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संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं मानव अधिकार | The U.N. Charter and Human Rights in Hindi

संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं मानव अधिकार | The U.N. Charter and Human Rights in Hindi
संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं मानव अधिकार | The U.N. Charter and Human Rights in Hindi

संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं मानव अधिकार | The U.N. Charter and Human Rights

संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं मानव अधिकार (The U.N. Charter and Human Rights)- संयुक्त राष्ट्र चार्टर एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संलेख है जो उसके पूर्व के प्रयासों से अधिक विकसित है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर राज्यों द्वारा हस्ताक्षर करने तथा उसका अनुसमर्थन करने से एक प्रकार से यह औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया कि मानवीय अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय विषय है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी लोगों द्वारा यहूदियों एवं अन्य प्रजातियों पर किये गये अमानवीय अत्याचार का प्रभाव यह हुआ कि मूल मानवीय अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण का एक आंदोलन प्रारम्भ हो गया तथा चार्टर में कई जगह इसका हवाला दिया गया है। वास्तव में चार्टर के निर्माताओं के मस्तिष्क में नाजी तथा फासीवादी नेताओं द्वारा किये गये अत्याचार ताजे थे अतः उनका दृढ़ संकल्प था कि व्यक्तियों के अधिकारों को अन्तर्राष्ट्रीय विधि का विषय बनाया जाय। संयुक्त राष्ट्र चार्टर पहली अन्तर्राष्ट्रीय संधि (अल्पसंख्यकों के संरक्षण की संधियों को छोड़कर जो प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् की गयी थी परन्तु यह संधियाँ विशेष दलों के अधिकारों से सम्बन्धित थी न कि मानवीय अधिकारों से) है जिसमें मानव अधिकारों का उल्लेख है क्योंकि चार्टर के निर्माता युद्ध के तथ्यों के पीछे इसके कारणों को देख रहे थे अर्थात् तनाशाही जिससे युद्ध सम्भव होते हैं। संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर होने से तथा उसमें मानव अधिकारों से सम्बन्धित कई प्रावधानों के होने से अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के विकास को एक गति तथा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ जिनका आज सम्मान किया जाता है। मानवीय अधिकारों से सम्बन्धित उपबंध पूर्ण संयुक्त राष्ट्र चार्टर में एक सुनहरे तागे के समान गुंथे हुये हैं। इसका बहुत कुछ श्रेय गैर-सरकारी संस्थाओं को जाता है जिन्होंने इसका बहुत प्रचार तथा प्रसार किया। सैन फ्रान्सिस्को सम्मेलन जिसमें कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर हुये थे, कुछ देशों के प्रतिनिधि मानवीय अधिकारों से सम्बन्धित और कड़े उपबंधों को अपनाने के पक्ष में थे, एक प्रयत्न जो असफल रहा, यह यों किया गया था कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर में मानवीय अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय बिल को सम्मिलित किया जाए। ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर’ मे मानव अधिकारों से सम्बन्धित उपबन्ध (Provisions of the Charter Concerning Human Rights) – शांति स्थापित करने के उद्देश्य को छोड़कर संयुक्त राष्ट्र चार्टर में किसी अन्य विषय को इतना महत्व नहीं दिया गया है जितना कि मानवीय अधिकारों को। मानवीय अधिकारों के प्रावधान पूर्ण चार्टर में एक सुनहरे तागे में गुंथे हुये हैं। संयुक्त राष्ट्र की किसी भी कथा में मानवीय अधिकारों को महत्वपूर्ण स्थान रहेगा। संयुक्त राष्ट्र की मूल धारणा में मानवीय अधिकारों का महत्वपूर्ण स्थान है तथा पूर्ण चार्टर में ‘ निम्नलिखित सात स्थानों पर उसका उल्लेख है-

(अ) प्रस्ताव में, (ब) संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों में [अनुच्छेद 1 (3)],

(स) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग के उद्देश्यों में [अनुच्छेद 13(2)] जिनका उल्लेख अध्याय 9 एवं 10 में किया गया है।

(द) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के कार्यों में [अनुच्छेद 62 (2)],

(फ) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के दायित्व के सम्बनध में जिसमें मानवीय अधिकारों की प्रोन्नति के लिये एक कमीशन स्थापित करने की बात कही गयी है [अनुच्छेद 68],

(ज) न्यास प्रणाली के उद्देश्यों में [अनुच्छेद 76 (स)]। उपरोक्त में से प्रत्येक की संक्षेप में चर्चा नीचे की जा रही है।

(अ) संयुक्त राष्ट्र चार्टर की प्रस्तावना “हम, संयुक्त राष्ट्र के लोग” शब्दों से प्रारम्भ होती है। यह शब्द न तो अतिरिक्त या फालतू है तथा न ही प्रासंगिक या आनुषंगिक है। चार्टर के निर्माता इन शब्दों के प्रति पूर्ण रूप से गंभीर थे तथा उन्होंने चार्टर में अनेक स्थानों पर जैसे मानवीय अधिकारों के सम्बन्ध में उपनिवेशवाद को समाप्त करने, गैर-स्वशासित क्षेत्रों के सम्बन्ध में आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग के सम्बन्ध आदि में ठोस रूप प्रदान किया है। अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि में यह एक महत्वपूर्ण नवाचार सम्मिलित करने के पश्चात् प्रस्तावना मौलिक मानवीय अधिकारों, मानव के व्यक्ति की गरिमा एवं मूल्य तथा पुरुष एवं महिलाओं के समान अधिकारों में आस्था प्रकट करती है।

(ब) द्वितीय अनुच्छेद 1(3) के अनुसार राष्ट्र के प्रयोजनों में से एक प्रयोजन आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या मानवीय प्रकृति की अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के हल करने के लिये मानवीय अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं के बिना जाति, प्रजाति, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव के सम्मान को प्रोन्नत एवं प्रोत्साहित करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना है। इस प्रकार अनुच्छेद 1 संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजन के रूप में मानवीय अधिकारों को अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखने के समान स्तर पर रखता है।

(स) तृतीय महासभा की जिम्मेदारियों में से एक जिम्मेदारी यह है कि वह आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शिक्षा तथा स्वास्थ्य क्षेत्रों तथा मानवीय अधिकारों एवं मूल स्वतंत्रताओं बिना प्रजाति, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव के प्राप्ति की सहायता एवं प्रोन्नति हेतु अध्ययन करवायेगा तथा संस्तुतियाँ देगा। इसके अतिरिक्त महासभा की जिम्मेदारियाँ, कार्य एवं शक्तियाँ चार्टर के अध्ययों 10 एवं 11 में दी गई हैं।

(द) चतुर्थ, स्थायित्व एवं कल्याण की दशायें उत्पन्न करने के लिये जो समानता के अधिकारों एवं आत्मनिर्धारण के सिद्धान्तों के प्रति सम्मान पर आधारित राष्ट्रों के मध्य शांतिपूर्ण तथा मित्रता के सम्बन्ध बनाने के लिये आवश्यक है, अनुच्छेद 55 के अन्तर्गत संयुक्त राष्ट्र का दायित्व है कि वह प्रजाति, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव के बिना मानवीय अधिकारों तथा मूल स्वतंत्रताओं की सार्वभौमिक सम्मान तथा अनुपालन को प्रेरित करे। इस उपबन्ध का अगला उपबंध अर्थात् 56 और भी सबल एवं प्रभावशाली बना देता है। अनुच्छेद 56 के अनुसार सभी सदस्य यह संकल्प लेते हैं कि वह संस्था के सहयोग द्वारा धारा 55 में वर्णित प्रयोजनों की प्राप्ति के लिये संयुक्त तथा पृथक कार्यवाही करेंगे। ब्राऊनली के अनुसार, यह संधि के उपबंध जो सभी सदस्यों तथा संस्था पर लागू होते हैं बहुत महत्वपूर्ण हैं। अनुच्छेद 55 अस्पष्ट है परन्तु अनुच्छेद 56 काफी सबल है तथा सदस्यों को सम्मिलित करता है तथा संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक एवं न्यायिक अंगों के निर्वचन के अनुसार यह पूर्व उपबंध के प्रति विधिक दायित्व उत्पन्न करता है। अतः संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 55 या 56 सदस्य राज्यों को मानवीय अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं का पालन करने तथा उनका सम्मान करने को बाध्य करते हैं। इस मत का समर्थन न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने भी किया है। न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने यह मत एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रस्थिति वाले क्षेत्र में मानवीय अधिकारों के पालन के सम्बन्ध में दिया है। परन्तु यह सही मत प्रकट किया गया है कि अनुच्छेद 55 एवं 56 में उल्लिखित संकल्प का अधिक विस्तृत महत्व है तथा वह किसी अन्तर्राष्ट्रीय प्रास्थिति वाले क्षेत्र में मानवीय अधिकारों के पालन तक सीमित नहीं है।

(इ) पंचम, संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने आर्थिक एवं सामाजिक परिषद को अधिकृत कर दिया है कि यह मानवीय अधिकारों एवं मूल स्वतंत्रताओं के सम्मान तथा उनके पालन को प्रोन्नति के उद्देश्य से संस्तुतियाँ दें।

(फ) षष्ठ, संयुक्त राष्ट्र चार्टर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद पर यह कर्त्तव्य भी अधिरोपित करता है कि वह आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में मानवीय अधिकारों को प्रोन्नति के लिये कमीशन स्थापित करे तथा अन्य कमीशन भी कार्यों की पूर्ति हेतु आवश्यकतानुसार स्थापित कर सकता है।

(ज) सप्तम, अनुच्छेद 1 में वर्णित संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय न्यास प्रणाली का यह एक मूल उद्देश्य है कि वह मानवीय अधिकारों एवं मूल स्वतंत्रताओं के सम्मान को बिना जाति, प्रजाति, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव तथा विश्व के सभी लोगों की अन्तर्निर्भता को प्रोत्साहित करे। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र चार्टर में वर्णित मानव अधिकारों से सम्बन्धित प्रावधान मानव अधिकारों के बेहतर संरक्षण के लिये नींव तथा प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।

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Anjali Yadav

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