भारत में मूल्य शिक्षा की आवश्यकता पर निबन्ध लिखिए।
भारत में मूल्य शिक्षा की आवश्यकता- भारत में विभिन्ना धर्मों, जातिय, वर्गों एवं समुदायों के लोग रहते हैं। सदियों से देश का बहुवर्गीय समाज अपनी विविध मान्यताओं, परम्पराओं और शाश्वत मूल्यों का अनुपालन करता चला आ रहा था। वैज्ञानिक प्रगति एवं औद्योगिक विकास के कारण पाश्चात्य देशों में आधुनिक सभ्यता एवं संस्कृति का अभ्युदय हुआ, जिसका अंधा अनुकरण करके प्रायः भारतीयों ने अपने को आधुनिक बनाकर गौरवान्वित समझा और सदियों से चली आ रही अपनी मान्यताओं, परम्पराओं और शाश्वत मूल्यों को तिलांजलि दे दी। आज समाज में सर्वत्र नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का ट्ठास परिलक्षित हो रहा है। सहस्रों वर्ष पूर्व अपने )षियों, मुनियों एवं महर्षियों द्वारा बताए गए सन्मार्ग से हम पथभ्रष्ट हो गए हैं।
आज जब हम अपने चारों ओर के परिदृश्य पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि सर्वत्र नियमों एवं कानूनों की अवहेलना हो रही है। नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। सर्वत्र कदाचार एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जीवन का कोई भी क्षेत्र अथवा कार्य ऐसा परिलक्षित नहीं होता है, जिसमें पूर्ण रूपेण पारदर्शिता हो । व्यक्ति परस्पर संशयाक्रान्त है। कर्तव्यों की अवहेलना, कार्य के प्रति अकर्मण्यता एवं निष्क्रियता, अनुशासनहीनता और अधिकारों की माँग आदि में सारा समाज संलिप्त है।
इसके दुष्प्रभाव से देश की शिक्षा भी अछूती नहीं रही है क्योंकि जिन विद्यालयों में शिक्षा दी जा रही हैं, वे समाज के लघुरूप हैं। अतः जैसा समाज होगा, वैसे ही विद्यालय होंगे और उनका प्रभाव शिक्षा पर पड़ना स्वाभाविक है।
यह दुष्प्रभाव विद्यालयों में दो रूपों में दिखलाई पड़ता है-
1. विद्यालय प्रशासन पर 2. छात्रों पर। चूँकि विद्यालयों में नियुक्त प्रधानाचार्य, शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के अपने-अपने कार्य हैं, जिसके प्रतिफल उन्हें वेतन मिलता है परन्तु बहुधा ऐसा देखा जा सकता है कि प्रधानाचार्य, शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी अपने-अपने कार्य एवं दायित्व से विमुख हैं। अब न तो प्रधानाचार्य अपने कार्य एवं दायित्व का समुचित निर्वहन कर रहे हैं। और न ही शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी। ऐसी स्थिति में विद्यालयों में अराजकता की स्थिति है। छात्र किंकर्तव्यविमूढ़ से घूम रहे हैं, कक्षाएँ सूनी हैं, शिक्षक अन्य कार्यों में संलग्न हैं। प्रबन्धक भी लूटने-घसोटने में पीछे नहीं हैं।
अब प्रश्न उठता है कि इन विद्या मंदिरों में यह अराजकता, अकर्मण्यता, कर्तव्यों की अवहेलना और अनुशासनहीनता क्यों हैं, ? बच्चों के भविष्य के निर्माता ये विद्यालय इन बच्चों के भविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ कर रहे हैं?
दूसरा पक्ष छात्रों का है। वे भी ज्ञान प्राप्ति के अपने उद्देश्य से भटके हुए हैं। छात्रों में अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा है। आये दिन छात्रों द्वारा प्रायः बिना किसी औचित्य के प्रदर्शन एवं हड़ताल की जाती हैं, जिनमें हिंसात्मक कार्य, कक्षाओं एवं परीक्षाओं का बहिष्कार, बिना टिकट रेल एवं बस यात्रा, बिना टिकट सिनेमा देखना, रोके जाने पर रेलों एवं बसों पर पथराव, बसों एवं सिनेमा घरों को जलाना आदि मुख्य रूप से घटित होता है और कभी-कभी शिक्षकों एवं विश्वविद्यालय अधिकारियों के विरुद्ध बल का प्रयोग करने में भी छात्रों में हिचक नहीं होती है। अन्ततः इसके लिए कौन उत्तरदायी है? इस सम्बन्ध में शिक्षा आयोग ने लिखा है, “इस स्थिति का उत्तरदायित्व किसी एक पक्ष पर नहीं है। इसका उत्तरदायित्व केवल छात्रों पर अभिभावकों या शिक्षकों या राज्य सरकारों या राजनैतिक दलों पर नहीं है वरन् सब पक्षों पर है। “
यदि वस्तुस्थिति पर यथार्थ चिन्तन करें तो पाएँगे कि समाज में हो रहे नैतिक मूल्यों में ट्ठास ही इसका मुख्य उत्तरदायी कारण है। अतः मूल्यों की शिक्षा नितान्त आवश्यक है। शिक्षा की चुनौती-नीति सम्बन्धी परिप्रेक्ष्य इस सम्बन्ध में वर्णित है, “जीवन के सभी क्षेत्रों के विचारशील लोग मूल्यों के तेजी से हो रहे ट्ठास तथा उसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक जीवन में व्याप्त प्रदूषण से बहुत विक्षुब्ध हैं। वास्तव में मूल्यों की यह संकटग्रस्त स्थिति जिस प्रकार जीवन के अन्य अंगों में व्याप्त हैं, उसी प्रकार विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के छात्रों तथा शिक्षकों में व्याप्त है, इसे अत्यधिक खतरनाक विकास के रूप में देखा जाता है। अतः यह आग्रह किया जाता है कि शिक्षा की प्रक्रिया का पुनः अभिविन्यास किया जाना चाहिए तथा युवकों को इसकी अनुभूति करायी जानी चाहिए कि इस प्रकार न तो शोषण, असुरक्षा एवं हिंसा को रोका जा सकता है और न हीं एक संगठित समाज को सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक व्यवहारों के कुछ मानकों को लागू करके और बिना सतत् लगाव के साथ बनाए रखा जा सकता है। पिछले अनुभवों से सीखते हुए यह अपेक्षा की जाती है कि आनुषंगिक एवं व्यवहृत जीव्य-मूल्य प्रणाली को शैक्षिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अन्तर्निविष्ट किया जाना चाहिए, जो जीवन के प्रति तर्क-संगत, वैज्ञानिक एवं नैतिक दृष्टिकोण पर आधारित है। “
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