हिन्दी काव्य

प्रयोगवादी काव्य की विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए हिन्दी काव्य-क्षेत्र में उसके योगदान की समीक्षा कीजिए।

प्रयोगवादी काव्य की विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए हिन्दी काव्य-क्षेत्र में उसके योगदान की समीक्षा कीजिए।
प्रयोगवादी काव्य की विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए हिन्दी काव्य-क्षेत्र में उसके योगदान की समीक्षा कीजिए।

प्रयोगवादी काव्य की विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए हिन्दी काव्य-क्षेत्र में उसके योगदान की समीक्षा कीजिए।

प्रयोगवाद का संक्षिप्त इतिहास

‘प्रयोग’ शब्द अंग्रेजी के ‘एक्सपेरिमेण्ट’ के वजन पर हिन्दी में चला। अपनी पुस्तक ‘न्यून राइटिंग इन यूरोप में जॉन लेमेन ने यूरोप की नवीन साहित्यिक प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि सन् 1930 तथा उसी दशक के अन्य युवा विद्रोहियों के ठीक पहले कुछ ऐसे लेखक हुए जो स्वतः विद्रोही थे और जो एक-दूसरे से महत्त्वपूर्ण बातों में अन्तर रखते हुए भी कुछ सामान्य गुणों से युक्त थे। इसी प्रकार, की बात हिन्दी के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। निराला, पन्त, इलाचन्द्र जोशी, जैनेन्द्र तथा कुछ प्रगतिवादियों का विद्रोह अपनी मूल प्रकृति में वस्तुतः दब नहीं सका और भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न रूपों में यह प्रकट होता रहा। हिन्दी में काव्य की नवीनतम प्रवृत्तियों का प्रारम्भ तार सप्तक के प्रकाशन (सन् 1943 ई0) से माना जा सकता है।

सन् 1943 ई0 में अज्ञेय ने अपने 7 मित्रों के सहयोग से तार सप्तक का प्रकाशन किया जिसके सम्बन्ध में पंत जी ने लिखा है कि अज्ञेय ने तार सप्तक का सम्पादन करके हिन्दी पाठकों के लिए प्रयोगशील कविता का सर्वप्रथम संग्रह प्रस्तुत किया ‘तार-सप्तक’ के प्रथम संग्रह के सात कवियों में गजानन माधव मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन, भारत भूषण, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा और अज्ञेय हैं। सन् 1947 ई0 से प्रयोगवाद के प्रवर्तक कवि अज्ञेय ने प्रतीक पत्रिका द्वारा प्रयोगवादी साहित्य को बढ़ावा दिया। सन् 1951 ई0 में दूसरा सप्तक’ कविता संग्रह निकला जिसमें भवानीप्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेरबहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती की कविताएँ हैं। इसके पश्चात् तीसरा सप्तक सन् 1954 में प्रकाशित हुआ। डॉ० जगदीश गुप्त के सम्पादन में प्रयोगवादी कविताओं का एक अर्द्धवार्षिक संग्रह ‘नयी कविता’ के नाम से प्रकाशित हुआ इन संग्रहों में डॉ० रामविलास शर्मा और भवानीप्रसाद मिश्र तो पूर्णतया प्रयोगवादी ही हैं, यही प्रयोगवाद का संक्षिप्त इतिहास है।

प्रयोगवाद की विशेषताएँ

प्रयोगवाद की प्रमुख प्रवृत्तियों में वस्तु के धरातल पर व्यक्तिवादिता, मनोवैज्ञानिक अनुभूतियों, चमत्कार, व्यक्ति सत्य से व्यापक सत्य तक पहुँचना, परम्परा का अस्वीकार, जीवन की छोटी-मोटी घटनाओं का विवेचन, महत् की जगह लघु की प्रतिष्ठा, समाज के स्थान पर व्यक्ति की प्रतिस्थापना, बौद्धिकता का आग्रह, मनोवैज्ञानिक प्रभाव का निरूपण, आभिजात्य का विरोध, क्षण-विशेष की अनुभूतियों पर बल आदि प्रमुख हैं। इसमें वेदना की नयी व्याख्या एवं युगबोध की प्रखरता पर बल दिया गया। व्यक्ति की शक्ति को मूल मानकर समष्टि के प्रति समर्पित होने का आग्रह भी इन कवियों में है। प्रयोगवाद की प्रवृत्तियों को दो शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है-

(1) विषय और अनुभूतिगत प्रवृत्तियाँ (2) अभिव्यक्ति कला तथा शिल्पगत प्रवृत्तियाँ।

विषय और अनुभूतिगत प्रवृत्तियाँ- प्रयोगवाद की सबसे प्रधान प्रवृत्ति लोगों की विविधता, अव्यवस्था और दुरूहता थी। इसीलिए इस काव्य में हमें कहीं पर भी एकरूपता, अनुभूति और अभिव्यक्ति की सुषमा नहीं मिलती। प्रयोगवाद में व्यष्टि की अभिव्यक्ति को प्रधानता दी गयी है।

(1) कविता प्रयोग का विषय है। कवि-कर्म की मौलिक समस्या सम्प्रेषण और साधारण की समस्या है। व्यक्ति सत्य को व्यापक सभ्य बनाने का उत्तरदायित्व आज के कवि की सबसे बड़ी समस्या है।

(2) प्रयोगशील भाषा की संकुचित केंचुली फाड़कर उसमें नया व्यापक और सारगर्भित अर्थ भरना चाहता है। भाषा को अपर्याप्त पाकर विराम चिह्नों, अंकों की सीधी-तिरछी लकीरों, छोटे-बड़े टाइप आदि साधनों से कवि उद्योग करने लगा।

(3) प्रयोग का कोई वाद नहीं है, प्रयोग इष्ट या साध्य नहीं, वरन् साधन है।

प्रयोगवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-

1. लघुता के प्रति दृष्टिपात- छायावादी कवि ने अपनी उदात्त कल्पना के सहारे प्रकृति तथा वस्तु जगत् की लघु वस्तुओं का सजीव चित्रण किया तथा मानवीय सूक्ष्म भावों का मूर्तिकरण किया। प्रगतिवादी कवियों ने पहली बार मानव-जगत् के लघु और क्षुद्र प्राणियों को उच्च मानव के रूप में चित्रित किया। प्रयोगवादी कवियों ने अपनी असामाजिक एवं अहंवादी प्रकृति के अनुरूप ही मानव-जगत् के लघु और क्षुद्र प्राणियों पर साहित्यिक दृष्टिपात करके प्रकृति और यंत्र-जगत् की लघु वस्तुओं को अपने काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। इसलिए कविता में पहली बार कंकरीट के पोर्च, चाय की प्याली, सायरन, रेडियम की घड़ी, चूड़ी का टुकड़ा, बाप्पम, कोशिये, गर्म पकौड़ी, बाँस की टूटी हुई टट्टी, फटी ओढ़नी की चिन्दियों इत्यादि का चित्रण हुआ।

2. वैचित्र्य-प्रदर्शन- अधिकतर प्रयोगवादी कवियों में वैचित्र्य-प्रदर्शन को लेकर वृत्ति का सहज संयोजन प्रायः नहीं मिलता है। कहीं-कहीं पर उनकी मानसिक उलझन को व्यक्त करता है। कहीं-कहीं पर वैचित्र्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति भी बड़ी हास्यास्पद हो गयी है। इसमें उनका लक्ष्य केवल विलक्षणता, आश्चर्य, दुरूहता से अपनी नूतनता प्रकट करना ही प्रतीत होता है। इस प्रवृत्ति का एक सटीक उदाहरण देखिए-

“अगर कहीं मैं तोता होता ?

तो क्या होता

तो क्या होता;

तोता होता।

तो हो तो हो ताता ता ता ता

होता होता होता होता ।।”

3. कला और शिल्पगत प्रवृत्तियाँ- डॉ0 नगेन्द्र प्रयोगवाद को शैलीगत विद्रोह मानते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रयोगवादी कवियों ने जितने प्रयोग शैली और शिल्प के क्षेत्र में किये हैं उतने अनुभूति और विषय के क्षेत्र में नहीं किये।

4. नये-नये उपमानों का प्रयोग- कवि शिल्प में नवीनता लाते हैं। नवीनता लाने के लिए प्रयोगवादी कवि सादृश्य-विधान में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाये हैं। इन कवियों की दृष्टि सादृश्य-विधान में यथार्थता पर ही अधिक रही है। उन्होंने उपमान योजना में आस-पास के कुलाबे नहीं बाँधे हैं, इस धरती की ही बात कही है। इसलिए वे प्रतीक जो पुराने और निश्चित अर्थ देने लगते हैं उनसे प्रयोगवादी कवियों ने मुक्ति पाने का प्रयास किया-

“ये उपमान मैले हो गये हैं

देवता इन प्रतीकों के कर गये कूच

कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है।”

5. छन्द योजना में नवीनता- इन कवियों ने कहीं-कहीं लोकगीतों की धुन पर गीत गढ़े हैं तो कहीं मुक्त छन्दों में नये-नये लय और नये-नये स्वर मिलते हैं और कहीं-कहीं छन्द लय के स्थान पर वर्ण्य विषय की भावनाओं के अनुसार चालित हैं जैसे शमशेर की निम्नलिखित पंक्तियाँ लोकगीत की शैली पर लिखे जाने के कारण इतनी सरस हो गयी हैं-

“पीके फूटे आज प्यार के पानी बरसा री,

हरियाली छा गयी हमारे सावन सरसा री,

बादल छाये आसमान में धरती फूली री,

अरी सुहागिन भरी माँग से भूली-भूली री।”

संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिन्दी कविता में प्रगतिवाद युग के आसान और ‘तार सप्तक’ के प्रकाशन के साथ बड़ी धूम से जिस प्रयोगवादी प्रवृत्ति का उदय हुआ था कालान्तर में उसका स्थान नयी कविता ने ले लिया और वह हिन्दी कविता की अभिनव प्रवृत्ति हो गयी। वस्तुतः प्रयोग और नयी कविता सर्वदा दो भिन्न प्रवृत्तियाँ नहीं हैं। बल्कि नयी कविता प्रयोगवाद का ही विकसित रूप हैं। इतना अवश्य है कि नयी कविता ने नयी संवेदना और नवीन अथवा समसामयिक भावबोध को व्यक्त करने के लिए अनेक नये एवं विस्तृत आयामों का उद्घाटन किया है और वह बड़ी सफलतापूर्वक आधुनिक संवेदना का वहन कर रही है। प्रयोगवाद के प्रमुख कवियों में अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, मुक्तिबोध, भारतभूषण अग्रवाल, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती और नरेश मेहता है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment