सांख्यिकी किसे कहते हैं ? सांख्यिकी की विशेषताएँ, प्रकृति, उद्देश्य, एवं महत्व
सांख्यिकी शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है- (i) एक वचन (ii) बहुवचन
जब सांख्यिकी शब्द का प्रयोग बहुवचन के रूप में किया जाता है तो इसका मतलब समंको से होता है और जब एक वचन के रूप में किया जाता है तो इसका मतलब सांख्यिकी . विज्ञान से होता है।
सांख्यिकी आंकड़ों का अर्थ एवं परिभाषा
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्ति सांख्यिकी का प्रयोग अपना अर्थ लगाकर करता है। एक साधारण व्यक्ति के लिए सांख्यिकी केवल नम्बरों का खेल है। राजनीति में सांख्यिकी का अर्थ है राजनीतिक स्थिति अर्थात् राज्य की स्थिति को जानकारी जिस गणना से होती है उसे सांख्यिकी कहा जाता है। अर्थशास्त्री के अनुसार सांख्यिकी का प्रयोग विभिन्न आर्थिक पहलुओं की मात्रा एवं गुणों का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। भौतिक शास्त्री के विचार में सांख्यिकी एक ऐसा विषय है जो सत्यता की व्याख्या कम तथा समूह एवं सम्भावना की अभिव्यक्ति अधिक करता है। एक शिक्षाशास्त्री संख्यिकी को शैक्षिक आंकड़ों को व्यवस्थित क्रम में एकत्र करने की विधियां मानता हैं। मनोवैज्ञानिक के अनुसार सांख्यिकी विज्ञान की वह शाखा है जो प्रदत्तों की निष्कर्षात्मक व्याख्या करती है।
सांख्यिकी आंकड़ों को स्पष्ट करने के लिए समय-समय पर विद्वानों ने भिन्न-भिन्न विचार प्रस्तुत किये हैं-
ए.एल. बाउले के अनुसार “आंकड़े किसी विभाग में तथ्यों के संख्यात्मक कथन हैं जिनके एक दूसरे से सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।”
कॉनर के शब्दों में- “आंकड़े किसी प्राकृतिक अथवा सामाजिक घटना के माप, गणना अथवा अनुमान है, पारस्परिक सम्बन्धों को प्रस्तुत करने के लिए क्रमबद्ध ढंग से व्यवस्थित किये गये हो।”
उपरोक्त दोनों ही परिभाषाओं में “समंक के विभिन्न गुणों से कुछ ही गुणों को सम्मिलित किया गया अतः उपरोक्त परिभाषाएँ अपूर्ण हैं। समंक या आंकड़ों की सबसे उचित परिभाषा होरेससीक्राइस्ट द्वारा दी गयीं है-
“समंक या आंकड़ों से हमारा आशय तथ्यों के उन समूहों से है जो अनेक कारणों से पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होते हैं, संख्याओं में व्यक्त किये जाते हैं। एक उचित मात्रा की शुद्धता के अनुसार गिने या अनुमानित किये जाते हैं, किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए एक व्यवस्थित ढंग से एकत्रित किये जाते हैं और जिन्हें एक दूसरे से सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
सांख्यिकी की विशेषताएँ या लक्षण
सेक्रिस्ट की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर समंक की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. समंक तथ्यों के समूह होते हैं।
2. समंक संख्याओं के रूप में व्यक्त होते हैं।
3. समंक अनेक कारणों से प्रभावित होते है।
4. आंकड़ों के संकलन में उचित मात्रा की शुद्धता होनी चाहिए।
5. आंकड़ों का संकलन किसी उद्देश्य से होना चाहिए।
6. आंकड़े परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित किये जाने योग्य होने चाहिए।
7. समंकों का गणना द्वारा या अनुसंधान द्वारा एकत्रित किया जाना चाहिए।
सांख्यिकी की प्रकृति
सांख्यिकी की प्रकृति के विषय में विद्वानों में विभिन्नं मतभेद हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि सांख्यिकी एक विज्ञान है और कुछ लोग इसे कला मानते हैं इसके अतिरिक्त परस्पर समन्वयवादी विचारधारा वाले इसे विज्ञान एवं कला दोनों ही मानते हैं।
सांख्यिकी एक विज्ञान के रूप में- सांख्यिकी एक विज्ञान है। विज्ञान वह विशिष्ट ज्ञान है जिसमें घटना विशेष के कारण तथा प्रभावों के सम्बन्ध को तर्कों एवं प्रभावों के आधार पर क्रमबद्ध एवं सामूहिक रूप से अध्ययन किया जाता है।
गूच के शब्दों में- “विज्ञान घटना विशेष के कारण तथा प्रभाव के मध्य सम्बन्ध विषयक ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है।”
क्राक्सन एवं काउडेन के अनुसार- “सांख्यिकी को संख्यात्मक आंकड़ों के संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण और निर्वचन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
प्रो. लॉविट के अनुसार- सांख्यिकी वह विज्ञान है जो तथ्यों (घटनाओं) की व्याख्या, वर्णन एवं तुलना करने के लिए आधार के रूप में संख्यात्मक तथ्यों का संकलन, वर्गीकरण एवं सारणीयन करता है।
अत: विज्ञान सदृश्य सांख्यिकी में भी आंकड़ों या तथ्यों का संकलन करके वर्गीकरण, विश्लेषण आदि द्वारा कारण तथा प्रभाव के सम्बन्ध को तर्कों एवं प्रमाणों के आधार पर अध्ययन करके समुचित निष्कर्ष निकले जाते हैं इस प्रकार सांख्यिकी एक विज्ञान अवश्य है परन्तु सांख्यिकी के कुछ विद्वान ही इसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान आदि सदृश्य विज्ञान न मानकर वैज्ञानिक पद्धतियों का विज्ञान कहते है।
वर्ग
आवृत्ति
45-50
40-45
35-40
30-35
25-30
20-25
15-20
10-15
3
5
7
8
6
4
4
3
सांख्यिकी कला के रूप में- जब किसी अनुसंधान में समस्याओं के हल खोजने का प्रयास किया जाता है तो विज्ञान के नियमों एवं सिद्धान्तों को व्यवहार में कैसे लाया जाय ? इसका ज्ञान सांख्यिकी द्वारा ही सम्भव है। इस प्रकार सांख्यिकी को वैज्ञानिक पद्धतियों के विज्ञान को प्रयोग करने की कला कहा जा सकता है।
सांख्यिकी विज्ञान एवं कला दोनों है- उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सांख्यिकी न केवल वैज्ञानिक विधियों का विज्ञान है और न केवल कला ही। यह तो दोनों का समन्वित अध्ययन है। इसके अन्तर्गत सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक दोनों ही पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
सांख्यिकी के उद्देश्य
सांख्यिकी के उद्देश्यों को निम्नलिखित दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है-
प्रथम सामान्य उद्देश्य की दृष्टि से, द्वितीय विशिष्ट उद्देश्य की दृष्टि से।
1. सामान्य उद्देश्य की दृष्टि से-
शिक्षा से सम्बन्धित आंकड़ों का संकलन करना ।
शिक्षा से सम्बन्धित संकलित आंकड़ों को व्यवस्थित करके उनका वर्गीकरण करना।
शिक्षा से सम्बन्धित आंकड़ों की व्याख्या करना।
शिक्षा से सम्बन्धित आंकड़ों की व्याख्या के आधार पर भविष्य कथन करना।
2. विशिष्ट उद्देश्य की दृष्टि से
छात्रों को व्यवसायिक एवं शैक्षिक निर्देशन देना।
छात्रों के दो समूहों के प्राप्तांकों की तुलना करना ।
छात्रों के विषय में भविष्यवाणी करना।
वंश परम्परा एवं वातावरण के प्रभाव का अध्ययन ।
विकास एवं प्रगति के चक्र खींचना
गुणों के पारस्परिक सह-सम्बन्धों का अध्ययन ।
साख्यिकी की उपयोगिता एवं महत्व
सांख्यिकी एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग लगभग प्रत्येक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने में किया जाता है। प्रत्येक संस्था व व्यक्ति को किसी न किसी रूप म प्रभावित करती है। सांख्यिकी का उपयोग छात्र, अध्यापक, व्यापारी, गृहिणी, कृषक, उद्योगकर्मी, योजनाकार, अनुसंधानकर्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री आदि सभी करते हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में सांख्यिकी के ज्ञान व उपयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है, जैसे-
व्यक्ति व संस्थानों के लिए उपयोगी।
समस्या समाधान
सैद्धान्तिक शोध
समग्र शोध
भविष्य योजना
कर्मचारी प्रशासन
बिक्री नियन्त्रण
युद्ध नियंत्रण
छात्र शिक्षक मूल्यांकन व विद्यालय प्रबन्ध।
इसके अतिरिक्त सांख्यिकी की उपयोगिता कुछ और दृष्टियों में पायी जाती है जैसे-
व्यक्तिगत उपलब्धियों की तुलना करने में।
समूह की उलब्धियों की तुलना करने में।
शैक्षिक एवं व्यवसायिक मार्ग प्रदर्शन करने में।
शैक्षिक आंकड़ों की वैज्ञानिक ढंग से विश्वसनीयता बनाने में।
सांख्यिकी की उपयोगिता समिति होती है क्योंकि इसका प्रयोग
परिमाण बोध रूप से होता है।
वैयक्तिक गुणों को प्रकट करना सम्भव नहीं होता।
औसत से ही नियम लागू होते हैं, सर्वव्यापक ढंग से सही नहीं भी होते हैं।
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