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मानवाधिकार संरक्षण स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका | Role of NGOs in the protection of Human Rights

मानवाधिकार संरक्षण स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका | Role of NGOs in the protection of Human Rights
मानवाधिकार संरक्षण स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका | Role of NGOs in the protection of Human Rights

मानवाधिकारों के संरक्षण में स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

स्वयंसेवी संगठन (NGO’s) – ऐसे लोगों का समूह या कोई प्राइवेट संस्था जो लोकहित में बिना किसी शुल्क के व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों या समाज की सेवा करे, उसे स्वयंसेवी संस्था या स्वये सेवी संगठन कहा जाता है। स्वयंसेवी संगठनों का कार्य पूर्णतः लोकहित के लिए होता है। इसी लोकहित कार्य में मानवाधिकारों का संरक्षण अंतर्निहित है। मानवअधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 12 (i) में यह उपबंधित है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से यह अपेक्षा की जाती है कि वह मानव अधिकार के लिए काम कर रहे स्वयं सेवी संगठनों को प्रोत्साहित करे। भारत में अनेक ऐसे स्वयंसेवी संगठन हैं जो मानवाधिकार के संरक्षण में कार्य कर रहे हैं जैसे- नाज फाउण्डेशन, पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स, पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिविंग, एक्शन एण्ड इंडिया, वोल्युन्टेरी हेल्थ सोसाइटी आदि।

मानवाधिकार संरक्षण स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका (Role of NGOs in the protection of Human Rights) 

भारत में स्थापित स्वयंसेवी संगठन मानवाधिकारों के संरक्षण में निम्न प्रकार से भूमिका निभाते हैं-

(1 ) प्रत्यक्ष सेवा उपलब्ध कराना-गैर- सरकारी संगठन पीड़ित व्यक्तियों के साथ सीधे कार्य कर सकते हैं एवं उनकी समस्याओं का समाधान करने में संगठन अधिवक्ताओं के समूह से संपर्क करके पीड़ित व्यक्ति के पूर्ण संरक्षण के लिए उसे सरकार या न्यायालय के समक्ष विधिक सहायता भी उपलब्ध करा सकते हैं। इस प्रकार से गैर-सरकारी संगठन न्यायालयों में विचारण के समय प्रेक्षकों के समान कार्य संपादित कर सकते हैं। वे मानव दुर्व्यापार से पीड़ित व्यक्तियों को सहायता देकर उन्हें शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक यातनाओं से बचा सकते हैं। वे समाज के दुर्बल समूहों जैसे-महिलायें, शिशु, शरणार्थी, वृद्ध एवं असमर्थ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से सहायता देकर एवं सम्पर्क करके उनकी आवश्यकता के अनुरूप मानव अधिकारों का संरक्षण कर सकते हैं।

(2) समाज को गतिशील बनाना- समाज को गतिशील बनाने के लिए गैर सरकारी संगठनों द्वारा मानव अधिकार के विभिन्न पहलुओं पर कांफ्रेंस एवं सेमिनार का आयोजन किया जाता है। इन आयोजनों में सहभागिता करने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों, जेल प्रशासकों, पुलिस अधिकारियों, न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं एवं पत्रकारों को आमंत्रित किया जा सकता है। इससे उन्हें मानव अधिकार संधियों एवं कार्य प्रणालियों के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकती है। इसके द्वारा सामान्य व्यक्ति को भी मानव अधिकारों की जानकारी होती है जो सामान्यतः मानव अधिकार के उल्लंघन के शिकार होते हैं।

( 3 ) अन्तर्राष्ट्रीय निकायों एवं सरकारों से वार्तालाप- गैर-सरकारी संगठन सरकारों से मानव अधिकार के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मान के सम्बन्ध में वार्तालाप कर सकते हैं। वे जेल प्राधिकारियों एवं पुलिस द्वारा यातना एवं अमानवीय व्यवहार किये जाने पर रोक लगा सकते हैं, वे सरकार पर इस बात का दबाव डाल सकते हैं कि वे अपनी रिपोर्ट विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समितियों को समय से भेज सकें। गैर-सरकारी संगठन अन्तर्राष्ट्रीय निकायों पर भी दबाव डाल सकते हैं। एमनेस्टी इण्टरनेशनल के अनवरत दबाव से संयुक्त राष्ट्र महासभा को यातना तथा अन्य क्रूरतापूर्ण, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दण्ड के विरुद्ध अभिसमय अंगीकृत करने के लिए मजबूर कर दिया था। अमेरिकी जेविस कमेटी (American Jewish Committee) ने धर्म व विश्वास पर आधारित सभी प्रकार की असहिष्णुता एवं भेद-भाव की समाप्ति के लिए घोषणाओं को स्वीकार कराने के लिए महासभा को सहमत कर लिया था।

( 4 ) संसूचनाओं का संग्रहण-गैर- सरकारी संगठन संसूचना के संग्रहण के कार्य को सम्पादित कर सकते हैं अर्थात् व्यक्तियों को उनके अधिकारों के सम्बन्ध में शिक्षित करना और अधिकारों के उल्लंघनों के बारे में संसूचनाओं का प्रचार-प्रसार करना। वे संसूचनाओं के संग्रहण मूल्यांकन करने के साथ-साथ अधिकारों के उल्लंघनों के विषय में प्रकाशित रिपोर्टों एवं कार्यविधियों के विषय में प्रचार कर सकते हैं। इस प्रकार से, गैर-सरकारी संगठन ऐसे व्यक्तियों को शिक्षित करने का कार्य कर सकते हैं जिन्हें अपने अधिकारों को जानने का अधिकार है। उन्हें सहायता एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिए मानवाधिकारों के आंदोलन को बढ़ा सकते हैं। इस अधिकार को यथार्थता प्रदान करने के लिए वे अन्य गैर-सरकारी संगठनों एवं संस्थानों से सहायता लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

(5) विधिक सहायता प्रदान करना- वे ऐसे मामलों में पहल कर सकते हैं जिन | मामलों में किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन हुआ, हो किन्तु पीड़ित व्यक्ति द्वारा अज्ञानता के कारण या संसाधनों की कमी के कारण न्यायालय के समक्ष कोई कदम नहीं उठाया गया हो।

सेक्टर ऑफ लीगल रिसर्च बनाम स्टेट ऑफ केरल, ए. आई. आर. (1980 सु. को. के मामले में प्रेक्षित किया कि सरकार को स्वैच्छिक संगठनों एवं सामाजिक कार्यसमूहों को विधिक सहायता कार्यक्रमों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। न्यायालय ने | आगे प्रेक्षित किया कि ऐसे स्वैच्छिक संगठन एवं सामाजिक कार्यवाही समूहों पर राज्य सरकारों या राज्य विधिक सहायता एवं सलाहकारी बोर्ड के निर्देशन एवं नियंत्रण के अन्तर्गत कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि स्वैच्छिक संगठन एवं सामाजिक कार्यकारी समूह को ऐसे कार्यों को निष्पादित करने में सरकारी नियंत्रण से पूर्णतया मुक्त होना चाहिए।

(6) रिट याचिकाएँ दाखिल करना – गैर-सरकारी संगठन बड़े पैमाने पर व्यक्तियों को न्याय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जनहित याचिका के द्वारा न्यायालयों के समक्ष रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं। यह कार्य ऐसे व्यक्तियों के लिए कर सकते हैं जिन्हें मूलभूत मानवाधिकार से इन्कार किया जाता है।

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Anjali Yadav

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