शैशवावस्था में चेतना विकास पर टिप्पणी लिखिए।
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शैशवावस्था में चेतना का विकास
सम्बन्ध प्रतिक्रिया का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें प्राणी अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक उत्तेजना के समान प्रतिक्रिया करने लगता है। रूस के कुछ शरीरशास्त्री और मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि जन्म के समय शिशु में सम्बन्ध प्रक्रिया नहीं होती है। उनका विचार है कि नवजात शिशु में मस्तिष्क का उचित विकास नहीं हो पाता है। अतः वह सम्बन्ध प्रतिक्रिया करने में असमर्थ होता है। मैरी, वेंगर तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने नवजात शिशुओं में सम्बन्ध प्रतिक्रिया स्थापित करने का प्रयास किया लेकिन वे सफल नहीं हुए, किन्तु माक्विस ने जो अध्ययन किये उनसे विपरीत परिणाम प्राप्त हुए। उसने अपने अध्ययन में शिशुओं की भोजन क्रिया को आवाज के साथ सम्बद्ध किया और देखा कि ऐसा करने से शिशु के व्यवहार में महत्वपूर्ण परिवर्तन आ गये। एक अध्ययन में यह भी देखा गया कि यदि शिशुओं के भोजन के समय-क्रम को बदल दिया जाये तो उनमें ‘भग्नाशा’ आ जाती है, किन्तु शिशुओं में जो सम्बन्ध प्रत्यावर्तन स्थापित होता है वह बहुत ही क्षणिक होता है। भोजन के अतिरिक्त अन्य प्रतिक्रियाओं को सम्बद्ध करने का प्रयास किया गया, किन्तु सफलता प्राप्त न हो सकी। नवजात शिशुओं में किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति स्पष्ट रुचि नहीं होती है। अतः उनकी रुचियों को भी सम्बद्ध नहीं किया जा सकता है। वास्तव में शिशुओं के सीखने का क्षेत्र बहुत ही सीमित होता है।
नवजात शिशु की अवस्था नवीन पर्यावरण के साथ ‘समायोजन की अवस्था’ होती है। इस आधार पर बहुत से विद्वानों ने नवजात शिशु की चेतना का अध्ययन करने का प्रयास किया है । किन्तु इस समय शिशु की विभिन्न क्षमतायें अविकसित रहती हैं और वह अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने में असमर्थ होता है। ऐसी दशा में उसकी संवेगात्मक एवं क्रियात्मक क्षमताओं के आधार पर उसकी चेतना का अनुमान मात्र करना ही सम्भव है, किन्तु इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। जेम्स अपने अध्ययन के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि नवजात शिशु को बाह्य-विश्व की चेतना नहीं रहती है। जब शिशु जन्म लेता है तो वह अपने को ‘वृहत्स्फुरण स्वजन संभ्रांति की स्थिति में पाता है। स्टर्न के अनुसार शिशु में सुख तथा दुख की अनुभूतियाँ तथा उनकी ‘अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उनकी विभिन्न मुद्राओं तथा ‘ मुखाकृतियों’ से उसकी चेतना पर प्रकाश पड़ता है। अतः नवजात शिशुओं में चेतना को बिल्कुल अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। किन्तु वयस्कों की अपेक्षा नवजात शिशुओं की चेतना बहुत कम स्पष्ट होती है।
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