‘सामाजिक मीडिया एवं शिक्षा’ विषय पर एक निबन्ध लिखिए। अथवा सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने में सामाजिक संचार की भूमिका का वर्णन कीजिए ।
सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने में सामाजिक संचार की भूमिका
वर्तमान समय में सूचना क्रान्ति का स्वरूप विस्फोटक अन्दाज के देश-दुनिया के नक्शे पर उभराव इसकी चपेट में सम्पूर्ण विश्व एक ‘ग्लोबल गाँव’ (Global village) में तब्दील होता नजर आ रहा है। अब मासूम कच्चे समय से पहले ही उम्र से बड़े दिखने लगे। उनकी छोटी-छोटी मासूम बातों का जो जवाब किसी के पास नहीं था उसे सोशल मीडिया तक उसकी पहुँच ने आसान बना दिया। वर्तमान समय के बेबाक अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम सोशल मीडिया हजारों मंचों से एक ही समय में विचारों का आदान-प्रदान कर रहा है। आज सोशल मीडिया अभिव्यक्तिगत स्वतन्त्रता का एक अहम् माध्यम बन गया है तथा ब्लॉग फेसबुक, ट्विटर, आरकुट और लकडेन की मदद से अहम् भूमिका निभा रहा है। आज देश से भ्रष्टाचार हटाने की बात हो, महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार हो, खाद, पानी, बीज के लिए परेशान किसान की मुश्किल हो, सभी सामाजिक मीडिया की मदद से सुलझ सकते हैं। सोशल मीडिया के इस प्रभाव को देखते हुए ही प्रत्येक क्षेत्र में जुड़े लोगों ने इसे अपनी-अपनी जरूरतों के मुताबिक समय-समय पर प्रयोग किया तथा सोशल मीडिया से जुड़े माध्यम अब किसी आम व खास व्यक्ति के लिए न होकर सभी के लिए उपलब्ध होने लगे। शिक्षक-विद्यार्थी से लेकर साहित्यकार, पत्रकार, चित्रकार, राजनीतिज्ञ, फिल्मी सितारे या फिर कोई आम आदमी ही क्यों न हो, कभी वे इसका भरपूर इस्तेमाल किया। उदाहरणार्थ ब्लॉग इण्टरनेट पर मिलने वाला एक ऐसा स्थान है जिसमें आप अपने मन की बात कहते हैं। ब्लॉग का लेखक, सम्पादक व प्रकाशक एक ही व्यक्ति होता है जिसे ‘ब्लॉगर’ कहते हैं। आज इन ब्लॉगों की विचारों, स्मृतियों, सुख-दुःख व निजी अनुभवों की एक डायरी के रूप में देखे जाने लगे हैं। ये सभी क्रिया-कलाप संचार व्यवस्था के कारण ही हैं। एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसे ही अपना गुरु मानकर श्रेष्ठ धनुर्विद्या की शिक्षा ली थी। आज भी हम देखें तो एकलव्य की तरह ही कृतसंकल्प व लगन वाला विद्यार्थी बड़ी सरलता से एमओ.ओ.सी. मासीव ओपन ऑनलाइन कोर्स व्यापक मुक्त एडेमिक अर्थ ओरजी जैसे मुक्त शिक्षा संसाधन साइट का सहारा ले सकता है। यदि संकल्प हो और कोशिश दिल से की जाये तो एक निःशुल्क ऑन लाइन पाठ्यक्रम में भी अनेक सुविधाये मिल सकती हैं।
ज्ञान की प्राप्ति और किसी विषय में गहराई से अध्ययन के लिए अब यह आवश्यक नहीं कि शिक्षा के पारस्परिक व औपचारिक संस्थानों की ही शरण ली जाए। आज ऑनलाइन कम्युनिरीज पर यदि लगन से प्रयास किया जाये तो कोई भी विद्यार्थी किसी भी विषय में महारत हासिल कर सकता है और ऐसी प्रतिष्ठा अर्जित कर सकता है जिसकी सम्भावनाओं का कहीं छोर न हो। आईसीटी (सूचना संचार प्रौद्योगिकी) आधारित सोशल मीडिया के आविर्भाव ने अध्ययन और शिक्षा में नवाचार की गति को उल्लेखनीय तेजी प्रदान की है। यही कारण है कि बीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में जब से इण्टरनेट सर्वत्र उपलब्ध हुआ और कम खर्चीली मोबाइल टेलीफोन सुविधा सर्वव्यापी हुई है, पठन-पाठन के अनुभवों में एक नया मोड़ आया है। इण्टरनेट से जुड़ने वाले उच्च बैंड विड्थ और उपकरणों से सोशल मीडिया को व्यापक विस्तार मिला है तथा इससे पठन-पाठन के उत्कृष्ट और बहुमूल्य अनुभवों के सृजन और अनोखे एवं व्यापक आदान-प्रदान में काफी मदद मिली है।
सोशल मीडिया शब्द का उल्लेख केवल फेसबुक व टिवटर जैसे प्रसिद्ध मंचों के रूप में ही नहीं होता बल्कि एक ऐसी आईसीटी आधारित कम्युनिटी से है जहाँ उपयोगकर्ता जनित समान ‘यूजर जेनरेटेड करेंट’ को साथ-साथ तैयार किया जा सकता है, साझा किया जा सकता है, उस पर चर्चा की जा सकती है और उसे एक नया मकसद दिया जा सकता है। यही नहीं सोशल मीडिया ऑन हॉवी (शौक) को विकसित करने जैसी गैर-औपचारिक विद्या के लिए भी ढेर सारे पढ़ाई के संसाधन उपलब्ध कराता है। यही कारण है कि आज शिक्षक छात्र, माता-पिता, लेखक, पत्रकार, शिक्षाशास्त्री, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, विधिशास्त्री सहित अनेक लोग इस सोशल मीडिया से जुड़ चुके हैं तथा अपनी सोच के दायरे को विस्तृत कर रहे हैं।
प्रो. पॉलो फ्रेरे के अनुसार, “संवाद के बिना कोई सम्प्रेषण नहीं हो सकता और सम्प्रेषण के बिना कोई शिक्षा नहीं हो सकती” यही बात देश की धर्म, संस्कृति, शिक्षा व सोशल मीडिया यहाँ भी लागू होती है। यह बेहद जरूरी व कारगर भी है। वास्तव में सूचना के आदान-प्रदान, जनमत तैयार करते, विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों के लोगों को आपस में जोड़ते, भागीदार बनाने और नये ढंग से सम्पर्क करने में सोशल मीडिया एक सशक्त और बेजोड़ उपकरण के रूप में तेजी से उभर रहा है, इसके अलावा चूँकि इण्टरनेट का प्रकार कई गुना बढ़ गया है और वह अधिक स्थानीकृत बन गया है, अतः सोशल मीडिया अधिक-से-अधिक लोगों सम्बद्ध करने में भी सक्षम हो गया है।
शिक्षा के सन्दर्भ में सोशल मीडिया के प्रभाव को गहराई से नापने हेतु हमें शिक्षा के उद्देश्यों पर भी दृष्टिपात करना होगा और यह विचार करना होगा कि क्या सोशल मीडिया इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है या एक बाधा साबित होता है।
शिक्षा का प्रथम उद्देश्य- ज्ञानार्जन ज्ञान के एक या अधिक क्षेत्रों के गहरी समझ और उसमें निपुणता, जिसमें सृजनात्मकता नवाचार और मूल्य सम्बर्धन होता हो, उसे निश्चित रूप से सोशल मीडिया से लाभ होता है क्योंकि सोशल मीडिया पर जब हम किसी विषय पर चर्चा या बहस करते हैं तो हमें विभिन्न नागरिकों का ज्ञान होता है जिसके आधार पर हम अपने ज्ञान को परखते हैं। सोशल मीडिया की मल्टी प्रकृति हमें विभिन्न प्रकार से अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है। विचार मंचों पर बहस, चर्चाएँ अथवा किसी अध्ययन सामग्री के नीचे अपनी टिप्पणी अंकित करने से अनेक विषय हमारी समझ में अच्छी तरह आ जाते हैं। इस प्रकार सोशल मीडिया विवेचना और अभिव्यक्ति की शक्ति के विकास का भी एक प्रभावी मंच है व इसके साथ मिलकर अध्ययन की गतिविधियों को सोशल मीडिया के माध्यम से एक अलग ऊँचाई प्रदान की जा सकती है।
शिक्षा के सन्दर्भ में एक और प्रश्न विचारणीय बन जाता है कि पढ़ाई अकेले में अच्छी होती है या फिर एक सामाजिक अनुभव के तौर पर अधिक प्रभावशाली होती है ताकि अध्ययन व शिक्षण कार्यक्रम में सोशल मीडिया का उचित व सन्तुलित मिश्रण बनाया जाए जिसमें वार्तालाप व सहयोग से विषय को बेहतर ढंग से समझा जा सके। इस सन्दर्भ में सोशल मीडिया समझ की गहराई के आकलन के बेहतर तरीकों की सम्भावना भी पेश करता है। नवीन सन्दर्भों से ज्ञान का प्रयोग और रचनात्मक एवं अभिनव समाधानों की खोज, समझदारी को परखने की बेहतर पद्धति है।
शिक्षा मनोवैज्ञानिक हावर्ड गाईनर के अनुसार भी- “बेहतर समझ के लिए छात्रों को अपने ज्ञान को विविध रूप में व्यक्त करने का अवसर देना ज्यादा अच्छा होता है अतः सोशल मीडिया द्वारा विद्यार्थियों को अपने ज्ञान को प्रदर्शित करने का अवसर दिया जाना, शिक्षा को अपने ज्ञान को प्रदर्शित करने का अवसर दिया जाना, शिक्षा में सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव को दिखाता है।”
अब शिक्षा के दूसरे उद्देश्य अध्ययन केवल आनन्द के लिए को देखें तो इसके पीछे भी अभिप्रेरणा का निर्धारण सिद्धान्त ही काम करता है और यह बाह्य प्रेरणा सोशल मीडिया द्वारा आसानी से मिलती है क्योंकि शिक्षा में सोशल मीडिया को सम्मिलित करने से विद्यार्थी को बाहरी रूप से प्रेरित होने से आगे बढ़कर अंतरंग रूप में भी प्रेरित होने में मदद मिलती है। सोशल मीडिया की यह पहुँच विधायी की आत्मप्रतिष्ठा का भी प्रश्न बन जाती है और उसे लगता है कि कई लोग उसकी अभिव्यक्ति को देख रहे हैं तो उसकी प्रेरणा आसमान छूने लगती है तथा उसे सीखने व प्रदर्शन करने हेतु बाह्य रूप में प्रेरित होने के स्थान पर अन्तःकरण से प्रेरित होने का भी अवसर मिलता है।
अंततः यदि हम शिक्षा के तीसरे उद्देश्य स्वविकास, चरित्र निर्माण अथवा आन्तरिक परिपक्वता और शरीर, मन भावनाओं एवं अंतः शक्ति के बारे में स्वचेतना के सन्दर्भ में विचार करें तो सोशल मीडिया विद्यार्थी को यह सिखाता है कि कैसे कोई बात जोरदार ढंग से कही – जाए और दूसरों की सहायता की जाए ताकि वह स्वयं में बेहतर महसूस करे। इस शिक्षा का प्रभाव अभिभावकों द्वारा दी गई शिक्षा से अधिक गहरा होता है।
सोशल मीडिया शिक्षा के उद्देश्यों के लिहाज से हानिकारक की अपेक्षा लाभदायक अधिक है। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया में दूरदराज के क्षेत्रों में अलग-अलग पड़े शिक्षकों को आपस में जोड़ने की भी प्रबल सम्भावनाएँ हैं तथा अच्छी लगने वाले शिक्षकों का लोकप्रिय शिक्षक के रूप में बदलने की भी क्षमता है, जो लाखों करोड़ों लोगों को शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। माइकल सैंडेल न्याय शास्त्र पर एक पाठ्यक्रम चलाते हैं। कुछ समय पहले उनका पूरा पाठ्यक्रम www. justicchaward.org की वेबसाइट पर ऑनलाइन कर दिया गया। अब तक लाखों छात्रों ने इस पाठ्यक्रम को अपनाया है। इसी प्रकार सलमान खान की खान अकादमी एक और शिक्षा सम्बन्धी वेबसाइट है जिससे हर महीने 60 लाख से अधिक विद्यार्थी जुड़ते हैं और वे अब लोकप्रिय शिक्षक बन गये हैं। उनकी साइट पर वीडियो सहित तमाम शिक्षण सामग्री विभिन्न भाषाओं में निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है। महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि सोशल मीडिया आधारित शिक्षा में अपेक्षित परिणाम देने की क्षमता है और भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में ‘सभी के लिए शिक्षा’ जैसी चुनौती को अपनाकर कम खर्चीली शिक्षा उपलब्ध कराई जा सकती है। इस प्रकार सामाजिक मीडिया आज के परिवेश में बहुत लाभदायक एवं आकर्षक है।
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