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मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?

मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?
मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? What is the place of mother tongue in the curriculum?

मातृभाषा का पाठ्यक्रम में क्या स्थान है ? विवेचना कीजिए। 

मातृभाषा का पाठ्यक्रम में स्थान

मातृभाषा का पाठ्यक्रम में स्थान की विवेचना हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-

(1) सर्वोन्मुखी विकास- हमारी जातीय संस्कृति का इतिहास मातृभाषा के शब्दों में छिपा रहता है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना बालक का सर्वोन्मुखी विकास नहीं हो सकता है। बालकों का बौद्धिक, नैतिक और सांस्कृतिक विकास उनकी भाषा की क्षमता पर निर्भर करता है। बालकों के स्थायी भावों, संवेगों आदि का मातृभाषा के साथ काफी गहरा सम्बन्ध होता है। अतः बालक के सर्वोन्मुखी विकास के लिए आवश्यक है कि मातृभाषा को बालकों के प्रारम्भिक विकास से ही प्राथमिकता दी जाये।

(2) बाल मनोविकास- मातृभाषा ही बाल- मनोविकास की प्रधान शिक्षा है। विद्यार्थी के ज्ञान, मस्तिष्क, विचार-विनिमय, निर्माण-कुशलता, मौलिकता का विकास आदि काफी कुछ मातृभाषा पर ही निर्भर करते हैं। विद्यार्थी में भावानुभूति और व्यक्तित्व का विकास भी मातृभाषा के ही माध्यम से होता है, इसका कारण है कि मातृभाषा को सीखने में अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता है। बालक बिना पढ़ाये ही उल्टी-सीधी मातृभाषा बोल लेता है और उसके प्रत्येक कार्य का मातृभाषा के साथ गहरा और प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

(3) सभी विषयों का मूलाधार- सभी विषयों, ज्ञान-विज्ञानों का मूलाधार मातृभाषा ही है। मातृभाषा स्वयं एक विषय नहीं है बल्कि यह अन्य विषयों का आधार स्तम्भ है। जो भी छात्र स्पष्ट रूप से विचार नहीं कर सकता है और न ही विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकता है, वह छात्र किसी भी विषय में अच्छा ज्ञान नहीं अर्जित कर सकता है, वह चाहे इतिहास हो अथवा अन्य कोई भी विषय हो। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मातृभाषा का पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। मातृभाषा पर ही अन्य सभी विषयों की योग्यता, पूर्णता और सफलता निर्भर होती है तथा उसी पर शिक्षा की सफलता का भार होता है। उसे सिर्फ एक शैक्षिक विषय कहने की तुलना में जीवन का अनिवार्य आधार कहना अधिक उचित है। यह जीवन की ऐसी परिस्थिति है, जिससे बचकर निकल पाना सम्भव नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक मातृभाषा के साथ घुला-मिला रहता है।

(4) मानव विकास- बच्चा जिस भाषा में बोलता है, सोचता है और स्वप्न देखता है, वही विद्यालय में पढ़ने, शिक्षा और मानव विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। हम अपने भावों को लिखकर या बोलकर व्यक्त कर सकते हैं। हमारे मन में प्रायः ऐसे विचार भी उठते हैं जो बिना मातृभाषा के व्यक्त नहीं किये जा सकते हैं। देश में ऐसा कोई भी नागरिक नहीं हो सकता है जिसे मातृभाषा बोलने और लिखने की उचित शिक्षा न दी गयी हो। छात्र के अन्दर अच्छे नागरिक के गुण-शुद्ध विचार, विचारों की शुद्धता और स्पष्ट अभिव्यक्ति, कार्यकुशलता, विचारों की सच्चाई, क्रियाशीलता आदि तब तक नहीं आ सकते हैं जब तक मस्तिष्क का ठीक ढंग से विकास न हो। ज्ञान तथा मस्तिष्क का विकास मातृभाषा द्वारा ही सम्भव हो सकता है।

(5) चरित्र विकास- मातृभाषा के ज्ञान तथा उसके द्वारा प्राप्त किये गये ज्ञान बालक की अन्तःवृत्तियाँ सजग हो जाती हैं, इसके साथ ही अनुभव वृद्धि और चरित्र-विकास में सहायता मिलती है। मनोविज्ञान के सिद्धान्त ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’ का पालन मातृभाषा के बगैर नहीं किया जा सकता है। मातृभाषा के बिना किसी भी बालक का वैयक्तिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास निर्मूल है।

(6) शिक्षा का सर्वोन्मुखी विकास- मातृभाषा को पाठ्यक्रम में बिना उचित स्थान दिये शिक्षा के सर्वोन्मुखी विकास के उद्देश्य की पूर्ति नहीं की जा सकती है। बालक के विचार श्रेष्ठ हों, सुबोध हों, स्पष्ट हों, आत्माभिव्यक्ति स्वाभाविक हो, ज्ञान गहरा और नवीन हो, किया कल्प, आचार-विचार तथा संस्कृति सभ्यता के अनुकूल हो साथ ही उसकी रचना-शक्ति विकसित हो, इन सभी के लिए मातृभाषा के शिक्षण की आवश्यकता अत्यन्त आवश्यक है।

(7) शिक्षा का आधार- अधिकांश शिक्षाशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि बालक की शिक्षा का प्रारम्भ सदैव मातृभाषा के द्वारा प्रारम्भ की जानी चाहिए। प्रारम्भिक कक्षाओं में अन्य किसी भाषा का प्रयोग करना उचित नहीं माना जाता है। द्वितीय भाषा का प्रारम्भ कक्षा पाँच या छह से किया जा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि किसी भी अन्य भाषा का पढ़ना-पढ़ाना तभी प्रारम्भ किया जाये जब छात्र अपनी मातृभाषा को भली-भाँति समझ लें। भारत के सभी शिक्षा-आयोगों और शिक्षा समितियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि शिक्षा के उच्च स्तर तक मातृभाषा को ही शिक्षा और परीक्षा का माध्यम बनाना चाहिए।

उपर्युक्त कथनों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मातृभाषा पाठ्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसके साथ ही मातृभाषा पाठ्यक्रमों के अन्य विषयों के अध्ययन अध्यापन का भी माध्यम है। मातृभाषा अन्य विषयों के ज्ञान का भी आधार है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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