मातृभाषा शिक्षण के कौन-कौन से प्रमुख उद्देश्य हैं? जूनियर हाईस्कूल तथा माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
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मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य
मातृभाषा-शिक्षण के उद्देश्यों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) सामान्य उद्देश्य- मातृभाषा शिक्षण के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- छात्रों में उचित आत्माभिव्यक्ति की योग्यता उत्पन्न करना।
- छात्रों में लिखने-पढ़ने तथा स्वाध्याय की भावना का विकास करना।
- छात्रों में लेखन शक्ति का विकास करना।
- छात्रों में अन्य दूसरी मौखिक और लिखित भाषाओं को समझने की योग्यता उत्पन्न करना।
- छात्रों में सृजनात्मक शक्ति का विकास करना।
- छात्रों के अर्जित ज्ञान को भाषा के द्वारा अभिव्यक्त करने की क्षमता का विकास करना।
- उच्चकोटि के साहित्य के माध्यम से विभिन्न परिस्थितियों का ज्ञान कराना जिसमें वे अपने भावी जीवन के लिए तैयारी कर सकें।
(2) विशिष्ट उद्देश्य- विशिष्ट शिक्षण के सामान्य उद्देश्य निम्न हैं-
- शिक्षा बालकों के प्रति निष्पक्ष एवं सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण रखती है।
- शिक्षा के स्तरों व उद्देश्यों को निश्चित करता है।
- छात्र व्यवहार को समझने में सहायता देना।
- शिक्षण परिणाम जानने में सहायता देना।
- शिक्षण समस्या के समाधान हेतु सिद्धान्तों का ज्ञान।
विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार उद्देश्य
(क) प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 5 तक)
प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण के विभिन्न उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- बालकों को वाचन की शिक्षा इस विधि से प्रदान कराना ताकि वे शब्दों का शुद्ध उच्चारण सरलता से कर सकें।
- बालकों की अभिव्यक्ति शक्ति को विकसित करने के लिए मन के भावों को उचित प्रकार से अभिव्यक्त करने की क्षमता उत्पन्न करना।
- बालकों की बोधशक्ति को विकसित करने के लिए उनके शब्द-भण्डार का विकास करना तथा विभिन्न विषयों को समझने की योग्यता उत्पन्न करना।
- बालकों को उचित वार्तालाप तथा शिष्टाचार की शिक्षा देना।”
- बालकों में विचारों और भावों को मौखिक रूप प्रकट करने के अतिरिक्त लिखित रूप में प्रकट करने की क्षमता का विकास करना।
(ख) जूनियर माध्यमिक स्तर पर (कक्षा 6 से 8 तक)
जूनियर माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण के विभिन्न उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- प्राथमिक स्तर के निर्धारित उद्देश्यों को धीरे-धीरे इस स्तर तक पूर्ण विकसित करना।
- इस स्तर पर छात्रों के सौन्दर्य भावना का विकास करना।
- स्वाध्याय की प्रवृत्ति को विकसित करना।
- बालक को व्याकरण का ज्ञान कराना ताकि वह भाषा की शुद्धता को समझ सके।
(ग) उच्चतर माध्यमिक स्तर
उच्चतर माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण के विभिन्न उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- उच्चतर माध्यमिक स्तर तक छात्रों का मानसिक विकास काफी हो चुका होता है, अतः उनमें सौन्दर्यबोध कराने के अतिरिक्त सौन्दर्य विवेचन की योग्यता का विकास करना।
- छात्रों को भाषा की शुद्धता तथा अशुद्धता का ज्ञान कराना।
- उच्चकोटि के लेखकों की लेखन शैली का ज्ञान कराना साथ ही उन्हें स्वयं अपनी शैली का निर्माण करने में सहायता देना।
- छात्रों को स्वाध्याय के लिए उत्साहित करना तथा स्वयं साहित्य का निर्माण कर सकने की योग्यता उत्पन्न करना।
- छात्रों से उच्च स्तर की आत्माभिव्यक्ति तथा सृजनात्मक शक्ति को विकसित करने के लिए कहानी, वाद-विवाद तथा निबन्ध प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए उत्साहित करना।
उद्देश्यों की प्राप्ति के माध्यम
मातृभाषा शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित माध्यमों को प्रयोग में लाया जा सकता है-
(क) वाचन द्वारा- बालकों को वाचन कला में निपुण बनाने के लिए सस्वर वाचन तथा भौनवाचन कराया जाये। काव्य-पाठ में बालकों से आरोह-अवरोह का विशेष रूप से ध्यान देने को कहा जाये।
(ख) मौन पाठ द्वारा- लेखन कला के द्वारा बालकों को विचार अभिव्यक्ति का उचित अवसर दिया जाये तथा उन्हें स्वयं वाक्य विन्यास करने का शिक्षण प्रदान किया जाये।
(ग) लेखन कला द्वारा- लेखन कला के द्वारा बालकों को विचार अभिव्यक्ति का उचित अवसर दिया जाये तथा उन्हें स्वयं वाक्य विन्यास करने का शिक्षण प्रदान किया जाये।
(घ) प्रश्नों के द्वारा- बालकों से उनके बोध ज्ञान का पता लगाने के लिए अध्यापक परिस्थिति के अनुसार प्रश्न करें। बालकों के द्वारा दिये गये उत्तरों में उनके बोध ज्ञान का पता लगाने के साथ ही उनके शुभ बोलने की शक्ति का भी पता लगाया जाये।
(ङ) व्याकरण शिक्षा द्वारा- बालकों को भाषा की शुद्धता तथा अशुद्धता का ज्ञान कराने के लिए व्याकरण का ज्ञान प्रदान किया जाये।
(च) काव्य शिक्षण द्वारा- बालकों की सौन्दर्यानुभूति को जाग्रत तथा विकसित करने में काव्य-शिक्षा का विशेष महत्त्व होता है। अध्यापक कक्षा में स्वयं काव्य पाठ करके वातावरण को सरल तथा सौन्दर्यात्मक बना सकते हैं।
(छ) विभिन्न क्रियाओं के द्वारा- भाषण, वाद-विवाद, नाटक तथा सुलेख आदि प्रतियोगिताओं की सहायता से भी छात्रों की सृजनात्मक तथा रचनात्मक प्रवृत्तियों का विकास किया जा सकता है। इससे छात्रों को आत्माभिव्यक्ति का भी उचित अवसर मिलता है।
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