‘विश्व बन्धुत्व की भावना, करूणम प्रेमे और भातृत्व ही मानव अधिकारों की कुंजी है।’ विवेचना कीजिए।
विश्व बन्धुत्व की भावन, करूणा प्रेम और भ्रातृत्व ही मानव अधिकारों की सुरक्षा की कुंजी है। इन्हीं मानवीय गुणों से अधिक सभ्य मानव विकसित होगा और गरीबी, जाति, धर्म, ऊँच-नीच तथा अन्य आधारों पर होने वाले मानव अधिकार हनन प्रभावी रूप से रोका जा सकेगा। उक्त विचार तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने मध्यप्रदेश विधानसभा में 17 मार्च को ‘मानव अधिकार एक वैश्विक दायित्व’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसन्दी से व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्मों को मानने, विभिन्न भाषाओं को बोलने और विभिन्न क्षेत्रों में रहने के बावजूद सभी एक हैं। सिर्फ पैसा और भौतिक समृद्धि जीवन में सुख और मन की शान्ति नहीं दे सकते हैं। केवल इससे ही ज्ञान नहीं मिलता। मन की शान्ति और सुख प्राप्ति के लिये मनुष्य को आध्यात्मिकता के साथ मानव मूल्यों को आत्मसात करना होगा। बौद्धाथर्म गुरु ने कहा कि जिन देशों में भौतिक समृद्धि है और श्रेष्ठतम भौतिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ मानव के आन्तरिक जीवन में गुणवत्ता नहीं हैं। विशेषकर उनकी युवा पीढ़ी भटकी हुई है। ईर्ष्या, द्वेष और अलगाव के चलते जीवन में कभी सच्चा सुख नहीं आ सकता। सच्चे सुख के लिये करुणा का भाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसी से परिवार-समाज में सच्चा सुख व समृद्धि आ सकेगी। इसलिये केवल आर्थिक और भौतिक उन्नति नहीं, इन मानवीय गुणों पर हमें अधिक ध्यान देना चाहिये।
दलाई लामा ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता बहुत मूल्यवान है जो सृजनशीलता के विकास के लिये अनिवार्य है। इसके बिना कोई भी समाज या समुदाय रचनात्मक और सृजनशील नहीं हो सकता। भारत में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता है और इसीलिये यहाँ सृजनशीलता और लोकतन्त्र बहुत सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। भारत अकेला ऐसा देश है जहाँ सदा से पूरे विश्व को एक परिवार माना गया है अहिंसा का सन्देश से उपजा और महात्मा गाँधी ने इसे सफलतापूर्वक अपनाया।
बौद्धाधर्म गुरु का यह भी कहा था कि कोई एक धर्म नहीं बल्कि सभी धर्म श्रेष्ठ हैं। उनकी अवधारणाओं, विचारधाराओं तथा उपासना पद्धतियों में अन्तर हो सकता है लेकिन उनकी मूल भावनाएँ समान हैं। जरूरत सभी धर्मों को एक-दूसरे के करीब लाने की है। अनेक संस्थाएं इस दिशा में कार्य कर रही हैं लेकिन हर व्यक्ति को भी अपने स्तर पर इस दिशा में कार्य करने की जरूरीत है। व्यक्ति को सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिये।
दलाई लामा ने मुख्यमन्त्री द्वारा मध्यप्रदेश में बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना किये जाने की घोषणा पर उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि इससे बौद्ध धर्म के विज्ञान, अवधारणा और दर्शन के प्रसार में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि भावना और अन्तर्मन से जुड़ा विज्ञान आधुनिक विज्ञान आधुनिक भौतिक विज्ञान से कहीं ज्यादा गहन और व्यापक हैं। इस विश्वविद्यालय से अन्तर्विज्ञान के विकास और प्रसार में काफी सहयोग मिलेगा। उन्होने कहा कि भारत में सदैव ही धार्मिक और वैचारिक सहिष्णुता रही है जो कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहाँ तक कि नास्तिक दर्शन को मानने वाले चार्वाक को भी यहाँ ऋषि की संज्ञा दी गई है।
दलाई लामा ने विश्वभर में स्त्रियों को अधिक सशक्त और सक्रिय बनाये जाने पर बल देते हुए स्त्री शक्ति के विकास के लिये हर सम्भव प्रसास किये जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि स्त्री करुणा की मूर्ति होती है और उसमें संवेदनशीलता अधिक होती है। उन्हें आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनने की हर सुविधा और अवसर दिये जाने चाहिये।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल श्री रामेश्वर ठाकुर ने कहा कि दलाई लामा आधुनिक विश्व में मानव अधिकारों के प्रबल समर्थक हैं। यह बड़ी विरोधाभाषी बात है कि शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का जितना विकास हो रहा है उतना ही मानव अधिकारों का हनन भी बढ़ “रहा है। हमेशा से ताकतवरों ने कमजोरों ने दबाया है, जबकि शिक्षा के विकास के साथ यह बात कम होनी चाहिये थी। उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों का संरक्षण पूरे विश्व का दायित्व है और इसे किसी एक देश, समाज, समुदाय अथवा महाद्वीप की समस्या नहीं माना जाना चाहिये। इसके विरुद्ध पूरे विश्व को एकजुट होकर खड़ा होना जरूरी है। हर किसी को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है और किसी को भी उसके अधिकार का हनन करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मानव अधिकारों की रक्षा भारत की जड़ों में हैं। भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने युगों पहले वसुधैव कुटुम्बकम् के जरिये सारी दुनिया को एक परिवार माना। श्री चौहान का कहना था कि सर्वे भवन्तु सुखणः की भावना में सभी का कल्याण निहित है। जो कि मानव अधिकारों और वैश्विक उत्तरदायित्व को भलीभाँति अर्न्तसम्बन्धित भी करती है।
श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में भी उनकी सरकार मानव अधिकारों की रक्षा करते हुए प्रदेश के विकास और प्रगति की राह पर चलने की कोशिश कर रही है। वंचितों की आँख के आँसू पोंछने और उन्हें सामाजिक सुरक्षा देने के राज्य सरकार की कोशिश इसका प्रमाण । उन्होंने कहा कि प्रदेश की आधी आबादी महिलाओं को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए म.प्र. सरकार कटिबद्धा है। साथ ही महिलाओं को राजनैतिक रूप से सशक्त बनाने हेतु राज्य सरकार ने देश में पहली बार पंचायत राज और नगरीय निकायों में उनके लिये आधे स्थान सुरक्षित किये।
श्री सिंह ने जि होलीनेस दलाई लामा को मानव अधिकारों की रक्षा का जीता-जागता प्रतीक, प्रेम, करुणा और दया का सन्देश वाहक बताया। उनके अनुसार वे लाखों-लाख लोगों की श्रद्धा और प्रेरणा के केन्द्र दलाई लामा सिर्फ एक राज प्रमुख ही नहीं वरन वे भौतिकता की ज्वाला में दग्ध विश्व मानवता को धर्म और आध्यात्म की राह दिखाने वाले गुरु हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार श्रीलंका सरकार के सहयोग से विश्वप्रसिद्धा बौद्धा तीर्थ साँची और भोपाल के मध्य बुद्धिष्ट यूनिवर्सिटी की स्थापना करने जा रही है जिसमें बुद्धिष्ट रिलीजन के साथ ही बुद्धिष्ट साइंस और फिलासफी के अध्ययन की सुविधा होगी।
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी.एम. धर्माधिकारी ने स्वागत भाषण देकर विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्धा ने करुणा, प्रेम और चिन्ता की बुद्धि का सन्देश दिया और सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने का जीवनभर उद्यम किया। भारतवर्ष की विशेषता यह है इसने सभी धर्मों की विचारधाराओं और दर्शन को आत्मसात किया है। उन्होंने इस संगोष्ठी में भगा लेने के लिये दलाई लामा का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग की त्रैमासिक पत्रिका के इस वर्ष के पहले संस्करण तथा न्यायमूर्ति डी. एम. धर्माधिकारी द्वारा लिखित पुस्तक ‘ह्यूमन वेल्यूज एण्ड ह्यूमन राइट्स’ का विमोचन भी किया गया। प्रारम्भ में दलाई लामा तथा अन्य अतिथियों ने देवी सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण किया और दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
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