निदर्शन प्रणाली के गुण-दोष | merits and demerits of sampling system
निदर्शन प्रणाली के गुण ( महत्त्व ) – आधुनिक समय में निदर्शन पद्धति का प्रयोग दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान समय में संगणना अनुसन्धान बहुत ही असुविधाजनक है, क्योंकि इसमें इसमें समय, धन तथा श्रम अधिक मात्रा में चाहिए तथा विशाल क्षेत्र के अध्ययन में यह विधि अनुपयुक्त है। निदर्शन के गुणों का उल्लेख करते हुए गुडे एवं हाट लिखते हैं, “निदर्शन वैज्ञानिक कार्यकर्ता के समय की बचत करके कार्य को अधिक वैज्ञानिक रूप प्रदान करता है। किसी एक दृष्टिकोण से एकत्रित सामग्री के विश्लेषण पर अधिक घण्टे व्यय करने की अपेक्षा वह समय को विभिन्न दृष्टिकोणों से परीक्षा करने में प्रयोग कर सकता है। दूसरे शब्दों में, वह थोड़े मामलों का गहन अध्ययन कर सकता है।” हम अब यहां निदर्शन पद्धति के गुणों (महत्त्व) का उल्लेख करेंगे-
(1) समय की बचत (Saving of Time)– निदर्शन प्रणाली में समग्र में से कुछ इकाइयों का चयन करके उनका अध्ययन किया जाता है, इसलिए इसमें समय की बड़ी बचत होती है। समय की बचत एवं शीघ्र निर्णय आधुनिक युग की मांग है जिसे निदर्शन द्वारा ही पूरा किया जा सकता है।
(2) धन की बचत (Saving of Money)- निदर्शन में कम इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, अतः इससे धन की पर्याप्त बचत होती है। सामान्यतः सभी लोगों के आर्थिक साधन सीमित होते हैं इसलिए सरकारी अध्ययनों के अतिरिक्त धनाभाव में अनुसन्धान का संचालन एक कठिन कार्य है। निदर्शन में संगणना विधि की तुलना में स्टेशनरी, फाइलों, कार्यकर्ताओं के वेतन, यात्रा भत्ता, आदि पर कम खर्च करना पड़ता है।
(3) श्रम की बचत (Saving of Labour)– चूंकि निदर्शन में कम इकाइयों का अध्ययन करना पड़ता है, अतः अधिक श्रम एवं कार्यकर्ताओं की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार निदर्शन श्रम की बचत को प्रोत्साहन देता है।
(4) गहन अध्ययन (Intensive Study) – संगणना विधि में क्षेत्र विस्तृत एवं इकाइयां बिखरी हुई होती हैं, अतः उनके बारे में मोटी-मोटी बातें ही ज्ञात की जा सकती हैं। निदर्शन में अपेक्षाकृत कम इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, अतः उनके बारे में सूक्ष्म, विस्तृत एवं गहन जानकारी प्राप्त करना सम्भव है।
(5) परिणामों की परिशुद्धता (Accuracy of Results)— निदर्शन में अध्ययनकर्ता का ध्यान कुछ निश्चित इकाइयों पर ही केन्द्रित होता है, अतः उनसे प्राप्त निष्कर्ष अधिक यथार्थ एवं परिशुद्ध होते हैं। यदि निदर्शन का चुनाव सही तरीके से किया गया है तो कई बार इसके निष्कर्ष संगणना-पद्धति के निष्कर्षों से भी अधिक परिशुद्ध होते हैं।
(6) तथ्यों की पुनर्परीक्षा (Rechecking of Data)— किसी भी अनुसन्धान में प्राप्त निष्कर्षों की विश्वसनीयता को ज्ञात करने के लिए उनकी पुनर्परीक्षा की जाती है। चूंकि निदर्शन में कम इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, अतः पुनः जांच के लिए उनमें से कुछ इकाइयों का चयन कर अध्ययन करना सरल होता है।
(7) प्रशासनिक सुविधा (Adminstrative Convenience)– निदर्शन में इकाइयों की संख्या कम होने के कारण प्रबन्ध एवं प्रशासन के आयोजन एवं संगठन में सुविधा रहती है। एक ओर तो अनुसन्धान में कम कार्यकर्ताओं को नियुक्त करना पड़ता है, अतः उन पर नियन्त्रण रखना भी आसान होता है और दूसरी ओर सूचनाएं संकलित करने से सम्बन्धित परेशानी भी कम हो जाती है, जिससे अनुसन्धान का संगठन सरल हो जाता है।
(8) निदर्शन की अनिवार्यता (Essential use of Sampling)- कई बार सामाजिक अनुसन्धान में निदर्शन विधि का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। उदाहरण के लिए, जब भौगोलिक दृष्टि से क्षेत्र बहुत दूर-दूर तक फैला हो, क्षेत्र में इकाइयों की संख्या बहुत अधिक हो, प्रत्येक इकाई से सम्पर्क करना असम्भव हो तथा समग्र का पता लगाना कठिन हो तो ऐसी स्थिति में अध्ययन के लिए निदर्शन पद्धति ही एकमात्र पद्धति रह जाती है जो अध्ययन को सफल बना सकती है।
निदर्शन प्रणाली के दोष (सीमाएं) [DEMERITS (LIMITATIOS) OF SAMPLINGMETHOD]
निदर्शन प्रणाली के जहां कई गुण, लाभ एवं उपयोग हैं, वहीं यह दोषों से भी मुक्त नहीं है। इसके प्रमुख दोष निम्नांकित हैं-
(1) अभिनति (पक्षपात ) की सम्भावना (Possibility of Bias)- निदर्शन विधि का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें पक्षपात की सम्भावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में निदर्शन प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह जाता है। निदर्शन का चुनाव करते समय किसी न किसी रूप में अध्ययनकर्ता का प्रभाव एवं पक्षपात आ ही जाता है। तब निदर्शन द्वारा प्राप्त निष्कर्ष विश्वसनीय एवं प्रामाणिक नहीं रह जाते हैं।
(2) प्रतिनिधित्वपूर्ण निदर्शन के चुनाव में कठिनाई (difficulty in Selecting Representative Samples) निदर्शन तभी उपयुक्त होता है जब वह समग्र का प्रतिनिधित्व करे, किन्तु प्रतिनिधित्वपूर्ण निंदर्शन का चयन स्वयं एक कठिनाई है। जब क्षेत्र में अनेक विविधताएं हों और अनुसन्धान का विषय जटिल तब तो प्रतिनिथि निदर्शन का चुनाव और भी अधिक कठिन होता है।
(3) विशेष ज्ञान की आवश्यकता (Need of Special knowledge ) – चूंकि निदर्शन का चयन करना एक तकनीकी प्रक्रिया है, अतः प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं का जा सकती है कि वह उत्तम निदर्शन का चयन कर पायेगा। इसके लिए अध्ययनकर्ता का प्रशिक्षित एवं अनुभवी होना आवश्यक है। निदर्शन निकालने के लिए पर्याप्त सूझबूझ, अन्तर्दृष्टि, निदर्शन के सिद्धान्तों, उसकी कमियों एवं सीमाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। इनके अभाव में अनुसन्धानकर्ता भयंकर त्रुटियां कर सकता है।
(4) निदर्शन पर कायम रहने की कठिनाई (Difficulty in Sticking of Sample ) — निदर्शन में इकाइयों की संख्या कम होती है फिर भी चुनी गई इकाइयों पर कायम रहना कई बार बहुत कठिन होता है। उदाहरण के लिए, जब निदर्शन में ऐसी इकाइयों का चयन हो जाता है जो दूर-दूर बिखरी हुई हों या उनसे सम्पर्क करना कठिन हो तो ऐसी स्थिति में उन लोगों के स्थान पर अन्य लोगों का चयन करना पड़ता है। इस परिवर्तन में निदर्शन में पक्षपात आने की सम्भावना रहती है।
(5) निदर्शन की असम्भावना (Impossibility of Sampling) – जिस प्रकार से कई अध्ययनों में संगणना-पद्धति का प्रयोग असम्भव होता है, उसी प्रकार से कहीं-कहीं निदर्शन पद्धति को काम में लेना भी असम्भव होता है। उदाहरण के लिए, जब समग्र बहुत छोटा हो, उसमें अनेक विविधताएं हों और सजातीयता का अभाव हो, जब शुद्धता की शत-प्रतिशत आवश्यकता हो और प्रत्येक इकाई अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो तो ऐसी स्थिति में निदर्शन विधि अनुपयुक्त होती है और उसके स्थान पर संगणना विधि का ही प्रयोग करना पड़ता है।
उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद भी निदर्शन के महत्त्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। मूल बात यह है कि निदर्शन का चयन उचित मात्रा में उचित रीति से किया जाय।
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