खेलों के कितने प्रकार हैं ? वर्णन कीजिए।
Contents
खेलों के प्रकार
खेलों को मुख्यतः दो श्रेणियों में बाँटा गया है-
- सक्रिय खेल,
- मनोरंजन अथवा असक्रिय खेल।
(1) सक्रिय खेल
सक्रिय खेल वह खेल हैं, जिनमें बालक को आनन्द स्वयं अपनी क्रियाओं के परिणामस्वरूप आता है। बालक खेलों के माध्यम से आनन्द पाते हैं, अतः अधिकांशतः सक्रिय खेल खेलना पसन्द करते हैं। किन्तु सक्रिय खेलों को कुछ तथ्य प्रभावित करते हैं, जैसे-
1. सक्रिय खेलों में साथियों की आवश्यकता पड़ती है तथा साथियों द्वारा स्वीकृति से बालक को सक्रिय खेलों से मिलने वाला आनन्द प्रभावित होता है।
2. लड़कियाँ लड़कों की तुलना में कम सक्रिय खेल पसन्द करती हैं।
3. सक्रिय खेलों का बालक के स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है। स्वस्थ बालक अधिक सक्रिय खेल खेलना पसन्द करते हैं। दुर्बल एवं बीमार बच्चों की तुलना में स्वस्थ बालक अधिक सक्रिय खेलों द्वारा सन्तुष्टि प्राप्त करते हैं। 4. बालक का वातावरण भी सक्रिय खेल के प्रकार को प्रभावित करता है। देश, परिस्थिति, मौसम खेलों के प्रकार को तय करता है। जो खेल ठण्डे देश में अथवा ठण्डे मौसम में खेले जाते हैं, वह गर्म मौसम में नहीं खेले जा सकते हैं।
5. सक्रिय खेलों को बालक की बुद्धिमता भी प्रभावित करती है। सामान्य से अधिक एवं कम बुद्धिमान बालक उन
बालकों की तुलना में कम सक्रिय खेल पसन्द करते हैं, जो सामान्य स्तर के आस-पास हैं। 6. अधिकांश सक्रिय खेल, खेल उपकरणों के बिना नहीं खेले जाते, अतः जिन बच्चों के पास खेल के साधन एवं उपकरण (खिलौने) कम होते हैं, वे सक्रिय खेल कम खेलते हैं।
विभिन्न प्रकार के सक्रिय खेल निम्नलिखित हैं-
1. कल्पनात्मक खेल – जरसील्ड के अनुसार, 1 वर्ष का बालक अभिनय करना सीख जाता है। जिस वातावरण में वह रहता है, उसका बालक के खेलों पर प्रभाव पड़ता है तथा उसे बालक अपने खेलों में प्रतिविम्बित करता है। कल्पनात्मक खेलों में परिवार को खेलों में उतारना-माता-पिता की कल्प बच्चों के सम्बन्ध कल्पित गुड़िया घर से स्थापित करना, भावी उत्तरदायित्वों करना, स्वयं को सताने वाले को दूसरे द्वारा सताये जाने का दृश्य प्रस्तुत करना ।
2. संग्रहात्मक खेल (Collective play) – जैसे-जैसे बालक वातावरण से अधिक प्रभावित होता जाता है, वैसे-वैसे उसे आसपास की सुन्दर, आकर्षक वस्तुएँ प्रभावित करने लगती है तथा वह इन्हें संग्रह कर लेना चाहता है। इसी प्रेरणा से जुड़े हुए हैं संमहात्मक खेल—सीपी, पत्थर के चिकने टुकड़े, सिगरेट, माचिश की खाली डिब्बियाँ, रंगीन चाक, डाक टिकट, रेल-बस की टिकट, विजिटिंग कार्ड, रंगीन चित्र आदि सामान्यतः बालक एकत्रित करते पाये जाते हैं। इन संग्रहों की हिफाजत, गिनती आदि में उन्हें सन्तुष्टि एवं आनन्द मिलता है। यह संमहात्मक खेलों की प्रवृत्ति 5-6 वर्ष के बालकों में अधिक पाई जाती है। यह प्रकृति किशोरावस्था तक बालकों में देखी जाती है। देश-विदेश की डाक टिकटें, विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय रिकार्ड्स बालकों की रुचिकर संग्रहात्मक खेल क्रियाएँ हैं।
3. शारीरिक खेल (Physical play) – जिन खेलों में सामाजिक गुणों से अधिक शारीरिक क्रियाओं का महत्व होता है; उन्हें शारीरिक खेल कहते हैं। ये खेल शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए, माँसपेशियों के सौष्ठव के लिए एवं शरीर के क्रियात्मक विकास के लिए अधिक उपयोगी हैं; जैसे—कुश्ती, भाला फेंकना, दौड़-कूद आदि ।
4. स्वतन्त्र खेल (Free spontaneous play) – स्वतन्त्र खेलों से तात्पर्य है कि वह खेल जिसमें बालक कुछ भी करने को स्वतन्त्र रहता है, उस पर समय की, नियमों की बन्दिश नहीं रहती। स्वतन्त्र खेल प्रायः उन बालकों में अधिक लोकप्रिय हैं जो कुछ नया करने के इच्छुक होते हैं। बालक अपने आरम्भिक माहों में विभिन्न वस्तुओं, खिलौनों में आवाज, रंग व स्थान सम्बन्धी खोज करने को आतुर रहता है। धीरे-धीरे इन खोजों का स्थान खिलौने व उनसे सम्बन्धित खेल ले लेते हैं। ये खेल बालक वाले खेलों के नाम से जाने जाते हैं, जैसे-गुड़िया-गुड्डा, खिलौने से खेलना आदि।
5. रचनात्मक खेल (Creative play) – रचनात्मक खेल वे सक्रिय खेल हैं, जिनसे बालक कुछ नया सृजन करने का प्रयास एवं अभ्यास करता है। आरम्भिक बाल्यकाल से ही बालक में रचनात्मक प्रकृतियाँ विकसित होने लगती हैं। वस्तुत: रचनात्मक खेल कल्पनात्मक खेलों से काफी समानता रखते हैं, क्योंकि रचनात्मकता कल्पना शक्ति द्वारा प्रभावित होती है। आरम्भ में वस्तुओं को एक के ऊपर एक लगाना, ब्लाक जोड़कर, आकृतियाँ बनाना आदि रचनात्मक खेल बालक खेलता है। धीरे-धीरे मिट्टी से खिलौने, बर्तन बनाना, कागज के फूल, अन्य आकृतियाँ बनाना, माला बनाना आदि रचनात्मक क्रियाएँ खेल के रूप में बालक स्वीकार कर लेता है।
बालिकाएँ गुड़िया बनाना, उनका घर बनाना, उनके कपड़े सिलना आदि रचनात्मक खेल अधिक खेलती हैं। प्रायः रचनात्मक एवं कल्पनात्मक खेल एक साथ भी खेले जाते हैं।
6. संगठित खेल (Organized play) – संगठित होकर समूह में खेलने वाले खेल संगठित खेल कहलाते हैं। उत्तर बाल्यकाल से यह खेल बालकों में अधिक प्रचलित होते जाते हैं। इन खेलों में सामान्यतः अधिकांश मैदान में खेलने वाले खेल आ जाते हैं; जैसे—खो-खो, फुटबाल, हॉकी आदि। इन खेल के अपने नियम एवं संगठन होते हैं प्राय: ये अपने निर्मित फ्रेमवर्क में ही खेले जाते हैं। संगठित खेल किशोरावस्था तक खेले जाते हैं। टीम के अन्दर खेलना इन खेलों की विशेषता है।
(II) मनोरंजन अथवा असक्रिय खेल (Passive Play of Amusement) –
ये वह खेल हैं, जिनमें बालक कम से कम शारीरिक गतिविधियाँ करके दूसरों की क्रियाओं के परिणामस्वरूप आनन्द पाता है। यह क्रिया क्योंकि बालक को सुखद आनन्द की अनुभूति प्रदान करती है, यह भी खेल के अन्तर्गत आती है; जैसे-
- टेलीफिल्म देखना,
- कार्टून देखना,
- वीडियो गेम्स खेलना, देखना,
- संगीत सुनना,
- कहानी, कॉमिक्स पढ़ना,
- खेल का प्रदर्शन देखना।
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