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प्राथमिक स्त्रोतों के गुण एंव दोष | Merits and Demerits of Primary Sources
प्राथमिक स्त्रोतों के गुण (Merits of Primary Sources)
तथ्य-संकलन के प्राथमिक स्रोतों के गुण या लाभ इस प्रकार हैं-
(1) इस प्रकार के स्रोत द्वारा तथ्य-संकलन हेतु प्रयुक्त अध्ययन में लचीलेपन का गुण पाया जाता है। अध्ययनकर्त्ता परिस्थितियों के अनुसार अध्ययन प्रविधि में परिवर्तन कर सकता है, प्रश्नावली में प्रश्नों को बदल सकता है, यदि अध्ययनकर्ता यह महसूस करता है कि विषय के किसी विशेष पक्ष से सम्बन्धित तथ्य उपलब्ध नहीं हो रहे हैं तो वह अध्ययन प्रविधियों में संशोधन कर सकता है ताकि आवश्यक सूचनाएं प्राप्त हो सकें।
(2) प्राथमिक स्रोत व्यापक क्षेत्र के अध्ययन के लिए उपयुक्त हैं। यहां विस्तृत क्षेत्र में फैले सूचनादाताओं का अध्ययन कर तथ्य एकत्रित करना सम्भव है। प्रश्नावली विधि की सहायता से यह कार्य सुगमता से किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा ऐसे उत्तर भी प्राप्त हो जाते हैं जो आमने-सामने की स्थिति में सम्भव नहीं हैं।
(3) प्राथमिक स्रोत द्वारा संकलित तथ्य अधिक यथार्थ एवं विश्वसनीय होते हैं। अनुसन्धान-कर्त्ता की स्वयं की उपस्थिति के कारण सूचनादाताओं पर सामान्यतः नियन्त्रण रहता है और वे गलत सूचनाएं नहीं दे पाते। यहां प्राप्त सूचनाओं के सत्यापन की सम्भावना भी रहती है। अध्ययनकर्ता चूंकि क्षेत्र में मौजूद होता है, अतः वह जो कुछ देखता व सुनता है, वही नोट करता है। इससे सामग्री के विकृत होने की सामान्यतः सम्भावना नहीं रहती।
(4) प्राथमिक स्रोत से आन्तरिक व गुप्त सूचनाओं का संकलन सम्भव हो पाता है। अध्ययनकर्ता अवलोकन विधि और विशेषतः सहभागिक अवलोकन की सहायता से उस समूह या समुदाय का अभिन्न अंग बन जाता है। जिसका उसे अध्ययन करना है। ऐसी स्थिति में वह अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्रित कर पाता है। द्वैतीयक स्रोतों से इस प्रकार की सूचनाए प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
(5) प्राथमिक स्रोत से संकलित सामग्री की सहायता से प्रामाणिक निष्कर्षों तक पहुंचना सम्भव रहता है। चूंकि प्राप्त सामग्री या तथ्य, अनुसन्धानकर्त्ता के स्वयं के अध्ययन-क्षेत्र में उपस्थित रहने के कारण, अधिक निर्भर-योग्य एवं विश्वसनीय होते हैं, अतः इनके आधार पर प्राप्त निष्कर्षों के प्रामाणिक होने की काफी सम्भावना रहती है।
(6) प्राथमिक स्रोत द्वारा तथ्य-संकलन में समय व धन की काफी बचत होती है। इसका कारण यह है कि अध्ययनकर्ता जब स्वयं क्षेत्र में उपस्थित होता है तो वह साक्षात्कार विधि। के साथ-साथ अवलोकन विधि का भी सहारा ले सकता है और एक साथ कई प्रकार के तथ्य एकत्रित कर सकता है। इस स्रोत द्वारा तथ्य-संकलन का कार्य तुलनात्मक दृष्टि से सरल है।
प्राथमिक स्त्रोतों के दोष (Demerits of Primary Sources)
प्राथमिक स्रोतों द्वारा तथ्य-संकलन के निम्नलिखित दोष हैं-
(1) प्राथमिक स्रोतों द्वारा तथ्य-संकलन में पक्षपात व मिथ्या-झुकाव की काफी सम्भावना रहती है। इसका कारण यह है कि इस प्रकार के अध्ययन में शोधकर्ता की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहती है। यदि वह अपने स्वयं के विचारों एवं पूर्वाग्रहों पर नियन्त्रण पाने में असमर्थ रहता है तो वह तथ्य संकलन की किसी भी विधि का यथार्थता के साथ उपयोग नहीं कर सकता है। ऐसी स्थिति में अध्ययन पक्षपातपूर्ण हो जाता है।
(2) प्राथमिक स्रोत द्वारा तथ्य संकलन में एक कठिनाई यह आती है कि शोधकर्ता कई बार सुविधानुसार तथ्य-संकलित कर लेता है, कई तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर ग्रहण कर लेता है। परिणामस्वरूप अध्ययन में वस्तुनिष्ठ में कमी आ जाती है।
(3) चूंकि प्राथमिक स्रोत द्वारा तथ्य-संकलन के कार्य में अध्ययनकर्त्ता स्वयं लगा होता है, अतः वह सूचनादाताओं को समय-समय पर सूचनाएं प्रदान करने की दृष्टि से कई सुझाव दे देता है। ये सुझाव अध्ययनकर्ता के कार्य को तो सरल बनाते हैं परन्तु इससे तथ्यों की स्वाभाविकता के नष्ट हो जाने का खतरा रहता है।
(4) इस स्रोत द्वारा वर्तमान से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन ही सम्भव है क्योंकि इसमें जीवित लोगों से ही सूचनाएं एकत्रित की जाती हैं। इस स्रोत की सहायता से अतीत की घटनाओं का अध्ययन या ऐतिहासिक विधि द्वारा अध्ययन सम्भव नहीं है।
(5) प्राथमिक स्रोत द्वारा तथ्य-संकलन के लिए यह आवश्यक है कि अनुसन्धानकर्ता अपने कार्य में पूर्णतः कुशल हो, प्रशिक्षित हो। अक्सर यह देखा जाता है कि अध्ययनकर्ताओं में प्रशिक्षण का अभाव होता है। परिणामस्वरूप शोधकार्य की सफलता सन्दिग्ध रहती है।
(6) प्राथमिक स्रोत द्वारा तथ्य-संकलन में सापेक्ष दृष्टि से अधिक मानवशक्ति एवं समय की आवश्यकता पड़ती है। वैयक्तिक स्तर पर किये जाने वाले अध्ययनों में प्राथमिक स्रोत द्वारा सामग्री संकलित करना साधनों की सीमितता के कारण और भी कठिन है।
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