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गर्भाधान क्या है?
गर्भावस्था का अर्थ- गर्भावस्था वह अवस्था है जिसमें पुरुष शुक्राणु का स्त्री के अण्डाणु से मेल हो जाता है। शुक्राणु का निर्माण पुरुष के वृषण में होता है। अण्डाणु स्त्री की डिम्ब ग्रन्थि से उत्पन्न होते हैं। अण्डाणु तथा शुक्राणु के सहयोग से ही गर्भाधान की प्रक्रिया होती है।
गर्भावस्था के लक्षण या विशेषताएँ
गर्भावस्था में दो प्रकार के लक्षण पाये जाते हैं।
(1) वे लक्षण जो स्त्री स्वयं अनुभव करती है।
(2) वे लक्षण जिनसे शरीर के विभिन्न अंगों में परिवर्तन आता है।
गर्भवती स्त्री द्वारा स्वयं अनुभव किए जाने वाले लक्षण
गर्भवती स्त्री द्वारा स्वयं अनुभव किए जाने वाले लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) मासिक धर्म का बन्द होना- मासिक धर्म बन्द होना गर्भावस्था का प्रमुख लक्षण है। वे स्त्रियाँ जिनका मासिक धर्म प्रायः अनियमित रहता है, उनके मासिक धर्म बन्द होने का कारण कोई आन्तरिक खराबी हो सकती है। यदि स्त्री को लगातार दो माह तक मासिक धर्म न हो तो गर्भ रहने की पूर्ण सम्भावना है। उस स्त्री को डॉक्टर से परीक्षण करवा लेना चाहिए।
(2) प्रातः काल जी मिचलाना- गर्भावस्था का दूसरा लक्षण है गर्भावस्था में प्रातः काल उल्टी आना। गर्भवती स्त्री को प्रातः उठते ही उल्टियाँ प्रारम्भ हो जाती है। यह शिकायत 4-5 माह तक रहती है। यह अनुभव उसे दिन या रात्रि या किसी समय भी हो सकता है।
(3) बार-बार पेशाब का आना- गर्भवती स्त्री को बार-बार पेशाब आता है। यह शिकायत प्रथम तीन माह तक अधिक होती है। इसका कारण है भ्रूण के विकास के साथ-साथ गर्भाशय के आकार का बढ़ना जिसका दबाब मूत्राशय पर पड़ता है।
(4) योनि स्राव का बढ़ना- गर्भवती स्त्री के योनि मार्ग से सैदव एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है जो इस मार्ग को आर्द्र रखता है। यह पदार्थ गर्भावस्था में अधिक मात्रा में निकलता है। तरल पदार्थ से दुर्गन्ध आने पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
(5) अधिक सुस्ती तथा नींद का आना- शरीर में आन्तरिक परिवर्तनों के कारण गर्भवती स्त्री अधिक आलस्य का अनुभव करती है। उसकी इच्छा काम न करने के साथ पूरे समय आराम करने की होती है। उसे नींद भी बहुत आती है।
गर्भवती स्त्री के शरीर के विभिन्न अंगों में परिवर्तन
गर्भवती स्त्री के शरीर के विभिन्न अंगों में परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
1. चेहरे में परिवर्तन- गर्भवती स्त्री को भोजन की इच्छा भी नहीं होती है। प्रारम्भिक दिनों में आँखों के नीचे ऊपरी होंठ के आस-पास का रंग काला हो जाता है। चेहरे को ध्यान से देखने पर यह लक्षण दिखाई देता है।
2. पेट के आकार में परिवर्तन- दूसरे माह के अन्त तक पेट का आकार चपटे के “स्थान पर कुछ अण्डाकार हो जाता है। पाँचवें माह के अन्त तक पेट काफी उभारदार उठान वाला
हो जाता है। जो स्वयं बच्चे की हलचल को अनुभव कर सकता है।
3. स्तनों में परिवर्तन- गर्भावस्था के दूसरे माह में स्तनों में परिवर्तन आने लगता है। गर्भवती स्त्री के स्तन कुछ कड़े हो जाते हैं, उनका आकार बढ़ने लगता है।
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