नकारात्मक उदारवाद पर प्रकाश डालिए। अथवा जॉन लॉक एवं एडम स्मिथ के नकारात्मक उदारवाद का वर्णन कीजिए। अथवा बेंथम के नकारात्मक उदारवाद पर प्रकाश डालिए।
उदारवाद का जो रूप प्रारम्भ में इंग्लैंड में विकसित हुआ, उसे चिरसम्मत या नकारात्मक उदारवाद की संज्ञा दी जाती है। इस उदारवाद के अन्तर्गत व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य की नकारात्मक भूमिका पर बल दिया जाता है। अत: यह नकारात्मक उदारवाद की श्रेणी में आता है। इसके विकास में जॉन लॉक (1632-1704), एडम स्मिथ (1723-90), जरमी बेंथम (1748-1832) और हर्बर्ट स्पेंसर (1820-1903) का विशेष योगदान रहा है।
लॉक के विचार- जॉन लॉक 17वीं शताब्दी का प्रसिद्ध अंग्रेज विचारक था उसे उदारवाद का जनक माना जाता है। उदारवाद के विकास में जॉन लॉक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए एम. सेलिगर ने ‘द लिबरल’ पॉलिटिक्स ऑफ जॉन लॉक’ (जॉन लॉक की उदारवादी राजनीति) के में लिखा है कि “जॉन लॉक पहला ऐसा राजनीति-दार्शनिक था जिसने आधुनिक उदारवाद को चिंतन की एक विस्तृत और प्रभावशाली पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया। ” सी.बी. मैक्फर्सन ने ‘द पॉलिटिकल थ्योरी ऑफ पोजैसिव इंडिविजुआलिज्म’ में लिखा है कि, “लॉक वास्तव में अंग्रेजी उदारवाद का मूल स्त्रोत था।” लॉक के सारे विचार उदारवाद की मुख्य-मुख्य मान्यताओं के साथ निकट से जुड़े हैं, जैसे कि,
(क) वह मनुष्य को तर्कशील या विवेकशील प्राणी मानता था; (ख) वह इतिहास के बजाय मनुष्य की तर्कबुद्धि या विवेक को सारे चिंतन का आधार मानता था; (ग) वह व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों पर बल देता था; उसने ‘जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति’ के अधिकार को प्राकृतिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी है; (घ) वह निजी सम्पत्ति को व्यक्ति के अधिकारों का सार तत्व मानता था जो प्रकृति के नियम पर आधारित थे; (ङ) वह अनुबंध या समझौते को राजनीतिक सत्ता का न्यायिक आधार मानता था; (च) वह नागरिक समाज को ऐसा कृत्रिम उपकरण मानता था जो मनुष्यों की सुविधा के लिए बनाया गया है; और (छ) वह नागरिक सत्ता को अखंड या अविभाज्य नहीं मानता था, बल्कि प्रचलित राजनीतिक सत्ता के प्रति विरोध के अधिकार को मान्यता देता था।
राजनीतिक सत्ता का स्वरूप : अपनी प्रसिद्ध कृति ‘टू टीटिजेस ऑफ सिविल गवर्नमेंट’ (नागरिक शासन पर दो निबंध) में लॉक ने राजशक्ति के दैवी अधिकार के सिद्धान्त का खंडन किया जिसे सर रॉबर्ट फिल्मर जैसे विचारकों ने उचित ठहराया था। इसके विपरीत लॉक ने यह तर्क दिया कि सरकारी सत्ता का स्वरूप एक न्यास या धरोहर के तुल्य है। सरकार ऐसा संगठन है जिसे कोई समुदाय अपनी पसंद से चुनता है। अतः सरकार स्वयं समुदाय के प्रति निष्ठा से बंधी होती है, और उसे समुदाय से प्राप्त दिशा-निर्देशों के अनुरूप अपना कार्य करना होता है। राजनीतिक सत्ता किसी दैवी विधान के अन्तर्गत स्थापित नहीं की गई है। सरकार का निर्माण करने के बाद समुदाय निश्चित होकर सो नहीं जाता बल्कि उसकी निगरानी करता रहता है। दूसरे शब्दों में, समुदाय ऐसा गृहस्वामी है जो घर की रखवाली के लिए पहरेदार रखता है; फिर वह स्वयं जाग-जागकर यह देखता रहता है कि कहीं वह पहरेदार सो तो नहीं गया है।
लॉक के अनुसार, राजनीतिक सत्ता की उत्पत्ति नागरिक समाज से होती हैं। इस समाज की रचना उन लोगों से होती है जो विवेकशील हैं, क्योंकि वे अपने हित को समझते हैं। यदि उन्हें स्वतंत्र रहने दिया जाए तो वे अपना हित-साधन करने में समर्थ होंगे। अतः मनुष्यों की स्वतंत्रता को यम रखना राज्य का कर्तव्य है। फिर मनुष्य मूलतः विवेकशील और सामाजिक प्राणी है, क्योंकि वे प्रकृति के नियम के अनुसार मिलजुल कर रह सकते हैं। प्रकृति के नियम उनकी तर्कबुद्धि में निहित हैं, या फिर तर्कबुद्धि का प्रयोग करके उनका पता लगा सकते हैं। इसके लिए देवी संदेश का सहारा लेने की जरूरत नहीं है। मनुष्यों को सामाजिक जीवन में बांधने के लिए यह जरूरी नहीं कि कोई प्रभुसत्ताधारी उन पर अपने नियम लागू करे। इस तरह लॉक ने राज्य या शासन के पैतृक आधार का खंडन किया है जिसके अन्तर्गत यह माना जाता था कि व्यक्ति अपना हित समझने और उसकी सिद्धि करने में असमर्थ है, अतः उसे अपना जीवन प्रभुसत्ताधारी के मार्ग दर्शन में छोड़ देना चाहिए। इसके विपरीत लॉक ने स्वयं प्रभुसत्ताधारी को समुदाय का सेवक बना दिया है।
एडम स्मिथ के विचार- एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का जनक माना जाता हैं उसने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘वैल्थ ऑफ नेशन्स’ में अंहस्तक्षेप की नीति और व्यक्तिवाद का प्रबल समर्थन किया है।
आर्थिक मानव की संकल्पना- एडम स्मिथ ने आर्थिक मानव का विचार प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि प्रत्येक व्यक्ति में व्यापार की सहज प्रवृत्ति पाई जाती है ताकि वह अधिक-से-अधिक लाभ अर्जित कर सके। उद्यमी व्यक्ति की स्वार्थ भावना सामान्य हित को बढ़ावा देती है। इससे सरकार, व्यापारी और कामगार तीनों को फायदा होता है, और राष्ट्र की संपदा में वृद्धि होती है।
प्राकृतिक स्वतंत्रता की संकल्पना- एडम स्मिथ ने उद्योग और व्यापार की स्वतंत्रता को प्राकृतिक स्वतंत्रता का नाम दिया है और राष्ट्रीय समृद्धि के लिए इसे अनिवार्य माना है। उसने तर्क दिया है कि व्यापारी स्वयं अपने हित को जितनी अच्छी तरह समझता है, उतनी अच्छी तरह उसे सरकार नहीं समझ सकती। अतः सरकार को उद्योग-व्यापार के मामले में अहस्तक्षेप की नीति का अनुसरण करना चाहिए।
सरकार के कार्य : इस तरह सरकार के तीन ही कार्य रह जाते हैं :-
(क) विदेशी आक्रमण से राष्ट्र की रक्षा
(ख) न्याय का प्रवर्त्तन, अर्थात् समाज के प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के अत्याचार से संरक्षण प्रदान करना; और
(ग) सार्वजनकि निर्माण के कार्य और ऐसी संस्थाओं का रख-रखाव जिन्हें स्थापित करने के लिए निजी व्यापारी तैयार नहीं होंगे क्योंकि इनमें जितना खर्च आएगा, उतना लाभ नहीं होगा।
बेंथम के विचार- इंग्लैंड में ही उपयोगितावाद के प्रवर्त्तक बेंथम ने लॉक के प्राकृतिक अधिकारों के काल्पनिक सिद्धान्त का खंडन करते हुए उपयोगितावाद के अनुभवमूलक आधार पर उदारवादी – व्यक्तिवादी दृष्टिकोण की पुष्टि की।
उपयोगिता की संकल्पना- बेंथम ने तर्क दिया कि पूर्ण अधिकार पूर्ण प्रभुसत्ता और पूर्ण न्याय जैसी संकल्पनाएं सामाजिक जीवन के यथार्थ से मेल नहीं खार्ती। मानव जीवन के मामलों में केवल एक ही पूर्ण मानदंड लागू होता है, अर्थात् पूर्ण इष्ट-सिद्धि अत: ‘सार्वजनिक नीति को एक ही कसौटी पर कसना चाहिए : ‘अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख’
बेंथम ने प्राचीन यूनानी दार्शनिक एपीक्यूरस के इस विचार को नए संदर्भ में दोहराया के कि मनुष्य को ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे वह अपने सुख को बढ़ा सके और दु:ख से बच सके। सुखवाद के इस विचार का समर्थन करते हुए बेंथम ने लिखा कि प्रकृति ने मनुष्य को दो शक्तिशाली स्वामियों के नियंत्रण में रखा है, जिनके नाम हैं सुख और दुःख। मनुष्य सदैव सुख को पाना चाहता है और दुःख से बचना चाहता है। जो बात सुख को बढ़ाती है और दुःख को रोकती है या कम करती है, उसे उपयोगिता कहा जाता है। सामाजिक समझौते और सामान्य इच्छा के सिद्धान्त का खंडन करते हुए बेंथम ने यह तर्क दिया कि समुदाय का हित उसके पृथक्-पृथक् सदस्यों के हितों का जोड़ होता है। अत: किसी कार्रवाई का मूल्यांकन इस प्रकार करना चाहिए: सबसे पहले यह देखना चाहिए कि उससे प्रभावित होने वाले व्यक्तियों को उससे कितना दुःख और कितना सुख पहुँचेगा? इन दोनों की तुलना करने पर जिस कार्रवाई से मिलने वाले सुख का पलड़ा सबसे भारी हो, वही सबसे उपयुक्त होगी। इस तरह बेंथम के विचार से सुख और दुःख कोई काल्पनिक मानदंड नहीं हैं, बल्कि बाकायदा नाप-तोल के विषय हैं। बेंथम ने भिन्न-भिन्न प्रकार के सुखों में गुणात्मक अंतर का खंडन करते हुए उनमें केवल परिमाणात्मक अंतर को मान्यता दी है।
विधि-निर्माण के सिद्धान्त- बेंथम के अनुसार कानून बनाने वालों को केवल वही कानून बनाने चाहिए जो ‘अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख’ को बढ़ावा देते हों। सरकार का कार्य भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करना है। ‘अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख’ का हिसाब लगाते समय प्रत्येक व्यक्ति को एक इकाई मानना चाहिए, किसी को एक से अधिक नहीं मानना चाहिए। इस तरह बेंथम ने मनुष्यों की समानता पर बल दिया है। प्रत्येक व्यक्ति को समान स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए: केवल सामान्य कल्याण के विचार से स्वतंत्रता पर कोई प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
सरकार का कार्य- चूंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने हित का सर्वोत्तम निर्णायक है, इसलिए सरकार का मुख्य कार्य ऐसे कानून बनाना है जो लोगों की स्वतंत्र गतिविधियों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें सामान्य हित को ध्यान में रखते हुए लोगों पर उचित प्रतिबंध लगाना और अपराधियों को दंड देना भी सरकार का कार्य है। परन्तु कानून का पालन करने वाले नागरिकों की गतिविधियों में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस तरह बैथम ने अहस्तक्षेप की नीति और व्यक्तिवाद का समर्थन किया हैं।
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