महिला समाख्या क्या है? महिला समाख्या योजना के उद्देश्यों और कार्यक्रमों की व्याख्या कीजिए।
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महिला समाख्या क्या है?
महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसरों का प्रबन्धन करना आजादी के बाद से ही राष्ट्रीय प्रयास का विषय बना रहा है। यद्यपि इन प्रयासों के सुखद परिणाम प्राप्त हुए हैं। फिर भी लिंग असमानता की भावना ग्रामीण व वांचित समुदायों में आज भी पाई जाती हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 व संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 में भी लिंग असमानता की इस भावना को देखते हुए महिलाओं की प्रगति व उन्हें शिक्षित करने की दिशा में कार्य योजनायें बनाई गई। उन्हीं में से भारत सरकार का एक बहुचर्चित व महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की नींव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में मौजूद हैं। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं और लड़कियों के उन्नयन पर केन्द्रित हैं।
कार्यक्रम
इस कार्यक्रम का मुख्य बिन्दु समानता प्राप्त करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु, इस कार्यक्रम में एक नवाचारी उपागम को अपनाया गया, जो केवल उद्देश्यों की पूर्ति की बजाय प्रक्रिया पर जोर देता हैं। महिला समाख्या कार्यक्रम में शिक्षा को केवल आधारित साक्षरता कौशल हेतु नहीं समझा जाता बल्कि इसें प्रश्नों को सुलझाने की प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है। यह कार्यक्रम के द्वारा विविध पहलुओं व समस्याओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करके समाधान खोजा जाता हैं। यह कार्यक्रम महिलाओं हेतु ऐसा वातावरण निर्मित करता हैं ताकि वे अपनी गति के अनुसार सीख सकें, अपनी प्राथमिकताओं का निर्धारण स्वयं कर सकें और वांछित चयन हेतु ज्ञान व सूचनाओं को प्राप्त कर सके। यह कार्यक्रम विशेष रूप से, सामाजिक व आर्थिक रूप से वचित तथा गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही महिलाओं के स्वयं के प्रति इस धारणा में बदलाव लाता हैं कि ये महिलाये किसी भी तरह से अन्य महिलाओं से कम हैं। क्योंकि इस कार्यक्रम द्वारा महिलाओं को अपनी समस्याओं से निपटना, अलगाव व आत्मविश्वास की कमी को दूर करते हुए जीवन के लिए संघर्ष करना सिखाया जाता हैं। इसके लिए ज्ञान प्रदान करके उन्हें सशक्त करने का भी प्रयास किया जाता हैं।
यह योजना एक नीलपत्र योजना मात्र नहीं हैं बल्कि इसमें कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु एक व्यापक रूपरेखा तैयार की गई हैं। मुख्यतः यह योजना महिलाओं को उनकी समस्याओं की सामूहिक कार्यवाही हेतु प्रतिबद्ध करती हैं और उन्हें विविध पहलुओं के बारे में जानकारी देकर सशक्त बनाती हैं। सशक्तिकरण की यह नीवं एकजुट महिला संगठनों (महिलाओं समुदायों) द्वारा बहुत गहराई से रखी जाती हैं। ये महिला संघ आकार व स्वरूप में भिन्ना होते हुएँ भी अपनी विविध समस्याओं का सामुदायिक रूप से हल निकाल लेते हैं। सामूहिक रूप से कार्य करने हेतु कटिबद्ध होते हैं। जैसे-जैसे ये संघ सशक्त व परिपक्व होते जाते हैं, वे सामूहिक रूप में जिला व राज्य स्तर पर भी संघों का निर्माण कर अपनी क्रियाओं को संपादित करते रहते हैं जैसे-जैसे यह योजना अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु आगे बढ़ती हैं।
महिला समाख्या कार्यक्रम की मान्यतायें
इसकी प्रमुख मान्यतायें निम्न है-
(1) सभी परियोजना कर्मियों को निर्देशक की भूमिका की बजाय सुविधा प्रदाता व सहायक की भूमिका निभानी चाहिए।
(2) प्रबन्धन ढाँचे के विकेन्द्रीकृत होने के साथ ही जिला, ब्लाक व ग्राम स्तर पर अपनी शक्तियों व जिम्मेदारियों को सामूहिक रूप से पूरा करने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए।
(3) कार्यक्रम के अन्दर सभी प्रक्रियायें, महिलायें के वर्तमान ज्ञान, अनुभव व कौशल के सम्मान पर आधारित होनी चाहिए।
(4) परियोजना के सभी सदस्य हर स्तर पर निर्धन महिलाओं के लिए जाति / समुदाय व अन्य पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर कार्य करें अतः इसके लिए एक सहभागी चयन प्रक्रिया अपनायी जायें।
(5) योजना में प्रत्येक घटक व गतिविधि द्वारा ज्ञान का वातावरण स्थापित होना चाहिए, योजना की हर गतिविधि द्वारा महिला को स्वयं के अनुभव व उनकी शक्तियों का एहसास कराया जाना चाहिए। संघ में प्रत्येक महिला की व्यक्तिगत व विभिन्ना सोच को बराबरी का स्थान व सम्मान दिया जाना चाहिए।
(6) ग्राम्य स्तर पर महिला व महिला समूहों का अपनी गति प्राथमिकताओं, स्वरूप व सभी योजनाओं की वस्तुस्थिति को निर्धारण करना चाहिए।
(7) आयोजन, निर्णय प्रक्रिया व मूल्यांकन क्रियाओं के रूप में भी सभी स्तर के कर्मियों को ग्राम्य स्तर पर सामूहिक रूप से जवाबदेह रहना चाहिए।
महिला समाख्या कार्यक्रम के उद्देश्य इस कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) एक ऐसा वातावरण निर्मित करना जिसमें शिक्षा द्वारा महिलाओं की क्षमता के उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।
(2) महिलाओ के आत्मसम्मान व आत्मविश्वास में वृद्धि करना ताकि वे उत्पादकों व कार्यकत्ताओं के रूप में अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को ज्ञान सकें व इसके लिए उन्हें शैक्षिक कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना ।
(3) महिलाओं व किशोरियों को आवश्यक समर्थन प्रदान करना व शिक्षा के समुचित अवसरों हेतु अनौपचारिक रूप से सीखने का एक वातावरण प्रदान करना।
(4) जिला स्तर व महिला संघों द्वारा विकसित निर्णय शक्ति की क्षमताओं के आधार पर प्रबन्धन के एक विकेन्द्रित व सामूहिक स्थिति को स्थापित करना, जिससे कि प्रभावी सहभागिता हेतु आवश्यक स्थितियों का निर्माण हो सके।
(5) एक ऐसा वातावरण निर्मित करन जहाँ महिलायें ज्ञान व सूचना प्राप्त कर व सशक्तत बनकर, स्वयं के समाज के विकास हेतु सकारात्मक भूमिक निभा सके।
(6) औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में महिलाओं के भाग लेने हेतु आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करना।
(7) महिला संघों को तत्परतापूर्वक व सहयोगपूर्वक गाँव में चलने वाली विभिन्ना शैक्षिक गतिविधियों पर नजर रखने हेतु बनाना जिसमें प्राथमिक विद्यालय केन्द्र व सतत शिक्षा केन्द्र अपने कार्यों को भलि-भाँति संपादित करते रहें।
वर्तमान समय में यह परियोजना उत्तर प्रदेश के 33 जिलों में 5,287 गाँवों उत्तरांचल, कुर्नाटक, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश व केरल में क्रियान्वित की जा रही हैं। दसवीं योजना के दौरान इस योजना को ऐसे 27 नये जिलों तक विस्तार देने की योजना हैं जो विशेषता शैक्षिक व सामाजिक दृष्टि से पिछडेट्टै राज्य हैं जैसे बिहार, झारखण्ड, असम, उत्तर प्रदेश, उत्ताखण्ड, कर्नाटक आदि के पिछड़े क्षेत्र।
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