व्यवसाय आधारित शिक्षा क्या है? व्यवसायिक शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
सुविख्यात अर्थशास्त्री गौतम माथुर का कथन है, “आज देश में गरीब-अमीर के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता है। यदि देश को आर्थिक प्रगति करनी है तो हमें अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। हमें विकास के सुनिश्चित पथ की खोज हेतु शिक्षा नीतियों, श्रम संगठनों, पूँजी नियोजन, कार्य कौशल, उत्पादकता, जनसंख्या तथा मानव-शक्ति-सम्बन्धी प्रश्नों को नये मानदण्डों के आधार पर तोलना होगा।”
भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में कहा है कि शिक्षा को रोजगार के साथ मिलाने के लिए प्रथम महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में यह आवश्यक है कि उपलब्ध रोजगार अवसरों से सम्बन्धित शिक्षा प्रशिक्षण के कार्यक्रम तैयार किये जायें। आवश्यकताओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करना होगा। साथ ही इन कार्यों को करने के लिए अपेक्षित ज्ञान और कौशल प्रदान करने के लिए। शिक्षा तथा प्रशिक्षण के उपयुक्त कार्यक्रम तैयार किये जायेंगे।
शिक्षा को रोजगार से सम्बन्धित करने के लिए शिक्षा के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है। शिक्षा के प्रस्तावित पुनर्गठन में व्यवस्थित और सुनियोजित व्यावसायिक शिक्षा के कार्यक्रम को दृढ़ता से क्रियान्वित करना बहुत ही जरूरी है। इससे व्यक्तियों के रोजगार पाने की क्षमता बढ़ेगी, आजकल कुशल कर्मचारियों की माँग और आपूर्ति में जो असन्तुलन है, वह समाप्त होगा और ऐसे विद्यार्थियों को एक वैकल्पिक मार्ग मिल सकेगा जो इस समय बिना किसी विशेष रुचि या उद्देश्य के उच्च शिक्षा की पढ़ाई किये जाते हैं।
व्यावसायिक शिक्षा अपने आप में शिक्षा की एक विशिष्ट धारा होगी जिसका उद्देश्य कई क्षेत्रों के चुने हुए काम-धन्धों के लिए छात्रों को तैयार करना होगा। ये कोर्स आमतौर पर सेकण्डरी शिक्षा के बाद दिये जायेंगे लेकिन इस योजना को लचीला रखा जायेगा जिससे 8वीं कक्षा के बाद भी छात्र ऐसे कोर्स ले सकें। .
स्वास्थ्य नियोजन तथा स्वास्थ्य सेवा प्रबन्ध को आवश्यक जनशक्ति प्रशिक्षण से जोड़ा जायेगा। इसके लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को विकसित किया जायेगा। प्राथमिक तथा मध्य स्तर पर स्वास्थ्य की शिक्षा पाने से व्यक्ति परिवार और समाज के स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्ध होगा। इससे उच्चतर माध्यमिक स्तर पर स्वास्थ्य से सम्बन्धित व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में छात्रों की रुचि बढ़ेगी ।
कृषि, विपणन, सामाजिक सेवाओं, आदि के क्षेत्र में भी इसी प्रकार के पाठ्यक्रम तैयार किये जायेंगे। व्यावसायिक शिक्षा में ऐसी मनोवृत्ति को बढ़ावा मिले ।
नवसाक्षर लोगों, प्राथमिक शिक्षा पूरी किये हुए युवाओं, स्कूल छोड़ जाने वालों और रोजगार में या आंशिक रोजगार में लगे हुए व्यक्तियों के लिए अनौपचारिक, लचीले तथा आवश्यकता पर आधिारित व्यावसायिक शिक्षा के कार्यक्रम चलाये जायेंगे।
व्यावसायिक पाठ्यक्रमों या कोर्सों तथा संस्थाओं को स्थापित करने का दायित्व सरकार पर और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के सेवा नियोजकों पर होगा, तो भी सरकार स्त्रियों, ग्रामीण तथा जनजातियों के छात्रों और समाज के वंचित वर्गों की आवश्यकता पूरी करने के लिए विशेष कदम उठायेगी। विकलांगों के लिए भी समुचित कार्यक्रम प्रारम्भ किये जायेंगे।
कार्यनुभवों को सभी स्तरों पर दी जाने वाली शिक्षा का एक आवश्यक अंग बनाया जायेगा। कार्यानुभव एक ऐसा उद्देश्यपूर्ण और सार्थक शारीरिक काम है जो सीखने की प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है और जिससे समाज को वस्तुएँ या सेवाएँ मिलती हैं। यह अनुभव एक संगठित और क्रमबद्ध कार्यक्रम के द्वारा दिया जाना चाहिए। कार्यानुभव की गतिविधियाँ छात्रों की रुचियों, योग्यताओं तथा आवश्यकताओं पर आधारित होंगी। इसके द्वारा प्राप्त किया गया अनुभव आगे चलकर रोजगार पाने में बहुत सहायक होगा। दयालबाग शिक्षण संस्थान (डीम्ड यूनीवर्सिटी), दयालबाग प्रथम डिग्री कोर्स पर प्रत्येक छात्र को कार्यानुभव कोर्स 1981 से प्रदान कर रहा है। यहाँ प्रथम डिग्री के प्रत्येक छात्र को अपनी रुचि के अनुसार एक कार्यानुभव कोर्स को आवश्यक रूप से सीखना पड़ता है।
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व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता
स्वतन्त्रता की प्राप्ति के पश्चात् से भारत में विविध तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षण हुए। हैं जिन्हें देखकर भारतीय प्रगति की सराहना की जा सकती है परन्तु जो भी शिक्षा विकास अब तक हुआ है वह राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुरूप पूर्णत: नहीं है। अब तकनीकी शिक्षा में अनेक कमियाँ पायी जाती हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है। प्राविधिक एवं व्यावसायिक शिक्षा के विकास में अनेक बाधाएँ समस्या बनकर उपस्थित हो रही हैं जिनका निराकरण करना बहुत ही आवश्यक है। आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था उसी प्रकार की है जो अंग्रेजी शासनकाल में थी। आज का पढ़ा-लिखा युवक बेरोजगारी से परेशान है। उसकी शिक्षा न तो उसे और न ही समाज को ही कोई लाभ पहुँचाती है। इसका कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था में व्यावसायीकरण का अभाव है। यदि माध्यमिक शिक्षा स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था कर दी जाये या शिक्षा का व्यावसायीकरण कर दिया जाये तो निश्चित ही आर्थिक अवरोध और बेरोजगारी की समस्या हल हो सकती है, शिक्षा का व्यावसायीकरण इस प्रकार किया सकता है।
व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन
व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था का आयोजन करने के लिए हम निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं-
- पूर्णकालीन नियमित व्यावसायिक शिक्षा ।
- अंशकालीन व्यावसायिक शिक्षा।
- अभिनव पाठ्यक्रम द्वारा व्यावसायिक शिक्षा ।
- पत्राचार द्वारा व्यावसायिक शिक्षा।
- ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम |
(1) पूर्णकालीन नियमित शिक्षा- व्यावसायिक शिक्षा विद्यालय में दो स्तर पर प्रदान की जा सकती हैं-
निम्न माध्यमिक स्तर पर- कक्षा 7 या 8 के पश्चात् विद्यालय छोड़ने वाले बालकों के लिए निम्नलिखित पाठ्यक्रम चलाया जा सकता हैं-
1. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में ऐसे पाठ्यक्रम चलाना जिनमें प्राथमिक शिक्षा पास छात्र प्रवेश ले सकें।
2. औद्योगिक सेवाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा उत्तीर्ण छात्रों को प्रशिक्षण देना। इससे उनकी श्रम कुशलता बढ़ेगी और वे निरक्षर श्रमिकों की अपेक्षा अच्छा कार्य कर सकेंगे।
3. ऐसा प्रशिक्षण देना कि छात्र कक्षा 8 पास करने के बाद घर पर भी कोई उद्योग या व्यवसाय चला सकें। देहातों में कृषि सम्बन्धिी व्यवसाय इसका अच्छा उदाहरण है। छात्रों को ऐसे व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया जाये जो उनके घर पर होता हो या जिसे प्रारम्भ करने की सुविधायें उनके पास हो
4. स्कूलों में बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम चलाये जायें, उन्हें आठवीं कक्षा तक इस प्रकार चलाया जाये कि छात्र-छात्राएँ किसी बेसिक शिक्षा में कुशलता प्राप्त कर लें।
5. लड़कियों को गृहविज्ञान द्वारा कुछ व्यावसायिक प्रशिक्षण दिये जाएँ जैसे- सिलाई, कढ़ाई, बुनाई आदि के प्रशिक्षण।
उच्चतर माध्यमिक स्तर पर- इस स्तर पर कक्षा 8 और हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्र व्यावसायिक शिक्षा प्रशिक्षण ले सकते हैं। व्यावसायिक शिक्षा दो प्रकार से व्यवस्थित की जा सकती है।
1. पृथक् व्यावसायिक स्कूलों में प्रशिक्षण करके।
2. सामान्य शिक्षा के साथ-साथ कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर, इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
- पॉलीटैकनिक स्कूलों में व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करके।
- औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रचलित पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षण देकर।
- बहुउद्देशीय पाठ्यक्रम में शिल्प या व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाकर।
- जूनियर टैकनिकल हाईस्कूलों में प्रवेश देकर।
- बहुउद्देशीय पाठ्यक्रम और जूनियर टैकनिकल स्कूलों के पाठ्यक्रम में समन्वय स्थापित करके ।
- सामान्य शिक्षा के साथ किसी शिल्प का प्रशिक्षण देकर।
- स्वास्थ्य, वाणिज्य और प्रशासन के उपयुक्त पाठ्यक्रय चलाकर।
(2) अंशकालीन व्यावसायिक शिक्षा- कुछ विद्यार्थी किन्हीं कारणों से प्राथमिक शिक्षा. पाने के बाद कक्षा 8 उत्तीर्ण करने के बाद या हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के बाद पढ़ना छोड़ देते हैं और घरेलू व्यवसायों में लग जाते हैं। वे जीविकोपार्जन के कारण नियमित शिक्षा नहीं पा सकते। ऐसे व्यक्तियों के लिए 1-2 घण्टे की अंशकालीन व्यावसायिक शिक्षा स्थानीय व्यावसायिक स्कूल में दी जा सकती है। ‘अंशकालीन शिक्षा व्यवस्था निम्न माध्यमिक स्तर पर, माध्यमिक स्तर पर और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर समान रूप से चलायी जा सकती है। प्रशिक्षार्थियों को नियमित प्रशिक्षार्थियों के समान मान्य परीक्षा में बैठाया जा सकता है। व्यावसायिक शिक्षा विभाग उन्हें नियमित छात्र-छात्राओं की भाँति प्रमाण पत्र दे।
ये पाठ्यक्रम निम्नलिखित प्रकार से चलाए जा सकते हैं-
1. छात्रों के घरेलू या अपनाए गये व्यवसाय में प्रशिक्षण की व्यवस्था करके ।
2. छात्र-छात्रा को रुचिकर व्यवसाय में प्रशिक्षण देकर।
3. व्यावसायिक स्कूलों में प्रचलित व्यवसायों में प्रशिक्षण देकर।
4. सामान्य शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा का समन्वय करके ।
(3) अभिनव पाठ्यक्रम द्वारा- जो व्यक्ति पूर्व ही प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हों या अनुभवी हैं और सेवा में लगे हैं, उन्हें कुछ समय के, जैसे- साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक पाठ्यक्रम दिए जा सकते हैं। सेवा विभाग उनके पाठ्यक्रम के व्यय को सहन करें और उन्हें उपयुक्त अवकाश मिले। इससे उन्हें नवीन खोजों और नयी तकनीकी की जानकारी होगी और कार्यकुशलता बढ़ेगी।
(4) पत्राचार पाठ्यक्रम द्वारा- जो व्यक्ति किसी व्यवसाय में लगे हैं या कोई व्यवसाय चुनकर उसमें प्रशिक्षण लेना चाहते हैं परन्तु नियमित रूप से प्रशिक्षण नहीं ले सकते, उन्हें पत्राचार द्वारा प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाये। कर्मशाला अभ्यास के लिए उन्हें निकटवर्ती या स्थानीय कर्मशाला में कार्य करने का अवसर प्रदान किया जाय।
(5) ग्रामीण युवा स्वरोजगार कार्यक्रम (ट्राइसेम) – ग्रामीण शिक्षित युवाओं की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार ने 15 अगस्त 1979 से एक कार्यक्रम शुरू किया जिसका उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार उपलब्ध कराना है। आठवीं योजना के दौरान ‘ट्राइसेम’ के कार्यक्रम के अन्तर्गत 19 लाख युवाओं को प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव रखा गया।
प्रशासन एवं व्यवस्था – व्यावसायिक शिक्षा का उत्तरदायित्व राज्य सरकार का होना चाहिए लेकिन इसमें केन्द्र सरकार से वित्तीय सहायता आवश्यक है। उपयुक्त योजना और सुविधाओं से भी केन्द्र राज्यों के साथ सहयोग करे। निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ मिलें, विद्या निःशुल्क और सशुल्क दोनों प्रकार की हो सकती है।
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