शिक्षाशास्त्र / Education

महिला समाख्या कार्यक्रम के द्वारा आये परिवर्तन

महिला समाख्या कार्यक्रम के द्वारा आये परिवर्तन
महिला समाख्या कार्यक्रम के द्वारा आये परिवर्तन

महिला समाख्या कार्यक्रम के क्रियान्वयन और उत्तर प्रदेश महिलाओं की स्थिति में आये परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए ।

सन् 1989 ई. में उत्तर प्रदेश में महिला समाख्या कार्यक्रम को प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भिक चरण में यह योजना उत्तर प्रदेश के सात जिलों में चलाया गया। वर्तमान समय में यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के 12 जिलों- सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मथुरा, औरैया, सीतापुर, गोरखपुर, मऊ, प्रतापगढ़ जौनपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और चित्रकूट में चलाया जा रहा हैं। वर्ष 2006 में इस योजना को उत्तर प्रदेश के चार अन्य जिलों- बुलन्दशहर, का राहूच श्रावस्ती और बलरामपुर में विस्तारित किया गया हैं। इस कार्यक्रम को सफलता के से सोलह हो गई हैं। सीतापुर में तो यह योजना 14 खण्डों में विस्तारित हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जाति 44.52% लोग शिक्षित हैं जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 59.03:% तथा महिलाओं की साक्षरता दर 28.33% हैं 2001 की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति के शिक्षित लोग 58.17% हैं जिसमें पुरुष साक्षरता दर 69.08% तथा महिला साक्षरता दर 45.51% हैं। इस प्रकार पूरे राज्य में अनुसूचित जाति के 46.27% लोग शिक्षित हैं जिसमें पुरुष साक्षरता दर 60.34% तथा महिला साक्षरता दर 30.50% हैं उत्तर प्रदेश राज्य में ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के 32.99% लोग शिक्षित हैं। जिसमें पुरुष साक्षरता दर 46.71% तथा महिला साक्षरता 18.34% हैं। शहरी क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के 51% लोग शिक्षित हैं जिसमें पुरुष साक्षरता दर 60.61% तथा महिला साक्षरता 39.54% हैं। उत्तर प्रदेश में गाँवों की महिलायें सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक दृष्टि से काफी पिछड़ी हुई हैं। साथ ही गाँव की इन महिलाओं में जागरूकता का भी अभाव हैं। जागरूकता न होने की वजह से ये पारिवारिक हिंसा का भी शिकार होती हैं। अभिभावकों द्वारा भी उन्हें लड़की होने का एहसास कर दिया जाता हैं तथा यह भी बता दिया जाता हैं कि वे पुरुषों से कमजोर हैं और उनकी बराबरी करने का हर प्रयास बेकार है। शहरी की अपेक्षा गाँव के लोग लड़कियों की सुरक्षा के प्रति अधिक चिंतित होते हैं। इस कारण वे लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने-लिखाने में रूचि नहीं लेते हैं जिससे ये लड़कियाँ पढ़ाई से वंचित रह जाती हैं। इन्ही सब समस्याओं को देखते हुए तथा इन जिलों की क्षेत्रीय, सामाजिक व सामुदयिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इस योजना का शुरू किया गया।

इन जिलों में महिला समाख्या योजना के अन्तर्गत महिला शिक्षण केन्द्रों व कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालयों की स्थापना की गई है। महिला केन्द्र लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय हैं जिसमें कक्षा 1-5 तक पढ़ाई होती हैं। गाँव की लड़किया जो आर्थिक विपन्नता के कारण स्कूल नहीं जा पाती हैं या जो स्कूल जाकर बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं उनके लिए ये विद्यालय शिक्षा के अवसर मुहैया कराते है। साथ ही लड़कियों का विभिन्ना प्रकार के प्रशिक्षणों के माध्यम से तरह-तरह की जानकारी भी दी जाती हैं। जिसमें ये लड़कियाँ सशक्त और आत्मनिर्भर बनने के राह पर अग्रसर होती हैं। इन विद्यालयों में एन. सी. आर. टी. या उत्तर प्रदेश राज्य का पाठ्यक्रम नहीं संचालित होता हैं बल्कि यहाँ का पाठ्यक्रम महिला समाख्या द्वारा संचालित है। ये पाठ्यक्रम लड़कियों में क्षमता निर्माण, आत्मविश्वास और सशक्तिकरण जैसे गुणों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। विद्यालयों में खेल का मैदान व खेलने के लिए खेल सामग्री का आयोजन महिला समाख्या द्वारा किया जाता हैं। इसके अतिरिक्त लड़कियों को देश-विदेश की जानकारी से रू-ब-रू कराने के लिए समाचार, डी. वी. डी. प्लेयर दूरदर्शन आदि में माध्यम से दिखाये जाने के व्यवस्था हैं।

महिला समाख्या कार्यक्रम के द्वारा आये परिवर्तन

इस कार्यक्रम में महिला शिक्षण केन्द्र विद्यालय के संचालन में अपना महत्वपूर्ण योगदान तो दिया ही हैं। साथ ही किशोरियों व अभिभावकों में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्ना की हैं जिसमें इन महिला शिक्षण केन्द्रों में लड़कियों के नामांकन में वृद्धि हुई हैं।

इस कार्यक्रम ने लड़कियो का अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से लड़कियों में बहुत सारे बदलाव आये हैं। पहले जब ये किशोरियाँ विद्यालय आती थी तो शिक्षिकाओं से डरती थी लेकिन अब वही किशोरियाँ खुलकर अपनी बात शिक्षिकाओं से कहती हैं। शैक्षिक दृष्टि से भी ये किशोरियाँ समृद्ध हो रही हैं। इनमें आत्मनिर्भरता, क्षमता निर्माण और सशक्तिकरण के गुण विकसित हो रहे हैं। यह बदलाव केवल महिला शिक्षण केन्द्रों की किशोरियों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इसका प्रभाव उनके अभिभावकों पर भी पड़ा है। इसी कारण पहले इन किशोरियों के अभिभावक जो इन्हें स्कूल भेजने से डरते थे अब स्वयं अपने बच्चों को भेजते हैं। इन विद्यालयों में किशोरियों ने अपनी समस्याओं के समाधान हेतु ‘किशोरी समूह समिति’ जिसे विद्यार्थी समिति भी कहा जाता हैं, का गठन भी कर लिया हैं। महिला समाख्या बनने के बाद ही शिक्षक/शिक्षिकाओं ने भी इस बात पर ध्यान दिया हैं कि किशोरियाँ और महिलायें अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हुई हैं।

उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा में नामांकित सभी लड़कियों को भी इस कार्यक्रम के अनुसार विविध सुविधायें दी जाती हैं। जैसे- मध्याह्न भोजन, पाठ्य पुस्तकें, लेखन-सामग्री, खेल-कूद, नृत्य-गायन आदि से सम्बन्धित सामग्री विद्यालय में छात्राओं को सभी विषयों के अध्ययन के साथ ही समाज की घटनाओं के बारे में भी ‘सामाजिक शिक्षा दी जाती हैं व विषय सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु अगल से कक्षायें भी चलाई जाती हैं। महिला समाख्या द्वारा जारी प्रयासों के परिणामस्वरूप ही आज लड़कियाँ शिक्षा के प्रति जागरूक सशक्त हुई हैं।

इस प्रकार स्पष्ट हैं कि उत्तर प्रदेश में इस कार्यक्रम ने लड़कियों एवं महिलायें शिक्षा को सशक्त बनाया हैं।

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Anjali Yadav

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