मूल्यों की शिक्षा में पाठ्यसहगामी क्रियाओं के योगदान का वर्णन कीजिए।
विद्यालयों में छात्रों के शारीरिक, सामाजिक, नैतिक एवं मानसिक विकास के लिए तथा मूल्यों के सम्वर्द्धन हेतु पाठ्यसहगामी क्रियाओं को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया था परन्तु खेद का विषय है कि वर्तमान समय में अधिकांश विद्यालयों और महाविद्यालयों ने अपने समस्त क्रिया-कलाप मात्र शिक्षण तक ही सीमित कर रखे हैं। वे पाठ्य सहगामी क्रियाओं की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इस स्थिति पर प्रकाश डालते हुए ‘शिक्षा की चुनौती’ नीति सम्बन्धी परिप्रेक्ष्य में लिखा है, “शिक्षकों तथा छात्रों के मध्य आत्मीयता और अनौपचारिक सम्पर्क के अभाव में सामूहिक जीवन के लिए सुविधाएँ, सांस्कृतिक क्रियाएँ तथा खेलकूद या तो होते ही नहीं हैं अथवा उनका उपयोग बहुत कम किया जाता है। पूर्व कथित बातों के दृष्टिगत राष्ट्रीय समस्याओं या मूल्यों पर विचार करने की गुंजशि बहुत कम है।” परिणाम स्वरूप विद्यालयों में मूल्यों की अभिवृद्धि के स्थान पर उनका द्वास तीव्रगति से हो रहा है। इससे भविष्य में विद्यालयों का वातावरण और प्रदूषित होगा।
अतः विद्यालयों में उद्देश्यनिष्ठ एवं व्यवस्थित पाठ्यसहगामी क्रियाओं का आयोजन/ क्रियान्वयन करके छात्रों में उपयुक्त उवं व्यवहार्य मूल्य विकसित किए जा सकते हैं। इसमें निम्नलिखित पाठ्यसहगामी क्रियाएँ उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं-
1. प्रार्थना सभाएँ- हमारे देश में विद्यालय शिक्षा में शिक्षण से पूर्व प्रार्थना करने की परम्परा है। इसमें अन्तर्निहित भाव यह है कि हम शिक्षा जैसे पुनीत कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व उस सर्वशक्तिमान ईश्वर को नमन करते हैं, उससे अभियान करते हैं कि हे! ईश्वर हमें ज्ञान प्रदान कीजिए ताकि हम इस संसार से अज्ञानता के अंधकार को मिटा सकें। हमें वह शक्ति प्रदान कीजिए, जिससे हम निर्बल, दुःखी एवं गरीब की सहायता कर सकें। इसके लिए विद्यालय प्रांगण में नियत समय पर सभी छात्र एवं सभी शिक्षक एकत्रित होते हैं। दो या तीन चुने हुए छात्र/छात्राएँ उचित लय एवं गति के साथ सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रार्थना गाते हैं। सभी छात्र एवं शिक्षक उसे दोहराते हैं। इस प्रकार प्रातःकालीन प्रार्थना हम सभी के मन में श्रद्धा एवं भक्ति का संचार करती है, जो सच्चे मन एवं लगन से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।
प्रार्थना समाप्ति पर प्रधानाचार्य / शिक्षकों द्वारा प्रेरक प्रसंग, सूक्ति कथन, उपदेशात्मक कथन प्रस्तुत करने की भी परम्परा है। इससे छात्रों में शाश्वत मूल्यों को विकसित किया जा सकता है।
2. जयन्ती पर्व एवं उत्सव- भारत में विभिन्ना धर्मों, जातियों एवं समुदायों के लोग रहते हैं, जो अपने-अपने धार्मिक पर्वों एवं उत्सवों को श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाते हैं, जिनमें दीपावली, रक्षाबन्धन, होली, राम नवमी, दशहरा, ईदुलफितर, मुहर्रम, बारावफात, बुद्ध पूर्णिमा, कृष्ण जन्माष्टमी, क्रिसमस डे, गुड फ्रायडे, महावीर जयन्ती, गुरू नानक जयन्ती, गांधी जयन्ती, सुभाष जयन्ती एवं विवेकानन्द जयन्ती आदि प्रमुख हैं। इनके साथ ही कुछ राष्ट्रीय पर्वों जैसे-15 अगस्त, 26 जनवरी, शिक्षक दिवस, बाल दिवस, राष्ट्रीय एकता दिवस एवं शहीद दिवस आदि के भी आयोजन किए जाते हैं। इनके माध्यम से छात्रों में भेदभाव न करने, प्रेम, सेवा-भाव, अनुशासन, आत्म-सम्मान, मित्रता, सत्यनिष्ठा, भक्ति, श्रम के प्रति निष्ठा, दया, परोपकार, त्याग, धर्मनिरपेक्षता आदि मूल्य विकसित किए जा सकते हैं।
छात्र समितियाँ- विद्यालय के क्रिया-कलापों की सम्यक् व्यवस्था एवं उनके क्रियान्वयन हेतु कतिपय छात्र समितियाँ भी बनाई जा सकती हैं। जैसे-सफाई एवं साज-सज्जा समिति, प्रार्थना सभा संचालन समिति, अनुशासन समिति, न्याय समिति, खेलकूद समिति, वाचनालय समिति, उद्यान समिति, भ्रमण समिति, स्काउटिंग समिति, उत्सव संचालन समिति, प्रकाशन समिति, प्रचार समिति आदि। इन समितियों के सुचारू रूप से संचालन में छात्रों में विश्वास, परस्पर प्रेम, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सहयोग, उत्तरदायित्व, सहनशीलता, अनुशासन, आत्मविश्वास, धैर्य आदि मूल्य विकसित करने का प्रयास किया जा सकता है।
नेशनल कैडिट कोर (N.C.C.)- विद्यालयीपाठ्य सहगामी क्रियाओं में राष्ट्रीय कैडिट कोर (N.C.C.) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। अधिकांश विद्यालयों में इसकी स्थापना की गई है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने N.C.C. के विषय में लिखा है, “भारत सरकार ने राष्ट्रीय कैडिट कोर की जूनियर डिवीजन स्थापित की हैं, जो सभी विद्यालयों के छात्रों के लिए खुली हैं। एन.सी.सी. के माध्यम से कुछ शारीरिक और कुछ सीमा तक सेना की प्रकृति की अन्य क्रियाएँ छात्रों को सिखाई / पढ़ाई जाती हैं।”
स्काउट उवं गाइड- विद्यालयों में स्काउट एवं गाइड का पाठ्यसहगामी क्रियाओं में विशेष महत्व है। यह छात्र एवं छात्राओं को प्रकृति के सम्पर्क में लाकर उन्हें शारीरिक एवं नैतिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने इसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, “स्काउटिंग अच्छी नागरिकता के लिए आवश्यक गुणों और चरित्र के प्रशिक्षण के लिए अत्यधिक प्रभावपूर्ण साधनों में से एक है। इसमें बहुत गुण हैं, यह सभी आयु वर्ग के छात्रों को आकर्षित करता है और उनकी बहुमुखी शक्तियों को ग्रहण करता है। इसके विविध खेलों, क्रियाओं और तकनीकी कुशलताओं के माध्यम से सामाजिक सेवा, अच्छा व्यवहार, नेतृत्व के लिए आदर, राज्य के प्रति भक्ति और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तत्परता के आदर्श की आधारशिला रखी जानी चाहिए।
विद्यालय पत्रिका- वर्तमान समय में विद्यालय पत्रिका अधिकांश विद्यालयों के जीवन का अंग बन गई है। विद्यालय पत्रिका छात्रों को रचनात्मक लेखन के लिए अच्छा अवसर प्रदान करती है। विद्यालयों में विद्यालय पत्रिका के लिए एक ‘सम्पादक मण्डल’ की स्थापना की जाती है, जिसमें शिक्षक और छात्रों के प्रतिनिधि रहते हैं। यह सम्पादक मण्डल छात्रों को लेख, निबन्ध, कविता, कहानी आदि लिखने के लिए प्रोत्साहित करता है। छात्रों और लिखित लेखों को संकलित किया जाता हैं। इन लेखों के विद्यालय पत्रिका में छपने की उपयुक्तता का निर्णय सम्पादक मण्डल करते हैं। विद्यालय पत्रिका से न केवल छात्रों को ही अमूल्य एवं समृद्ध शैक्षिक अनुभव प्राप्त होते हैं बल्कि इनसे समाज को विद्यालय की प्रगति से अवगत कराया जाता है। इससे छात्र-छात्राओं में परस्पर सहयोग, नियमितता, अनुशासन, निष्पक्षता एवं समानता आदि मूल्यों का विकास किया जा सकता है।
सांस्कृतिक क्रियाएँ- विद्यालयों में शिक्षण के साथ-साथ सांस्कृतिक क्रियाओं जैसे नाटक, लीला, मूक अभिनय, नाट्य-दृश्य आदि का भी आयोजन किया जाता है। इनसे छात्रों की सृजनात्मक शक्तियों का विकास होता है। छात्रों को इनके माध्यम से आत्म-प्रकाशन का अवसर मिलता है। इससे छात्रों में अन्तर्निहित प्रतिभा प्रकाशित होती है। ये क्रियाएँ छात्रों में व्यक्तित्व के बहुमुखी विकास में सहायक हैं। इससे छात्रों में धार्मिक सहिष्णुता, बन्धुत्व, एकता, उदारता, सेवा-भाव, परस्पर सहयोग आदि मूल्यों का विकास किया जा सकता है।
खेल-कूद- विद्यालयों में शिक्षण प्रक्रिया के अभिन्ना अंग के रूप में समय-सारणी में खेलकूदों को महत्व दिया जाता है। खेलकूद छात्र-छात्राओं के शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायक हैं। खेल-कूद के माध्यम से सत्य बोलने, सहयोग, प्रेम, अहिंसा, सहनशीलता, भ्रातृत्व, समानता आदि मूल्य विकसित किए जा सकते हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मूल्यों की शिक्षा में पाठ्यसहगामी क्रियाओं का विशेष योगदान है। सम्बन्ध में शिक्षा आयोग के प्रतिवेदन में वर्णित है, “विद्यालय सभा, पाठ्यक्रम एवं पाठ्यसहगामी क्रियाएँ, सभी धर्मों के धार्मिक उत्सवों का आयोजन, कार्य अनुभव समूह, खेलकूद, विषय क्लब, समाज सेवा कार्यक्रम, ये सब सहयोग एवं पारस्परिक सद्भाव, ईमानदारी एवं निष्ठा, अनुशासन एवं सामाजिक उत्तरदायित्व के मूल्यों के विकास में सहायता कर सकते हैं।”
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