मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा का क्या सम्बन्ध है ? मानसिक स्वास्थ्य पर घर तथा विद्यालय का क्या प्रभाव पड़ता है ?
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मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा
शिक्षा के इतिहास में एक समय था, जबकि बच्चे की बुद्धि, रुचि व मानसिक स्थिति की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। शिक्षा पूर्णतया अध्यापक केन्द्रित थी और शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों को ‘थ्री आर्स’ का ज्ञान देना था, किन्तु अब शिक्षा का केन्द्र बालक बन गया है, उसकी मानसिक स्थिति रुचि व अन्य योग्यताओं को आधार मानकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है और शिक्षा का उद्देश्य बालक का समविकास करना है। यदि बालक मानसिक दृष्टि से स्वस्थ नहीं होंगे तो उनकी रुचि पढ़ाई में नहीं हो सकती, जिनके कारण कक्षा की पढ़ाई में उनका ध्यान केन्द्रित नहीं हो सकता है और शिक्षण का लाभ नहीं उठा सकेंगे। प्रत्येक शिक्षक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे वह अपने और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में योग दे सके और जो छात्र मानसिक रोगों से या समायोजन दोषों से पीड़ित हों उनकी सहायता कर सकें। यह बात सर्वविदित है कि मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान और शिक्षा, दोनों को एक-दूसरे से भिन्न नहीं किया जा सकता। प्रजातन्त्र देश में (1) आत्मानुभूति, (2) मानव सम्बन्ध, (3) आर्थिक कुशलता, (4) नागरिक उत्तरदायित्व उद्देश्यों की प्राप्ति तब ही हो सकती है, जब बच्चे मानसिक दृष्टि से स्वस्थ हों।
शिक्षा का उद्देश्य छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक बनाये रखना भी है, क्योंकि अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के बगैर बच्चों की योग्यताओं का उचित विकास सम्भव नहीं है और जिन बच्चों में भय, चिन्ता, निराशा तथा अन्य समायोजन दोषों का विकास हो जाता है, उनका मन पढ़ने में नहीं लगता और सीखने में उन्नति नहीं हो पाती। इसके अतिरिक्त समायोजन दोष वाले बालक स्कूल में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न करते हैं, जिनको समझने और समाधान के लिए प्रत्येक अध्यापक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का जानना आवश्यक है।
मानसिक स्वास्थ्य पर घरेलू प्रभाव तथा विद्यालय का प्रभाव
1. घरेलू प्रभाव- बालक के स्वास्थ्य पर घर का प्रभाव पड़ता है। घर पर ही उसका विकास होता है। बदलती सामाजिक मान्यताएँ घर को प्रभावित कर रही हैं और बालकों के पोषण पर उनका प्रभाव समस्या के रूप में हो रहा है। घर पर प्रभाव डालने वाले तत्व निम्न हैं-
(a) माता-पिता का व्यवहार– जिन घरों में माता-पिता का व्यवहार बालक के प्रति अच्छा नहीं होता, वहाँ भी बालक असमायोजित हो जाता है। ऐसे परिवारों में बालकों की अवहेलना होती है।
(b) उच्च आदर्श- प्रायः माता-पिता बालकों की वैयक्तिक भिन्नता का विचार किये बिना ही बच्चों के लिए ऊँचे आदर्शों का निर्माण कर लेते हैं। बच्चे जब उन आदर्शों की पूर्ति नहीं कर पाते, तब मानसिक असमायोजन की वृद्धि होती है।
(c) परिवार में तनाव- भारतीय परिवार में केवल माता-पिता और उनके बच्चे ही नहीं होते, बल्कि दादा, दादी, चाचा, ताऊ, चाची, ताई अनेक सदस्य होते हैं, जिनका बच्चों के साथ विभिन्न बर्ताव होता है। परिवार के तनाव का बच्चों के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(d) परिवार का विघटन – औद्योगिक प्रगति ने परिवार के संगठन को छिन्न-भिन्न कर दिया है। जिन घरों में माता-पिता, दोनों ही सर्विस करते हैं, वहाँ पर बच्चों की स्थिति और भी खराब हो जाती है। इसलिए अलगाव तथा तलाक बढ़ते जा रहे हैं। इस स्थिति का प्रभाव बालकों के मस्तिष्क पर पड़ना स्वाभाविक है।
(e) निर्धनता– निर्धनता को पापों तथा विकारों का मूल कहा गया है। भारत में तो 80 प्रतिशत अस्वस्थता निर्धनता के कारण है। विद्यालयों में ऐसे बालकों का अभाव नहीं है, जो वस्त्र तक ठीक नहीं पहन कर आते।
(1) घर का अनुशासन- घर के अनुशासन का बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश में निरक्षरता के कारण अनुशासन का कोई स्तर नहीं है। कहीं पर बच्चों को पूर्ण स्वतन्त्रता है तो कहीं पर उनको जरा सी गलती पर सख्त सजा दी जाती है। ऐसे घरों में बच्चों में मानसिक डर तथा चिन्ता बनी रहती है।
2. विद्यालय का प्रभाव – मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में विद्यालय तथा उनसे सम्बन्धित ये कारण भी उत्तरदायी हैं-
(a) अध्यापक का व्यवहार- अध्यापक का स्थान विद्यालय में बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसका व्यक्तित्व बच्चों के व्यक्तित्व को निरन्तर प्रभावित करता रहता है। यदि अध्यापक का व्यवहार पक्षपातपूर्ण है या वह सामान्य रूप से बच्चों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता है या बच्चों को अत्यधिक शारीरिक दण्ड देता है तथा छोटी-छोटी गलतियों पर बुरा-भला कहता है, ऐसे अध्यापक से बच्चे भयभीत रहते हैं। यह निरन्तर भय मानसिक स्वास्थ्य को खराब करता है।
(b) विद्यालय का वातावरण- विद्यालय के वातावरण का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव पड़ता है। यदि विद्यालय में छात्र सुरक्षा अनुभव नहीं करते हैं तो उनके मस्तिष्क में निरन्तर चिन्ता व भय बना रहता है। जिस विद्यालय में जाति-पाँति का प्रश्न पाया जाता है, वहाँ पर विभिन्न प्रकार के झगड़े पाये जाते हैं, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
(c) अभिव्यक्ति के अवसर न देना- जिन विद्यालयों में छात्रों को विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता नहीं दी जाती है, वहाँ पर छात्र भय के कारण अपने विचार व्यक्त करने की इच्छा का दमन करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव डालता है।
(d) परीक्षण प्रणाली – परीक्षा प्रणाली पर भी बालकों का मानसिक स्वास्थ्य निर्भर करता है। यदि परीक्षा प्रणाली ऐसी है, जिससे बालक का मूल्यांकन ठीक प्रकार से नहीं हो सकता तो बालक की योग्यता का सही पता नहीं लगेगा और इस प्रकार बालक वातावरण में अपने आपको समायोजित नहीं कर पायेगा।
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