पिछड़ा वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम, 1993 (The National Commission for Backward Classes Act, 1993)
भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 (1) में एक सामान्य नियम प्रतिपादित किया गया है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, प्रजाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। परन्तु अनुच्छेद 15(4) में इस नियम का एक अपवाद दिया गया है। अनुच्छेद 15(4) के अनुसार, इस अनुच्छेद या अनुच्छेद 29 (2) में कुछ भी राज्य को सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों या अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए कोई विशेष उपबंध बनाने से नहीं रोकेगा। दूसरे अर्थों में गैर-भेदभाव के सिद्धान्त के बावजूद राज्य शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों एवं अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की उन्नति के लिए कानून बना सकती है। इसी प्रकार अनुच्छेद 16(1) में एक सामान्य सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि राज्य के अन्तर्गत किसी भी पद के लिये नागरिकों को नियोजन या नियुक्ति के मामले में समानता का अवसर प्राप्त होगा। परन्तु इसका एक अपवाद अनुच्छेद 16(4) में दिया गया है। अनुच्छेद 16(4) के अनुसार इस अनुच्छेद में कुछ भी होते हुये या उसके बावजूद राज्य को पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में नियुक्ति या पदों के आरक्षण में कोई उपबंध बना सकते हैं क्योंकि राज्य के मत में उनका राज्य की सेवाओं में उपयुक्त प्रतिनिधित्व नहीं है। दूसरे शब्दों में राज्य के अन्तर्गत पदों या नियुक्तियों के लिये नागरिकों को समान अवसर प्रदान किये जाने के सिद्धान्त के बावजूद राज्य पिछड़े वर्ग के नागरिकों जिनका सरकार के मत में राज्य की सेवाओं में उपयुक्त प्रतिनिधित्व नहीं है, के पक्ष में पदों या नियुक्तियों के आरक्षण के लिए कोई कानून बना सकती है। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 340 के अनुसार राष्ट्रपति आदेश द्वारा सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों की दशाओं की खोज-बीन करने तथा उनके द्वारा जो कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा, उसे दूर करने के लिये उपायों की संस्तुति देने हेतु एक कमीशन नियुक्त कर सकता है।
पिछड़े वर्ग के लिये राष्ट्रीय कमीशन अधिनियम हेतु बिल संसद में प्रस्तुत करते समय इसके उद्देश्यों एवं कारणों का एक कथन भी प्रस्तुत किया था। इस कथन में कहा गया था कि भारत सरकार के अन्तर्गत पदों या नियुक्तियों के लिये पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में अनुच्छेद 16(4) के अन्तर्गत आरक्षण के संबंध में सरकार के आदेशों के संबंध में दिनांक 16 नवम्बर, 1992 को उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार को यह निर्देश दिया गया था कि वह चार माह के भीतर पिछड़े वर्ग के नागरिकों की सूची में नाम बढ़ाने या अधिक बढ़ाने की शिकायतों को स्वीकार करने एवं परीक्षण कर संस्तुति देने हेतु एक स्थायी निकाय बनाई जाय। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा था कि पिछड़े वर्ग के नागरिकों की सूचियों के आवधिक पुनरीक्षण में सरकार भी उक्त निकाय से सलाह ले सकती है। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा था कि यह स्थायी निकाय को ऐसे मामलों में शिकायतों का परीक्षण करने एवं उक्त आदेश पारित करने की भी शक्ति होनी चाहिये।
चूंकि उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा था तथा सरकार को 4 माह के अंदर उच्चतम न्यायालय के निर्देश का अनुपालन करना था, राष्ट्रपति पिछड़े वर्ग के लिये राष्ट्रीय कमीशन अध्यादेश, 1 फरवरी 1993 को प्रख्यापित या जारी कर दिया। उक्त बिल राष्ट्रपति के अध्यादेश के स्थान पर था तथा बिल 2 अप्रैल, 1993 को पारित होकर राष्ट्रपति की सम्मति प्राप्त करके पिछड़े वर्ग के लिये राष्ट्रीय कमीशन अधिनियम, 1993 हो गया।
इस अधिनियम का प्रसार सिवास जम्मू एवं काश्मीर राज्य के संपूर्ण भारत में है। यह अधिनियम 1 फरवरी, 1993 से प्रवृत्त माना जायेगा।
अधिनियम के अध्याय 2 में पिछड़े वर्ग के लिये राष्ट्रीय कमीशन की स्थापना का उपबंध है। इस राष्ट्रीय कमीशन के निम्नलिखित सदस्य होंगे-
(क) अध्यक्ष, जो उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका है,
(ख) एक सामाजिक वैज्ञानिक,
(ग) दो व्यक्ति जिन्हें पिछड़े वर्ग के मामलों के संबंध में विशेष ज्ञात है,
(घ) एक सदस्य सचिव एक अधिकारी केन्द्र सरकार से सचिव पद पर रह चुका है।
प्रत्येक सदस्य की पदावधि पद ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष की होगी।
जहाँ तक कमीशन के कार्यों का सम्बन्ध है, कमीशन पिछड़े वर्ग की सूचियों में सम्मिलित किये जाने की प्रार्थनाओं की परीक्षा करेगा तथा ऐसी सूचियों में किसी पिछड़े वर्ग के अधिक या कम सम्मिलित किये जाने की शिकायतों की सुनवाई करेगा तथा जैसा उपयुक्त समझे सलाह केन्द्रीय सरकार को देगा। कमीशन की सलाह साधारणतया सरकार पर बाध्यकारी होगी।
कमीशन की शक्तियाँ उपर्युक्त कार्यों को करते समय वही होंगी जो एक वाद का परीक्षण करने वाले सिविल न्यायालय की होती हैं तथा विशेषकर निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी-
(क) भारत के किसी भी भाग के किसी व्यक्ति को बुलाने तथा उसकी उपस्थिति को प्रवर्तित करने तथा उसकी शपथ पर परीक्षा करना,
(ख) किसी दस्तावेज की खोज एवं प्रस्तुतिकरण करवाना,
(ग) शपथ-पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना,
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से लोक रिकार्ड या उसकी प्रतिलिपि को तलब करवाना,
(ङ) गवाहों एवं दस्तावेजों की परीक्षा के लिये कमीशन जारी करना,
(च) कोई अन्य मामला जो विहित हो।
अधिनियम के प्रवृत्त होने के पश्चात् किसी भी समय केन्द्रीय सरकार सूचियों का पुनरीक्षण इस दृष्टि से कर सकती है कि जो वर्ग अब पिछड़े वर्ग नहीं रह गये हैं उन्हें सूची से हटा दिया जाये तथा नये पिछड़े वर्गों को सम्मिलित किया जाये। परन्तु दस वर्ष पश्चात् केन्द्रीय सरकार ऐसा अवश्य करेगी तथा उसके बाद प्रत्येक दस वर्ष बाद पुनरीक्षण करना केन्द्रीय सरकार का दायित्व होगा। ऐसा पुनरीक्षण करते समय केन्द्रीय सरकार कमीशन से सलाह करेगी।
कमीशन प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किये गये अपने कार्यकलापों की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगी तथा उसकी एक प्रतिलिपि केन्द्रीय सरकार को अग्रेसित करेगी। सरकार उक्त वार्षिक रिपोर्ट में कमीशन द्वारा दी गई सलाह पर की गई कार्यवाही तथा जो सलाह नहीं स्वीकार की उसे न मानने के कारण समेत एक ज्ञापन को संसद के प्रत्येक सदन में रखवायेगी। कमीशन के अध्यक्ष भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अर्थों के भीतर लोक सेवक माने जायेंगे। यदि अधिनियम के उपबंधों को लागू करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्र सरकार सरकारी गजट में प्रकाशित आदेश द्वारा उक्त कठिनाइयों को दूर करने हेतु ऐसे उपबंध बना सकती है जो अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो। लेकिन अधिनियम के प्रारम्भ की तिथि से दो वर्षों की समाप्ति के बाद सरकार ऐसा कोई आदेश नहीं करेगी। इस धारा अर्थात् धारा 18 (1) के अन्तर्गत किया गया कोई आदेश जितना शीघ्र संभव हो, प्रत्येक सदन में रखा जायेगा।
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