राजनीति विज्ञान / Political Science

राज्य उत्तराधिकार से आप क्या समझते हैं?

राज्य उत्तराधिकार से आप क्या समझते हैं?
राज्य उत्तराधिकार से आप क्या समझते हैं?

राज्य उत्तराधिकार से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।

राज्यों का उत्तराधिकार : अर्थ एवं परिभाषाएँ

अन्तर्राष्ट्रीय कानून में ‘उत्तराधिकार’ शब्द बहुत व्यापक है। इस शब्द का प्रयोग साधारणतया व्यक्तियों के अधिकार और कर्त्तव्य के परिवर्तन के लिए होता है। जब व्यक्ति मरने को होता है तो वह अपने अधिकार और कर्त्तव्य किसी व्यक्ति विशेष को सौंप जाता है। जिस व्यक्ति को वह अधिकार और कर्त्तव्य सौंपता है वह उसका उत्तराधिकारी कहलाता है। ठीक इस प्रकार जब एक राज्य का प्रदेश उस राज्य के प्रभुत्व से अन्य राज्यों के प्रभुत्वों में चला जाता है, तब उसे राज्य के उत्तराधिकार की संज्ञा दी जाती है। प्रथम राज्य, जिसका प्रदेश अन्य राज्य को चला जाता है पूर्वाधिकार राज्य कहलाता है तथा दूसरा राज्य जिसे वह प्रदेश उत्तराधिकार में प्राप्त होता है, उत्तराधिकारी राज्य कहलाता है।

प्रो. फेनविक के अनुसार, “राज्यों के उत्तराधिकार को केवल सरकारों के उत्तराधिकार से अलग किया जाना चाहिए।”

ओपनहीम के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तियों का उत्तराधिकार उस समय होता है जबकि एक या एक से अधिक राज्य किसी एक अन्तर्राष्ट्रीय राज्य तो पृथक होकर अपना अस्तित्व अलग स्थापित कर लेते हैं।” अगस्त 1947 में भारत के विभाजन के पश्चात् भारतीय उप महाद्वीप पर ग्रेट ब्रिटेन के दो उत्तराधिकारियों का अधिकार हो गया। ये उत्तराधिकारी थे- भारत और पाकिस्तान। इस प्रकार एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्ति का स्थान दो अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तियों ने ले लिया।

उत्तराधिकार के सम्बन्ध में एम. पी. टण्डन का मत है कि, “कोई भी राज्य किसी दूसरे राज्य के एक भाग को अधिकृत करके उसका उत्तराधिकारी बन जाता है, इसका दो या अधिक भागों अथवा नये राज्यों के रूप में विघटन हो सकता है, अर्थात् किसी राज्य के उत्तराधिकार का सम्बन्ध उस पर किसी अन्य राज्य के अधिकार से ही होता है।” जैसे प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप आस्ट्रेलिया, हंगरी में अधिनायक तंत्र का विघटन, द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप जर्मन प्रदेश का विखंडन।

‘उत्तराधिकार’ शब्द पर कुछ आपत्तियाँ- ‘राज्य उत्तराधिकार’ शब्द का प्रयोग उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि यह राज्यों के कानून में उत्तराधिकार के नियम पर आधारित हैं। ब्रायली का कहना है कि, “उत्तराधिकार प्रधान रूप से वैयक्तिक कानून का सिद्धान्त है। इससे यह आभास होता है कि कुछ अंशों में राज्य की समाप्ति की तुलना व्यक्ति की मृत्यु से की जा सकती है, किन्तु शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से राज्यों की कभी मृत्यु नहीं होती उनकी जनसंख्या और प्रदेश लुप्त नहीं होते, अपितु इनका केवल राजनीतिक परिवर्तन होता है।”

प्रो. स्टार्क के अनुसार, “उत्तराधिकार व्यक्तिगत कानून में हो सकता है जहाँ व्यक्ति मरते हैं और अपने दायित्व तथा प्राप्तियाँ अपने उत्तराधिकारी को सौंप जाते हैं, राज्यों में ऐसा नहीं होता।”

संक्षेप में कहा जा सकता है कि उत्तराधिकारी में किसी देश की प्रभुसत्ता नये राज्यों में परिवर्तन होता है, जिसमें पूर्वाधिकारी के अधिकार और कर्त्तव्य नये राज्य को मिल जाते हैं। नये राज्य पृथक होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बना लेता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि जब एक राज्य किसी राज्य से पृथक होकर अन्य राज्य से मिल जाये तो क्या उसका पुराना व्यक्तित्व कायम रहेगा और क्या नया राज्य बन जाने पर उस पुराने राज्य के दायित्वों एवं आभारों का बोझ भी आ जाता है और यदि हाँ तो कितना? ऐसे – विषयों से संबंधित प्रश्नों का सामान्यतया हल निकाल पाना एक विषम कार्य है, परन्तु तार्किक – एवं सचेष्टता का मार्ग अपनाकर इनका समाधान किया जा सकता है।

उत्तराधिकार के प्रकार (Kinds of Succession)

 राज्य उत्तराधिकार दो प्रकार का माना जाता है-

  1. सार्वजनिक या सार्वभौमिक उत्तराधिकार (Universal Succession)
  2. आंशिक उत्तराधिकार (Partial Succession)

1. सार्वभौमिक उत्तराधिकार – जब एक राज्य पूर्णरूप से दूसरे राज्य में विलीन हो जाता है और उसका अपना अस्तित्व किसी रूप में स्थापित नहीं रहता है, तो उसे सार्वभौमिक उत्तराधिकार कहा जाता है। सार्वभौमिक उत्तरधिकार भी तीन प्रकार का होता है-

(i) विजय द्वार- जब एक राज्य शक्ति या किसी शांतिपूर्ण साधन द्वारा दूसरे राज्य को पूर्णरूप से अपने में मिला ले तो उसे विजय द्वारा प्राप्त सार्वभौमिक उत्तराधिकार कहा जाता है। जैसे से सन् 1901 में ग्रेट ब्रिटेन द्वारा दक्षिण अफ्रीका गणतंत्र का विजय द्वारा पूर्ण विलीनीकरण।

(ii) अनेक राज्यों का एक संघ बनाना- कभी-कभी जब बहुत से राज्य एक संघ राज्य में बदल जाते हैं या राज्य स्वेच्छापूर्वक एक संघ में मिलते हैं। जैसे सन् 1958 में मिस्र सीरिया तथा इमेन मिलकर एक संयुक्त अरब गणराज्य में बदल गये।

(iii) विभाजन द्वारा- जब किसी राज्य के दो या दो से अधिक भाग उनमें से प्रत्येक भाग अलग-अलग अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्ति या राज्य बन जाये जैसे- सन् 1947 में जायें और भारत के विभाजन के कारण भारत और पाकिस्तान दो अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तियों की रचना पहली बार की गई। इनमें से प्रत्येक स्वतंत्र राज्य उत्तराधिकारी राज्य बन जाता है।

2. आंशिक उत्तराधिकार- जब पूर्वाधिकारी राज्य से उसका कोई प्रदेश काटकर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर ले तो उसे आंशिक उत्तराधिकर कहा जाता है। यह अग्रलिखित परिस्थितियों में उत्पन्न होता है-

(i) जब किसी राज्य का एक भाग अपने पैतृक राज्य क्षेत्र से पृथक होकर एक स्वतंत्र राज्य बन जाता है, चाहे ऐसा करने से पूर्व यह कोई करार, समझौता या विद्रोह करता है। जैसे सन् 1971 में बांग्लादेश अपने मातृ देश पाकिस्तान से विद्रोह कर स्वतंत्र राज्य में बदल गया।

(ii) जब कोई सार्वभौमिक राज्य किसी संघात्मक राज्य में मिलकर अपनी स्वतंत्रता का कुछ भाग खो देता है या किसी दूसरे राज्य के संरक्षण में आ जाता है। जैसे सन् 1938 में म्यूनिख में चेकोस्लोवाकिया का विघटन।

(iii) जब कोई राज्य किसी अन्य राज्य के भू-भाग के एक अंश पर अपना अधिकार स्थापित कर लेता है। जैसे सन् 1847 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने कैलिफोर्निया का क्षेत्र प्राप्त किया था और उसे एक नवीन राज्य का रूप दिया था।

राज्य उत्तराधिकार के दोनों सिद्धान्तों की विवेचना करते हुए डॉ. एच. ओ. अग्रवाल ने लिखा है कि, “राज्य उत्तराधिकार के दोनों प्रकारों में एक समान कारण है अर्थात् एक या एक से अधिक प्रभुत्व सम्पन्न राज्य को प्रस्थापित करते हैं तथा इसलिए अन्तर केवल परिवर्तन के विस्तार को परिभाषित करने का संक्षिप्त ढंग एवं नये राज्य को पुराने राज्य के अधिकारों तथा बाध्यताओं का हस्तान्तरण है।”

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Anjali Yadav

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