फांसीवाद से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य एवं सिद्धांतों की विवेचना कीजिए।
फासिस्टवाद का अर्थ- शाब्दिक अर्थ के अनुसार फासिस्टवाद का फासीवाद शब्द इटैलियन भाषा के ‘फैसियों’ (Fascio) शब्द से उत्पन्न हुआ है। ‘फैसियों’ शब्द का अर्थ है ‘लकड़ियों का बँधा हुआ एक गट्ठर । प्राचीन समय में ‘लकड़ियों का बँधा हुआ एक गट्ठर’ और ‘कुल्हाड़ी’ रोम का राज-चिह्न होता था। ये दोनों चिह्न बड़े सार्थक होते थे। इनको प्रतीक विशेष के रूप में माना जाता था। ‘लकड़ियों का गट्ठर’ तो राष्ट्रीय एकता, अनुशासन और सम्बद्धता का प्रतीक था और ‘कुल्हाड़ी’ राज्य शक्ति की प्रतीक थी।
फासिस्टवाद का जन्म इटली में मुसोलिनी के निर्देशन और नियन्त्रण में हुआ। मुसोलिनी और उसके दल ने रोम के उसी प्राचीन राज-चिह्न को अपने दल का ध्वज-संकेत बनाया, और मार्च 1919 में मुसोलिनी ने अपने समर्थकों की एक सभा बुलायी जिसका नाम फैसियो (Fascio) रखा। फैसियो एक संस्था के रूप में सर्वप्रथम ‘मिलान नगर’ में गठित हुयी। इसकी स्थापना के बाद ही शीघ्रता से इसका फैलाव इटली के सभी नगरों में हो गया। इस प्रकार फैसियो के जो सदस्य थे वे फासिस्ट कहलाए तथा उनका मत फासीवाद या फासिस्टवाद हुआ। इस संस्था का प्रधान नेता और सेनापति मुसोलिनी हुआ। इसके सदस्य अनुशासन में रहते थे। सदस्य सैनिक ढंग से रहते थे।
उद्देश्य- यद्यपि समय-समय पर फासीवाद के लक्ष्य प्रकट होते रहे हैं फिर भी प्रारम्भ में मुसोलिनी ने इसकी स्थापना राष्ट्रीय एकता, अनुशासन, शक्ति तथा साम्यवाद के विरोध में की। फासीवाद कल्याणकारी राज्य की कल्पना करता है। फिर भी यह लोकतन्त्र का भी विरोध करता है। मुसोलिनी ने अपना लक्ष्य घोषित करते हुए कहा था कि ‘फासीवाद का आधार यथार्थ है, हम यथार्थ तथा निश्चितता की कामना करते हैं। हमारा कार्यक्रम केवल बातें करना नहीं, कार्य करना है।’ उसने यह भी कहा कि ‘समय और स्थान के अनुसार, हम कुलीनतन्त्री, जनतन्त्री, प्रगतिवादी, रूढ़िवादी, क्रान्तिकारी, प्रतिक्रियावादी आदि के पोषक हो सकते है।’ इन कथनों सिद्ध है कि फासीवाद कोई निश्चित सिद्धान्त न होकर एक कार्य प्रणाली है। यह यथार्थवाद पर आधारित है। यह व्यावहारिक है। सेबाइन ने फासीवाद के विषय में लिखा है कि “फासीवाद विभिन्न स्रोतों से ग्रहण किए गए विचारों का वह योग है, जिन्हें परिस्थिति की आवश्यकतानुसार एकत्रित किया गया है।”
फासीवाद के सिद्धान्त या विशेषताएँ
(1) राज्य का महत्व – फासिस्टवाद राज्य को एक निरपेक्ष सत्ता के रूप में स्वीकार करता है। राज्य साधन नहीं साध्य है। यह सर्वशक्तिमान सत्ता है। इसका नारा है कि ‘जो कुछ राज्य के अन्दर है उसके बाहर कुछ है और न उसकी सत्ता ही है।’ राज्य के प्रति व्यक्ति की निष्ठा ही सबसे बड़ी नैतिकता है। राज्य की पूजा ही सबसे बड़ी पूजा है। व्यक्ति के अधिकार राज्य के प्रति किए गए कर्त्तव्य में हैं। फासीवाद इस अर्थ में अराजकतावादी सिद्धान्त से भिन्न है कि अराजकतावाद राज्य को अस्वीकार करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य आवश्यक बुराई न होर आवश्यक अच्छाई है। साम्यवाद अराजकतावाद का पुजारी होने के कारण इस अर्थ में फासीवाद से भिन्न है।
( 2 ) लोकतन्त्र का विरोध- फासीवाद लोकतन्त्र का विरोध करता है। इसके अनुसार राज्य का शासन कुछ ऐसे लोगों के द्वारा होना चाहिए जो राज्य का हित चाहते हों, निःस्वार्थ हों, सामर्थ्यवान हों। इसलिए इसका मत है कि ‘एक देश, एक दल, और एक नेतृत्व होना चाहिए। राज्य का हित होगा तो उसी में सबका हित समाहित है। लोकतन्त्र में ऐसा कुछ नहीं है। लोकतन्त्र में शासन अक्षम, निष्क्रिय, और खर्चीला होता है। इसमें विचारों का भेद बना रहता है। गतिशीलता नहीं रहती । लोकतन्त्र में गुणों का नहीं, गणना का महत्व होता है। बहुमत का निर्णय सदैव ठीक नहीं होता अतः लोकतन्त्र ठीक नहीं है। इस प्रकार फासीवाद में जनता की प्रभुता को स्वीकार नहीं किया गया है। फ़ासीवाद स्वतन्त्रता, समता, भ्रातृत्व आदि जीवन-मूल्यों को स्वीकार नहीं करता। इसलिए यह लोकतन्त्र विरोधी है।
( 3 ) समाजवाद और साम्यवाद के विरुद्ध – फासीवाद, समाजवाद तथा साम्यवाद का विरोधी है। यह समाजवादियों की तरह समाज में समानता के पक्ष में नहीं है। इसके अनुसार पूँजीपतियों की सम्पत्ति को समाप्त करने की जगह उसका ऐसा उपयोग किया जाय कि उनका • नफा राज्य द्वारा नियन्त्रित हो। मजदूरों का वेतन राज्य द्वारा निर्धारित हो। मिल-मालिक और मजदूरों का झगड़ा औद्योगिक न्यायालय से होना चाहिए। फासीवाद साम्यवाद की तरह वर्ग-संघर्ष नहीं चाहता। उसके स्थान पर पारस्परिक सहयोग चाहता है। समाजवाद तथा साम्यवाद दोनों भौतिक व आर्थिक उन्नति पर बल देते हैं, परन्तु फासीवाद केवल भौतिक और आर्थिक विकास के स्थान पर सर्वतोन्मुखी विकास चाहता है।
( 4 ) अनुशासनप्रियता – फासीवाद के चाहे जो दोष हों, परन्तु सबसे बड़ा गुण इसकी अनुशासनप्रियता है। यह अनुशासन को महत्व देता है। इटली की अराजकता की स्थिति को देखकर मुसोलिनी ने अनुशासन पर अधिक जोर दिया तथा सुधार के द्वारा लोगों में अनुशासन उत्पन्न किया। देश के प्रति समर्पण की भावना भर दी तथा कल-कारखानों में हड़ताल तथा तालाबन्दी को समाप्त कर दिया। साम्यवादियों द्वारा चलाए गए वर्ग-संघर्ष की प्रक्रिया को समाप्त करके परस्पर सहयोग की भावना उत्पन्न की। फासीवाद ने इस अर्थ मे मनुष्यों के बीच घृणा, द्वेष तथा बैर की भावना को कम करके मनुष्य को पशु होने से बचाया।
(5) हिंसावाद को महत्व – फासीवाद युद्ध, हिंसा और दंड पर विश्वास करता है। इसकी दृष्टि में युद्धं प्राकृतिक है। राज्य का ‘शक्ति सिद्धान्त’ फासीवाद को स्वीकार है। इसके अनुसार हिंसा द्वारा राज्य-शक्ति बनी रहती है। दंड के भय से ही अनुशासन बना रहता है। इसका इतिहास के रक्त से सना हुआ है। मुसोलिनी ने युद्ध के द्वारा राज्य को कायम करने के लिए युद्ध ने ही सैन्य बल का गठन किया था। हिंसा और युद्ध को कितना महत्व इस मत में दिया जाता है, यह इस कथन से सिद्ध हो जाता है-‘युद्ध उतना ही स्वाभाविक है जितना औरतों को प्रसव।’
( 6 ) राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता मे विश्वास- फासीवाद राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता पर विश्वास करता है। इसके लिए वह सैनिक वर्दियों, ओजपूर्ण भाषणों द्वारा जनता की भावनाओं को प्रभावित करता है। चूँकि राज्य सर्वोपरि सत्ता है इसलिए इसकी एकता और दृढ़ता में विश्वास रखना और इसके लिए कुछ करना अनिवार्य है। मुसोलिनी ने इसके लिए बहुत कुछ किया। उनका कथन है कि ‘साधारण जनता घोड़ की तरह है, उसे दाना और घास खिलाओ। फिर उसकी पीठ पर जीन कसकर मजे से सवारी करो’ इसकी राष्ट्रीयता संकीर्ण और उम्र थी। यह आक्रमण, युद्ध और साम्राज्यवादी विस्तार की नीति का समर्थ है।
(7) अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध- फासीवादी अन्तर्राष्ट्रीयता को नहीं स्वीकार करता। इसके अनुसार ‘अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति कायरों का स्वप्न है।’ इसी आधार पर फासीवाद विश्व शान्ति को सम्भव नहीं मानता। मुसोलिनी ने कहा था ‘राज्य अपने आप में एक आत्मिक और नैतिक शक्ति है।’ जब राज्य ही सब कुछ है तो राष्ट्रवाद फासीवाद के लिए महत्वपूर्ण है न। कि अन्तर्राष्ट्रीयता यह विश्व शान्ति तथा विश्वबन्धुत्व के लिए खतरा है।
( 8 ) फासीवाद निगमवाद (Corporativism) में विश्वास करता है-फासीवाद की घोषणा है कि उत्पादन की प्रत्येक शाखा में एक कार्पोरेशन (निगम) को कार्य करना चाहिए। आर्थिक क्षेत्र में निगम की स्थापना फासीवाद की प्रमुख दोनों में से एक है। फासीवाद कहता है कि निगमित राज्य न तो पूँजीवाद है और न समाजवाद, यह नयी व्यवस्था है, साहसपूर्ण और मौलिक कार्य है। सबसे अधिक क्रान्तिकारी काम है। निगम की दो विशेषताएँ हैं: प्रथम यह कि इसमें श्रमिक संघ और मिल मालिक को प्रतिनिधित्व मिलता था। दूसरी यह कि देश के उद्योगों का प्रबन्ध निगम के हाथों में था। परन्तु इन निगमों पर राज्य का नियन्त्रण था।
( 9 ) अबौद्धिकता- फासिस्टवाद तर्क और विचार का विरोधी है। यह मूलप्रवृत्तिजन्य सहज ज्ञानवाद पर विश्वास करता है। मुसोलिनी कहता था- ‘मैं तो उस जानवर की तरह हूँ जो परिस्थिति किस ओर मुड़ जायेगी, उसका मुझे अन्तर्ज्ञान हो जाता है और जब मैं सहज ज्ञान से काम करता हूँ तो कभी गलती नहीं होती।’ फासीवाद बुद्धि और विवेक का मजाब उड़ाता है। यह लोगों में भावनाओं को उभाड़ कर काम करता है। विवेक और विचार नहीं क्रियाशीलता और व्यावहारिकता को महत्त्व देता है।
( 10 ) फासिस्टवाद एक धार्मिक विचार है- मुसोलिनी की यह बात चौकाने वाली लगती है जब वह कहता है कि ‘फासिस्टवाद एक धार्मिक विचार है।’ वह फासीवाद को हीगेल के राज्य सम्बन्धी विचार का आधुनिक रूप कहता है। वह प्रचलित सामान्य धर्म से भिन्न अपने फासीवाद विचार को धर्म के रूप में रखता है और कहता है कि “हम ऐसे हर धर्म, सम्प्रदाय को नष्ट कर चुके हैं-हम हर अन्धविश्वासी मत पर थूक चुके हैं, हम प्रत्येक स्वर्ग का बहिष्कार कर चुके हैं, हर पाखंडियों की धज्जियाँ उड़ा चुके हैं जो मनुष्य जाति को सुखी बनाने के लिए जाद का असर रखने वाले नुस्खे लिखते हैं। हमें किसी पद्धति, औषधि, सन्त या देवदूत पर श्रद्धा नहीं है। मुक्ति और स्वर्ग पर तो हमें और भी कम विश्वास है। हमें व्यक्ति के पास एक बार फिर वापस जाना चाहिए। हम उस बात के समर्थ हैं जो व्यक्ति को ऊपर उठाती है, उसे महान बनाती है, उसे अधिक आराम, अधिक स्वाधीनता और व्यापक जीवन देती है।” यह फासीवाद का क्रियाशीलता तथा व्यावहारिकता का धर्म है।
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