अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकारों को विस्तार पूर्वक समझाइए।
अभिक्रमित अनुदेशन पाँच प्रकार के होते हैं- 1. रेखीय या श्रृंखला अभिक्रम, 2. शाखीय अभिक्रम, 3. अवरोह अभिक्रमित अनुदेशन या मैथेटिक्स, 4. कम्प्यूटर आधारित अभिक्रम, 5. स्व-निर्देशित अभिक्रमित ।
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रेखीय अभिक्रमण
रेखीय अभिक्रमण को श्रृंखला अभिक्रमण अथवा वाह्य अभिक्रमण भी कहा जाता है। बी.एफ. स्किनर ने सन् 1954 में रेखीय अभिक्रमण का विकास किया था । स्किनर ने अनुदेशन के लिए छोटे-छोटे पदों (Frame) का प्रयोग श्रृंखला के रूप में किया था। इसलिए इसे श्रृंखला अनुदेशन भी कहा जाता है। रेखीय अभिक्रमण में एक सीधी रेखा के रूप में कार्यक्रम (Programme) बनाए जाते हैं और विषयवस्तु को छोटे-छोटे पदों/अंशों में विभक्त कर लिया जाता है, जिसे फ्रेम (Frame) की संज्ञा दी गई हैं। अतः प्रत्येक फ्रेम से एक नया फ्रेम निकलता है। इस प्रकार यह एक श्रृंखला सदृश एक-दूसरे सेक् सम्बद्ध तथा एक क्रम होते हैं। इसके फ्रेम की उपशाखाएं नहीं होती हैं। इसमें छात्र के अनुदेशन की प्रक्रिया पूर्ण नियंत्रित होती है। इस पर नियंत्रण कार्यक्रम निर्माता का होता हैं।
अभिक्रमण की प्रक्रिया
इसमें सबसे पहले प्रथम फ्रेम में छात्र के समक्ष शिक्षा की विषयवस्तु का एक छोटा सा अंश प्रस्तुत किया जाता है। तत्पश्चात् उससे सम्बन्धित पूछा जाता है। छात्र उसे समझकर प्रश्नोत्तर देता है। छात्र द्वारा प्रदत्त उत्तर सही हैं या गलत, इसका ज्ञान छात्र को कराया जाता है, जो उसे पुनर्बलन का कार्य करता है। उत्तर सही होने पर उसके अगले फ्रेम की ओर बढ़ने को कहा जाता है। इस प्रकार एक फ्रेम उसके पश्चात् प्रश्न, फिर उत्तर एवं पुनर्बलन, इसी प्रकार यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक छात्र अन्तिम व्यवहार करते हुए सम्पूर्ण प्रोग्राम पूर्ण नहीं कर लेता है। इसमें छात्र की सही अनुक्रिया को अधिगम प्रक्रिया का वांछित अंग माना जाता है। इसमें विषय वस्तु इस प्रकार प्रस्तुत की जाती है कि छात्र कम से कम त्रुटियाँ करे। स्किनर ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि छात्र को किसी भी फ्रेम के अध्ययन के उपरान्त 10 प्रतिशत से अधिक त्रुटियाँ नहीं करनी नाटिए ।
रेखीय अभिक्रमण की प्रक्रिया में प्रयुक्त पद
रेखीय अभिक्रमण की प्रक्रिया में प्रयुक्त पद (Steps) के मुख्य रूप से तीन भाग होते हैं—
1. उद्दीपन- इसमें छात्र के लिए पाठ्यवस्तु उद्दीपन का कार्य करती है,
2. अनुक्रिया- छात्र उद्दीपन के लिए अपेक्षित अनुक्रिया करते हैं। सही अनुक्रिया से छात्र को नया ज्ञान प्राप्त होता है।
3. पुनर्बलन- छात्र की अनुक्रियाओं की जाँच भी की जाती है। सही अनुक्रिया की जानकारी होने पर छात्र को प्रसन्नता होती है, जो उसे अगले पद (Frame) के लिए आगे बढ़ने हेतु पुनर्बलन का कार्य करता है। इसमें पदों (Frames) की रचना इस प्रकार की जाती है कि एक पद (Frame) की अनुक्रिया अगले पद (Frame) के लिए उद्दीपन का कार्य करती है।
रेखीय अभिक्रमण में फ्रेम्स के प्रकार
किसी पाठ्यवस्तु के फ्रेम (Frames) की रचना में उसकी प्रकृति के दृष्टिगत निम्नलिखित फ्रेम पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
1. प्रस्तावना फ्रेम- इस फ्रेम का मुख्य उद्देश्य अधिगम का आरम्भ करना होता इसमें छात्र के पूर्व व्यवहारों का नये व्यवहारों से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।
2. शिक्षण फ्रेम- यह फ्रेम अधिगम का मुख्य फ्रेम है। इसमें फ्रेम का उद्देश्य छात्र को नवीन ज्ञान अथवा नवीन व्यवहार प्रदान करने से है।
3. अभ्यास फ्रेम- इस फ्रेम का उद्देश्य सीखे गए नवीन ज्ञान / नवीन व्यवहार का अभ्यास कराना होता है, जिसे नवीन ज्ञान व्यवहार का धारण (Retention) हो सके और प्राप्त ज्ञान / व्यवहार स्थायी हो सके।
4. परीक्षण फ्रेम- इस फ्रेम का उद्देश्य छात्र के अर्जित ज्ञान का परीक्षण करना होता है। छात्र ने विभिन्न फ्रेम्स से क्रमानुसार अग्रसर होते हुए कितना ज्ञान अर्जित किया है।
रेखीय अभिक्रमण की विशेषताएं
- यह मनोवैज्ञानिक अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित हैं अत: इसके माध्यम से प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है।
- इसमें छात्र क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत विषयवस्तु के छोटे-छोटे फ्रेम्स के माध्यम से एक ही मार्ग पर अग्रसर होते हुए अन्तिम फ्रेम अर्थात् अन्तिम व्यवहार तक कम से कम त्रुटियाँ करके पहुंचने का प्रयास करता है।
- इसमें छात्र की अनुक्रिया का मूल्यांकन करके सही अनुक्रिया हेतु प्रतिपुष्टि (Feedback) प्रदान की जाती है।
- इसमें छात्र को सही उत्तर की जानकारी हो जाने से पुनर्बलन प्राप्त होता है, जिससे वह अगले फ्रेम के लिए आगे बढ़ जाता है।
- इसमें प्रारम्भ में अधिगम प्रक्रिया को सरल बनाने की दृष्टि से अनुबोधकों (Prompts) या संकेतों (Cues) का प्रयोग भी किया जाता है। छात्रों के अभ्यस्त हो जाने पर उन्हें धीरे-धीरे हटा लिया जाता है।
- शिक्षक इसमें अनुक्रिया तथा उसके क्रम पर यथासम्भव नियंत्रण रखता है।
- इसमें शिक्षण की विषयवस्तु का निर्धारण और प्रस्तुतीकरण का ढंग इस प्रकार होता है। कि छात्र कम से कम त्रुटियाँ करते हैं।
- इसमें सभी छात्र अपनी-अपनी रुचि, गति एवं सामर्थ्य के अनुसार सीखने का प्रयास करते हैं और ज्ञानार्जन करते हैं।
- इसमें छात्र विशेष सक्रिय रहते हैं।
- इसमें विषयवस्तु के जटिल सम्प्रत्ययों को सरलता एवं सुगमता से स्पष्ट किया जा सकता है।
रेखीय अभिक्रमण की सीमाएं
रेखी अभिक्रमण की निम्नलिखित सीमाएं हैं-
- इसमें छात्र की रुचियों एवं वैयक्तिक आवश्यकताओं को दृष्टिगत न रखकर सभी छात्रों को विषयवस्तु का ज्ञान कराने के लिए एक ही कार्यक्रम दिया जाता है। अतः यह मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है।
- इसमें अधिगम प्रक्रिया नियंत्रित दशाओं में सम्पन्न होता है। अतः इसमें छात्र की अनुक्रियाएं सहज एवं स्वाभाविक ढंग से नहीं हो पाती है।
- इसमें विषयवस्तु के शिक्षण हेतु फ्रेम की रचना सरल नहीं है। इसलिए इसका अभिक्रमण तैयार करने में सभी सक्षम नहीं है।
- इसके माध्यम से शिक्षण में प्रतिभाशाली छात्र कम रुचि लेते हैं।
- यह मितव्ययी नहीं है क्योंकि इसमें समय, शक्ति एवं धन का अपव्यय होता है।
- यह सभी प्रकार के पाठों के शिक्षण के लिए उपयोगी नहीं है।
शाखीय अभिक्रमण
सन् 1954 में नार्मन-ए-क्राउडर ने संयुक्त राज्य अमेरिका में शाखीय अभिक्रमण का विकास किया था और इसमें प्रयुक्त होने वाली स्क्रैम्बल्ड पुस्तकें एवं शाखीय अभिक्रमण शिक्षण मशीनों का भी निर्माण किया था। इसे भारेखीय अभिक्रमण और आन्तरिक अभिक्रमण भी कहा जाता है। शाखीय अभिक्रमण की प्रक्रिया रेखीय अभिक्रमण की प्रक्रिया से पूर्णतः भिन्न है। क्योंकि इसमें छात्र रेखीय अभिक्रमण सदृश एक फ्रेम से दूसरे फ्रेम की ओर अग्रसर होने के लिए एक ही रेखा में पथ का अनुसरण नहीं करते हैं वरन् अपने अभीष्ट उत्तरों पर आधारित अलग-अलग (शाखाओं) रास्तों को अपनाते हुए अन्ति तक पहुँचने का प्रयास करते हैं इसमें सभी फ्रेम्स को प्रस्तुत करने का कोई क्रम सुनिश्चित नहीं होता है। इसमें समस्त अनुक्रियाएं छात्र द्वारा नियंत्रित होती है। इसमें छात्र योग्यतानुसार अनुक्रिया करते हुए ज्ञानार्जन करता है।
शिक्षा- शब्दकोश में शाखीय अभिक्रमण के अर्थ को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है, ‘शाखीय अभिक्रमण एक अभिक्रमण प्रविधि हे, जो सापेक्षतया लम्बे पदों, बहु विकल्पीय उत्तरों एवं शाखीय नियमित प्रयोग को विशेषता प्रदान करती है। यदि प्रत्येक पद के सूचना खण्ड के पठन के उपरान्त छात्र सामग्री पर आधारित प्रश्न के लिए उचित अनुक्रिया को चुनता है तब वह नई सूचना प्रस्तुत करने के लिए अन्य पद के लिए भेजा जाता हैं। यदि वहु गॅलत विकल्प चुनता है तब वह उसी पद के लिए भेजा जाता है, जो सूचना प्रदान करता है कि उसका विकल्प उस सीमा तक क्यों गलत था, जिसके सम्भाव्य उत्तरों का कार्यक्रम निर्माता ने सही रूप में पूर्व कथन किया है, जो छात्र समग्र (Population) उत्तर देगा। प्रत्येक छात्र द्वारा लिये गए कार्यक्रम स्वयं अपनी अनुक्रियाओं/ उत्तरों के नियंत्रण में होते हैं और भिन्न-भिन्न योग्यताओं के छात्रों के लिए भिन्न-भिन्न होंगे।”
शाखीय अभिक्रमण की प्रक्रिया
इसमें सर्वप्रथम छात्र को एक फ्रेम पढ़ने को दिया जाता है। फ्रेम एक या दो पैराग्राफ अथवा पूर्ण पृष्ठ का भी हो सकता है। इसमें छात्र को एक-एक करके सभी फ्रेमों से गुजरना होता है। इसमें छात्र किसी पद (Frame) का अध्ययन करने के पश्चात उसके नीचे प्रदत्त बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर दे सकता है। उसे प्रदत्त उत्तरों में से एक सही उत्तर का चयन करना होता है। यदि छात्र का उत्तर सही होता है तो वह अगले फ्रेम के अध्ययन के लिए आगे बढ़ता है। यदि छात्र का उत्तर गलत होता है तो उसे उपचारात्मक श्रृंखला की ओर जाने को कहा जाता है। तत्पश्चात् पुनः उसी फ्रेम पर आने और उत्तर देने को कहा जाता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है, , जब तक छात्र सही उत्तर नहीं दे देता है। इस प्रकार छात्र अपने सही उत्तरों पर आधारित अलग-अलग रास्ते (शाखाएं) अपनाते हुए अन्तिम पद तक पहुँचते हैं। इसमें सभी पदों को प्रस्तुत करने को कोई क्रम सुनिश्चित नहीं होता है। इसमें छात्र अपनी योग्यता के अनुसार अनुक्रिया करते हुए ज्ञानार्जन करता है। इसमें अनुक्रियाओं पर छात्र का नियंत्रण रहता है।
शाखीय अभिक्रमण की विशेषताएं
इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं—
- इसके लिए निर्मित फ्रेम में पाठ्यवस्तु अधिक समाहित रहती हैं।
- इसमें छात्रों को विभिन्न फ्रेमों में अनुक्रिया करते हुए अन्तिम फ्रेम तक पहुँचने के लिए कोई बन्धन नहीं होता है।
- इसमें छात्रों को सही अनुक्रिया करने के लिए कोई उद्बोध और संकेत नहीं दिया जाता हैं
- इसमें छात्र अनुक्रियाएँ करने के लिए स्वतंत्र होता है। बहुविकल्पीय प्रश्नों में से छात्र किसी का भी चयन कर सकता है। छात्र की गलत अनुक्रियाएं अधिगम में बाधक नहीं होती हैं गलत अनुक्रिया करने पर छात्र को उसमें सुधार हेतु अवसर प्रदान किया जाता है। पहले ग्रहीत फ्रेम का सही उत्तर देने के उपरान्त ही उसे अगले फ्रेम पर अनुक्रिया करने को कहा जाता है।
- इस अभिक्रमण में अधिगम प्रक्रिया की अपेक्षा अधिगम उत्पाद को अधिक महत्व दिया जाता है।
- यह छात्र केन्द्रित एवं छात्र नियंत्रित अभिक्रमण है।
- इस अभिक्रमण द्वारा निर्मित अनुदेशन सामग्री पुस्तकों एवं शिक्षण मशीन दोनों में उपयोग होता है।
शाखीय अभिक्रमण की सीमाएं
इसकी सीमाएं निम्नलिखित हैं –
- यह समय, शक्ति एवं धन की दृष्टि से मित्तव्यय का नहीं है।
- इस अभिक्रमण में छात्र द्वारा की जाने वाली सम्भाव्य त्रुटियों के दृष्टिगत पाठ्यवस्तु निर्मित की जाती है। अतः इसकी रचना प्रशिक्षित एवं सुयोग्य शिक्षकों द्वारा ही सम्भव है।
- यह निम्न कक्षाओं के छात्रों के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि इस स्तर पर छात्रों का उचित मानसिक विकास नहीं हो पाता है, जिससे वे बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही उत्तर चुनने में कठिनाई अनुभव करते हैं।
- इसमें यदि छात्र अनुमान पर आधारित उत्तर का चयन करके गलत अनुक्रिया करते हैं तो उसे बार-बार सही करने से समय का अपव्यय होता है। अतः इस अभिक्रमण के माध्यम से सम्पन्न होने वाली अधिगम प्रक्रिया की गति मन्द हो जाती है और अधिगमकर्ता को विशेष लाभ नहीं होता है।
मैथेटिक्स अभिक्रमण
सन् 1962 में थॉमस एफ. गिल्बर्ट (Thomas F. Gilbert) ने मैथेटिक्स अभिक्रमण का विकास किया था। इसमें विषयवस्तु की अपेक्षा छात्र की क्रियाओं को महत्व दिया जाता है। इसमें अभिक्रमण की इकाई पद नहीं होती है, अभ्यास होती है। इसमें पाठ्यवस्तु को अधिगम की एक श्रृंखला के रूप में व्यवस्थित किया जाता है, जिसके लिए छात्रों को विशिष्ट अनुक्रियाएं अवरोही क्रम में पढ़ानी है। अर्थात् अन्तिम क्रिया पहले करनी पड़ती है और प्रथम क्रिया अन्त में। इसीलिए इसे अवरोही श्रृंखला अभिक्रमण (Retrogressive Chaining Programing) कहा जाता है। गिल्बर्ट ने मैथेटिक्स को परिभाषित करते हुए लिखा है, ‘मैथेटिक्स उन जटिल व्यवहार कोषों के विश्लेषण एवं संरचना के लिए पुनर्बलन सिद्धान्त के व्यवस्थित अनुप्रयोग के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो विषयवस्तु में पारगंति को प्रस्तुत करती है।”
इस प्रकार यह अभिक्रमण जटिल प्रकृति का होते हुए भी कठिन कौशलों की प्राप्ति में, वांछित व्यवहार परिवर्तन करने में और विषयवस्तु पर पारंगति प्राप्त करने में अधिक उपयोगी माना गया है। प्रारम्भ में इसका प्रयोग गणित के शिक्षण में किया गया था। परन्तु अब इसका उपयोग अन्य विषयों के शिक्षण में भी होने लगा है।
मैथेटिक्स अभिक्रमण की अवस्थाएं
इस अभिक्रमण की तीन अवस्थाएं मुख्य है-
1. प्रदर्शन- यह अधिगम प्रक्रिया की प्रथम अवस्था है। इसमें छात्रों के अधिगम व्यवहार को प्रदर्शित किया जाना आवश्यक है।
2. अनुबोधन- यह अधिगम प्रक्रिया की द्वितीय अवस्था है। इसमें अधिगम व्यवहार को उत्पन्न करने के लिए छात्र अनुबोधनों। अनुबोधन (Prompts) एवं संकेतों (Cues) की व्यवस्था की जाती हैं।
3. उन्मुक्ति- यह अधिगम प्रक्रिया की तीसरी और अन्तिम अवस्था है। इसमें छात्र द्वारा अधिगम व्यवहार के अभ्यासार्थ अवसर प्रदान किए जाते हैं।
मैथेटिक्स अभिक्रमण की प्रक्रिया
इसमें सर्वप्रथम अधिगम श्रृंखला के अन्तिम फ्रेम को अनुक्रिया करने के लिए प्रदान किया जाता है। तत्पश्चात् अभिक्रमण निर्माता अधिगम व्यवहार को उत्पन्न करने के लिए अनुबोधनों (Prompts) औ संकेतों (cues) को प्रस्तुत करता है, जिनके आधार पर छात्र अनुक्रियाएं करते हैं। तत्पश्चात अन्य सभी फ्रेम प्रस्तुत किये जाते हैं और छात्र मनुक्रियाएँ करते हैं। अन्त में छात्र प्रथम फ्रेम के प्रति अनुक्रिया करते हैं और अधिगम में निपुणता प्राप्त करते हैं। अर्थात् ज्ञानार्जन करते हैं। इसमें छात्र अधिगम प्रक्रिया में अन्तिम क्रिया, पहले करते हैं और अन्त में प्रथम क्रिया करते हैं।
मैथेटिक्स अभिक्रमण की विशेषताएं
इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- इस अभिक्रमण में विषयवस्तु की अपेक्षा छात्र की क्रियाओं को अधिक महत्व दिया जाता है।
- यह अभिक्रमण में अधिगम की इकाई फ्रेम (Frame) नहीं होती है वरन् अभ्यास होती है।
- इसमें पाठ्यवस्तु को अधिगम की एक श्रृंखला के रूप में व्यवस्थित किया जाना है, जिसके लिए छात्र को अनुक्रियाएं अवरोही क्रम (Retrogressive) में करनी पड़ती है।
- इस अभिक्रमण में अधिगम श्रृंखला की तीनों अवस्थाओं-प्रदर्शन, अनुबोधन एवं उन्मुक्ति का क्रियान्वयन समाहित है। “
मैथेटिक्स अभिक्रमण की सीमाएं
इस अभिक्रमण की निम्नलिखित सीमाएं हैं—
- यह समय, शक्ति एवं धन की दृष्टि से मित्तव्ययी नहीं है क्योकि इसकी रचना तथा इसके माध्यम से शिक्षण में समय, शक्ति एवं धन अधिक व्यय होता है।
- इस अभिक्रमण हेतु फ्रेम तैयार करना कठिन कार्य है।
- अधिकांश शिक्षकों को इसका अभिज्ञान नहीं है।
- इसकी पाठ्यवस्तु का निर्माण करना अत्यन्त मंहगा हैं।
- इसमें मनोविज्ञान के अधिगम सिद्धान्त की उपेक्षा होती है क्योंकि इसमें सभी छात्रों का। एक ही प्रकार की पाठ्यवस्तु के फ्रेम दिए जाते हैं।
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