उत्तर उपनिवेशवादी की आलोचना कीजिए।
उपनिवेशिक विचार पद्धति ने उत्तर-आधुनिक और उत्तर संरचनावादी शैली को अपनाते हुए सम्पूर्ण उपनिवेशिक परियोजना का विश्लेषण किया और साम्राज्यवादी शक्तियों के अधिपत्य की परियोजना की आलोचना की। ज्ञान और सत्ता के सम्बन्ध के परिप्रेक्ष्य में देखते हुए इस विचार पद्धति उपनिवेशवाद को देखने का एक नया नजरिया विकसित हुआ जो निम्न आधारों पर थी-
(i) पश्चिम साहित्य का प्रभाव- कई सारी पश्चिमी रचनाओं ओर फिल्मों में और पश्चिमी साहित्य की रचनाओं में पूर्वी देशी देशों के लोगों को पिछड़े और अविकसित रूप में दिखाया गया।
(ii) आधुनिकता की अवधारणा का प्रभाव- पश्चिमी समाज स्वयं को आधुनिक और सभ्य मानता है जबकि भारतीय समाज और अन्य पूर्व देशीय समाजों को विज्ञान और ज्ञान के क्षेत्र में पिछड़े और ज्ञानहीन मानते हैं। पूर्वदेशीय इतिहास को नकारना-साम्राज्यवादी शक्तियाँ पूर्वदेशीय इतिहास की सभ्यता को नहीं मानती है। वह पूर्व के देशों में सभ्यता का प्रसार स्वयं के आगमन के बाद से मानते हैं।
पूर्वदेशीय पद्धति पर सवालिया प्रश्न- उत्तर-उपनिवेशिक पद्धति पूर्वदेशीय सामाजिक संरचना, राजनीतिक एवं साहित्य, हर उस वस्तु संस्था या व्यवस्था पर चिह्न लगाती है जो पश्चिम से आई है। इस विचार पद्धति की समस्या यह है कि पूरब की समानता और स्वतन्त्रता स्थापित करने की फिराक में यह हर तरह के बदलाव को खारिज करते हुए यथास्थिति को हासिल करने की दिशा में एक क्षमायाचना बन जाती है। इस प्रकार उत्तर-उपनिवेशिक नजरिए की यह
आलोचना है कि स्थानीय या देशज के नाम पर यह कुछ भी और कुछ सही ठहराता है और बदलाव की जरूरत को नकारता है एक प्रकार से यह समाज में शोषित तबके स्वर भी सही हरा सकता है और इस तर्क को प्रबलता से रखता है कि लोकतन्त्र और समानता जैसे मूल्य पश्चिम में पैदा हुए हैं।
उत्तर-आधुनिकतावादी विचारधारा का प्रभाव- उत्तर-उपनिवेशवादियों पर मार्क्सवाद और उदारवाद समझ के प्रत्युत्तर में उत्तर-उपनिवेशिक चिन्तक उत्तर-आधुनिकतावाद के विचार के निकट आ गये हैं। उनके विचार के अनुसार विवेकशीलता पर आधारित प्रगति की पूरी परम्परा को ही खारिज करना होगा। वे इस प्रगतिवादी परम्परा को यूरोपीय श्रेष्ठता के दम्भ का हिस्सा मानते हैं यह रुख रूप से मानव जाति की सांस्कृतिक यात्रा में बाधा डालेगा।
उपनिवेश कालीन संघर्ष को अनदेखा करना- उत्तर-उपनिवेशवादी चिन्तन की सांस्कृतिक पहलू काबिले तारीफ है लेकिन उत्तर-उपनिवेशवादी चिन्तकों का वर्तमान विमर्श मानवीय पहलू और उपनिवेशवाद से पीड़ित लोगों के संघर्ष वाले पहलू को अनदेखा करता है। पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित अर्थव्यस्था के राजनीतिक आयामों को इस विचार पद्धति ने पूर्णतः अलग रखा है औ अपने विश्लेषण में इन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर कहीं प्रकाश नहीं डालता है।
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