राजनीति विज्ञान / Political Science

मानवाधिकार व मानवीय पर्यावरण पर 1972 का स्टॉकहोम सम्मेलन

मानवाधिकार व मानवीय पर्यावरण पर 1972 का स्टॉकहोम सम्मेलन
मानवाधिकार व मानवीय पर्यावरण पर 1972 का स्टॉकहोम सम्मेलन

मानवाधिकार व मानवीय पर्यावरण पर 1972 का स्टॉकहोम सम्मेलन

स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र मानवीय पर्यावरण पर सम्मेलन 1972 में हुआ था। मानवीय पर्यारण के विश्व स्तर पर संरक्षण तथा नियन्त्रण की समस्याओं को हल करने के लिये यह प्रथम बड़ा प्रयास था। इससे पर्यावरण संरक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए ध्यान केन्द्रित हुआ स्टाकहोम सम्मेलन के मुख्य योगदान निम्नलिखित हैं-

(1 ) मानवीय पर्यावरण पर घोषणा – मानवीय पर्यावरण पर घोषणा सम्मेलन की रिपोर्ट के भाग 1 में उल्लिखित है तथा यह 1972 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की महान् उपलब्धियों में से एक है। स्टॉक ने इसकी तुलना मानवीय अधिकारो की सार्वभौमिक घोषणा से की तथा विचार प्रकट किया गया है कि यह आवश्यक से एक घोषणापत्र है जिसे नैतिक संहिता के रूप में व्यक्त किया गया है, जिससे राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भविष्य में कार्यकलाप तथा प्रोग्राम नियन्त्रित तथा प्रभावित हों। घोषणा दो भागों में विभाजित हैं (1) पहले भाग में मनुष्य की पर्यावरण के सम्बन्ध में (सात) सच्चाइयों की घोषणा है तथा (2) दूसरे भाग में 26 सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं। पहले भाग में सच्चाइयों के कथन हैं, जैसे मनुष्य अपने पर्यावरण का निर्माता तथा ढालने वाला दोनों ही है, तथा जो उसे शारीरिक रूप से जीवित रखता है तथा उसे बौद्धिक, नैतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास का अवसर प्रदान करता है। मानवीय पर्यावरण का संरक्षण तथा विकास एक बड़ा मसला है जिसका प्रभाव लोगों की भलाई तथा विश्व भर के आर्थिक विकास पर पड़ता है तथा यह सारे विश्व की तुरन्त आकांक्षा तथा सरकारों का कर्त्तव्य है, विकासशील देशों में पर्यावरण सम्बन्धी अधिकांश समस्याएँ अल्प विकास के परिणामस्वरूप हैं, जनसंख्या की समस्याएँ निरन्तर उपस्थित होती है तथा समस्याओं का सामना करने के लिये उपयुक्त रीतियाँ तक उपाय आवश्यक है तथा इतिहास में एक समय ऐसा आ गया है कि सारे विश्व में हमें अपने कार्यकलाप पर्यावरण के परिणामों को देखते हुए अधिक सावधानी से करने चाहिये।

जैसा कि ऊपर लिखा गया है कि घोषणा के भाग 2 में सिद्धान्तों का उल्लेख है। पहला सिद्धान्त सामान्य प्रकृति का है। इसके अनुसार, मनुष्य को स्वतन्त्रता, समानता तथा जीवन की उपयुक्त दशाओं का मौलिक अधिकार ऐसा पर्यावरण में है जिसमें वह प्रतिष्ठा तथा भलाई का जीवन जी सके तथा गम्भीर उत्तरदायित्व है कि वह वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिये पर्यावरण का संरक्षण तथा विकास कर सके। दूसरे सिद्धान्त के अनुसार, पृथ्वी के प्राकृतिक द्रव्यों, जिनमें वायु, पानी, भूमि, पेड़-पौधे शामिल हैं, को वर्तमान तथा भाव पीढ़ियों के लिये सावधानीपूर्ण तथा उपयुक्त योजना तथा प्रबन्ध द्वारा सुरक्षित किया जाना चाहिये सातवें सिद्धान्त के अनुसार, समुद्र में होने वाले दूषण जो मानवीय स्वास्थ्य, जीवित द्रव्यों तथा सामुद्रिक जीवन के लिये हानिकारक हैं, या जो समुद्र के वैध प्रयोगों में हस्तक्षेप करते है, को सभी सम्भव उपायों से रोका जाना चाहिये। आठवें सिद्धान्त में यह स्वीकार किया गया कि मनुष्य के लिये अनुकूल जीवन तथा उचित पर्यावरण बनाने के लिये आर्थिक सामाजिक विकास आवश्यक है तथा पृथ्वी पर ऐसी दशाएँ स्थापित करने के लिये, जो जीवन के स्तर का विकास करने के लिये हों, आवश्यक है। सिद्धान्त 21 तथा सिद्धान्त 22 विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वह पर्यावरण के संरक्षण से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विद्धान्तों के अनुसार राज्यों को प्रभुत्वसम्पन्नता का अधिकार प्रदान करते हैं कि वे अपनी पर्यावरण सम्बन्धी नीतियों के अनुसार, अपने साधनों का विदोहन कर सकें तथा उनकी जिम्मेदारी है किवे सुनिश्चित कर सकें कि उनके क्षेत्राधिकार या नियन्त्रण के अन्तर्गत कार्य कलाप अन्य राज्यों के या राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार की सीमाओं के बाहर के पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचायेंगे। सिद्धान्त 22 के अनुसार, ऐसे राज्यों के क्षेत्राधिकार या नियन्त्रण की सीमाओं के बाहर दूषण से पीड़ित तथा अन्य पर्यावरण के नुकसान के सम्बन्ध में दायित्व तथा मुआवजा से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास करने के लिये सहयोग करेंगे। ये दोनों सिद्धान्त पर्यावरण संरक्षण के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण मतैक्य (Consensus) के प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त सिद्धान्त 26 में प्रावधान है कि मनुष्य तथा उसके पर्यावरण को आणविक हथियारों तथा अन्य सभी प्रकार के जन विनाश के साधनों से बचाकर रखा जाये। सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय अंगों में ऐसे हथियारों का समाप्ति तथा पूर्ण रूप से नष्ट करने के लिये राज्यों को अवश्य प्रयास करने चाहिये।

(2) मानवीय पर्यावरण के लिये कार्य करने की योजना – मानवीय पर्यावरण पर्यावरण के लिये कार्य करने की योजना निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित है-

(1) विश्व पर्यावरण निर्धारण प्रोग्राम (The Global Environment Assessment Programme Earthwatch)

(2) पर्यावरण-प्रबन्धन के कार्य कलाप (Environment Management Activities)

(3) निर्धारण तथा प्रबन्ध के राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों को सहायता पहुँचाने वाले अन्तर्राष्ट्रीय उपाय (International Measures to support the National and International actions of assement and management)

( 3 ) संस्थागत तथा वित्तीय व्यवस्थाओं पर प्रस्ताव – संस्थागत तथा वित्तीय व्यवस्थाओं पर प्रस्ताव में निम्नलिखित संस्थाओं द्वारा वित्तीय व्यवस्थाओं की स्थापना की संस्तुति दी गई है-

(1) पर्यावरण प्रोग्रामों के लिए शासी परिषद (Governing Council for Environmental Programmes (UNEP) प्रस्ताव में यह संस्तुति दी गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के 54 सदस्यों की पर्यावरण-प्रोग्राम के लिये शासी परिषद् स्थापित की जाय जिसे तीन वर्षों के लिये साम्या तथा भौगोलिक आधारों पर चुना जाय। महासभा ने 54 सदस्यों की परिषद के स्थान पर 58 सदस्यों की एक परिषद प्रस्ताव 1997 दिनांक 15 दिसम्बर, 1972 द्वारा स्थापित की। परिषद् के कार्यों में सहायता पहुँचाने के लिये अधिशासी निदेशक (Excutive Director) पर्यावरण की दशा पर प्रत्येक वर्ष एक रिपोर्ट तैयार करता है।

(2) पर्यावरण सचिवालय (Environment Secretariat )।

(3) पर्यावरण कोष (The Environment Fund) |

(4) एक पर्यावरण समन्वयी निकाय (An Environmental Board) |

(4) विश्व पर्यावरण दिवस की घोषणा पर प्रस्ताव – विश्व पर्यावरण दिवस की घोषणा पर प्रस्ताव में यह यह संस्तुति दी गई कि 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाय। तत्पश्चात् इस संस्तुति को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने एक प्रस्ताव द्वारा स्वीकार कर लिया।

( 5 ) आणविक अस्त्रों के परीक्षण पर प्रस्ताव – आणविक अस्त्रों के परीक्षण पर प्रस्ताव में आणविक परीक्षणों (विशेषकर वायुमण्डल में) की भर्त्सना की गयी तथा राज्यों से ऐसे परीक्षण न करने को कहा गया जिनसे पर्यावरण दूषित हो।

( 6 ) दूसरा सम्मेलन बुलाये जाने पर प्रस्ताव – इस प्रस्ताव यह संस्तुति दी गई कि संयुक्त राष्ट्र महासभा पहल करके मानवीय पर्यावरण पर द्वितीय सम्मेलन उपयुक्त समय पर बुलवाये जाने के लिए निर्णय लें।

(7) राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही हेतु संस्तुतियों को सरकारों को प्रेषित करने के सम्बन्ध में निर्णय – स्टाकहोम सम्मेलन में यह भी निर्णय लिया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही हेतु संस्तुतियों को सरकारों को प्रेषित किया जाय।

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Anjali Yadav

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