HOME SCIENCE

क्रियात्मक विकास की विशेषताएं | Characteristics of Motor development in Hindi

क्रियात्मक विकास की विशेषताएं | Characteristics of Motor development in Hindi
क्रियात्मक विकास की विशेषताएं | Characteristics of Motor development in Hindi

क्रियात्मक विकास की विशेषताएं (Characteristics of Motor development)

बालकों के क्रियात्मक विकास में अनेक विशेषतायें पायी जाती हैं, जो सामान्य रूप से सभी बालकों में मिलती हैं, इनमें से कुछ प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

1. निश्चित क्रम (Cephalocaudal sequence )

इस क्रम का अर्थ है कि बालक क्रियात्मक विकास सर्वप्रथम सिर के क्षेत्र में फिर क्रमशः मुख, गर्दन, धड़ तथा पैरों के क्षेत्र में होता है।

‘जन्म के बाद आयु बढ़ने के साथ-साथ सिर के क्षेत्र में क्रियात्मक विकास पहले होता है। यदि एक माह के बालक को जमीन पर पेट के बल लिटाया जाये तो वह अपना सिर थोड़ा ऊपर उठा सकता है। इसी प्रकार चार माह के बालक को यदि सहारा देकर बैठया जाये तो वह अपने सिर को नियन्त्रित कर लेता है। बालक क्रमशः सिर उठाना, बैठना, घिसटकर चलना, खड़े होना, फिर पैरों के बल चलना सीखता है। इन सभी क्रियाओं को यदि देखा जाये तो यह क्रियाएँ क्रमशः सिर-मुख-गर्दन धड़ पैर के क्षेत्रों में उत्पन्न होती है। स्पष्ट है कि बालक में क्रियात्मक योग्यताओं का विकास मस्ताधोमुखी क्रम में होता है।

(ब) निकट दूर क्रम (Proximodistal sequence) – इस क्रम का आशय है कि बालक की सुषुम्ना नाड़ी (Spinal cord or main axis) के निकट स्थित क्षेत्रों में क्रियात्मक विकास पहले प्रारम्भ होता है और इस मुख्य अक्ष से दूर स्थित क्षेत्रों में विकास अपेक्षाकृत देर से प्रारम्भ होता है।

2. क्रियात्मक विकास सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं की ओर होता है। (Motor development proceeds from general to specific responses ) –

बालको के क्रियात्मक विकास में प्रारम्भ में उनमें सामान्य अनुक्रियायें उत्पन्न होती हैं तथा क्रियात्मक विकास के बढ़ने के साथ-साथ उनमें विशेष प्रकार की अनुक्रियायें उत्पन्न होती हैं। जैसे-एक पाँच माह के बालक को सहारा देकर बैठाया जाये और उसके सामने एक खिलौना रख दिया जाये। तो खिलौने को पकड़ने के प्रयास में वह खिलौने पर पेट के बल गिर पड़ता है किन्तु शारीरिक विकास के साथ-साथ उसमें क्रियात्मक विकास बढ़ता जाता है और इस प्रकार उसकी उद्दीपकों के प्रति अनुक्रियायें विशिष्ट हो जाते हैं। एक अवस्था ऐसी आती है कि बालक के सामने यदि खिलौना रखा जाता है तो वह सरलता से हाथों से खिलौना उठा ही नहीं लेता बल्कि वह चतुरता के साथ खेल भी सकता है। अतः इस प्रकार क्रियात्मक विकास में बालक पहले सामान्य अनुक्रियायें करता है और फिर विशिष्ट अनुक्रियायें करने लग जाता है।

3. क्रियात्मक विकास बड़ी से छोटी माँसपेशियों की ओर होता है (Motor Development proceeds from large to small muscles ) –

क्रियात्मक विकास में यह देखा गया है कि शरीर की बड़ी माँसपेशियों पर बालक नियन्त्रण करना पहले सीखता है और शरीर की छोटी माँसपेशियों पर नियन्त्रण करना बाद में सीखता है; उदाहरण के लिए-बालक गेंद खेलना पहले सीखता हैं और यदि हारमोनियम बजाना सिखाया जाये तो उसे वह बाद में या देर से सीख पाता है क्योंकि गेंद खेलने में बड़ी माँसपेशियों की आवश्यकता होती है तथा हारमोनियम बजाने में छोटी माँसपेशियों की कुशलता अति आवश्यक है।

4. क्रियात्मक विकास प्रतिमान में भविष्यवाणी योग्य कुछ अवस्थायें ( Predictable states with the pattern of motor development ) —

बहुत से मनोवैज्ञानिक इस तथ्य से सहमत है कि क्रियात्मक विकास में कुछ भविष्यवाणी योग्य अवस्थायें होती हैं किन्तु मनोवैज्ञानिकों में इस बात पर सहमति नहीं हो पाई है कि भविष्यवाणी योग्य कितनी अवस्थायें होती हैं। शर्ले तथा मैक्यो के अनुसार जन्म से खड़े होने तक 16 विकास अवस्थायें हैं।

हलवरसन (H. M. Halverson) के अनुसार, वस्तुओं को उठाने सम्बन्धी क्रियात्मक विकास में दस अवस्थाएँ हैं। इनमें से चार मुख्य अवस्थाएँ निम्न प्रकार से है-

(1) चार माह के बालक के सामने यदि कोई गेंद या क्यूब रखा जाये तो वह उसे देखता है परन्तु उठा नहीं सकता है।

(2) पाँच माह का बालक गेंद या क्यूब को पकड़ सकता है परन्तु उठाने में उससे छूट जाती है।

(3) आठ माह का बालक गेंद क्यूब को अपने दोनों हाथों से उठा सकता है।

(4) नौ माह के बालक में क्रियात्मक विकास इतना हो जाता है कि वह अनेक गेंदों में से एक गेंद को, जो उसे पसन्द है, उठा सकता है या छाँट सकता है।

5. बालक का क्रियात्मक विकास अधिगम तथा परिपक्वता की अन्तःक्रिया (Motor development proceeds due to learning and maturation inter action) –

क्रियात्मक विकास बालक में दो कारकों के कारण होता है-प्रथम कारक परिपक्वता है तथा दूसरा कारक अधिगम है। क्रियात्मक विकास के लिए इन दोनों कारकों का होना आवश्यक है। इनमें से एक ही अनुपस्थिति में भी क्रियात्मक विकास सामान्य रूप से सम्भव नहीं है। यदि दोनों कारक अनुपस्थिति हैं तो निश्चित रूप से बालक में किसी प्रकार का क्रियात्मक विकास नहीं होगा।

उदाहरण के लिए एक बालक गेंद खेलना या तीन पहिए की साइकिल चलाना तभी सीख सकता है जब उसमें आवश्यक मात्रा में परिपक्वता आ गई हो। क्रियात्मक विकास पर अधिगम और परिपक्वता का अलग-अलग प्रभाव न पड़कर मिला-जुला या अन्तःक्रियात्मक प्रभाव पड़ता है।

6. वैयक्तिक भिन्नतायें (Individual differences) —

क्रियात्मक विकास की गति में वैयक्तिक भिन्नतायें पायी जाती हैं। कुछ बालकों में विकास शीघ्र प्रारम्भ होता है और कुछ मैं देर से आरम्भ होता है। यह देखने में आता है कि कुछ बालकों में किन्हीं क्रियाओं का विकास अन्य बालकों की अपेक्षा देर से भी होता है। जैसे—कुछ बच्चे 10 माह की अवस्था में चलना सीखते हैं तथा कुछ 11, 12 या 14, 15 माह तक की आयु तक चलना सीख पाते हैं।

एक अध्ययन (L. A. Govatos, 1979) में यह देखा गया कि क्रियात्मक कौशल जैसे-दौड़ना, कूदना, गेंद फेंकना आदि में तथा मानसिक विकास में थोड़ा सम्बन्ध है।

7. क्रियात्मक कौशलों में यौन-अन्तर ( Sex differences in Motor skills ) —

एक अध्ययन (J. E. Garai, 1968) से यह स्पष्ट हुआ है कि लगभग 3 वर्ष की अवस्था तक बालकों और बालिकाओं की क्रियात्मक योग्यताओं और क्रियात्मक कौशलों के विकास में कोई महत्वपूर्ण अन्तर नहीं होता है परन्तु इस आयु के बाद बालक और बालिकाओं के क्रियात्मक विकास में अन्तर पाया जा सकता है। जब बालक एवं बालिकाएं स्कूल जाने लग जाते हैं, तो यह देखा गया है कि बालक बालिकाओं की अपेक्षा क्रियात्मक, कौशलों में अधिक निपुण होते हैं। गारई (1968) का विचार है कि बालक, बालिकाओं की अपेक्षा कौशलों में । इसलिये अधिक निपुण होते हैं कि उन्हें इसके लिये प्रोत्साहित किया जाता है।

Important Link

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment