अराजकता की परिभाषा एवं उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
अराजकता को परिभाषा- अराजकता शब्द की उत्पत्ति यूनानी शब्द अनार्किया से हुई है जसका अर्थ है पर ‘शासन का अभाव’। अराजकतावादी एक ऐसी संस्था के समर्थक हैं। जो स्वतन्त्रता, समानता, भ्रातृत्व वर्ग-विभेद से मुक्त हो। इस प्रकार अराजकतावादी राज्य का अन्त कर स्वतंत्र समुदायों की एक व्यवस्था की स्थापना के पक्षधर हैं। अराजकतवाद राज्य को नैतिक विकास में भी बाधक मानता है इसलिए भी उसका कहना है कि राज्य का अन्त कर देना चाहिए। अराजकतावादियों का मानना है कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो मानव मूल्यों पर आधारित हो और जिसमें रहकर व्यक्ति को सभी प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए ताकि वह अपना विकास कर सके।
अराजकतावाद को विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने अनुसार परिभाषित करने का प्रयास किया है, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं-
(1) कोकर के शब्दों में, “अराजकता का सिद्वान्त यह है कि राजनीतिक सत्ता किसी भी रूप में अनावश्यक एवं अवांछनीय है। वर्तमान अराजकतावाद में राज्य के सैद्धान्तिक विरोध के साथ वैयतिक सम्पत्ति की संस्था का विरोध और संगठित धार्मिक संस्था के प्रति शत्रुता का भी समावेश है।”
(2) क्रॉपोटकिन के शब्दों में, “अराजकतावाद राज्य-विहीन समाज की कल्पना करता है। इसमें शक्ति और कानून के अभाव में पारस्परिक समझौते के आधार पर शान्ति और व्यवस्था स्थापित होती है। राज्य का अन्त होने पर समाज के प्रादेशिक और व्यावसायिक समुदायों का स्वतः ही उत्पादन एवं उपयोग और विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जन्म होगा। ये समुदाय आपस में प्रेमपूर्वक समझौते के आधार पर व्यवस्था स्थापित करेंगे। अराजक समाज की व्यवस्था का आचरण करने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।”
(3) जेकर के शब्दों में, “आदर्श रूप में अराजकतावाद का अर्थ उस सम्पूर्ण स्वतन्त्र व्यक्तिगत शासन से है जिसका उद्दरेश्य प्रत्येक प्रकार के बाह्य शासन की अनुपस्थिति है।’
(4) डिकिन्सन के अनुसार, “अराजकतावाद का अर्थ व्यवस्था का अभाव नहीं अपितु शक्ति का अभाव है। इसका अर्थ स्वतन्त्रता, मेल-जोल तथा प्रेम है।”
(5) रूडॉल्फ रॉकर के शब्दों में, ‘अराजकतावाद सामाजिक दर्शन की वह बौद्धिक विचारधारा है जिसमें आर्थिक एकाधिकार तथा राजनीतिक और सामाजिक घोषणा की संस्थाएँ नहीं रहेंगी। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के बदले में उत्पादन शक्तियों का स्वेच्छिक संघ स्थापित होगा।”
इस प्रकार अराजकतावाद को अलग-अलग विद्वानों ने परिभाषित किया है। अराजकतावाद एक प्राचीन विचारधारा है जिसका मूल प्राचीन यूनानी और चीनी दार्शनिकों के लेखों में भी पाते हैं किन्तु सबका मूल यह है कि राज्य एक शोषण की संस्था है जिसका अन्त कर देना चाहिए जैसा कि यूनान में जीनो ने स्टोइसिज्म नामक विचारधारा के अन्तर्गत अराजकतावाद का प्रतिपादन किया। उसने एक राज्यहीन समाज का प्रतिपादन किया। अराजकतवाद के प्रमुख समर्थक-प्रोधां, थोरो, बाकुनिन, टॉलस्टॉय, होडकिन, गाइडविन, रसेल, महात्मा गाँधी आदि विचारक आते हैं। इस प्रकार अराजकतावाद का सम्बन्ध साम्यवाद से स्वेच्छातन्त्रवाद तक और इसमें गाँधीवाद भी शामिल है।
अराजकतावाद के प्रमुख उद्देश्य
(1) अराजकतावाद का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के विकास के लिए उसे स्वाभाविक स्वतन्त्रता प्रदान कराने में सहायक परिस्थितियों का निर्माण करना है।
(2) राज्य रूपी उस दमनकारी संस्था का विरोध करना जिसका आधार ही शक्ति, हिंसा और कठोर नियन्त्रण है।
(3) व्यक्ति को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक सभी प्रकार की स्वतंत्रता उपलब्ध कराना ताकि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो सके।
(4) अराजकतावादियों का लक्ष्य मनुष्य की पूर्ण स्वतन्त्रता में है, अत: इसके लिए वे उन सभी सत्ताओं को समाप्त करना चाहते हैं जो कि शोषण में सहायक हैं। ये तीन प्रकार की सत्ता हैं , चर्च और पूँजीवादी व्यवस्था। इनका अन्त करके ही मनुष्यों का वास्तविक विकास राज्य, हो सकता है क्योंकि तब दमनकारी शक्तियों का अन्त हो गया होगा जिससे रचनात्मक परिस्थितियों को बढ़ावा मिलेगा जो कि मानव के विकास में सहायक हैं।
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