवा सम्मेलन आयोजित किया गया, किन्तु पुनः राज्यक्षेत्रीय समुद्र की चौड़ाई को निर्धारित नहीं किया जा सका। परिणाम यह हुआ कि भिन्न-भिन्न राज्यों ने भिन्न-भिन्न दावे किये। कई राज्यों ने तट से 12 मील तक राज्यक्षेत्रीय समुद्र की चौड़ाई का दावा किया, जबकि निली, पेरू तथा इक्वेडार तथा कई अन्य राज्यों ने 200 मील तक का दावा किया। लेकिन 1982 के अभिसमय ने अनुच्छेद 3 के अधीन यह प्रावधान करके विवाद का निपटारा कर दिया कि प्रत्येक राज्य को आधार-रेखा (base-line) से मापे गये 12 समुद्र मील (Nautical miles) तक अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र की चौड़ाई को स्थापित करने का अधिकार होगा। समुद्र-विधि अभिसमय, 1982 के अधीन प्रावधानित अधिकतर राज्यों को राज्यक्षेत्रीय समुद्र की यह चौड़ाई स्वीकार्य है। भारत तथा अन्य 127 राज्यों ने 12 मील तक राज्यक्षेत्रीय समुद्र की अधिकतम चौड़ाई को विस्तारित करने के लिए अपने राज्यों में विधान बना लिए हैं।
राज्यक्षेत्रीय समुद्र की चौड़ाई मापने के लिए सामान्य आधार रेखा, तट के साथ निम्न जल रेखा (low water line) है, जो तटवर्ती राज्यों द्वारा प्रशासकीय रूप में मान्यता प्राप्त बड़े पैमाने पर चार्ट (large scale chart) पर अंकित है।
(2) राज्यक्षेत्रीय समुद्री जल पर राज्यों के अधिकार (Right of States over Territorial Waters) – राज्यक्षेत्रीय समुद्री जल पर तटवर्ती राज्यो की सम्प्रभुता होते हुये भी कुछ मामलों में अन्य राज्यों को भी अधिकार प्राप्त होता है। तटवर्ती राज्य तथा अन्य राज्यों के अधिकार निम्न प्रकार हैं-
(क) तटवर्ती राज्यों के अधिकार (Rights of Coastal States) – राज्य क्षेत्रीय समुद्र पर तटवर्ती राज्यों की प्रभुसत्ता होती है। परिणामस्वरूप इनका दूसरे राज्यों के निर्दोष यात्रा के अधिकार को छोड़ कर समुद्र के इस भाग पर पूर्ण अभिराज्य होता है। प्रभुत्व-सम्पन्नता का तात्पर्य है कि तटवर्ती राज्य का राज्यक्षेत्रीय समुद्र के प्राकृतिक उत्पादों को अर्जित करने का अनन्य अधिकार है, जिसमें मछली मारने का अधिकार भी शामिल है। राज्यों को अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र के समुद्र-तल और समुद्र-भूमि के संसाधनों, यथा-स्थानबद्ध (redentary) मत्स्य पालन तथा गैर-जीवित संसाधनों, जैसे हाइड्रोकार्बन, कंकड़ तथा खनिज पदार्थों पर भी अनन्य अधिकार है। तटवर्ती राज्य विशेष रूप से यातायात तथा नौकाचालन के सम्बन्ध में विधि तथा विनियमों को अधिनियमित कर सकते हैं जिसे निर्दोष यात्रा के अधिकार का प्रयोग करने वाले विदेशी जहाजों को अनुपालन करना चाहिए। नौकाचालन के लिए; नौकाचालन सहायता तथा सुविधा एवं अन्य सुविधाओं या संस्थापनों (installations) की सुरक्षा के लिए, समुद्री तारों (cables) तथा नल तन्त्रों (pipe-lines) की सुरक्षा के लिए, समुद्र के जीवित के जीवित संसाधन के संरक्षण के लिए, तटवर्ती राज्य के रक्षण (preservation) तथा उसके प्रदूषण के निवारण (prevention) तथा नियन्त्रण के लिए राज्यक्षेत्रीय तटवर्ती के क्षेत्र में विधि तथा नियम बना सकते हैं। निर्दोष यात्रा से सम्बन्धित विधियों तथा नियमों का विदेशी जहाजों के अनुसरण करने की आशा की जाती है। तटवर्ती राज्य को उस यात्रा को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार हैं, जो निर्दोष नहीं है। वे अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र के विनिर्दिष्ट क्षेत्र में, विदेशी जहाजों के निर्दोष यात्रा को अस्थायी रूप में निलम्बित कर सकते हैं, यदि ऐसा निलम्बन उनकी सुरक्षा के संरक्षण के लिए आवश्यक होता है। पुनः यदि कोई युद्ध पोत (Warship) राज्यक्षेत्रीय समुद्र में यात्रा के सम्बन्ध में में तटवर्ती राज्य की विधियों तथा नियमों का अनुपालन नहीं करता तथा अनुपालन के लिए किये गये अनुरोध का निरादार करता है, तो तटवर्ती राज्य उससे तुरन्त राज्यक्षेत्रीय समुद्र को छोड़ने के लिए कह सकता है। यद्यपि तटवर्ती राज्य को अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र में निर्दोष यात्रा को निलम्बित करने का अधिकार है, लेकिन राज्यक्षेत्रीय समुद्र से विदेशी जहाजों की निर्दोष यात्रा में विघ्न न डालना इसका कर्तव्य है। यह विदेशी राज्यों पर ऐसी आवश्यकताओं को अधिरोपित नहीं करेगा, जिसका व्यावहारिक प्रभाव निर्दोष यात्रा के अधिकार से इन्कार करने या उससे क्षति पहुँचाने का हो। तटवर्ती राज्यों का यह कर्तव्य है कि वह दूसरे राज्यों को अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र में नौपरिवहन के क्षेत्र में उत्पन्न खतरों की जानकारी दे।
(ख) अन्य राज्यों के अधिकार (Rights of other States) – अन्तर्राष्ट्रीय विधि का यह रूढ़िगत नियम है कि राज्यक्षेत्रीय समुद्र नौपरिवाहन के लिए सभी राज्यों के व्यापारिक बानों के लिए खुला रहता है। ऐसे यानों को राज्य के राज्यक्षेत्रीय समुद्र से निर्दोष यात्रा का अधिकार होता है। उक्त अधिकार के परिणामस्वरूप कोई राज्य अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र से यात्रा करने वाले विदेशी जलयानों के केवल यात्रा के लिए पथकर (toll) उद्गृहित नहीं कर सकता। यद्यपि तटवर्ती राज्य अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र के अन्तर्गत सुरक्षित नौसंचालन के लिए प्रकाश गृहों के निर्माण तथा रख-रखाव तथा अन्य सुविधाओं के लिए धन व्यय करता है, फिर भी यह केवल विदेशी जलयानों से ऐसे परिव्यय का भुगतान नहीं करा सकता, या किसी ऐसी अपेक्षाओं को अधिरोपित नहीं कर सकता, जिसका व्यवहारिक प्रभाव निर्दोष यात्रा के अधिकार के इन्कार करने या रोकने से हो। शान्ति-काल में राज्यक्षेत्रीय समुद्र से तटवर्ती राज्य की ओर से निर्दोष यात्रा को निवारित करने या उसमें बाधा डालने का कोई प्रयास विधि विरुद्ध है। यह नियम राज्यक्षेत्र समुद्र तथा संलग्न क्षेत्र जेनेवा अभिसमय, 1958 में शामिल किया गया था जिसके अनुच्छेद 14 के अधीन प्रावधान किया गया था कि सभी राज्यों के जलयान राज्यक्षेत्रीय समुद्र से निर्दोष यात्रा के अधिकार का उपभोग करेंगे। यही प्रावधान खुले समुद्र सम्बन्धी अभिसमय 1982 के आर्टिकल 17 में भी वर्णित है जो यह कहता है कि “भू-अवेष्ठित अथवा तटवर्ती सभी राज्य राज्यक्षेत्रीय समुद्र से बगैर किसी व्यवधान के यात्रा के अधिकारी होंगे।
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