“सामान्यतः अन्तर्राष्ट्रीय विधि में हस्तक्षेप वर्जित है, परन्तु इसके कुछ अपवाद भी है।” विवेचना कीजिए।
हस्तक्षेप करने के कारण (Grounds of Intervention)
हस्तक्षेप के अनेक कारण होते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख एवं न्यायोचित कारण निम्न हैं-
(1) आत्म सुरक्षा हेतु (For self Defence)- यदि राज्य में किसी आन्तरिक हड़ी का उस देश की नीति के कारण किसी राज्य की सत्ता पर प्रभाव पड़ता है और वह प्रभाव एसा होता है कि वह अपनी स्वतन्त्रता को खो सकता है तो उस राज्य को अपनी रक्षा के लिए राज्य की आन्तरिक अथवा विदेश नीति में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र (U.N.) के आज्ञापत्र की धारा 51 के अनुसार सुरक्षा परिषद (Security Council) द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के उपाय का अवलम्बन करने के तक दूसरे राज्य के सशस्त्र (Armed) आक्रमण से रक्षा करने का अधिकार राज्य को दिया गया है। अत: आत्मरक्षा का अधिकार दूसरे राज्यों की स्वाधीनता का सम्मान करने से कहीं अधिक पवित्र है। इसी कारण अपनी रक्षा को खतरे में पाकर या इस प्रकार के खतरे की शंका होने पर राज्य द्वारा किया गया हस्तक्षेप न्यायोचित होगा। अब प्रश्न यह है कि किस प्रकार निश्चित किया जाये कि राज्य द्वारा किया गया हस्तक्षेप आत्मरक्षा के लिए ही किया गया है।
इसके लिए यदि निम्न तीन अवस्थाएं पाई जायें तो हस्तक्षेप आत्मरक्षा के लिए ही किया गया हस्तक्षेप कहा जा सकता है।-
(i) हस्तक्षेप करने वाले राज्य को आत्मरक्षा का भय प्रत्यक्ष व सन्निहित होना चाहिए।
(ii) हस्तक्षेप या सन्निहित कारण ऐसा हो कि उस युद्ध को न्यायोचित ठहराया जा सके।
(iii) हस्तक्षेप के अतिरिक्त उस राज्य के लिए और कोई चारा न हो।
आत्मसंरक्षण के आधार पर किया गया हस्तक्षेप प्रोफेसर हाल (Professor Hall ) द्वारा उस दशा में न्यायोचित ठहराया गया है, जब पाश्र्ववर्ती राष्ट्र इतना अशक्त हो गया हो कि वह अपनी प्रजा के अपने पड़ोसी पर वास्तविक आक्रमणों को रोकने के योग्य नहीं, है, या यह बाहर विप्लव भड़काता है अथवा ऐसे विरोधी की धमकी देता है जो इसको उलट देने से हटा दिये जा सकें।
(2) सन्धि अधिकारों को लागू करने हेतु (Enforcement of treaty rights) – सन्धि के अधिकारों की रक्षा करने के लिए किया गया हस्तक्षेप न्यायोचित ठहराया जाता है। जब कोई राष्ट्र अपने आपको किसी अन्य राष्ट्र के संरक्षण में रख देता है, अर्थात् उस राज्य का संरक्षण एक अन्य राज्य किसी एक सन्धि द्वारा स्वीकार कर लेता है तो संरक्षण स्वीकार करने वाले राष्ट्र को संरक्षण पाने वाले राज्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार हो जाता है। यदि संरक्षण पाने वाले राज्य पर किसी प्रकार के आक्रमण की सम्भावना होती है या किसी प्रकार की अन्य गड़बड़ होने की आशंका होती है तो संरक्षण करने वाले राज्य को उसकी आन्तरिक व वैदेशिक नीति में हस्तक्षेप करने का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए 1831 व 1839 की लन्दन सन्धियाँ (London Treaties) के आधार पर बेल्जियम (Belgium) में हस्तक्षेप करने का अधिकार ब्रिटेन को प्राप्त हो गया था और 1914 में प्रथम विश्व-युद्ध के अन्तर्गत जर्मनी द्वारा बेल्जियम पर आक्रमण होने पर ब्रिटेन में जर्मनी के विरुद्ध युद्ध आरम्भ कर दिया था।
(3) मानवता की वजह से हस्तक्षेप (Intervention for humanity)- लारेंस के अनुसार, “मानवता के नाते किया गया हस्तक्षेप न्यायोचित हस्तक्षेप है।” यदि एक राज्य अपने पड़ोसी राज्य पर या अपने ही यहाँ के नागरिकों पर ऐसे कृत्य करता है, जो कि मानवता के विरुद्ध हैं, तो किसी राज्य द्वारा इस राज्य के इन अमानवीय कार्यों के लिए किया गया हस्तक्षेप न्यायोचित ठहराया जाता है। वास्तव में इस प्रकार के हस्तक्षेप के न्यायोचित होने की धारणा 19वीं शताब्दी की देन है। 1827 ई० के ग्रीन तथा टर्की के युद्ध में फ्रांस, ब्रिटेन तथा रूस द्वारा किया गया हस्तक्षेप | अमानवीयता के कृत्यों के आधार पर ही किया गया हस्ताक्षर था। हिटलर ने यहूदियों के साथ अमानवीय कृत्य किये, जिस कारण अन्य राष्ट्रों द्वारा उसकी इस नीति में हस्तक्षेप किया गया। 1971 में भारत ने पाकिस्तान में हस्तक्षेप किया और बंगलादेश के लोगों व सैनिकों को सहायता प्रदान की जिससे पाकिस्तान का विघटन हुआ।
(4) शक्ति सन्तुलन के कारण (For Balance of Power) – शक्ति संतुलन के कारण हस्तक्षेप की धारणा 17वीं शताब्दी की देन है, परन्तु आधुनिक युग में यह धारणा बिल्कुल निराधार हो चुकी है। इसका कारण यह है कि 17वीं शताब्दी में शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने के लिए यह सिद्धान्त बहुत अच्छा सिद्धान्त था। परन्तु आज शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने का कार्य संयुक्त राष्ट्र ने अपने ऊपर ले लिया है। इसी कारणा आज इस धारणा की कोई महत्ता नहीं है। “शक्ति सन्तुलन” का अर्थ यह है कि विश्व के सभी राष्ट्रों की शक्ति समान बनी रहे। कोई भी राज्य किसी अन्य राज्य से बहुत अधिक शक्तिशाली न होने पाये। 1856 ई० का क्रीमिया युद्ध टर्की सुरक्षा के लिए फ्रांस व ब्रिटेन में हुआ। 1856 ई० के पेरिस सम्मलेन व 1878 ई० की बर्लिन कान्फ्रेंस के सभी निर्णय इसी शक्ति सन्तुलन के आधार पर किये गये। 1886 व 1897 में ग्रीस और टर्की के मामलों में यूरोप के राज्यों ने हस्तक्षेप किया और शक्ति सन्तुलन की स्थापना की। इन बड़े राज्यों के उद्देश्य स्वार्थपूर्ण थे और इसके कारण इन्होंने उनके हितों का ध्यान नहीं रखा।
(5) जीवन एवं सम्पत्ति की रक्षा हेतु (Protection of person and property) – जब कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि किसी देश को अपने व्यक्तियों तथा उसकी सम्पत्ति आदि की रक्षा करना असम्भव दिखाई देता है, तो वह राज्य अन्य राज्य-जिसके कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है, की नीति में हस्तक्षेप कर सकता है। इसके अतिरिक्त कई बार ऐसा भी सम्भव होता है कि किसी राज्य के दिवालिया होने की सम्भावना में उसको कर्ज देने वाले राज्य उसकी नीति में हस्तक्षेप करते हैं। पिछली शताब्दियों में यूरोप की महान् शक्तियों द्वारा अफ्रीका व एशिया के राज्यों में इसी आधार पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया गया। फ्रांस व ब्रिटेन के कर्ज के कारण ही मिस्र देश उनका दास बना।
(6) गृह-युद्धों में हस्तक्षेप (Intervention in Civil Wars)- जब किसी राज्य में गृह-युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, तो निश्चित रूप से ही उसका प्रभाव पड़ोसी राज्य पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में पड़ोसी राज्य गृह युद्ध में हस्तक्षेप कर सकते हैं। परन्तु अब जबकि संयुक्त राष्ट्र ने शान्ति व सुरक्षा कार्य स्वयं सम्भाल रखा है, तो किसी देश के गृह-युद्ध में किसी अन्य राज्य का हस्तक्षेप, उचित नहीं ठहराया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के आज्ञापत्र (Charter) में यह कहा गया है कि सभी राष्ट्रों का यह कर्तव्य है कि वे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में किसी देश की प्रादेशिक पूर्णता व राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल का प्रयोग न करें और न ही बल-प्रयोग करने की धमकी दें। 1827 ई० में यूनान के आन्तरिक मामलों में ब्रिटेन, फ्रांस, मिस्र ने उसको स्वतन्त्र कराने के लिए हस्तक्षेप किया। 1849 ई० में आस्ट्रिया को हंगरी का विद्रोह दबाने के लिए रूस ने सैनिक सहायता प्रदान की। 1934-38 में स्पेन के गृहयुद्ध ने जनरल फ्रैंकों को हिटलर व मुसोलिनी ने तथा स्पेन की गणतन्त्र सरकार को रूस ने सहायता प्रदान की। 1947 में सोवियत संघ ने ईरान में हस्तक्षेप किया। 1947 में यूगोस्लाविया, बल्गारिया तथा अल्वानिया में ग्रीस ने और सोवियत रूस ने हंगरी में हस्तक्षेप किया।
(7) अवैध हस्तक्षेप को रोकने हेतु (To Check illegal intervention) – यदि कोई राष्ट्र किसी अन्य देश के आन्तरिक अथवा वैदेशिक मामलों में अवैध हस्तक्षेप करता है अर्थात् इस प्रकार किया गया हस्तक्षेप की दृष्टि से उचित नहीं है तो इस नीति के विरुद्ध हस्तक्षेप किया जा सकता है। इस प्रकार का हस्तक्षेप अवैध हस्तक्षेप को रोकने के उद्देश्य से किया जाता है। 1826 में ब्रिटेन का पुर्तगाल को सहायता देना इस प्रकार के हस्तक्षेप का उज्ज्वल उदाहरण है।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय विधि की प्रतिष्ठा की रक्षा (Defence of International Law) – जब किसी राष्ट्र द्वारा कोई ऐसा कार्य किया जाता है, जो अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों के विरुद्ध है और उनका उल्लंघन होने से अन्तर्राष्ट्रीय विधि के मान व मर्यादा को आघात पहुँचता है, तो अन्य राष्ट्रों द्वारा किया गया हस्तक्षेप, न्यायोचित ठहराया जाता है। पेकिंग में जर्मनी के मन्त्री का वध होने पर 1900 ई० में विश्व की कुछ शक्तियों ने संयुक्त रूप से चीन के विरुद्ध हस्तक्षेप किया था।
स्टार्क महोदय ने निम्न पांच दशाओं में हस्तक्षेप को न्यायोचित ठहराया है-
(i) संयुक्त राष्ट्र की कौंसिल के अधिकार-पत्र के अनुसार।
(ii) विदेशों में निवास करने वाले स्वदेशियों की रक्षा हेतु ।
(iii) आत्म-संरक्षण के लिए।
(iv) अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों का उल्लंघन होने की दशा में।
(v) संरक्षित राज्यों की रक्षा हेतु ।
ओपेनहाइम सात परिस्थितियों में हस्तक्षेप को न्यायोचित ठहराता है, जो इस प्रकार है-
(i) संयुक्त राष्ट (U.N.) की कौंसिल की व्यवस्था के अनुसार,
(ii) विदेश में निवास करने वाले स्वदेशियों की रक्षा के लिए,
(iii) आत्म-संरक्षण के हेतु,
(iv) अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों का उल्लंघन की स्थिति में,
(v) संरक्षित राज्यों की रक्षा हेतु,
(vi) अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि का उल्लंघन करने की स्थिति में, तथा
(vii) सन्धि द्वारा, किसी राज्य में शासन-पद्धति का स्वरूप व राजवंश होने पर अथवा इसमें परिवर्तन होने की स्थिति में।
वास्तव में हस्तक्षेप का यह कार्य विभिन्न सरकारों द्वारा शान्ति बनाये रखने के लिए किया जाता रहा। संयुक्त राष्ट्र (U.N.) ने विश्व शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखने का भार अपने कन्धों पर ले लिया है जिसके कारण इस समय हस्तक्षेप के स्थान पर विवादों का पारस्परिक समझौतों व वाद-विवाद द्वारा समाधान करने का प्रयास किया जाता है। परन्तु यथार्थ सत्य यह है कि हस्तक्षेप की घटनायें फिर भी होती रहती हैं।
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