सामाजिक सर्वेक्षण के अर्थ एवं परिभाषा को बताइये। सामाजिक सर्वेक्षण की प्रमुख विशेषतायें एवं उसकी सीमाओं का वर्णन कीजिये।
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सामाजिक सर्वेक्षण (Social Survey)
आँकड़ों के संकलन के रूप में सर्वेक्षण का एक लम्बा इतिहास रहा है। यद्यपि प्राचीन मिस्र में सर्वप्रथम इसका प्रयोग सूचना एकत्रित करने के ढंग के रूप में किया गया, फिर भी आधुनिक सामाजिक सर्वेक्षण आन्दोलन का प्रारम्भ 18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस में हुआ। 19वीं शताब्दी के अन्त में संगठित कार्यक्रमों के रूप में सामाजिक सर्वेक्षणों का विकास हुआ तथा इसमें अनुसंधान की निदर्शन प्रणालियों का प्रयोग 20वीं शताब्दी में ही प्रारम्भ हुआ। आज सामाजिक सर्वेक्षण का प्रयोग केवल जनमत के अध्ययनों तक ही सीमित न होकर बाजार सर्वेक्षण तथा संचार अनुसंधान में भी होने लगा है। आज इसका प्रयोग इतना अधिक और इतना विस्तृत ढंग से किया जाने लगा है कि इसकी परिभाषा देना तक कठिन कार्य हो गया है।
सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Social Survey)
‘सामाजिक सर्वेक्षण’ का अर्थ समझने से पहले ‘सर्वेक्षण’ का अर्थ समझ लेना अनिवार्य है। ‘सर्वेक्षण’ शब्द अंग्रेजी के शब्द ‘Survey’ का हिन्दी रूपान्तर है जिसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- (i) ‘Sur’ (Sor) जिसका अर्थ है ‘ऊपर’ (Over) तथा (ii) Veoir (Veeir) जिसका अर्थ है ‘देखना’ (See) अतः ‘सर्वेक्षण शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘ऊपर देखना’ है अर्थात् यह किसी सामाजिक घटना या परिस्थिति का ऊपरी निरीक्षण हैं ‘वेब्स्टर्स शब्दकोश’ (Webster’s Dictionary) में सर्वेक्षण का प्रयोग सही सूचना प्राप्त करने के लिए सरकारी रूप में किए जाने वाले एक आलोचनात्मक निरीक्षण अथवा विशेष दशाओं में किसी एक क्षेत्र का अध्ययन करने के रूप में किया गया है। परन्तु सामाजिक विज्ञानों में ‘सामाजिक सर्वेक्षण’ शब्द का प्रयोग विशिष्ट अर्थों में किया जाता है।
सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक अनुसंधान का एक ऐसा तत्व है जोकि बड़ी संख्या में व्यक्तियों के विश्वासों, मनोवृत्तियों, विचारधाराओं तथा व्यवहारों के अध्ययन, उन्हें प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का विश्लेषण एवं विवेचन करने के लिए तथ्यों के संकलन से सम्बन्धित है। “डिक्शनरी ऑफ सोशियोलोजी’ (Dictionary of Sociology) में फेयरचाइल्ड (Fairchild) ने एक समुदाय के सम्पूर्ण जीवन अथवा इसके किसी एक विशेष पक्ष, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन आदि से सम्बन्धित व्यवस्थित एवं पूर्ण तथ्य-विश्लेषण को ही सर्वेक्षण कहा है। विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक सर्वेक्षण की परिभाषाएँ निम्न प्रकार से दी हैं-
(1) ह्विटनी (Whitney) के अनुसार “आधुनिक सामाजिक विज्ञानों में सामाजिक सर्वेक्षण एक व्यवस्थित प्रयास है जिससे कि एक सामाजिक संस्था, समूह या क्षेत्र की वर्तमान दशा का विश्लेषण, निर्वचन एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है।”
( 2 ) वेल्स (Wells) के अनुसार- “श्रमिक वर्ग की निर्धनता तथा समुदाय की प्रकृति और समस्याओं सम्बन्धी तथ्य खोजने वाला अध्ययन ही सामाजिक सर्वेक्षण है।”
( 3 ) एब्राम्स (Abrams) के अनुसार “सामाजिक सर्वेक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समुदाय के गठन और क्रियाओं के सामाजिक पक्षों के बारे में गणनात्मक तथ्यों का संकलन किया जाता है।”
( 4 ) बर्गेस (Burges) के अनुसार- “किसी समुदाय का सर्वेक्षण सामाजिक विकास का रचनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु उसकी दशाओं एवं आवश्यकताओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक सर्वेक्षण आँकड़ों के संकलन “का एक ढंग है परन्तु इसकी परिभाषाएँ सामाजिक घटनाओं के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त करने, व्याधिकीय समस्याओं के अध्ययन तथा समाज सुधार की योजनाओं का कार्यक्रम बनाने के रूप में दी गई हैं। सामाजिक सर्वेक्षण का एक निश्चित क्षेत्र होता है। यह वस्तुतः सामाजिक जीवन के किसी पक्ष का सूक्ष्म और सुव्यवस्थित अध्ययन है जिसमें उसके लिए अपेक्षित जानकारी तथा आँकड़ों का संकलन किया जाता है ताकि अध्ययन की समस्या का विश्लेषण करके उसके समाधान के उपाय खोजे जा सकें।
सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति (Nature of Social Survey)
सामाजिक सर्वेक्षण के बारे में विभिन्न विद्वानों ने जो परिभाषाएँ दी हैं, उनमें इसकी प्रकृति का भी पता चलता है। सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति को इसकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) तात्कालिक समस्याओं से सम्बन्धित (Related with immediate problems) – सामाजिक सर्वेक्षण सामान्यतः तात्कालिक सामाजिक समस्याओं एवं जीवन की दशाओं से सम्बन्धित होते हैं। इनके अन्तर्गत विविध प्रकार की समस्याओं एवं जीवन की दशाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
(2) निश्चित भौगोलिक क्षेत्र (Definite geographical area)- सामाजिक सर्वेक्षण का एक सीमित एवं निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है जोकि एक नगर या इसका कुछ भाग, गाँव, समूह, मुहल्ला या कोई अन्य समुदाय हो सकता है।
( 3 ) रचनात्मक आधार (Constructive basis) – सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य सामाजिक अनुसन्धान के लिए रचनात्मक कार्यक्रम तैयार करना अथवा विभिन्न सामाजिक समस्याओं के समाधान का उपाय खोजना है।
सामाजिक सर्वेक्षण के गुण या विशेषताएँ (Merits of Social Survey)
सामाजिक सर्वेक्षण के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं-
(1 ) परिमाणात्मक सूचनाएँ (Quantitative data)- सामाजिक सर्वेक्षण विस्तृत सामग्री के सम्बन्ध में परिमाणात्मक सूचनाएँ प्रदान करने का मुख्य स्रोत है जिसमें सांख्यिकीय प्रविधियों को भी विस्तार से लागू किया जा सकता है।
(2) गुणात्मक सूचनाएँ (Qualitative data)- सामाजिक सर्वेक्षण परिमाणात्मक सूचनाओं के साथ-साथ गुणात्मक सूचनाओं के संकलन का भी एक अति उपयोगी साधन है।
( 3 ) वैज्ञानिक परिशुद्धता (Scientific accuracy) – सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त परिणाम एवं निष्कर्ष सूक्ष्म, उपयुक्त और विश्वसनीय होते हैं क्योंकि इसमें वैज्ञानिकता का गुण पाया जाता है अर्थात् सम्पूर्ण सर्वेक्षण वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जाता है।
( 4 ) वस्तुनिष्ठता (Objectivity) – सामाजिक सर्वेक्षण में क्योंकि सामान्यतः अनेक सर्वेक्षणकर्ता कार्यरत होते हैं अतः अध्ययन को उनके व्यक्तिगत विचारों एवं मनोभावनाओं द्वारा प्रभावित होने या किसी प्रकार का पक्षपात होने की सम्भावना बहुत कम होती है। वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करने तथा विषय-वस्तु से प्रत्यक्ष एवं निकट का सम्पर्क होने के कारण सर्वेक्षण द्वारा एकत्रित सूचनाएँ अधिक वस्तुनिष्ठ होती हैं।
( 5 ) उपकल्पना का निर्माण एवं परीक्षण (Hypothesis formulation and testing)-सामाजिक सर्वेक्षण उपकल्पना या प्राकल्पना के निर्माण में सहायता देते हैं तथा इतना ही नहीं अपितु इससे सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करके उनकी प्रामाणिकता की जाँच करने में भी सहायक होते हैं। अधिकांश सर्वेक्षणों में आँकड़ों के संकलन द्वारा उपकल्पनाओं का परीक्षण करने का प्रयास किया जाता है।
सामाजिक सर्वेक्षण के दोष (Demerits of Social Survey)
सामाजिक सर्वेक्षण यद्यपि सामाजिक अनुसंधान का एक उपयोगी एवं मूल तत्व है तथा इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। तथापि सामाजिक सर्वेक्षण को भी पूरी तरह से दोषरहित नहीं माना जाना चाहिए। वास्तव में, एक ओर जहाँ सामाजिक सर्वेक्षण के कुछ गुण हैं तो वहीं दूसरी ओर इसके कुछ दोष भी हैं। सामाजिक सर्वेक्षण में निम्नलिखित प्रमुख दोष पाए जाते हैं-
( 1 ) अमूर्त घटनाओं का अध्ययन असम्भव (Incapable of studying abstract events) – सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा केवल अवलोकनीय घटनाओं का ही अध्ययन संभव हो पाता है, हम इससे अमूर्त घटनाओं या किसी प्रकार की आन्तरिक सूचना प्राप्त नहीं कर सकते हैं। विचारों, विश्वासों एवं व्यवहारों की जटिलता को समझने में अनेक विद्वानों ने सामाजिक सर्वेक्षणों को अनुपयुक्त बताया है।
( 2 ) अत्यधिक समय एवं धन (Time and money consuming) – सामाजिक सर्वेक्षण हेतु अत्यधिक समय एवं धन की आवश्यकता होती है। विविध प्रकार के साधनों जैसे (अनुसूचियों, प्रश्नावलियों, साक्षात्कार, सांख्यिकीय विश्लेषण आदि) के प्रयोग के कारण सामाजिक सर्वेक्षण में पैसा ही अधिक खर्च नहीं होता अपितु अनेक सर्वेक्षण कई-कई साल तक चलते रहते हैं।
( 3 ) निदर्शन त्रुटि (Sampling error) – सामान्यतः निदर्शन सर्वेक्षणों में निदर्शन त्रुटि की संभावना अधिक होती है क्योंकि बड़े एवं व्यापक स्तर पर होने वाले सर्वेक्षणों में निदर्शन की विश्वसनीयता की जाँच करना एक कठिन कार्य होता है।
( 4 ) अवास्तविक सूचनाएँ (Unreliable data) – सामाजिक सर्वेक्षण के अन्तर्गत यह सम्भावना अधिक रहती है कि उत्तरदाता अपनी वास्तविक स्थिति से हटकर समाज द्वारा स्वीकृत मूल्यों एवं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए यथार्थ सूचनाएँ न देकर गलत सूचनाएँ दे। सर्वेक्षण में व्यक्तिगत भिन्नता के कारण भी निष्कर्षों में पक्षपात हो सकता है।
( 5 ) अध्ययन का सीमित क्षेत्र (Limited size of study)- सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा किए जाने वाले अध्ययनों का क्षेत्र सीमित होता है, जिससे कई बार सामान्यीकरण करना तक कठिन हो जाता है। किसी एक सर्वेक्षण द्वारा हम किसी समस्या या समूह के एक ही पहलू या भाग का अध्ययन कर सकते हैं।
( 6 ) पर्याप्त ज्ञान एवं प्रशिक्षण (Sufficient knowledge and training) – सामाजिक सर्वेक्षण के संचालन के लिए पर्याप्त ज्ञान एवं विशेषीकरण की आवश्यकता होती है। यदि बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण किया जा रहा है तो उनके (सर्वेक्षकों के) प्रशिक्षण की समस्या सामने आ सकती है क्योंकि प्रशिक्षित सर्वेक्षक बहुत कम मिलते हैं।
( 7 ) सूचनाएँ सँभालने की समस्या (Problem of handling data) – सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा काफी मात्रा में सूचनाओं या आँकड़ों का संकलन किया जाता है परन्तु संकलन करने के पश्चात इन्हें सँभालना तथा इनका समुचित प्रयोग करना एक कठिन कार्य हो जाता है। यदि सूचनाएँ गुणात्मक प्रकृति की हैं तो यह कार्य और भी कठिन हो जाता है।
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