राजनीति विज्ञान / Political Science

राज्यों को मान्यता- अभिव्यक्त मान्यता और अव्यक्त मान्यता।

राज्यों को मान्यता दो प्रकार से दी जा सकती है- अभिव्यक्त मान्यता और अव्यक्त मान्यता।
राज्यों को मान्यता दो प्रकार से दी जा सकती है- अभिव्यक्त मान्यता और अव्यक्त मान्यता।

राज्यों को मान्यता किन-किन प्रकारों से दी जाती है, स्पष्ट कीजिए।

अन्तर्राष्ट्रीय विधि में राज्यों को मान्यता दो प्रकार से दी जा सकती है- अभिव्यक्त मान्यता और अव्यक्त मान्यता।

(1) अभिव्यक्त मान्यता (Express recognition)

 जब स्थापित राष्ट्रों द्वारा कुछ औपचारिक उद्घोषणाओं के माध्यम से नवीन राज्यों को मान्यता प्रदान करते हैं तब ऐसी मान्यता को अभिव्यक्त मान्यता कहा जाता है। औपचारिक घोषणा सार्वजनिक कथन के रूप में हो सकती है, जिसके मूलपाठ को राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाले राज्य को भेजा जाता है। भारत द्वारा 6 दिसम्बर 1971 को बंग्लादेश की मान्यता अभिव्यक्त मान्यता का उदाहरण है। मान्यता सन्धि बना करके भी प्रदान की जा सकती है। यह प्रथा यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) द्वारा अपने उपनिवेशीय या अन्य परतन्त्र राज्य क्षेत्रों को स्वतन्त्रता प्रदान करने में अपनाई गयी थी। उदाहरण के लिए 17 अक्टूबर 1947 को यूनाइटेड किंगडम तथा बर्मा अब म्यांमार (Myanmar) के मध्य-हस्ताक्षरित सन्धि के अधीन, युनाइटेड किंगडम ने बर्मा को पूर्णतः स्वतन्त्र तथा प्रभुत्त सम्पन्न राज्य के रूप में मान्यता प्रदान किया था।

राज्य के प्रमुख या विदेशी मामलों के मंत्री के राजनयिक विवरण ( diplomatic note) मौखिक विवरण (note verbal) व्यक्तिगत सन्देश (personal massage) द्वारा या संसदीय घोषणा (parliamentary decelaration) द्वारा भी दी जा सकती है। सम्बन्धित मंत्री प्रेस वक्तव्य द्वारा भी यह घोषणा कर सकते हैं कि अन्यथा संदिग्ध विवरण या मौखिक विवरण औपचारिक मान्यता है।

(2) अव्यक्त मान्यता (Implied Recognition)

 जब स्थापित राष्ट्रों द्वारा नवीन राज्यों के मान्यता के बारे में कोई औपचारिक उद्घोषणा न करके कोई ऐसा कार्य नवीन राज्यों के प्रति करते हैं जिससे नवीन राज्यों को मान्यता प्रदान करने का उनका आशय मालुम पड़ता है तो उसे अव्यक्त मान्यता अथवा विवादित मान्यता कहते हैं। मान्टेवीडियो अभिसमय 1933 (Montevideo Convertion of 1933) के अनुच्छेद 7 के अधीन कहा गया है कि विवक्षित मान्यता उस कार्य का परिणाम है, “जो नये राज्य के मान्यता के आशय में निहित है।” इस प्रकार की मान्यता को विवक्षित मान्यता के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है। मान्यता का आशय राज्यों द्वारा अकेले या सामूहिक रूप से व्यक्त किया जा सकता है।

(i) एक पक्षीय कार्य (Unilateral Acts) – जब कोई राज्य बिना मान्यता प्राप्त (Unrecognized) राज्य से द्विपक्षीय सन्धि करता है या राजनयिक सम्बन्ध स्थापित करता है, तब यह आशय निकाला जा सकता है कि उसने नये राज्य को मान्यता प्रदान कर दी है। इसी प्रकार आशय का अनुमान बिना मान्यता प्रदान किये हुये राज्य में औपचारिक समारोह में उपस्थित होने के लिए प्रतिनिधियों को भेजने से भी निकाला जा सकता है। वाणिज्य दूतों का विनिमय, अर्थात् बिना मान्यता प्राप्त राज्य में वाणिज्य दूतों का प्रस्थान तथा उसके दूतों का स्वागत भी नये राज्य को मान्यता देने के आशय को निर्दिष्ट करता है।

(ii) सामूहिक कार्य (Collective Acts) – नये राज्य को विद्यमान राज्यों द्वारा सामूहिक रूप से मान्यता प्राप्त राज्य बहुपक्षीय (Multilateral) सम्मेलन में या बहुपक्षीय सन्धि में भाग लेता है, तब यह माना जाता है कि सम्मेलन या सन्धि के अन्य पक्षकारों ने नये राज्य को मान्यता दे दी है। इसी प्रकार, जब नया राज्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का सदस्य बनता है, तब यह माना जाता है कि संगठन के अन्य सदस्यों द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गयी है। इस प्रकार की मान्यता को सामूहिक मान्यता कहा जाता है, क्योंकि राज्य को संगठन के अन्य सदस्यों द्वारा सामूहिक रूप से मान्यता प्रदान की जाती है, किन्तु बहुपक्षीय सम्मेलन में या बहुपक्षीय सन्धि में अन्य राज्यों के साथ नये का भाग लेना सभी मामलों में मान्यता की कोटि में आता है या नहीं, यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर इस तथ्य की दृष्टि में सकारात्मक रूप से नहीं दिया जा सकता, क्योंकि मान्यता राज्य का व्यक्तिगत तथा स्व-विवेक कार्य है। इसी कारण से संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्रिटेन अभिसमय पर हस्ताक्षर करते समय यह शर्त लगाते हैं कि अभिसमय पर हस्ताक्षर करने का आशय उन राज्यों को मान्यता देना नहीं है, जिन्हें उनके द्वारा मान्यता नहीं दी गयी है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा साम्यवादी चीन (Communist Chaina) 1954 तथा 1962 के फ्रांसीसी, भारतीय-चीन जेनेवा प्रोटोकाल (Geneva Protocal on French Indo-china) के पक्षकार थे, किन्तु उनकी भागीदारी संयुक्त राज्य द्वारा साम्यवादी चीन को मान्यता की कोटि में नहीं आती। पैन अमेरिका संघ (Pan American Union) के सम्मेलन में, मान्यता न प्राप्त सरकारों को इस समझौता पर भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था कि उनकी भागीदारी में इसके सदस्यों द्वारा मान्यता निहित नहीं है। सोवियत रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूनाइटेड किंगडम द्वारा 5 अगस्त, 1963 को अंशत: परीक्षण प्रतिबन्ध मास्को सन्धि (Mascow Partial Test Ban Treaty) की गयी थी। इसे पूर्व जर्मनी लोकतांत्रिक गणराज्य (East Germany Democratic Republic) द्वारा भी स्वीकार किया गया। इस पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्पष्ट रूप से कहा था कि पूर्व जर्मनी की भागीदारी से संयुक्त राज्य द्वारा उस राज्य को दिया जाना नहीं समझा जायेगा। उन मामलों में, जहाँ शर्त नहीं लगायी, वहाँ भी यह नहीं कहा जा सकता कि सन्धि में भागीदारी से मान्यता की उपधारणा करना पर्याप्त है।

सशर्त मान्यता (Conditional Recognition)

जब मान्यता देने वाला राष्ट्र, मान्यता की सामान्य शर्तों के अलावा, अन्य शर्तें नवीन राज्य पर मान्यता देने हेतु आरोपित करता है तो इसे सशर्त मान्यता कहा जाता है। सशतं मान्यता की अवधारणा को उस प्रोटोकाल में पेश किया गया था, जिस पर 28 जून, 1878 को सर्बिया (Serbia) की मान्यता के लिए ग्रेट ब्रिटेन फ्रांस, इटली तथा जर्मनी की ओर से हस्ताक्षर किया गया था। प्रोटोकाल में कहा गया था कि सर्विया को इस शर्त के अधीन मान्यता दी जा रही है कि वह अपने निवासियों पर कोई धार्मिक भेदभाव नहीं करेगा। शर्त मान्यता प्रदान करने वाला राज्य, मान्यता के एवज में अपने विशिष्ट लाभ के लिए लगाता है। ओपेनहाइम ने उचित ही कहा है कि मान्यता विभिन्न पहलुओं में न तो संविदात्मक प्रबन्ध है, और न ही राजनीतिक रियायत (concession) है। यह कतिपय तथ्यों की विद्यमानता की घोषणा है। ऐसा होने के कारण, इसे उन अपेक्षाओं, जो समुदाय को स्वतन्त्र राज्य के रूप में मान्यता के लिए अर्हित करता है, के लगातार अस्तित्व को शामिल करके अस्तित्व के अतिरिक्त अन्य शर्तों के अध्यधीन करना अनुचित है। इस प्रकार, मान्यता प्रदान करते समय लगायी गयी कोई शर्त मान्यता के वास्तविक कृत्य के प्रतिकूल होता है। राज्य की मान्यता सशर्त नहीं हो सकती। यदि राज्य एक बार नये राज्य को मान्यता प्रदान कर देते हैं तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मान्यता प्रदान करने वाले राज्य के विचार में, मान्यता प्राप्त करने वाला राज्य राज्यत्व के सभी गुणों को धारण करता है। राज्यत्व के गुणों को धारण करने की मान्यता सशर्त नहीं हो सकती। बैटी (Baty) ने निर्दिष्ट किया है कि शासी प्राधिकार (governing authority) के रूप में, नये राज्य के साथ किसी सम्बन्ध में इसके राज्यत्व की मान्यता निहित है। इसका तात्पर्य यह है कि मान्यता सशर्त नहीं हो सकती – या तो यह तथ्य है या तो तथ्य नहीं है। मान्यता का मूल तत्व है कि इसके द्वारा मान्यता प्रदान करने वाला राज्य यह घोषणा करता है कि मान्यता प्राप्त प्राधिकारी राज्य के विशिष्ट लक्षणों को प्राप्त करता है। इसका तात्पर्य यह है कि मान्यता के लिए शर्त लगाना निरर्थक होता है। स्टार्क के अनुसार कहा जा सकता है कि “अन्तर्राष्ट्रीय विधि में मान्यता का तात्पर्य राष्ट्रत्व के स्थायित्व से है तो सही तर्क यह है कि कोई भी शर्त ऐसी मान्यता को अवैध नहीं कर सकती अथवा उसके प्रभाव में मान्यता समाप्त नहीं हो सकती।”

IMPORTANT LINK

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment