शैक्षिक तकनीकी के उपागम की चर्चा कीजिए।
शैक्षिक तकनीकी के तीन उपागम हैं- (1) कटोर उपागम (2) कोमल उपागम तथा (3) प्रणाली उपागम
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1. कठोर उपागम
शिक्षण में अभियंत्रण की मशीनों का प्रयोग शैक्षिक तकनीकी प्रथम या कठोर उपागम कहलाता है। कठोर उपागम का जन्म भौतिक विज्ञान तथा इंजीनियरिंग से हुआ है। कठोर उपागम को दृश्य-श्रव्य सामग्री या मशीनी प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है।
डेवीस के अनुसार- “कठोर उपागम शिक्षा और शिक्षण प्रणाली में भौतिक विज्ञान का उपयोग है जिसके द्वारा शिक्षण प्रक्रिया का धीरे-धीरे मशीनीकरण किया जा सकता है।”
कठोर उपागम का तात्पर्य, शिक्षा में प्रयुक्त होने वाले उन तकनीकी उपकरणों से में हैं, जिनके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को सरल, रुचिपूर्ण एवं प्रभावशाली बनाया जाता है तथा शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। कठोर उपागम के अन्तर्गत चलचित्र, ग्रामोफोन, रेडियो, टेपरिकार्डर, कम्प्यूटर, टीवी, प्रोजेक्टर आदि हैं। इनका सम्बन्ध केवल ज्ञानात्मक पक्ष से होता है। इस तकनीकी के द्वारा ही ज्ञान को संचित करना, दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाना या सम्प्रेषित करना और ज्ञान का विस्तार करना संभव हो सका है।
कठोर शिल्प उपागम का सर्वप्रथम उल्लेख ए. ए. लैम्स्डेन ने किया था। वास्तव में – शिक्षा के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले तकनीकी उपकरणों को कठोर उपागम कहते हैं। इसलिए सिल्वरमैन ने इसे शिक्षा तकनीकी’ के नाम से पुकारा। 1968 में सिल्वरमैन ने इसे एक और नाम दिया ‘सापेक्षिक तकनीकी।’
एक अन्य विद्वान डेविड (1971) के अनुसार, ‘भौतिक विज्ञान पर आधारित मशीन उपागम शिक्षण एवं प्रशिक्षण को प्रभावशाली एवं सार्थक रूप प्रदान करता है। “
2. कोमल उपागम
शैक्षिक तकनीकी द्वितीय अथवा कोमल उपागम को अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology), शिक्षण तकनीकी (Teachning Technology) तथा व्यवहार तकनीकी (Behavioural Technology) की संज्ञा दी जाती है। कोमल उपागम, विज्ञान व तकनीकी पर आधारित न होकर सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान और विशेषकर अधिगम के मनोविज्ञान की आधारशिला पर खड़ा है। कोमल उपागम में शिक्षण तथा अधिगम के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है, जिससे व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन किया जा सके। कोमल उपागम का सम्बन्ध उद्देश्य के व्यवहारिक रूप, शिक्षण के सिद्धान्तों, शिक्षण’ की विधियों तथा प्रविधियों, अनुदेशन प्रणाली, पुनर्बलन तथा पृष्ठ-पोषण की युक्तियों एवं मूल्यांकन से होता है। संक्षेप में कोमल उपागम के अन्तर्गत अदाँ (Input), प्रक्रिया (Process) तथा प्रदा (Output) तीनों पक्षों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
आर्थर मेल्टन (1959) ने कोमल उपागम के सम्बन्ध में अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं। उनके अनुसार, “यह तकनीकी सीखने के मनोविज्ञान पर आधारित है तथा अनुभव प्रदान करके छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया का शुभारम्भ करती है।”
सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि तकनीकी एवं मशीनी उपागम के माध्यम से। प्रयोग में लाई जाने वाली शिक्षण सामग्री, अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, शिक्षण विधियाँ, युक्तियाँ आदि कोमल उपागम हैं।
3. प्रणाली उपागम (System Approach)
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् एक नवीन प्रबन्ध तकनीकी (Management Technology) का विकास हुआ। इस विचारधारा को । शिक्षा तकनीकी तृतीय या प्रणाली उपागम के नाम से जाना जाता है। इसे शैक्षणिक प्रबन्ध (Educational Management) कहा जाता है। शिक्षा प्रशासन एवं प्रबन्ध को वैज्ञानिक आधार प्रदान कर इसे अधिक प्रभावशाली एवं सुदृढ़ बनाया जा सकता है। प्रणाली उपागम का सम्बन्ध कक्षा के बाह्य परिवेश से होता है जो व्यवस्था में व्याप्त कमियों या समस्याओं को उजागर करता है और वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर उसका समाधान निकालता है। इस प्रकार प्रणाली उपागम के द्वारा विद्यालय के प्रबन्ध, प्रशासन और व्यवस्था सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करके उसे प्रभावशाली और कम खर्चीला बनाया जा सकता है।
इस प्रणाली उपागम में निम्नलिखित चरण होते हैं—
- स्थितियों का विश्लेषण,
- वांछित स्थितियों के लिए लक्ष्य निर्धारित करना,
- लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चयनित तकनीक का मूल्यांकन,
- विकल्प तैयार करना,
- मूल्य एवं लाभ विश्लेषण के आधार पर सर्वोत्तम विकल्प का चयन,
- प्रणाली की विस्तृत रूपरेखा तैयार करना,
- प्रणाली के नियन्त्रण के तरीके की रूपरेखा तैयार करना,
- समाधान के लिए कार्य करना।
शिक्षा में प्रणाली उपागम नवीन समस्या समाधान प्रविधि है। यह सभी पक्षों और घटकों के साथ शिक्षा को सम्पूर्णता में देखता है, शिक्षा के घटक, विद्यार्थी, शिक्षक, पाठ्यक्रम, शिक्षण माध्यम, पाठ्यवस्तु, अनुदेशन प्रणाली, भौतिक पर्यावरण तथा अनुदेशनात्मक उद्देश्यों का मूल्यांकन । शिक्षा के क्षेत्र में प्रणाली उपागम के अन्तर्गत निम्नलिखित चरणों का समावेश होता है।
- अनुदेशनात्मक लक्ष्यों और व्यवहारिक उद्देश्यों को परिभाषित करना और उन्हें व्यवहारिक रूप में लिखना,
- विविध संचार माध्यमों एवं प्रकरणों द्वारा इन उद्देश्यों की प्राप्ति क्रिया-कलाप निश्चित करना,
- छात्रों की आवश्यकताओं और विशेषताओं को चिन्हित करना,
- विषय के प्रभावशाली अधिगम के लिए समुचित विधियों का चयन के लिए विविध करना,
- समुचित अधिगम् अनुभव का चयन करना।
- इन अनुभवों के लिए सम्बन्धित प्रकरणों, संचार माध्यमों तथा संसाधनों को छाँटना,
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