राजनीति विज्ञान / Political Science

तटस्थता का अर्थ | तटस्थ राज्यों का अधिकार | तटस्थ राज्यों के कर्तव्य

तटस्थता का अर्थ | तटस्थ राज्यों का अधिकार | तटस्थ राज्यों के कर्तव्य
तटस्थता का अर्थ | तटस्थ राज्यों का अधिकार | तटस्थ राज्यों के कर्तव्य

तटस्थता का अर्थ स्पष्ट करते हुये तटस्थ देशों के अधिकार एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिए।

तटस्थता का अर्थ

तटस्थता (Neutrality) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द न्यूटर से हुई है जिसका तात्पर्य निष्पक्षता होता है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार बहुपक्षीय युद्ध में जो राज्य शामिल नहीं होते उन्हें तटस्थ राज्य एवं उनकी नीति को तटस्थता कहा जाता है।

ओपेनहाइम के अनुसार, “तटस्थता तीसरे राज्यों द्वारा युद्धमान राज्यों के प्रति अपनाये गये और युद्धमान राज्यों द्वारा मान्य निष्पक्षता की प्रवृत्ति है जो निष्पक्ष राज्यों तथा युद्धमान राज्यों के बीच अधिकारों तथा कर्तव्यों का सृजन करती है।” इस परिभाषा में तीन महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं-प्रथम, तटस्थता युद्ध के समय तीसरे राज्यों द्वारा अपनायी गयी निष्पक्षता की प्रवृत्ति है। ऐसी प्रवृत्ति को अपनाने वाले राज्य युद्ध में भाग नहीं लेते और इन्हें और तटस्थ राज्य (neutral state) कहा जाता है। इस प्रकार तटस्थता युद्ध को हतोत्साहित करती है और यदि युद्ध प्रारम्भ हो जाता है, तो यह युद्ध को सीमित करता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को नियमित करता है

तटस्थ राज्यों का अधिकार (Rights of the Neutral States)

अन्तर्राष्ट्रीय विधि द्वारा मान्यता प्राप्त अनेक अधिकार तटस्थ राज्यों को प्राप्त है जिसमें निम्नलिखित हैं-

(1) अनतिक्रमणीयता (Inviolability) – तटस्थ राज्य का अत्यधिक महत्वपूर्ण अधिकार उसके राज्यक्षेत्र की अनतिक्रमणीयता है। युद्धरत राज्यों में से किसी एक के द्वारा तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्र में युद्ध-सदृश्य कार्य अर्थात् शत्रुतापूर्ण कार्य नहीं किया जा सकता। तद्नुसार, तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्र में युद्ध-सदृश्य किसी कार्य को न करना युद्धरत राज्यों का कर्तव्य है। युद्धरत राज्य तटस्थ राज्यों के प्रभुत्व सम्पन्न अधिकारों का सम्मान करने के लिए बाध्य हैं। पुनः अभिसमय संख्या 13 का अनुच्छेद 2 तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्रीय समुद्र में शत्रुतापूर्ण कार्य जिसमें अभिग्रहण प्रवेश तथा तलाशी शामिल है, को निषिद्ध करता है। अभिसमय का अनुच्छेद 5 तटस्थ राज्य के बन्दरगाह या सागरखण्ड को, शत्रु के विरुद्ध सामान्य कार्यवाही के अड्डा के रूप में, युद्धरत राज्य द्वारा प्रयोग को निषिद्ध करता है। पुनः अनुच्छेद 10 प्रावधान करता है कि किसी राज्य की तटस्थता केवल युद्धरत राज्य के सैनिकों या उनके प्राइज के मार्ग द्वारा प्रभावित नहीं होती। ऐसा मार्ग नौसैनिक अड्डा नहीं होता क्योंकि इसका तात्पर्य निर्दोष मार्ग से है। लेकिन युद्धरत राज्यों द्वारा मार्ग का प्रयोग तब किया जा सकता है, जब तटस्थ राज्य द्वारा इसकी स्वीकृति दी जाती है। पुनः तटस्थ राज्य अपने राज्यक्षेत्रीय समुद्र को केवल मार्ग के लिए प्रयोग की अनुज्ञा दे सकता है, जो चौबीस घंटे से अधिक नहीं होगी, लेकिन शर्त यह है कि ऐसा प्रयोग राज्यक्षेत्रीय समुद्र को युद्ध समान कार्यवाही के अड्डा के रूप में परिवर्तित न किया जाना चाहिए। यदि किसी स्थिति में दोनों युद्धरत देशों से सम्बन्धित युद्धपोत एक साथ तटस्थ राज्य के बन्दरगाह में पाये जाते हैं, तो दोनों युद्धपोतों के प्रस्थान के बीच कम से कम चौबीस घंटे का अन्तर होना चाहिए। इस नियम को हेग अभिसमय संख्या 13 के अनुच्छेद 16 के अधीन शामिल किया गया है।

(2) दूसरे देशों के साथ व्यापार (Trade with Other Countries) – तटस्थ राज्य युद्धरत राज्यों के अतिरिक्त अन्य राज्यों के साथ व्यापार करने के लिए स्वतन्त्र है। जहाँ तक युद्धरत राज्यों के साथ तटस्थ राज्यों के अपने नागरिकों के व्यापार को सुरक्षा प्रदान करने के अधिकार का सम्बन्ध है, वे उन मामलों जो शत्रु राज्य के लिए निर्दिष्ट हैं, के अभिग्रहण के युद्धरत राज्यों के अधिकारों से संगत है। यह अधिकार युद्धरत राज्यों पर तत्समान कर्तव्य अधिरोपित करता है कि वे अन्य देशों के साथ तटस्थ राज्यों द्वारा व्यापार करने को न रोकें।

(3) युद्धरत राज्य की अधिकारिता के अधीन तटस्थ राज्य के निवासी एवं सम्पदा (Neutral Persons and Property under Belligerent Jurisdiction ) – तटस्थ राज्य को यह देखने का अधिकार है कि युद्धरत राज्यों के राज्यक्षेत्र में निवास करने वाले नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जा रहा है। पुनः युद्धरत राज्यों के राज्यक्षेत्र में स्थित उसकी सम्पत्ति का अधिग्रहण नहीं किया जा रहा है तथा उसे नष्ट नहीं किया जा रहा है। यह अधिकार युद्धरत पर तटस्थ राज्य के निवासियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने का तथा तटस्थ राज्य की सम्पत्ति का अधिग्रहण न करने का कर्तव्य अधिरोपित करता है, यदि अभिग्रहण करना आवश्यक न हो।

(4) शरण देने का अधिकार (Right to grant Asylum) – तटस्थ राज्य को किसी व्यक्ति को आश्रय प्रदान करने का अधिकार है, जिनमें वे व्यक्ति भी शामिल हैं, जो युद्धरत | राज्य के सशस्त्र बल के सदस्य हैं। यदि युद्धरत राज्य की सेनाओं को आश्रय प्रदान किया जाता है, तो उन्हें निःशस्त्र किया जाएगा और आवश्यक सतर्कता के अधीन रखा जाएगा। ऐसे मामलों में, उनकी स्थिति युद्ध बन्दी की तरह होती है। पुनः तटस्थ राज्य युद्धरत राज्य से सम्बन्धित नष्ट जलयान के घायल या बीमार व्यक्तियों को भी आदान प्रदान कर सकता है। यदि ऐसे व्यक्तियों को आश्रय प्रदान किया जाता है, तो प्रत्येक सम्भव पूर्व सावधानी बरती जानी चाहिए, जिससे कि वे पुनः युद्ध की कार्यवाही में भाग न ले सकें। आश्रय को शत्रुतापूर्ण कार्य न मानना युद्धरत राज्य का कर्तव्य है।

(5) प्रत्यावर्तन या प्रतिकार (Compensation or Restoration)- जिस युद्धरत राज्य की सेना, विधि की अवहेलना में, तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्र का अतिक्रमण करता है, वह सिद्धान्ततः उसके प्रभुत्व सम्पन्नता के प्रति किए गए दोषपूर्ण कार्य के लिए उसे क्षतिपूर्ति देने के | लिए बाध्य होता है। यह दोषपूर्ण कार्य आवश्यक रूप से सार्वजनिक होता है और क्षतिपूर्ति राष्ट्रीय | खेद की समुचित अभिव्यक्त को प्रकट करता है कि प्रभुत्व सम्पन्नता का निरादर किया गया है। पुनः तटस्थ राज्य को उसके राज्यक्षेत्र के अन्तर्गत अभिगृहीत किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के पूर्ण वापसी के माँग का अधिकार है, जहाँ तक वापसी करना तथा अभिग्रहण से उत्पन्न क्षति की अदायगी करना अभिग्रहणकर्ता की शक्ति के अधीन आता है।

तटस्थ राज्यों के कर्तव्य (Duties of Neutral State)

जिनके पालन की अपेक्षा तटस्थ राज्यों से की जाती है, वे कर्तव्य निम्न हैं-

(i) परिवर्जन (Abstention) – तटस्थ देश का प्रथम कर्तव्य यह है कि वह युद्धरत पक्षों में से किसी की भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहायता न प्रदान करे। हेग अभिसमय 5 तथा 13, जो | क्रमशः स्थल तथा सामुद्रिक युद्ध में तटस्थता के सम्बन्ध में प्रावधान करता है, यह निर्बंन्धित किया गया है कि युद्धरत राज्यों को सैनिक या नौसैनिक कार्यवाही से सम्बन्धित प्रत्यक्षतः दी गयी कोई सुविधा अवैध होगी। वर्तमान समय में तटस्थता का कर्तव्य युद्धरत राज्यों के साथ किसी सक्रिय या निष्क्रिय सहयोग से प्रविरत रहने को शामिल करता है। इस प्रकार तटस्थ राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह युद्धरत राज्यों में से किसी को धन उधार नहीं देगा या शस्त्र तथा गोला-बारूद नहीं बेचेगा। सार्वजनिक जलयान के विक्रय को भी निषिद्ध किया गया है, यदि वह किसी युद्धरत राज्य को सेवा प्रदान करने में सक्षम हो। पुनः अभिसमय 13 का अनुच्छेद 19 तटस्थ राज्य से युद्धरत राज्यों के सैनिकों को ईंधन देने से प्रविरत रहने की अपेक्षा करता है, लेकिन यदि उन्हें अपने समीपस्थ बन्दरगाह पर पहुँचने के लिए ईंधन की आवश्यकता पड़ती है, तो ईंधन दिया जा सकता है। पुन: इस सीमित ईंधन देने के अधिकार पर भी उसी तटस्थ राज्य के बन्दरगाह में तीन मास में एक बार से अधिक ईंधन देने से रोका गया है। तटस्थ राज्य को अपने विदेशी या अन्य सेवाओं से सम्बन्धित व्यक्तियों को सहायता देने की या सार्वजनिक रूप से ऐसा विचार व्यक्त करने की भी अनुमति देने से रोका गया है, जो विशिष्ट युद्धरत राज्य के हित के प्रतिकूल हो। पुनः तटस्थ राज्य को किसी युद्धरत राज्य को स्थल या समुद्र द्वारा सार्वजनिक यान के यातायात या सरकारी औद्योगिक संयंत्र के प्रयोग की अनुमति नहीं देनी चाहिए। तटस्थ राज्य का कर्तव्य दोनों युद्धरत राज्यों के साथ समान व्यवहार करना है।

(ii) निवारण (Prevention) – तटस्थ राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने राज्यक्षेत्र में या राज्यक्षेत्रीय समुद्र के अन्तर्गत किसी भी युद्धरत राज्यों को कुछ कार्यों को करने से मना करे। तटस्थ राज्य को अपने राज्यक्षेत्र में शत्रु के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण कार्यवाही को रोकना चाहिए। पुनः उसे अपने राज्यक्षेत्र में युद्धरत राज्यों को सहायता देने की तैयारी को रोकना चाहिए। हेग अभिसमय संख्या 5 का अनुच्छेद 4 तटस्थ राज्य को अपने राज्यक्षेत्र में युद्धरत राज्यों के हित में भरती कार्यालयों को खोलने की अनुमति देने से रोकता है। तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्र से केवल स्वयंसेवकों (Volunteers) के प्रस्थान को अनुच्छेद 4 द्वारा निषिद्ध नहीं किया गया है। तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्र पर युद्धरत राज्य के बलों के प्रशिक्षण की वैधता के सम्बन्ध में भी अभिव्यक्त रूप से कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

किसी कार्य को करने से मना करने की तटस्थ राज्य की बाध्यता इस तर्क पर आधारित है कि यदि ऐसा नहीं किया जायेगा, तो यह संघर्ष में भाग लेने के समान होगा, जो एक युद्धरत राज्य के लिए हानिकारक तथा उसके शत्रु के लिए सहायक होगा। निवारण का कर्तव्य युद्धरत राज्यों को यह देखने का तत्समान अधिकार प्रदान करता है कि ऐसी कार्यवाहियाँ तटस्थ राज्यों द्वारा अपने राज्यक्षेत्र में नहीं की जा रही हैं।

(iii) मूक सहमति (Acquiescence) – तटस्थ देश का तृतीय कर्तव्य यह है कि बुद्ध के समय उसकी व्यापारिक और राजनैतिक स्वतन्त्रताओं पर यदि प्रतिबन्ध लग जाये तो उनको बिना कुछ कहे स्वीकार करे। यदि तटस्थ राज्य को युद्धरत राज्यों के वैध अधिकारों के प्रयोग द्वारा आकस्मिक क्षति होती है, तो उसे उसके प्रति मौन सहमति देनी चाहिए। उदाहरण के लिए, युद्धरत राज्यों को प्रवेश तथा तलाशी (Visit and Search) का तथा समुद्र में अभिग्रहण (capture) का अधिकार है। इन अधिकारों के प्रयोग में, यदि तटस्थ राज्यों को कोई नुकसान हो जाता है, तो उसे उन्हें सहमति देनी चाहिए। पुनः युद्धरत राज्य तटस्थ राज्यों के निवासियों के व्यापारिक कार्यों पर नियंत्रण कर सकता है और यदि आवश्यक हो तो इसके लिए बल का प्रयोग भी कर सकता है तथा तटस्थ राज्य को इस कार्यवाही के विरुद्ध कोई विधिक उपचार नहीं होता।

(iv) प्रतिकार एवं प्रत्यस्थापना (Compensation and restoration) – तटस्य राज्य का कर्तव्य है कि वह युद्धरत राज्यों को अपने राज्यक्षेत्र में किसी ऐसे कार्य को करने की अनुमति न दे, जो युद्ध से सम्बन्धित हो। यदि एक युद्धरत राज्य तटस्थ राज्य के राज्यक्षेत्र में या उसके राज्यक्षेत्रीय समुद्र में कोई कार्यवाही करता है, जिसे विधि तटस्थ राज्य द्वारा रोकने की अपेक्षा करता है, तो पीड़ित युद्धरत राज्य तटस्थ राज्य से उसके अपने कर्तव्यों के पालन की असफलता के लिए प्रतिकार या प्रत्यावर्तन की माँग कर सकता है। ऐसे मामलों में, तटस्थ राज्य पीड़ित युद्धरत राज्य को या तो प्रतिकार अदा करने की या तो वस्तुओं को प्रत्यावर्तित करने की बाध्यता के आधीन रहता है। उदाहरण के लिए, यदि एक युद्धरत राज्य तटस्थ राज्य के राज्य क्षेत्रीय समुद्र में दूसरे युद्धरत राज्य के जलयान का अभिग्रहण करता है, तो तटस्थ राज्य का उस जलयान को दूसरे युद्धरत राज्य को प्रत्यावर्तित करना कर्तव्य है। यदि तटस्थ राज्य ऐसा करने में असफल होता है, तो पीड़ित युद्धरत राज्य प्रतिकार या प्रत्यावर्तन की माँग कर सकता है, जिसे तटस्थ राज्य से अपने कर्तव्य के उल्लंघन के सम्बन्ध में करने की अपेक्षा की जाती है।

(v) क्षतिपूर्ति (Reparation) – तटस्थ राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने कर्तव्यों के उल्लंघन में युद्धरत राज्यों को प्रतिकार प्रदान करे। परन्तु यदि उचित सतर्कता बरतने के बाद भी हानि हो जाती है तो तटस्थ राज्य इसके लिये उत्तरदायी नहीं होता है।

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Anjali Yadav

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