वुड के घोषणा पत्र के विषय में आप क्या जानते हैं? वुड के घोषणा पत्र (1854) की प्रमुख सिफारिशें का वर्णन कीजिए।
वुड के घोषणा पत्र (1854)- वुड का घोषणा पत्र सन् 1781 के बाद 1853 में कम्पनी के आज्ञा पत्र को नवीन रूप देने का अवसर आया। इस समय ब्रिटिश सभा यह सोचने लगी थी कि भारतीयों की शिक्षा अवहेलना अब नहीं की जा सकती। इस दृष्टि से आज्ञा पत्र प्रकाशित करने के पूर्व संसद ने एक संसदीय समिति की नियुक्ति की। समिति ने जाँच के आधार पर कम्पनी के संचालकों को भली भाँति स्पष्ट कर दिया कि भारतीय शिक्षा के प्रश्न को अब टाला नहीं जा सकता। समिति के सुझाव के आधार पर कम्पनी के संचालकों ने 19 जुलाई 1854 को भारतीय शिक्षा नीति की घोषणा की। चूँकि इस समय चार्ल्स वुड कम्पनी के बोर्ड आफ कण्ट्रोल का प्रधान था इसलिए उसी के नाम पर इस घोषणा पत्र को वुड घोषणा पत्र कहा गया। यह घोषणा पत्र भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग का श्रीगणेश था इसीलिए कुछ लोगों ने इसे “भारतीय शिक्षा का महाधिकार-पत्र’ कहा।
घोषणा पत्र के अनुसार, “कोई भी अन्य विषय हमारा ध्यान इतना आकृष्ट नहीं कर सकता जितनी शिक्षा। यह हमारा पुनीत कर्त्तव्य है।”
वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें
(1) शिक्षा का उत्तरदायित्व- घोषणा पत्र में यह स्वीकार किया गया कि शिक्षा उत्तरदायित्व सरकार का है और सरकार को अपना पवित्र कर्त्तव्य पूरा करना चाहिए।
(2) शिक्षा के उद्देश्य- घोषणा पत्र में शिक्षा के निम्न उद्देश्य स्वीकार किये गए-
- शिक्षा के प्रसार द्वारा भारतीयों का मानसिक एवं चारित्रिक विकास करना।
- राज्य के विभिन्न पदों हेतु आवश्यक योग्यता का विकास करना।
- पाश्चात्य ज्ञान प्रदान करके भौतिक दृष्टि से भारतीयों को समृद्धिशाली बनाना।
- भारत को समृद्धिशाली बनाने के लिए भारतवासियों को सहायता प्रदान करना।
(3) पाठ्यक्रम- घोषणा पत्र में संस्कृत एवं अरबी के प्राच्य साहित्य की महत्ता को स्वीकार करते हुए उन्हें पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया। साथ ही पाश्चात्य साहित्य एवं विज्ञान को भी भारतीयों के लिए उपयोगी माना।
(4) शिक्षा का माध्यम- घोषणा पत्र में स्थानीय भाषाओं और अंग्रेजी दोनों को ही शिक्षा का माध्यम स्वीकार किया गया।
(5) शिक्षा विभाग की स्थापना- घोषणा पत्र में प्रत्येक प्रान्त में एक शिक्षा विभाग की स्थापना का सुझाव दिया गया। इस विभाग का कार्य अपने प्रांत की शिक्षा की व्यवस्था करना, निरीक्षण, नियन्त्रण तथा उसमें सुधार लाना था।
(6) क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना- घोषणा पत्र में शिक्षा की रूप रेखा बताते हुए क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया गया। आयोग के अनुसार विद्यालयों का क्रम निम्न प्रकार होगा। प्राथमिक विद्यालय, मिडिल स्कूल, हाई स्कूल, कालेज तथा विश्वविद्यालय।
(7) विश्वविद्यालयों की स्थापना- घोषणा पत्र में कहा गया “अब समय आ गया है जबकि भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाये और उदार तथा नियमित शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाये।” इस सम्बन्ध में घोषणा पत्र में निम्नलिखित सुझाव दिये गये-
1. उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए कलकत्ता, बम्बई और यदि आवश्यक हो तो मद्रास में विश्वविद्यालय खोले जाये।
2. इन विश्वविद्यालयों का संगठन लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श मान कर किया जाये।
3. प्रत्येक विश्वविद्यालय में कुलपति, उप कुलपति तथा अभिसदस्य हो जो सरकार द्वारा मनोनीत किया जाये।
4. इन विश्वविद्यालयों का कार्य कालेजों को सम्बद्ध करना, कालेजों का निरीक्षण करना, शिक्षा स्तर को ऊपर उठाना तथा परीक्षाओं की व्यवस्था करना।
(8) जन साधारण की शिक्षा का प्रसार- घोषणा पत्र द्वारा छनाई के सिद्धान्त को अमान्य करते हुए जन साधारण की शिक्षा की व्यवस्था के लिए सुझाव दिया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह सुझाव दिया गया कि प्राथमिक, मिडिल तथा हाई स्कूलों की संख्या का विस्तार किया जाये तथा प्राथमिक शिक्षा पर सरकार अधिक धन व्यय करे।
(9) सहायता अनुदान प्रणाली- जन शिक्षा प्रसार की योजना को सफल बनाने हेतु सहायता अनुदान प्रणाली प्रारम्भ करने का सुझाव दिया गया, प्रत्येक प्रान्तीय सरकार को सहायता अनुदान के सम्बन्ध में निश्चित नियम बनाने के सुझाव दिये गए।
(10) अध्यापकों का प्रशिक्षण- प्रत्येक प्रान्त में ब्रिटिश प्रशिक्षण कालेजों के अनुरूप प्रशिक्षण कालेज खोलने तथा छात्रों को छात्र वृत्तियाँ देने का सुझाव घोषणा पत्र में दिया गया। चिकित्सालय, इंजीनियरिंग तथा कानून में भी प्रशिक्षण की व्यवस्था का सुझाव दिया गया।
(11) स्त्री शिक्षा – घोषणा पत्र में स्त्री शिक्षा के महत्व को स्वीकार करते हुए स्त्री शिक्षा हेतु आर्थिक व्यय करने वाले व्यक्तियों की प्रशंसा की गयी तथा स्त्री शिक्षा के विकास हेतु पर्याप्त अनुदान उपलब्ध कराने का आग्रह किया।
(12) व्यावसायिक शिक्षा- व्यावसायिक शिक्षा को प्रोत्साहित करके जहाँ एक ओर भारतीयों के हित का ध्यान रखा गया वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार के लिए स्वामिभक्त कर्मचारियों की वृद्धि करने का उद्देश्य रखा गया।
(13) मुसलमानों की शिक्षा- इसके लिए घोषणा पत्र में सुझाव दिया गया कि मुस्लिम सम्प्रदाय शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है अतः समान रूप से सभी का विकास करने के उद्देश्य से मुसलमानों की शिक्षा की प्रगति करने हेतु कम्पनी को विशेष प्रयास करने का सुक्षाव दिया गया।
(14) प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहन- घोषणा पत्र में प्राच्य साहित्य के विकास और विस्तार हेतु प्रयास करने पर बल दिया गया। यह सुझाव दिया गया कि देशी भाषाओं में अधिकारिक पुस्तकों की रचना करा कर इन लेखकों को आकर्षक पारिश्रमिक और पुरस्कार प्रदान किये जाये। पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की पुस्तकों का भारतीय भाषा में अनुवाद कराने की सिफारिश की गयी।
(15) शिक्षा और रोजगार- घोषणा पत्र में कहा गया कि राजपदों पर नियुक्तियाँ करते समय व्यक्तियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाये। नियुक्तियों में उन व्यक्तियों को प्राथमिकता प्रदान की जाये जिनकी शैक्षिक योग्यता अन्य व्यक्तियों से अधिक हो। इस नीति का अनुशरण करने से शिक्षा का प्रसार होगा और वे अपने जीवन को सफल बना सकेंगे।
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