समस्या क्या है? शोध समस्या के चुनाव एवं उसके सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
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समस्या क्या है?
मानव समाज अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु विभिन्न साधनों को अपनाता है। यदि किसी आवश्यकता की संतुष्टि किसी उपलब्ध साधन के द्वारा नहीं हो पाती, तो एक समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि आवश्यकता की संतुष्टि के मार्ग में उपस्थित बाधा ही समस्या है। जैसे ही साधन या समस्या उपलब्ध हो जाता है, बाधा समाप्त हो जाती है तथा आवश्यकता की संतुष्टि के साथ ही समस्या का भी अन्त हो जाता है। इस प्रक्रिया को ऐसे भी स्पष्ट कर सकते हैं-
आवश्यकता साधन = समस्या
आर. एल. एकॉफ के अनुसार किसी समस्या के लिए पाँच तत्वों की उपस्थिति आवश्यक है-
- अनुसंधान उपभोक्ता तथा अन्य सहभागी ।
- उद्देश्य ।
- उद्देश्य प्राप्ति हेतु अन्य साधन ।
- उपभोक्ता में अन्य साधन की उपयुक्तता के प्रति सन्देह ।
- समस्या से सम्बन्धित वातावरण ।
टाउससैण्ड ने समस्या को परिभाषित करते हुए लिखा है— “समस्या समाधान के लिए प्रस्तावित एक प्रश्न है। जब किसी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं होता तो समस्या उपस्थित हो जाती है। मनोवैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता जिनकी अनुसंधान सम्बन्धी विधियां अत्यधिक वैज्ञानिक एवं प्रयोगात्मक हैं, दो चल राशियों के सम्बन्ध क्या हैं? इसी को समस्या मानते हैं।” रबिंगर के अनुसार, “समस्या एक प्रश्नवाचक वाक्य या विवरण है, जिसमें दो चल राशियों में सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है।”
समस्या रचना (Problem Formulation)- जहोदा (Jahoda) के अनुसार समस्या की रचना ऐसी होनी चाहिए जिसका अन्वेषण वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जा सके। समस्या की रचना की निम्नलिखित विशेषतायें हैं-
- समस्या रचना इस प्रकार की हो कि वह ‘स्पष्ट एवं मूर्त’ (Explicit and Concrete) हो ।
- समस्या की रचना में किसी समस्या का समाधान योग्य’ (Solvable) होना भी आवश्यक है।
- समस्या का आकार तथा क्षेत्र सीमित करने के बाद समस्या समाधान हेतु उचित परिकल्पनायें बनाई जाना चाहिए।
समस्या का चुनाव (Selection of a Problem)
जिज्ञासु अनसंधानकर्त्ता के सम्मुख अनेक समस्यायें होती हैं। अतः वह सभी पर एक साथ ही कार्य नहीं कर सकता। उसे इन सभी समस्याओं में से किसी एक समस्या का चुनाव करना होगा, जिस पर वह अपना अनुसंधान कार्य प्रारम्भ कर सके। उदाहरणार्थ- एक विद्यालय में नव-नियुक्त प्रधानाचार्य कार्य के प्रति रुचिवान हैं। उसने शिक्षालय की स्थिति तथा परिस्थितियों का विश्लेषण करके यह देखा कि यहाँ पर भौतिक साधनों की कमी है। अध्यापक अपने कार्यों में रुचि नहीं लेते, वे न तो समय पर विद्यालय आते हैं और न कक्षा में, विद्यालयी अनुशासन खराब हो गया है, परीक्षाफल बहुत खराब आता है, इसी प्रकार की अनेक समस्यायें विद्यालय में उपस्थित हैं।
अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि यदि उसके अनुसंधान का दृष्टिकोण व्यावहारिक है। तो वह इनमें से सर्वप्रथम किस समस्या का चुनाव करें? इसके लिए उसको चिन्तन एवं विश्लेषण करके प्राथमिकता क्रम को अपनाना होगा। यह भी सम्भव है कि एक समस्या के समाधान के •साथ अनेक समस्यायें स्वतः ही दूर हो जायें। इस प्रकार का विश्लेषण सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों अनुसंधान कार्यों के लिए आवश्यक है। किसी भी समस्या विशेष के चुनाव के लिए निम्नलिखित चार कारण होते हैं-
- अनुसंधान की रुचि उसी विषय में है।
- वह इस अध्ययन को किसी बड़े अध्ययन का आधार बनाना चाहता है।
- वह शैक्षिक परिस्थितियों में सुधार लाना चाहता है।
- उसकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है।
समस्या चुनाव के सिद्धान्त
अनुसंधानकर्ता को विभिन्न समस्याओं में से किसी विशेष समस्या का चुनाव करते समय निम्नलिखित सिद्धान्तों पर ध्यान देना चाहिए-
(1) अनुसंधानकर्ता की रुचि एवं अभियोग्यता- समस्या को अनुसंधानकर्ता की अभियोग्यता के अनुरूप होना चाहिए। मान लें कि उसमें प्राविधिक अभियोग्यता नहीं है, किन्तु उसने किसी के कहने से किसी प्राविधिक समस्या का चुनाव किया है तो कार्य पूर्ण करने में उसे विभिन्न कठिनाइयाँ होंगी, तब यह भी सम्भव है कि वह अनुसंधान कार्य को पूर्ण न भी। कर पायें। अतः अनुसंधान कार्य में रुचि एवं अभियोग्यता का होना आवश्यक है।
(2) समस्या ऐसी होनी चाहिए जिस पर कुछ कार्य हो चुका हो— नये अनुसंधान करने वाले को कभी भी बिल्कुल नवीन समस्या का चयन नहीं करना चाहिए, किन्तु जो अनुभवी तथा दक्ष हैं, वे बिल्कुल नवीन समस्या भी ले सकते हैं।
(3) समस्या को मापन सीमा में होना चाहिए- अनुसंधानकर्ता को वही समस्या चुननी चाहिए, जिसका मापन एवं मूल्यांकन सरलतापूर्वक हो सकता हो। यदि मापन हेतु यंत्रों और साधनों का अभाव है, तब या तो उपकरण पहले से तैयार किये जायें अन्यथा ऐसी समस्या की जाये जिसमें परीक्षण आदि उपलब्ध हो।”
(4) समस्या व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक दृष्टि से उपयोगी होनी चाहिए – समस्या को ऐसी होनी चाहिए जो कि व्यावहारिक और सैद्धान्तिक दृष्टि से उपयोगिता को प्रस्तुत कर रही हो, क्योंकि अव्यावहारिक एवं अनुपयोगी समस्या का कोई मूल्य नहीं होता तथा उस पर किया जाने वला श्रम एवं समय दोनों नष्ट हो जायेगा।
(5) समस्या की व्यावहारिक मान्यतायें- इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होगा सकते हैं।
(क) व्यय (Expenditure)- वही समस्या लें जिस पर पर्याप्त धन व्यय कर सकते हैं।
(ख) समय (Time) – इसका ध्यान रखें कि कितने समय में कार्य पूरा होगा।
(ग) निर्देशन की प्राप्ति (Guidance Available)— ऐसी समस्या लें जिसमें सरलतापूर्वक निर्देशन की प्राप्ति हो सके।
(घ) आंकड़ों की सम्भाव्यता (Probability of Data)- वही समस्या लें जिसके आंकड़े भी प्राप्त हो सकें।
(ङ) नैतिक समस्या (Ethical Problem)- समाज को समाज के नैतिक मूल्यों को क्षति पहुँचाने वाला नहीं होनी चाहिए, अन्यथा अनुसंधानकर्ता को सहयोग एवं स्वागत कुछ भी न प्राप्त होगा।
उपरोक्त सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए जब किसी समस्या का चयन करना हो, तो अनुसंधानकरता को स्वयं अपने आप से निम्नलिखित प्रश्न करने चाहिए—
- क्या यह समस्या उसकी रुचि के अनुकूल है?
- क्या यह समस्या कठिन है?
- क्या यह समस्या सैद्धान्तिक या व्यावहारिक दृष्टि से उपयोगी है?
- क्या यह समस्या व्यावहारिक है?
- क्या इस समस्या पर कार्य करने की क्षमता मुझमें है ?
- क्या इस समस्या के आंकड़े सरलता से प्राप्त होंगे ?
- क्या मुझे अपने निर्देशक से इस क्षेत्र में उचित एवं पर्याप्त निर्देशन प्राप्त हो सकेगा ?
- क्या इस समस्या का अध्ययन करने के लिए मेरे पास पर्याप्त धन एवं समय उपलब्ध है?
यदि इन प्रश्नों के उत्तर ‘हाँ’ में प्राप्त हों, तो वह समस्या अच्छी होगी तथा उस पर कार्य भी प्रारम्भ किया जा सकेगा।
(2) समस्या का कथन (Statement of the problem) — अनुसंधान का शीर्षक (Title) केवल विषय का नाम या उसके क्षेत्र को सूचित करता है। अब आवश्यकता यह होती है कि विषय के निर्धारण के बाद समस्या का विधिवत् कथन किया जाये। यह कथन सामान्य वर्णन या प्रश्नों के माध्यम से हो सकता है। गुड एवं स्केट का कहना है कि, “चाहे जिस रूप में भी हो, किन्तु “A Study to show” जैसे प्रकार के शीर्षक से बचना चाहिए, क्योंकि यह एक दिशा निर्देशित कर देता है, जबकि अनुसंधान का उद्देश्य किसी समस्या का निष्पक्ष हल खोजना है।”
अनुसंधान समस्या के कथन में सामान्यतः निम्नलिखित त्रुटियाँ हो जाती हैं-
(1) विशिष्ट समस्या के स्थान पर व्यापक क्षेत्र ले लेते हैं, जैसे- ‘भारत में प्रौढ़ शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन’ ।
(2) कभी-कभी अत्यधिक संक्षिप्त विषय ले लेते हैं, जिससे अनुसंधान का कार्य महत्वहीन हो जाता है।
(3) गुणात्मक, पक्षपातपूर्ण या संवेगात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं, जैसे— अपनापन एक साहसपूर्ण मानव सेवा है।’ अतः अनुसंधान के शीर्षक का कथन करते समय उपरोक्त त्रुटियों से बचते हुए न तो अधिक व्यापक और न ही अत्यधिक संक्षिप्त अर्थात् संतुलित एवं सरल शब्दों में रखना चाहिए। वही शीर्षक अत्युत्तम होता है जो कि समस्या को पर्याप्त पूर्ण से सीमित एवं वस्तुनिष्ठ रखता हो ।
3. समस्या कथन की विधियाँ- यद्यपि सामान्य कथन एवं प्रश्न के द्वारा दोनों रूपों में समस्या का कथन किया जाता तथापि समस्या कथन में प्रश्न- क्या पद्धति को ही अधिक प्रयुक्त किया जाता है। यह प्रश्न-प्रणाली स्पष्टता की दृष्टि से अधिक उपयुक्त सिद्ध होती है। उदाहरण के लिए-
(क) क्या 15 वर्ष की आयु के उपरान्त रुचियाँ स्थिर हो जाती हैं?
(ख) क्या संक्षिप्त उत्तर-परख वस्तनिष्ठ से अधिक वैध और विश्वसनीय है?
अनुसंधान विशेषज्ञों ने समस्या-कथन के निम्नलिखित रूपों की चर्चा की है। इनमें से अनुसंधानकर्ता की रुचि तथा समस्या की प्रकृति के अनुरूप किसी को भी ले लिया जा सकता हैं-
(1) एक या अनेक प्रश्न- (अ) एक अकेला प्रश्न, (ब) अनेक प्रश्न, (स) एक विस्तृत एवं अनेक संक्षिप्त प्रश्न।
(2) ज्ञापक कथन- (अ) एक अकेला कथन, (ब) एक कथन, जिसके अनेक अंग हों, (स) पूर्ण कथन श्रृंखला, (द) एक असामान्य कथन के अन्तर्गत उपकथन ।
(3) एक कथन के साथ अनेक प्रश्न।
(4) एक कथन अनेक पक्षों के साथ।
4. समस्या का परिभाषीकरण (Definization of Problem) – अनुसंधान हेतु समस्या के चुनाव तथा कथन के बाद समस्या का परिभाषीकरण करना होता है, क्योंकि परिभाषीकरण ही समस्या के मूल्य और उसकी व्यावहारिकता को स्पष्ट करता है।
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