शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009′ के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिये।
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शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
भारतीय संविधान की धारा 45 द्वारा प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क ब का संकल्प लिया गया था कि दस वर्ष के अन्दर सभी 14 वर्ष तक के बच्चों को सभी राज्य अपने क्षेत्र में निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेंगे। परन्तु यह प्रयास सम्भव हो सका। अत: 1950 में भारतीय संविधान में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य निःशुल्क प्रदान करने का लक्ष्य सामने रखते हुए, इस दायित्व को पूरा करने हेतु ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ 1986 में प्रारम्भिक शिक्षा को विशेष प्राथमिकता दी गई। सन् 2000 में भी प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण हेतु ‘सूर्य शिक्षा अभियान’ बताया गया। परन्तु इतने प्रयासों के बाद भी यूनेस्को द्वारा 19 जनवरी 2010 को जारी रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया भर में 79 करोड़ 90 लाख निरक्षर लोगों में सर्वाधिक संख्या भारतीयों की हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार जिन सात करोड़ 20 भारतीय बच्चों को प्राथमिक स्कूल में और सात करोड़ 10 लाख किशोरों को माध्यमिक स्कूलों में होना चाहिए था वे वहीं नहीं हैं। जिसे देखते हुए भारत सरकार ने 1 अप्रैल, 2010 में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास किया, जिसमें 6-14 साल के देश के सभी बच्चो के लिए शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया हैं। शिक्षा का अधिकार लागू करने के साथ ही भारत उन .135 देशों की सूची में शामिल हो गया हैं। जहाँ बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए कानूनी गारंटी का प्रवाधान है। एक दशक पूर्व की निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार की माँग को गम्भीरता से लिया गया तथा 2002 से सँसद ने शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने वाले 86वें सविधान संशोधन को पारित किया । 8 वर्षो तक इसके परिणाम, गुण, दोष व व्यावहारिक समस्याओं को परखते हुए संसद ने 6-14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 पास कर दिया।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान
(1) 6-14 वर्ष तक के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख यानी 4.6 प्रतिशत अभी स्कूल नहीं जा पाते हैं जिनकी शिक्षा कि लिए 1.71 लाख करोड़ रूपये की 5. वर्षों में जरूरत होगी जिसमें 25,000 करोड़ रूपये वित्त आयोग राज्यों को देगा।
(2) 6-14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार होगा।
(3) इन बच्चों को न तो स्कूल फीस देनी होगी न ही यूनिफार्म, पुस्तकों, ट्रांसपोर्टेशन या मिड-डे-मील जैसी चीजों पर खर्च करना होगा।
(4) बच्चों के न तो अगली कक्षा में पहुँचने से रोका जायेगा न निकाला जायेगा और न ही बोर्ड परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा।
(5) कोई स्कूल बच्चों को प्रवेश देने से इन्कार नहीं कर सकेगा।
(6) 56 लाख शिक्षक प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्तर पर हैं तथा 5.23 लाख शिक्षकों के पद अभी रिक्त पड़े है तथा लगभग 5.1 लाख नये शिक्षकों की जरूरत होगी।
(7) कोई निजी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकन के दौरान कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित होंगी।
(8) सभी राज्यों सरकारों व स्थानीय निकायों के लिए यह अनिवार्य होगा कि उनके इलाके का हर बच्चा स्कूल जाये।
(9) जिन स्कूलों का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं हैं उन्हें तीन वर्ष के अन्दर दुरूस्त करना होगा वरना मान्यता समाप्त कर दी जायेगी।
(10) इस कानून को लागू करने पर आने वाले खर्च को केंद्र सरकार व राज्य सरकारें मिलकर उठायेंगी।
(11) इस अधिनियम के अनुसार, ऐसा बच्चा जिसकी उम्र 6 साल से ऊपर हैं जो किसी स्कूल में दाखिल नहीं हैं, अथवा अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाया है। तब भी उसे उसकी उम्र के लायक उचित कक्षा में प्रवेश दिया जायेगा। बशर्ते कि सीधे तौर से दाखिला लेने वाले बच्चों के समकक्ष आने के लिए उसे प्रस्तावित समय सीमा के भीतर विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
(12) प्रवेश के लिए उम्र के साक्ष्य हेतु उसके जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु तथा विवाह पंजीकरण कानून 1856 या ऐसी ही अन्य कागजात के आधार पर किया जायेगा। उम्र प्रमाण नहीं होने की स्थिति में भी किसी भी बच्चे को दाखिला लेने से वंचित नहीं किया जायेगा।
(13) प्राथमिक शिक्षा पूरा करने वाले छात्र को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा।
(14) एक निश्चित शिक्षक छात्र अनुपात (1:30) की सिफारिश की जायेगी।
(15) आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों के लिए सभी निजी स्कूलो के कक्षा 1 में दाखिला लेने के लिए 25 फीसदी का आरक्षण होगा।
(16) वित्तीय बोझ केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच 55:45 के अनुपात में साझा किया जायेगा।
(17) जम्मू-कश्मीर को छोड़कर यह प्रावधान समूचे देश में लागू होगा।
(18) इस अधिनियम के पालन हेतु विद्यालयों में आधारभूत सुविधायें जैसे पुस्तकालय, कक्षा-कक्ष खेल के मैदान और अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध कराई जायें ताकि प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को आसानी से व जल्द प्राप्त किया जा सके।
सितम्बर 2010 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्तीय अनुपात में संशोधन करते हुए इसे 65:35 कर दिया गया हैं। ताकि राज्य सरकारों पर अधिक वित्तीय बोझ न पड़े व इसे और प्रभावी तरीके से लागू किया जा सके।
अधिनियम की प्रमुख समस्याये
(1) शिक्षा के अधिकार को लागू करने के लिए बड़े स्तर पर प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती होगी। अभी देश में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी हैं। राज्य स्तर पर भर्ती प्रक्रिया में कम से कम 6 महीनें लगेंगे। भर्ती की यह प्रक्रिया चरणबद्ध रूप से चलेगी।
(2) शिक्षा के अधिकार को जमीनी स्तर पर लाने के लिए पहले देशभर में प्राथमिक शिक्षा में मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है। कानून में बच्चों को अपने घर से 3 किमी. के दायरे में स्कूल देने का प्रावधान है। यदि स्कूल इससे दूर होगा तो बच्चों को लाने ले जाने की निःशुल्के व्यवस्था राज्य सरकारों को करनी होगी।
(3) शिक्षा का अधिकार कानून 1.4.2010 से लागू तो हो गया पर अभी इसके सामने कई जमीनी चुनौतियाँ हैं। इसे कानून को व्यावहारिकता के धरातल पर उतारने में लम्बा समय लग सकता हैं।
(4) निजी स्कूलों को 25% सीटें पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित किए जाने का भी प्रवाधान किया गया हैं। राज्य सरकारें सरकारी स्कूल से तुलना कर डून बच्चों का खर्च देंगी। परन्तु इसमें भी विवाद हैं क्योंकि कुछ स्कूलों का कहना हैं कि वे ज्यादा सुविधायें देते हैं तो उन्हें ज्यादा पैसा दिया जाये।
(5) नये स्कूल खोलने से पहले राज्य सरकारें स्थानीय निकायों की मदद से व्यापक सर्वेक्षण करके पता लगायेंगी कि किस क्षेत्र में 6-14 वर्ष के कितने ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जा रहे हैं। ये किस वर्ग के हैं। पिछड़े वर्ग के बच्चों की अलग सूची बनेगी। इस सर्वेक्षण में भी अधिक समय लग सकता हैं।
(6) केन्द्र ने शिक्षा के अधिकार कानून को अमल में लाने के लिए मॉडल दिशा निर्देश तैयार किया हैं। अब हर राज्य और संघ शासित क्षेत्र इसके आधार पर दिशा निर्देश तैयार करेंगे। इसमें महीने से ज्यादा समय लगेगा। राज्यों में अभी भी काम भी काम शुरू नहीं हुआ हैं।
(7) अनिवार्य और निःशुल्क शिक्षा देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों, दोनों का अपना खजाना खोलना होगा, कुल खर्च का 55 प्रतिशत केन्द्र और 45 प्रतिशत राज्य सरकारें देंगी। फिलहाल केन्द्र में 25,000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया हैं। अगले 5 वर्षों में इस पर 1,71,000 करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है। इतनी बड़ी धनराशि की व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती हैं।
इसके अतिरिक्त भी यदि ध्यान से देखा जाये तो पूरी व्यवस्था में एक बड़ी चुनौती संसाधनों की उपलब्धता की । वास्तविक यह हैं कि कानूने लागू होने के साथ ही राज्य सरकार इन व्यवस्थाओं पर होने वाले खर्च को वहन करने में असमर्थता व्यक्त करने लगी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से भी कानून लागू होने के साथ ही घोषणा कर दी गई थी कि जब तक इस व्यवस्था का पूरा वित्तीय भार भारत सरकार वहन नहीं करेगी, तब तक इसे लागू करना सम्भव नहीं हैं।
राइट टू एजुकेशन की कमियां
एक तरफ सभी के लिए शिक्षा अधिकार अधिनियम में बहुत सारी खुबिया और विशेषताओं होने के बावजूद भी कुछ कमिया भी हैं, जो इस प्रकार हैं.
- इस एक्ट में 0 से 6 वर्ष के बच्चों के बारे में विशेष ध्यान नही दिया गया हैं.
- 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की शिक्षा के भी कोई प्रावधान नही हैं.
- अंतराष्ट्रीय चाइल्ड राईट अग्रीमेंट में 18 वर्ष तक बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का प्रावधान हैं, जो शिक्षा अधिनियम 2009 में नही हैं.
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