सरल दैव निदर्शन क्या है? इसकी प्रविधियाँ एवं गुण-दोषों का वर्णन कीजिये।
सरल दैव निदर्शन- निदर्शन की यही विधि सर्वाधिक प्रचलित है। इस विधि का महत्व इस दृष्टि से भी है कि सम्भावित निदर्शन की अन्य विधियां भी निदर्शन के अन्तिम चुनाव में इसी विधि का प्रयोग करती हैं। इस विधि को विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार से परिभाषित किया है-
जहोदा एवं अन्य के अनुसार, “एक सरल दैव निदर्शन का चुनाव ऐसी प्रक्रिया से किया जाता है जो न केवल समग्र की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में आने का समान अवसर देती है वरन् इच्छित मात्रा में तत्त्वों के प्रत्येक सम्भावित समन्वय का समान रूप से चुनाव करती है।”
पार्टेन के अनुसार, “दैव निदर्शन विधि का उपयोग उस समय माना जाता है जब चुनाव की विधि ऐसी हो कि समग्र की प्रत्येक इकाई तथा तत्व के चुने जाने का समान अवसर हो।”
हार्पर के अनुसार, “एक दैव निदर्शन वह निदर्शन है जिसका चयन इस प्रकार हुआ हो कि समग्र की प्रत्येक इकाई को सम्मिलित होने का समान अवसर प्राप्त हुआ हो।”
गुडे एवं हाट के अनुसार, “दैव निदर्शन में समग्र की इकाइयों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया जाता है कि चयन प्रक्रिया उस समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव की समान सम्भावना प्रदान करती है। “
यूल तथा केण्डाल के अनुसार, “जब समग्र की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में सम्मिलित होने के समान अवसर हों तब समग्र से इकाई का चयन दैव निदर्शन है।”
फ्रैंकयेट्स के शब्दों में, “दैव निदर्शन वही होगा जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में सम्मिलित होने का समान अवसर हो ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि दैव निदर्शन असावधानीपूर्ण, अव्यवस्थित तथा लापरवाहीपूर्ण एवं आकस्मिक नहीं होता।
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आवश्यक दशाएं
पार्टेन ने दैव निदर्शन का उपयोग करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक बताया है-
(i) समग्र की इकाइयां स्पष्ट होनी चाहिए एवं उनकी सूची तैयार की जानी चाहिए, (ii) इकाइयों का आकार लगभग समान हो, (iii) प्रत्येक इकाई एक-दूसरे से स्वतन्त्र हो, (iv) निदर्शन चयन की विधि स्वतन्त्र होनी चाहिए, (v) अध्ययनकर्ता की प्रत्येक इकाई तक पहुंच सुलभ होनी चाहिए, (vi) चुनी हुई इकाई को न तो छोड़ा जाना चाहिए और न ही उसका प्रतिस्थापन करना चाहिए।
सरल दैव निदर्शन चुनने की प्रविधियां (Techniques of Selecting Simple Random Sample)
सरल दैव निदर्शन विधि के अनुसार निदर्शन निकालने की अनेक प्रविधियां हैं, उनमें से कुछ अधिक प्रचलित विधियां ये हैं- लॉटरी विधि, कार्ड विधि, टिपेट विधि, ग्रिड विधि, आदि । हम यहां इन सभी का उल्लेख करेंगे।
(1) लॉटरी विधि (Lottery Method) — इस विधि में समग्र की सभी इकाइयों के नाम अथवा नम्बर कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों पर लिखकर उन्हें मोड़ लिया जाता है। इन सभी कागज की चिटों को किसी बर्तन, बॉक्स या झोले में डालकर अच्छी तरह से हिला दिया जाता है ताकि वे भली-भांति मिल जायें। इसके बाद निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा अथवा स्वयं आंखें बन्द करके उतने ही कागज या चिट निकाल लिए जाते हैं जितनी इकाइयां निदर्शन में सम्मिलित करनी हैं। इस प्रकार जो इकाइयां देवयोग से चुनाव में आ जाती हैं, उनका अध्ययन किया जाता है। राज्य सरकार द्वारा लॉटरी में पुरस्कार निकालने के लिए यही विधि काम में ली जाती है।
(2) कार्ड या टिकिट विधि (Card or Ticket Method) – कार्ड प्रणाली लॉटरी विधि का ही परिवर्तित रूप है। इसमें समग्र की सभी इकाइयों के नाम, नम्बर अथवा कोई प्रतीक एक ही रंग, आकार और मोटाई के कार्डों अथवा टिकटों पर अंकित कर दिये जाते हैं। इन काडों को एक ड्रम में डालकर खूब हिलाया जाता है और एक कार्ड निकाल लिया जाता है। इसके बाद फिर ड्रम को हिलाया जाता है और दूसरा कार्ड निकाला जाता है। इस प्रकार यह क्रिया उतनी ही बार की जाती है जितने कार्ड हमें निकालने हैं। इस विधि से जो कार्ड निकाले जाते हैं, उनसे सम्बन्धित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। लॉटरी विधि एवं कार्ड प्रणाली में मूल अन्तर यह है कि लॉटरी में आंखें बन्द करके, चिटें निकाली जाती हैं जबकि इस विधि में आंखें खुली रखकर कार्ड निकाले जाते हैं। इस विधि का उपयोग करते समय यह सावधानी रखनी चाहिए कि सभी कार्डों का आकार, रंग-रूप और मोटाई एक जैसी हो अन्यथा उनके चयन में पक्षपात हो सकता है।
(3) टिपेट विधि ( Tippet Method)– प्रो. टिपेट ने चार अंकों वाली 10,400 संख्याओं की एक सूची बनाई और इन संख्याओं को बिना किसी क्रम के कई पृष्ठों पर लिख दिया। इनमें से कुछ संख्याएँ निम्न प्रकार हैं-
2952 | 6641 | 3992 | 9792 | 7979 | 5911 | 3170 | 5624 |
4167 | 9524 | 1545 | 1396 | 7203 | 5356 | 1300 | 2693 |
2370 | 7483 | 3408 | 2762 | 3563 | 1089 | 6313 | 7691 |
0560 | 5246 | 1112 | 6107 | 6008 | 8126 | 4433 | 8776 |
2754 | 9143 | 1405 | 9025 | 7002 | 6111 | 8166 | 6448 |
टिपेट संख्याओं से निदर्शन चुनने का तरीका इस प्रकार है— माना कि हमें 500 छात्रों में से 30 छात्रों का एक निदर्शन निकालना है तो पहले हम सभी 500 छात्रों के नाम को क्रमवार लिख लेंगे फिर टिपेट संख्या की पुस्तक का कोई एक पृष्ठ खोलकर उसमें से प्रथम 30 संख्याओं को नोट कर समग्र में से उन्हीं संख्याओं को अध्ययन के लिए चुन लेंगे। यदि समग्र की कुल इकाइयों की संख्या कम है तथा प्रथम तीस संख्याओं में कुछ संख्याएं अधिकतम क्रम संख्या से अधिक है तो उन्हें छोड़ दिया जायेगा और उनके स्थान पर उनके आगे वाली संख्याएं ले ली जाएंगी। टिपेट की संख्याएं अधिक वैज्ञानिक मानी जाती हैं और उनका उपयोग भी बहुत होता है। यह विधि अधिक शुद्ध है।
(4) ग्रिड प्रणाली (Grid System)- इस विधि का उपयोग भौगोलिक क्षेत्र के चुनाव के लिए किया जाता है। यदि किसी नगर, प्रदेश या क्षेत्र में से कुछ इकाइयों का चयन करना हो तो पहले उस क्षेत्र का नक्शा तैयार किया जाता है। इस नक्शे पर ग्रिड प्लेट को रखा जाता है। यह ग्रिड प्लेट सेल्युलॉयड अथवा किसी पारदर्शक पदार्थ से बनी होती है। इस प्लेट में वर्गाकार खाने बने रहते हैं जिन पर नम्बर लिखे होते हैं। यह पहले से ही तय कर लिया जाता है कि निदर्शन में कितनी इकाइयों का चयन करना है, उतनी ही वर्गों को पहले से काट लिया जाता है। ग्रिड को मानचित्र पर रखकर जितने कटे हुए भागों पर मानचित्र का क्षेत्र आता है उन पर निशान लगा दिया जाता है और उन्हें ही निदर्शन का क्षेत्र मानकर अध्ययन किया जाता है।
दैव निदर्शन प्रणाली के गुण (Merits of Random Sampling)
दैव निदर्शन प्रणाली के प्रमुख गुण या लाभ निम्नांकित हैं-
(i) इस विधि में प्रत्येक इकाई के चुने जाने के समान अवसर होते हैं, अतः यह विधि प्रतिनिधित्वपूर्ण है तथा इसमें समग्र की अधिकाधिक विशेषताएं विद्यमान होती हैं।
(ii) यह विधि एक वैज्ञानिक विधि है जैसा कि एकॉफ कहते हैं, “दैव निदर्शन एक प्रकार से समस्त वैज्ञानिक निदर्शन का आधार है।”
(iii) यह निदर्शन की सबसे सरल विधि है, इसमें जटिल अथवा गूढ़ सिद्धान्तों का पालन नहीं करना पड़ता है।
(iv) इस विधि में निष्पक्षता का गुण मौजूद है और निदर्शन के चुनाव में किसी को भी प्राथमिकता नहीं दी जाती है। अतः इसमें पक्षपात आने की सम्भावना नहीं रहती है।
(v) इस विधि में समय, धन और श्रम की भी पर्याप्त बचत होती है, अतः यह विधि मितव्ययितापूर्ण है।
(vi) इस विधि में इकाइयों के चयन में यदि किसी प्रकार की कोई त्रुटि या अशुद्धता रह गई हो तो उसका पता लगाना सरल है।
दैव निदर्शन प्रणाली के दोष (सीमाएं) (Demerits or Limitations of Random Sampling)
दैव निदर्शन प्रणाली के निम्नांकित दोष हैं-
(i) इस विधि में समग्र की सूची होना आवश्यक है, किन्तु कई बार यह सूची उपलब्ध नहीं हो पाती तब इस विधि द्वारा निदर्शन ग्रहण करना सम्भव नहीं होता है।
(ii) यदि समग्र बहुत छोटा हो अथवा कुछ इकाइयां इतनी महत्त्वपूर्ण हों कि उनका निदर्शन में समावेश अनिवार्य हो तो ऐसी स्थिति में दैव निदर्शन उपयुक्त नहीं होता।
(iii) जब समग्र में बहुत अधिक विविधताएं हों और सजातीयता का अभाव हो तब भी यह विधि उपयुक्त नहीं होती।
(iv) जब समग्र का विस्तार बहुत अधिक हो और इकाइयां दूर-दूर तक फैली हों तब भी उनसे सम्पर्क करना कठिन होता है।
दैव निदर्शन में विकल्प की सम्भावना नहीं होती, विकल्प के लिए इकाइयों में परिवर्तन करना होता है। ऐसी स्थिति में दैव निदर्शन अवैज्ञानिक और पक्षपातपूर्ण हो जाता है। इन कमियों अथवा दोषों के बावजूद भी दैव निदर्शन प्रणाली के कुछ गुण हैं जिनके कारण इस विधि का बहुत अधिक उपयोग होता है। इस सन्दर्भ में या-लून चाऊ ने लिखा है, “दैव निदर्शन निश्चित रूप से एक क्षम्य प्रणाली है, यदि समग्र विशाल न हो तथा यदि निदर्शन इकाइयों का चुनाव सम्बन्धित रूप से सरल व कम खर्चीला हो तो यह उन विशाल समग्रों के लिए व्यावहारिक प्रणाली है जिनके तत्वों का केन्द्रीकरण एक छोटे क्षेत्र में ही हो।”
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