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नियोजन प्रक्रिया के चरण एवं प्रभावी नियोजन के सिद्धान्त

नियोजन प्रक्रिया के चरण एवं प्रभावी नियोजन के सिद्धान्त
नियोजन प्रक्रिया के चरण एवं प्रभावी नियोजन के सिद्धान्त

नियोजन प्रक्रिया के प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिए एवं प्रभावी नियोजन के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।

नियोजन प्रक्रिया के  चरण

नियोजन प्रक्रिया में निम्नलिखिथ चरण शामिल किए जाते हैं-

1. लक्ष्यों का निर्धारण – भविष्य में क्या किया जाना है, कैसे किया जाना है, कहाँ और किसके द्वारा किया जाना है, आदि प्रश्नों के सुनिश्चित उत्तर के लिए नियोजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम उद्देश्यों, नीतियों, नियमों एवं कार्यविधियों आदि के निर्धारण की आवश्यकता होती है। यदि उद्देश्य एवं नीतियां सुस्पष्ट होते हैं तो क्रियाओं में किसी प्रकार की असंगति, भ्रान्ति या झगड़ों की सम्भावना नहीं रहती और सहायोग को बढ़ावा मिलता है।

2. नियोजन के आधारों का विकास – आधारों से आशय उन वातावरणीय घटकों के अनुमान से है जिसके अन्तर्गत नियोजति क्रियाओं को सम्पन्न किया जाना है। संगठन को बहुत से बाहरी एवं आन्तरिक, भौतिक एवं अभौतिक सामाजिक एवं आर्थिक तथा नियंत्रणीय तथा अनियंत्रणीय घटक प्रभावित करते हैं। अतः भविष्य का पूर्वानुमान करके इन घटकों का सही अनुमान एक प्रभावी नियोजन के लिए आवश्यक होता है। अगर नियोजन के आधार ही गलत हैं तो उस पर आधारित महल ठीक कैसे हो सकता है। गलत अनुमान, जोखिमों एवं अनिश्चितताओं में वृद्धि करते हैं और इसकी सफलता की सम्भावनाओं को घटाते हैं।

3. विकल्पों का विकास एवं विश्लेषण- किसी भी लक्ष्य, साधन या कार्य के अनेकों विकल्प हो सकते हैं। अतः नियोजन करते समय इन विकल्पों की खोज या निर्माण किया जाना चाहिए तथा आर्थिक, सामाजिक, जन-प्रतिष्ठा आदि घटकों के संदर्भों में उनके गुण-दोषों का सतर्कता से विश्लेषण किया जाना चाहिए।

4. सर्वोत्तम वैकल्पिक योजना का चयन – सभी विकल्पों का विश्लेषण एवं तुलनात्मक अध्ययन करके उस वैकल्पिक योजना का चयन करना चाहिए जो उन परिस्थितियों मैं सर्वोत्तम सिद्ध हो।

5. नियोजन का क्रियान्वयन – नियोजन अपने में कोई साध्य नहीं है। अतः जिन्हें इसे क्रियान्वित करना है उनकी स्वैच्छिक स्वीकृति इसकी सफलता के लिए आवश्यक है। अतः नियोजन करते समय सभी सूचनाओं एवं समस्याओं को समझना चाहिए और यह संगठन में सहभागिता के द्वारा ही सम्भव हो सकती है। फिर नियोजन को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर सभी सम्बन्धित व्यक्तियों एवं विभागों को क्रियान्वयन के लिए भेज देना चाहिए। नियोजन के प्रेषण समय एवं ढंग पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

6. नियोजन का अनुगमन- बहुत सावधानी एवं विश्लेषण के बाद बनाई गई योजनाएं भी गलत सिद्ध हो सकती हैं। अतः प्रबन्धकों को पुनर्निवेशन (Feed back) की व्यवस्था करनी चाहिए तथा योजनाओं के क्रियान्वयन पर दृष्टि रखनी चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर उनमें आवश्यक परिवर्तन एवं समायोजन करने चाहिए।

प्रभावी नियोजन के सिद्धान्त

गैरी डेसलर (Gary Dessler) ने प्रभावी नियोजन के लिए अग्रलिखित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है-

  1. नियोजन के लिए आवश्चक सूचनाओं का ध्यान रखते हुए अच्छे पूर्वानुमानों का विकास,
  2. नियोजन प्रक्रिया में अधीनस्थों की सहभागिता तथा उनकी स्वैच्छिक स्वीकृति पाने का प्रयास,
  3. आन्तरिक एवं बाहरी घटकों का विश्लेषण कर सुदृढ़ योजनाओं का विकास,
  4. नियोजन में शीघ्रता एवं तदर्थता, जैसे अवगुणों को दूर करने का प्रयास
  5. एक अच्छे नियोजन संगठन एवं प्रणाली का विकास, विशेषरूप से बड़े एवं विषभ संगठनों में एक पृथक नियोजन विभाग की स्थापना।
  6. व्यक्तिपरकता, महत्त्वाकांक्षाओं, अतिहीन भावनाओं तथा अविचारित निर्णयों का परित्याग,
  7. बाजार के अंश का सही निर्धारण,
  8. मापदण्डों का पूर्व निर्धारण
  9. योजनाओं के मूल्यांकन के लिए एक निरीक्षण व्यवस्था का विकास तथा
  10. प्रासंगिक एवं खुली प्रणाली का दृष्टिकोण रखते हुए, बदलती हुई परिसिथतियों में निरन्तर समायोजन। वस्तुतः ये सिद्धान्त नियोजन की सफलता के लिए बड़े उपयोगी हैं।

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Anjali Yadav

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