Contents
बालकों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय
बालक के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को अभिस्वीकार किया गया और महासभा ने 20 नवम्बर 1989 को स्वीकृति प्रदान किया और यह अनुसमर्थन या स्वीकृति के बीसवें लिखत के संयुक्त राष्ट्र महासचिव के साथ निक्षेप की तिथि के पश्चात् 13वें दिन 2 सितम्बर 1990 को लागू हुआ।
बालक के अधिकारों पर घोषणा 1959 बालकों की दशा में सुधार से सम्बन्धित सामान्य सिद्धान्तों को धारण करता है। बीक इसी प्रकार से इसको स्वीकृत किया जा चुका है लेकिन इसकी कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं है। जहाँ बालक के अधिकारों पर कन्वेंशन एक बाध्य करने वाला दायित्व है, वहाँ यह राज्यों से कन्वेंशन के प्रावधानों के अनुपालन की अपेक्षा करता है।
बालक के अधिकारों पर कन्वेंशन में 54 अनुच्छेद है और एक उद्देशिका एवम् तीन भागों में विभक्त है। भाग 1 (अनु. 1-41) उस अधिकार के साथ संव्यवहार करता है जिसको एक बालक के पास होना चाहिए, भाग II (अनुच्छेद (42-45) क्रियान्वयन के प्रश्न के साथ संव्यवहार करता है, और भाग III अनुच्छेद (46-54) अनेक अन्तिम कारणों को सम्मिलित करता है।
मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में उसको पुनः बुलाकर वर्तमान कन्वेंशन के राज्य कक्षकारों के राज्य पक्षकारों तथा संयुक्त राष्ट्र के यह प्रावधान किया है कि बचपनावस्था, विशेष सावधानी एवम् सहायता की हकदारिणी होती है, इस बात को मान्यता प्रदान कर दी है कि उसके / उसकी सम्पूर्ण या सामांगी विकास के लिए सन्तान, एक पारिवारिक वातावरण, प्रसन्नता, प्यार, एवम् सूझ-बूझ के एक वातावरण में पूर्णतया विकास करना चाहिए पुनः इस बात पर पुनः विचार करने वाले राज्य पक्षकारों, कि सन्तान को समाज में एक व्यक्तिगत जीवन जीने के लिए तैयार किया जाना चाहिए तथा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में घोषित आदर्शों के सम्पूर्ण विचार में पालन किया जाना चाहिए, ने इस बात को मान्यता प्रदान कर दी है कि सन्तानें आपवादिक तौर पर कठिन स्थितियों में रह रही है और यह कि ऐसी सन्तानें पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता पड़ती है। सन्तानों के संरक्षण एवम् सामांगी विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति की सांस्कृति मूल्यों एवम् परम्पराओं के महत्व पर सम्यक ध्यान देते हुए. राज्य पक्षकारों ने प्रत्येक देश में, विशेषकर विकासशील देशों ने सन्तानों की रहने की दशाओं में सुधार करने के लिए। अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्त्व को मान्यता प्रदान की है।
सन्तान का अधिकार – कन्वेंशन सन्तान शब्द क्यों परिभाषित करता है। यह धान करता है कि इस कन्वेंशन के प्रयोजनार्थ ‘सन्तान’ 18 वर्षों से कम आयु के वाले प्रत्येक मानव प्राणी का अर्थ रखता है जब तक सन्तान के प्रति लागू विधि के अधीन वयस्कता को और पहले नहीं प्राप्त कर लिया जाता है।
सन्तान के अधिकारों पर कन्वेंशन में जैसा अन्तर्विष्ट किया है, उसके अनुसार सन्तान के अनेक अधिकारों पर चर्चा निम्नलिखित शीर्षक के अधीन की जा सकती है-
( 1 ) सन्तान या बालक की स्वतन्त्रता एवम् सिविल अधिकार
एक सन्तान निम्नलिखित सिविल अधिकारों एवम् स्वतन्त्रताओं का उपभोग करता है।
(1) प्रत्येक सन्तान के पास जीवन का अन्तर्निहित अधिकार है और वह अधिकतम सम्भाव्य उत्तरजीविता एवम् विकास की सीमा तक सुनिश्चित किया जायेगा। (अनु. 6 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(2) नाम एवम् राष्ट्रीयता का अधिकार प्रत्येक सन्तान के पास जन्म के पश्चात् तत्काल रजिस्ट्रीकृत होने का अधिकार, नाम एवम् राष्ट्रीयता का अधिकार तथा जाने का तथा उसकी या उसके माता-पिता के द्वारा देख-भाल किया जाने का अधिकार, (अनु. 7 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(3) पहचान का अधिकार प्रत्येक सन्तान के पास अपने/अपनी पहचान, राष्ट्रीतया, नाम एवम् पारिवारिक सम्बन्धों की सुरक्षा करने का अधिकार होता है।
(4) अभिव्यक्त की स्वतन्त्रता का अधिकार प्रत्येक सन्तान के पास अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार होता है जिसमें सूचना खोजने, प्राप्त करने तथा उसको पूर्ण करने और सभी प्रकार के विचार सम्मिलित है।
(2) पारिवारिक वातावरण का अधिकार
एक सन्तान/बालक निम्नलिखित अधिकारों का हकदार है-
(1 ) एक सन्तान पास अपने माता-पिता से पृथक होने का अधिकार नहीं होता है, सिवाय जब उस प्रवर्तनीय विधि एवम् प्रक्रिया के अनुसार न्यायिक पुनर्विलोकन के अध्यधीन रहते हुए सक्षम प्राधिकारीगण यह अवधारण करते हैं कि ऐसा पृथक्करण बालक/सन्तानों के सर्वाधिक हित में आवश्यक है। (अनु. 9 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(2) माता-पिता या विधिक प्रतिनिधिगण के पास सन्तान के विकास एवम् पालन पोषण करने के लिए प्राथमिक दायित्व होता है। राज्य दायित्वों से सम्बन्धित उनकी सन्तान का अनुपालन करने में माता-पिता एवम् विधिक संरक्षकों को समुचित सहायता प्रदान करेगा। (देखें, अनु. 18 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(3) एक सन्तान पारिवारिक वातावरण का हकदार है। मान लें, एक बालक / सन्तान को अपने या अपनी पारिवारिक वातावरण से अस्थायी या स्थायी तौर पर वंचित कर दिया जाता है। तो वह राज्य द्वारा प्रदत्त विशेष संरक्षण एवम् सहायता का हकदार होगा। (अनु. 21 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(4) दत्तक ग्रहण सक्षम प्राधिकारियों के प्राधिकृत किये जाने के साथ तथा सन्तान के रक्षोपायो के साथ सन्तान के सर्वाधिक हित मात्र में अनुपालन किया जायेगा अन्तरदेशीय दत्तक ग्रहण को अन्तर्ग्रस्त किये गये उन सभी लोगों के लिए अनुचित वित्तीय लाभ का परिणाम देना चाहिए।
(3) स्वास्थ्य का अधिकार
एक सन्तान उसके या उसकी स्वास्थ्य एवम् अच्छा होने के सन्दर्भ में निम्नलिखित अधिकार होता है-
(1) सन्तान के उत्तरजीविता तथा विकास का अभिनिश्चय अवश्य अधिकतम सम्भाव्य सीमा तक किया जाना चाहिए (अनु. 19 बालक के अधिकार पर कन्वेशन)
(2) मानसिक या शारीरिक तौर पर निर्योग्य सन्तान के पास उन सभी शर्तों में पूर्ण एवम् सुन्दर या शिष्ट जीवन जीने का अधिकार होता है जो समुदाय में गरिमा को सुनिश्चित करते हैं, आत्म विश्वास को उन्नतशील बनाते हैं तथा सन्तानों की सक्रिय भागिता को सरल बना देते हैं।
(3) एक सन्तान के पास स्वास्थ्य के सर्वाधिक उच्चतर प्राप्त करने योग्य स्तर तथा बीमारी के उपचार एवम् स्वास्थ्य पुनरोत्थान का उपभोग करने का अधिकार होता है जो किशोर होने का और सन्तान की नैतिकता तथा कुपोषण का सामना करने का भी अभिप्राय रखता है। (अनु. 24 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(4) प्रत्येक सन्तान सामाजिक सुरक्षा से लाभ प्राप्त करने का हकदार होता है जिसमें कानून के अनुसार सामाजिक बीमा भी सम्मिलित है।
( 4 ) सन्तान का शैक्षणिक अधिकार
प्रत्येक सन्तान के पास निम्नलिखित शैक्षणिक अधिकार होता है-
(1) शिक्षा जिसमें प्रथमिक अनिवार्य शिक्षा एवम् सभी लोगों के लिए निःशुल्क उपलब्ध, सेकेण्डरी सामान्य एवम् व्यावसायिक प्रशिक्षण सम्मिलित है, को अवश्यमेव (क) बालक के व्यक्तित्व, प्रतिभाएँ, तथा उनकी पूर्ण सीमा तक शारीरिक योग्यता का विकास, (ख) मानवाधिकारों एवम् मूल स्वतन्त्रता के लिए तथा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में उल्लिखित सिद्धान्तों के लिए आदर का विकास, (ग) सन्तान के माता-पिता के लिए, उसके या स्वयम् उसकी सांस्कृतिक पहचान, भाषा एवम् मूल्य के लिए उस देश के राष्ट्रीय मूल के जिए जिसमें सन्तान रह रही है, वह जिससे वह उसकी/उसका उद्भव हो सकता है और उसके या उसकी स्वयम् से भिन्न भिन्न सभ्यताओं के लिए (घ) एक स्वतन्त्र समाज सूझबूझ, शान्ति, सहिष्णुता लिंगों में समता सभी लोगों के बीच मित्रता, नैतिक, राष्ट्रीय एवम् धार्मिक दलों, देशी मूल के व्यक्तियों के विचार में, एक स्वतन्त्र समाज में उत्तरदायी और जीवन के लिए सन्तान की तैयारी तथा प्राकृतिक वातावरण के लिए आदर विकास में प्रोन्नति करने के लिए राज्य द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए। (अनु. 28 एवम् 29, बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(2) प्रत्येक सन्तान के पास, अवकाश, खेल, मनोरंजन, बालक की आयु की समुचित क्रिया कलाप का अधिकार तथा सांस्कृतिक जीवन एवम् कार्यों में भाग लेने का अधिकार होता है। (अनु. 3) : बालक के अधिकार पर कन्वेंश)
(5) आपात काल में विशेष सुरक्षा का अधिकार
वे व्यक्ति जिनकी आयु 15 वर्षों से कम है, पक्ष द्रोही होने में एक प्रत्यक्षतः भाग नहीं ले सकते हैं और उनकी सैनिक दलों में भर्ती भी नहीं की जा सकती है। पुनरुत्थान सम्बन्धी सावधानी उन सन्तानों या बालकों के लिए अवश्य उस सम्बन्ध होना चाहिए जो सशस्त्र संघर्ष के शिकार है। (अनु. 38 बालक के अधिकार पर कन्वेंशन)
(6) न्याय के प्रशासन के सम्बन्ध में सन्तान या बालक का अधिकार
किशोर प्रशासन को मानवाधिकार तथा दूसरों को मौलिक स्वतन्त्रता के लिए सन्तान के आदर को मजबूती प्रदान करने के लिए गरिमा एवम् योग्यता की सन्तान के भाव की प्रोन्नति तथा समाज में सन्तान की पुनः सत्यनिष्ठा के उद्देश्य एवम् सन्तान की आयु को में रखकर अवश्य कार्यवाही की जानी चाहिए। स्वतन्त्रता से वंचित प्रत्येक सन्तान के साथ मानवता पूर्ण संव्यवहार किया जायेगा और मानव शरीर की अन्तर्निहित गरिमा के लिए आदर और उस तरीके से जो •उसका उसकी आयु की व्यक्तियों की आवश्यकता को ध्यान में रखता है। विशेष तौर पर, वैसा न करने को सन्तान के सर्वाधिक हित में माना जाता है। एक सन्तान या बालक जिसको निरुद्ध किया जाता है, वह विधिक एवम् समुचित सहायता की तत्काल पहुँच का एवम् उसके या उसकी परिवार के साथ सम्पर्क कायम रखने के लिए अधिकार रखेगा। मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास का दण्ड 18 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा कारित किये अपराध के लिए अधिरोपित नहीं किया जायेगा। एक सन्तान की गिरफ्तारी, निरोध या कारावास कानून की सम्पुष्टि में होगी और अन्तिम अभिगम (resort) तथा समय की समुचित कालावधि के एक उपाय के रूप में मात्र प्रयोग किया जायेगा।
(7) शोषण के विरुद्ध अधिकार
बालश्रम के शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रत्येक सन्तान आर्थिक शोषण से तथा किसी कार्य को करने से संरक्षण प्राप्त किये जाने का हकदार होता है, जिसके खतरनाक होने या बाल शिक्षा में हस्तक्षेप करने या बालक के स्वास्थ्य या शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक या सामाजिक विकास के लिए हानिकारक होने की सम्भावना पायी जाती है। राज्य पक्षकारों को प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु, रोजगार के प्रवेश के लिए एवम् रोजगार के वर्षों एवम् शर्तों के समुचित विनियमनों के लिए अवश्य प्रावधान करना चाहिए।
IMPORTANT LINK
- विचारधारा से आप क्या समझते हैं? What do you understand by ideology?
- परम्परा और आधुनिकता का समन्वय | Tradition and modernity of amalgamation in Hindi
- प्राचीन भारतीय राजनीति चिन्तन की विशेषताएं | Features of Ancient Indian Political Thought in Hindi
- प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तन के स्रोत | Sources of Ancient Indian Political Thought in Hindi
- राजनीतिक सिद्धान्त का अर्थ, प्रकृति, क्षेत्र एंव इसकी उपयोगिता | Meaning, nature, scope and utility of political theory in Hindi
- राजनीतिक विज्ञान की परम्परागत एवं आधुनिक परिभाषा | Traditional and Modern Definitions of Political Science in Hindi
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के द्वारा दी गयी मानव अधिकार
- मानवाधिकार की परिभाषा एवं उत्पत्ति | Definition and Origin of Human Rights in Hindi
- नारीवाद का अर्थ एंव विशेषताएँ | Meaning and Features of Feminism in Hindi
- राजनीतिक विचारधारा में साम्यवाद का क्या विचार था?
- मार्क्सवाद विचारों की आलोचना | Criticism of Marxism Ideas in Hindi
- मार्क्सवाद (साम्यवाद) के सिद्धान्त एवं उसके महत्व
- मानवाधिकार का वर्गीकरण | classification of human rights in Hindi
- प्राकृतिक विधि का सिद्धान्त | Natural Law Theory in Hindi
- मानवाधिकार के सिद्धान्त | principles of human rights in Hindi