सन्धि किसे कहते हैं? सन्धियों का वर्गीकरण कीजिए।
सन्धि- सन्धि शब्द का तात्पर्य एक ऐसे लिखित करार से है, जिसके द्वारा दो या दो से अधिक राज्य या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र के अर्न्तगत कार्य करते हुए सम्बन्धों का सृजन करते हैं या सृजित करने का आशय रखते है। उपर्युक्त परिभाषा में चार महत्वपूर्ण तत्व निहित हैं। प्रथम, सन्धियाँ लिखित होनी चाहिए। यद्यपि प्राचीन अन्तर्राष्ट्रीय विभि यह निर्धारित नहीं करती कि सन्धि सदैव लिखित ही होनी चाहिए, फिर भी राज्यों द्वारा मौखिक करार नहीं किया जाता। सन्धि विधि पर वियना अभिसमय, 1969 ( The Vienna Convention on the Law of Treaties of 1969) प्रावधान करता है कि सन्धियों का निर्माण केवल लिखित रूप में होना चाहिए। मौखिक करार न तो सुस्पष्ट होता है, और न ही स्थायी, इसलिए वर्तमान समय में यह आवश्यक हो गया है कि सन्धियों का निर्माण लिखित हो। दूसरा, सन्धि के पक्षकार या तो राज्य या राज्य तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, या अन्तर्राष्ट्रीय संगठय हो सकते हैं। तीसरा, सन्धि का उद्देश्य पक्षकारों के मध्य सम्बन्ध सृजित करना होता है। सम्बन्ध विधिक सम्बन्ध या राजनीतिक अथवा नैतिक सम्बन्ध हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि सन्धि या सन्धि के प्रावधान सदैव कोई बाध्यकार ही नहीं आरोपित करते या पक्षकारों के मध्य विधिक सम्बन्ध सृजित करने के लिए ही आशयित नहीं होते। उदाहरण के लिए, राज्यों के मध्य मित्रता की कुछ सन्धियाँ संविदाकारी पक्षकारों के मध्य किसी विधिक सम्बन्ध को सृजित नहीं करती। चौथा, सन्धि को अन्तर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र के अन्तर्गत लागू होना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय विधि ही केवल ऐसी विधिक प्रणाल नहीं है, जिसके अन्तर्गत राज्य संविदा करते हैं। कुछ संविदा वैयक्तिक अन्तर्राष्ट्रीय विधि के सामान्य सिद्धान्तों द्वारा शासित होते हैं। ऐसी सन्धियाँ कठिनाइयों का निवारण करने में सहायक होती हैं किन्तु ये उस क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आर्ती, जिसमें इनका प्रयोग अन्तर्राष्ट्रीय विधि में होता है।
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सन्धियों का वर्गीकरण
सन्धियों को उद्देश्यों की दृष्टि से कई भागों में वर्गीकृत किया जाता है। भारतीय ग्रन्थ कामन्दकीय नीतिसार में 16 प्रकार की सन्धियों का उल्लेख किया गया है- द्रव्य सन्धि, सन्तान, सन्धि, कपाल सन्धि, उपग्रह सन्धि, मित्र सन्धि, हिरण्य सन्धि एवं भूमि सन्धि, आदि-आदि। कौटिल्य ने सन्धियों के चल और स्थावर दो वर्गों का उल्लेख किया है। जिस सन्धि के साथ शपथपूर्वक उसके पालन के वचन रहते हैं उसे चल सन्धि कहा जाता है। स्थावर सन्धि वह होती है जिनमें उसके पालन के लिये किसी की जमानत ली जाती है।
उद्देश्य की दृष्टि से सन्धियों को मित्रता की सन्धि, शान्ति सन्धि, तटस्थता की गारन्टी देने वाली सन्धि, एवं व्यापार सन्धि आदि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
हॉलैण्ड ने सन्धियों का विभाजन विषय की दृष्टि से किया है। वह इन्हें निम्नलिखित पाँच भागों में वर्गीकृत करता है-
(क) राजनीतिक सन्धि- इस वर्ग में वे सन्धियाँ आती हैं जिनका सम्बन्ध मित्रता, मान्यता, सीमा शान्ति, देशीयकरण आदि से होता है।
(ख) व्यापारिक सन्धि – इन सन्धियों का सम्बन्ध नौ-चालन, वाणिज्य और मछलीगाह आदि से होता है।
(ग) सामाजिक सन्धि – इस प्रकार की सन्धियाँ विभिन्न राज्यों में पारस्परिक व्यवहार की सुविधाओं को बढ़ाती है।
(घ) दीवानी न्याय की सन्धि – इन सन्धियों का सम्बन्ध दीवानी न्याय से होता है। उदाहरण के लिये 1880 की पेटेन्ट और ट्रेड मार्क की सन्धि तथा 1856 की कापीराइट की सन्धि का नाम लिया जा सकता है।
(ड.) फौजदारी न्याय-विषयक सन्धि- इस शीर्षक के अन्तर्गत उन सन्धियों को लिया जाता है जिनका सम्बन्ध फौजदारी न्याय से होता है। उदाहरण के लिये, भगोड़े एवं अपराधियों के प्रत्यर्पण से सम्बन्धित सन्धियाँ।
ओपेनहीम ने विषय-वस्तु के आधार पर सन्धियाँ दो प्रकार की बतायीं हैं-
(1) विधि निर्माण करने वाली सन्धियाँ – इस प्रकार की सन्धियाँ विभिन्न विषयों पर कानून बनाने के दृष्टिकोण से की जाती है। इन सन्धियों के फलस्वरूप एक नया कानून किसी विषय पर बनता है।
( 2 ) अन्य उद्देश्यों से निर्मित सन्धियाँ – इस प्रकार की सन्धियों का उद्देश्य कानून बनाना नहीं होता, वरन् अन्य उद्देश्यों से इस प्रकार की सन्धियों का निर्माण किया जाता है।
काल्वो ने सन्धियों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया है-
(1 ) सन्धियों के स्वरूप के आधार- (अ) स्थायी सन्धि, (ब) अस्थायी सन्धि
(2) सन्धियों के स्वभाव के आधार – (अ) व्यक्तिगत सन्धि, (ब) वास्तविक सन्धि ।
(3) सन्धियों के प्रभाव के आधार पर – (अ) समान सन्धि, (व) असमान सन्धि, (स) साधारण सन्धि, (द) सशर्त सन्धि ।
(4) सन्धियों के उद्देश्यों के आधार पर – (अ) प्रत्यर्पण को सन्धि, (ब) तटस्थता की सन्धि (स) व्यापार की सन्धि । (द) समर्पण की सन्धि, (य) प्रतिभूति की सन्धि ।
वैटल का वर्गीकरण- वैटल ने सन्धियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया है-
- (अ) समान सन्धियाँ
- (ब) असमान सन्धियाँ
- (स) वास्तविक सन्धियाँ
- (द) व्यक्तिगत सन्धियाँ
मैकनायर का वर्गीकरण- मैक नायर ने सन्धियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया है-
- (1) स्वत्व परिवर्तन सम्बन्धी सन्धियाँ,
- (2) संविदात्मक सन्धियाँ,
- (3) विधि निर्माण करने वाली सन्धियाँ,
विधि-निर्माण सन्धियों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-
- (क) संवैधानिक विधि बनाने वाली सन्धियाँ
- (ख) शुद्ध विधि विधायक सन्धि,
- (ग) संस्थाओं को स्थापित करने वाली सन्धियाँ ।
अन्य प्रकार की सन्धियाँ
उपर्युक्त रूपों के अतिरिक्त सन्धि के कुछ अन्य प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. द्विपक्षीय सन्धियाँ- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दो राज्यों के मध्य होने वाली सन्धि को द्विपक्षीय सन्धि कहते हैं। अनेक द्वि-पक्षीय सन्धियाँ व्यक्तिगत नागरिकों के निजी समझौतों से समानता रखती है। द्वि-पक्षीय सन्धियाँ प्रायः निजी संविदा होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय कानून का स्रोत नहीं होती है। जिन विभिन्न विषयों पर अन्तर्राष्ट्रीय कानून का कोई स्पष्ट नियम नहीं है. उनके सम्बन्ध में व्यवस्था की दृष्टि से ये द्विपक्षीय सन्धियाँ महत्वपूर्ण योगदान करती है।
2. बहुपक्षीय कानून निर्माता सन्धियाँ – इनकी सामान्य सन्धियाँ भी कहा जाता है। ये दो प्रकार की होती हैं- कानून निर्माता सन्धियाँ और राज्यों के आर्थिक और सामाजिक हितों पर विचार करने वाली सन्धियाँ कानून-निर्माता सन्धियाँ दोनों पक्षों की सामान्य इच्छा को अभिव्यक्त करती हैं। इनमें से अधिकांश राज्यों के राजनीतिक हितों पर विचार करती है और अधिकारों तथा कर्तव्यों को परिभाषित करके, परस्पर विरोधी दोनों के मध्य सामंजस्य स्थापित करके अन्तर्राष्ट्रीय कानून के नये सिद्धान्त प्रतिपादित करती हैं। उदाहरण के लिये 1815 की वियना कांग्रेस के अन्तिम अधिनियम का नाम लिया जा सकता है।
3. शान्ति सन्धियाँ- ये सन्धियाँ युद्ध के बाद की जाती है। युद्ध में हारे हुए राष्ट्र उन सन्धियों पर हस्ताक्षर करने के लिये बाध्य होते हैं, जिनकी शर्तें विजेता राष्ट्र द्वारा मन-मुटाव को दूर करने के लिये की जाती है। ये सन्धियाँ जिस समय की जाती है उस समय विजेता राज्य कुछ भी करने की शक्ति रखता है। शान्ति सन्धि एक प्रकार से हारे हुए पक्ष द्वारा भुगतान की गई कीमत है जो युद्ध छेड़ने के बदले दी जाती है। 1919 की वर्साय सन्धि इसका उदाहरण है।
4. गारण्टी देने वाली सन्धियाँ – राष्ट्र संघ की स्थापना से पूर्व 1920 में न्यायवेत्ताओं ने गारण्टी की सन्धियों के दायित्वों के क्षेत्र पर विस्तार के साथ विचार किया। ये सन्धियाँ विशेष राजनीतिक स्थितियों की स्थापना तथा दायित्वों का निर्वाह के लिये विशेष दबावों की रचना के लिये की गई थी। स्विट्जलैण्ड तथा बेल्जियम को तटस्थता की गारण्टी दी गई थी। यह सभी पक्षों द्वारा दी गई सामूहिक गारण्टी थी।
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