शिक्षा के सिद्धान्त / PRINCIPLES OF EDUCATION

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना क्या है ?

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना क्या है ?
अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना क्या है ?

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना क्या है ? वालकों में इसके विकास के लिए हमें जिन बातों पर बल देना चाहिए, उनकी विवेचना कीजिए।

आज विश्व बहुत छोटा हो गया है। हजारों मील दूर रहने वाले आज कुछ ही देर में कहीं के कहीं पहुँचते हैं। समय और दूरी का अन्तर कम हो गया है। अतः आज शिक्षा के माध्यम से ही विश्व को और भी निकट लाया जा सकता है।

हमारे समक्ष दो महायुद्धों का इतिहास है। इन दोनों महायुद्धों में संकीर्ण राष्ट्रीयता ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। लाखों व्यक्ति मरे हैं और राष्ट्रों के बीच वैमनस्य बढ़ा है। यह सच है कि आज न तो विजेता ही बचता है और न पराजित हो। इस विभीषिका को देखते हुए रोमियाँ रोलाँ (Romian Rolland) ने कहा है—“दो विश्व युद्ध ने यह बता दिया है कि संकीर्ण राष्ट्रीयता का नाश होना चाहिए, मानव मात्र का संघ होना चाहिए; यह प्रेम, दया तथा सहानुभूति के आधार पर मानव सम्बन्धों का विकास करे।”

“The two Global wars, with their terribly devastating results, have at least established the fact that the narrow bonds of sordid and aggressive nationalism must be smashed through and unwalled and unhedged. Federation of mankind should be brought into being for fostering human relations on the plane of love, pity and sympathy.”

इस संघर्ष का मुख्य कारण तीव्र राष्ट्रीयता रहा है। मेरा देश चाहे गलत हो या नहीं की भावना से ओत-प्रोत है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने इस पर अपना विचार इस प्रकार व्यक्त किया है— आज की दुनिया में मेरा ही देश ‘भला या बुरा’ के नारे से भयंकर और कुछ नहीं है। सारा विश्व आज एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा है कि कोई भी राष्ट्र अकेले जिन्दा नहीं रह सकता या जिन्दा रहने का साहस नहीं कर सकता। अतः राष्ट्रीयता के लिए नागरिकता जितनी आवश्यक है, उतनी ही आज विश्व नागरिकता की भावना के विकास की आवश्यकता है। वास्तविक अर्थों में देश भक्ति ही पर्याप्त नहीं है, अपितु यह इस जीवन बोध से अनुप्रमाणित होनी चाहिए कि हम सभी एक विश्व के सदस्य हैं और हमें उसके लिए मानसिक तथा भावनात्मक रूप से तैयार रहना चाहिए।

1. अन्तर्राष्ट्रीयता का अर्थ (Meaning of Internationalism)
  1. ओलीवर गोल्डस्मिथ- अन्तर्राष्ट्रीयता वह भावना है, जिससे व्यक्ति अपने राज्य का ही सदस्य नहीं, अपितु विश्व की नागरिकता भी अनुभव करता है।
  2. एच० जी० वैल्स- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध वह योग्यता है, जिससे व्यक्ति बिना किसी पक्षपात के आलोचनात्मक रूप से व्यवहार की जाँच करता है, ऐसा करने के लिए व्यक्ति सब राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों, प्रवृत्तियों को इस संसार में रहने वाले लोगों की समान रूप से महत्वपूर्ण भिन्नताओं का निरीक्षण कर सके।
2. अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की शिक्षा की आवश्यकता (Need for Education for International Understanding)

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की शिक्षा की आवश्यकतों आज के युग में आपसी तनाव दूर करने के लिए अधिक है-

  1. विश्व में शान्ति के प्रयत्नों से ही मानव जीवित रह सकता है। ये शान्ति के प्रयत्न तभी हो सकते हैं, जबकि संसार के लोगों में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध होगा।
  2. स्वयं को जिन्दा रखने के लिए दूसरे को भी जिन्दा रखना है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव आवश्यक है।
  3. राष्ट्रीय प्रगति भी बिना अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के सम्भव नहीं।

विश्व आज सिमट गया है। व्यक्ति कुछ घण्टों में दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँच सकता है। ऐसी स्थिति में संसार एक इकाई बन गया है, जिसे रंग, प्रजाति, राष्ट्रीयता तथा अनेक स्वार्थों ने अपने रंग में रंग लिया है और युद्ध की विभीषिका को जन्म दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की शिक्षा इसलिए आवश्यक है-

  1.  सम्पूर्ण मानव जाति तथा विश्व को एक समझना आवश्यक है।
  2.  मनुष्य को ध्वंसात्मक प्रवृत्ति से बचाने तथा रचनात्मक प्रवृत्ति में लगाने के लिए।
  3.  वैज्ञानिक आविष्कारों का सभी राष्ट्रों के लिए उपयोग किया जा सके।
  4.  अन्तर्राष्ट्रीय प्रगति के लिए प्रयास करना।
  5.  मानवता की भावना का विकास करना ।

अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव को विकसित करने के लिए ये उपाय किए जाने चाहिएँ-

  1. नवयुवकों में स्वतन्त्र चिन्तन विकसित करना।
  2. ज्ञान के प्रयोग का शिक्षण देना ।
  3. राष्ट्र प्रेम का सही अर्थ बताना।
  4. आत्मनिर्भरता पर बल ।
  5. भय, आतंक को दूर करना ।
  6. व्यक्तिगत तथा सामाजिक चेतना का विकास करना ।
  7. सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्वाह करना।
3. अन्तर्राष्ट्रीयता की शिक्षा (Education for Internationalism)

शिक्षा विकास का महत्वपूर्ण साधन है। जनता की मनोभावनाएँ इसी के माध्यम से बदली जा सकती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय तनाव इसी के द्वारा बदले जा सकते हैं। उन्हें रचनात्मक मोड़ दिया जा सकता है। इसके लिए हमें इन बातों का ध्यान रखना होगा-

  1. बालकों में तर्क एवं विचार शक्ति का विकास करना ।
  2. संकीर्ण राष्ट्रीय की भावना को दूर करना।
  3. बालकों में हीनता व महत्व की भावना का अवरोध करना।
  4. पारस्परिक निर्भरता का ज्ञान देना।
  5. व्यक्तित्व के विकास की पूरी सम्भावनाएँ तथा अवसर प्रदान करना ।
  6. ‘जियो और जीने दो’ की भावना का विकास करना।
4. अन्तर्राष्ट्रीयता की शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Internationalism in Education)

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की शिक्षा के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

  1. सभी राष्ट्रों की राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों से छात्रों को परिचित कराना।
  2. मानवता की रक्षा के लिए सभी राष्ट्रों द्वारा किए गए प्रयत्नों का ज्ञान करना। विश्व की समस्याओं का ज्ञान कराना ।
  3. स्वतन्त्र तर्क, विचार एवं निर्णय शक्ति का उपयोग कराने की क्षमता उत्पन्न करना।
  4. विश्व नागरिकता के लिए छात्रों को तैयार करना ।

यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं-

  • बालकों को समाज निर्माण कार्यों में भाग लेने के योग्य बनाना ।
  • विश्व के आचार-विचार पर परिचय।
  • आलोचनात्मक निरीक्षक की क्षमता का विकास करना ।
  • अनेक संस्कृतियों को समझने की क्षमता।
5. शैक्षिक कार्यक्रम (Educational Programme)

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम का अनुकरण करने पर जोर दिया गया है-

  1. विद्यालयों में बिना किसी भेद-भाव, जाति, रंग-भेद के शिक्षा के समान अवसर प्रदान किए जाएँ। विद्यालय के वातावरण का प्रभाव इस प्रकार की शिक्षा पर अत्यधिक पड़ता है।
  2. अध्यापकों को शिक्षण विधि बदलनी चाहिए। विज्ञान के साथ समाज का ज्ञान देना चाहिए। एकांकी शिक्षण का बहिष्कार करना चाहिए।
  3. पाठ्यक्रम में परिवर्तन होना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध तथा अन्तर्राष्ट्रीयता को विकसित करने वाले विषयों को पाठ्यक्रमों में स्थान देना चाहिए।
  4. छात्रों को अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों— यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय संघ, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि का परिचय देना चाहिए।
  5. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगितायें, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण, परिचर्चा आदि का आयोजन होना आवश्यक है।
6. शिक्षक का योग (Contribution of the Teacher)

अध्यापक, शिक्षण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, अध्यापक यदि चाहे तो वह सब कुछ कर सकता है। अध्यापक को चाहिए कि वह छात्रों के लिए निम्नलिखित कार्य करे-

  1. अध्यापक का विश्वास अन्तर्राष्ट्रीयता में होना चाहिए।
  2. पढ़ाई जाने वाली सामग्री केवल मौखिक न हो। सामग्री का क्रिया द्वारा प्रस्तुतीकरण आवश्यक है।
  3. छात्रों में दूसरे देश के लोगों की जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा उत्पन्न करनी चाहिए।
  4. शिक्षक जनतन्त्र एवं अन्तर्राष्ट्रीयता को न केवल पढ़ायें ही, अपितु छात्रों के समक्ष ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करें, जिससे वे उन गुणों को आचरण में लायें।
  5. शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों के मानसिक स्तर को ऊँचा उठाये।
  6. शिक्षक को चाहिए कि वह साहित्य, इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, विज्ञान में समवाय पद्धति द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध का विकास करे।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की शिक्षा देने के लिए शिक्षकों को विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
7. निष्कर्ष (Conclusion)

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आज के युग में हर राष्ट्र के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि वह अपने नागरिकों को अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा दे। आज पिछड़े रहने से काम नहीं चलेगा। पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में- “पृथकता का अर्थ है पिछड़ापन तथा पतन। दुनिया बदल गई है और पुरानी मान्यतायें टूट गई हैं, जीवन अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है। हम आ रही अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए कार्यरत हैं।”

“Isolation means backwardness and decay. The world has changed and old barriers are breaking down, life becomes more international. We are playing our part in this coming internationalism.”

डॉ० राधाकृष्णन ने भी कहा है- “हम इस आणविक युग में, जिसमें हम जी रहे हैं; मानव चेतना के प्रति समायोजन की आवश्यकता अनुभव करते हैं। यह स्पष्ट है कि मानव प्रजाति युद्ध के कारण नष्ट हो जाएगी। अतः यह मानव के समायोजन की असफलता होगी।”

“We need today in adjustment of the human consciousness to the nuclear age in which we live. It is now conceivable that the human race may put an end to itself by nuclear warfare or preparation for it. Thus, it will be the result of the failure of man’s consciousness to adjust itself to the technological revolution.”

अतः स्वयं जिन्दा रहने, दूसरों को जिन्दा रखने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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