राजनीति विज्ञान / Political Science

फांसीवाद की आलोचना | Critique of fascism in Hindi

फांसीवाद की आलोचना | Critique of fascism in Hindi
फांसीवाद की आलोचना | Critique of fascism in Hindi
फांसीवाद की आलोचना कीजिए।

फांसीवाद की प्रमुख आलोचनायें निम्नवत की जाती है-

(1) असंगत विचारधारा- राजनीतिशास्त्री लास्की ने फासिस्टवाद की आलोचना करते हुये बताया है कि यह ऐसा सिद्धान्त या मत है जिसकी कोई निश्चत और संगत विचारधारा नहीं है। यही नहीं इसका कोई निश्चित स्वतन्त्र दर्शन भी नहीं है। इसकी मान्यताओं का कोई आधार प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यह आन्दोलन पहले और सिद्धान्त बाद में है। यह मत अपने विरोधियों अर्थात साम्यवाद, उदारवाद की आलोचना का एक रूप है। इसका अपना कोई निश्चित सिद्धान्त और दर्शन नहीं है।

( 2 ) प्रत्यक्ष रूप में मार्क्सवाद की आलोचना और अप्रत्यक्ष रूप में उसकी स्वीकृति- फासीवाद प्रतयक्ष रूप में तो मार्क्सवाद की आलोचना करता है, परन्तु दूसरी ओर उसी के मत का समर्थन दूसरे ढंग से करता है। उदाहरण के लिये यदि मार्क्सवादी श्रमिकों को अन्तर्राष्ट्रीय बन्धुत्व का पाठ पढ़ाते थे तो फासिस्टवादी अपने देश के मजदूरों को आक्रामक राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाते थे।

(3 ) फासीवाद उदारवादी विचारों का विरोध करता है- फासीवाद में राज्य सर्वोपरि है। इसमें व्यक्ति को महत्व नहीं दिया जाता है। इसमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता नहीं है। विचार और भाषण की स्वतन्त्रता नहीं है। दर्शन, कला, समाचार पत्र, शिक्षा संस्थान, साहित्य पर राज्य का अधिकार होता है। अन्य राजनीतिक दलों पर रोक है। सारी सत्ता फासिस्ट तानाशाह और उसके गुट के लोगों के हाथ में होती है। तानाशाह देवता बन जाता है। उदारवादी संस्थानों को नष्ट कर दिया जाता है।

( 4 ) फासीवाद अवसरवाद पर आधारित है- अवसरवाद कोई अच्छा सिद्धांत नहीं कहा जा सकता, परन्तु फासीवाद का यही आधार है। फासीवाद का मुख्य आधार रहा है काम निकालना, अपने किये गये कार्यों का औचित्य सिद्ध करना तथा आगे आने वाली नयी परिस्थिति का सामना करना और परिस्थितियों के अनुसार अपने सिद्धान्तों और विचारों में हेर फेर करना। अवसर का लाभ उठाना फासीवाद जानता है। अतः यह अवसरवादी सिद्धान्त है।

(5) पूँजीवाद का विरोध करते हुए पूँजीवाद का समर्थन- लास्की का यह भी आक्षेप है कि फासिस्ट अर्थ-व्यवस्था में उत्पादन का आधार मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति है। अतः फासीवाद का लक्ष्य पूँजीवाद है। पं. जवाहर लाल नेहरू ने ठीक ही कहा था कि ‘पूँजीवादी विरोधी नारों के बावजूद फासीवाद की पूँजीपतियों से साँठ-गाँठ रहती है। बड़े पूँजीपति रुपये-पैसे से इसकी मदद करते हैं; क्योंकि उनको इससे मुनाफा बढ़ने की उम्मीद रहती है। यह कथन सच है कि ‘फासीवाद नाश की अवस्था में पहुॅचा हुआ पूँजीवाद है।’

( 6 ) फासीवाद विश्व शान्ति और विश्व बन्धुत्व का विरोधी है- चूँकि फासीवाद विस्तारवादी, साम्राज्यवादी और अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोधी सिद्धान्त है अतः यह विश्व शान्ति तथा विश्व बन्धुत्व की भावना का उन्मूलन करता है। यह मानवजाति के लिए अभिशाप है। यह युद्ध का समर्थक होने के नाते विश्व को युद्ध के अग्निकुण्ड में डाल सकता है। निश्चित है कि युद्ध से न राष्ट्र का कल्याण होता है, न विश्व का।

(7) लोकतंत्र का विरोध और अधिनायकवाद का समर्थन- फासीवाद लोकतन्त्र का विरोध करके मानव मूल्यों यथा समानता, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व का उन्मूलन करना चाहता है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता अधिनायक को समर्पित हो जाती है। इसकी दृष्टि में यदि लोकतन्त्र अपनी कमियों के कारण उपयुक्त नहीं है तो अधिनायकवाद या तानाशाही अपनी किस अच्छाई के लिये उपयुक्त है? अधिनायकतन्त्र में तो राज्य और मानव समाज की स्थिति एक कैदी के समान हो जाती है।

(8) फासिस्टवाद का कोई दर्शन नहीं है- अन्त में लास्की ने फासीवाद के विरोध में दो महत्वपूर्ण बातें बतायी हैं। प्रथम यह कि फासीवाद का तार्किक खंडन करना अनावश्यक प्रतीत होता है क्योंकि यह गर्व सहित अपने अबुद्धिवादी होने की घोषणा करता है। दूसरा यह कि इसका कोई दर्शन नहीं है। लास्की के अनुसार फासीवाद ‘कुछ अवसरवादी वक्तव्यों का असंगत ढेर है।’ आगे कहते हैं— ‘फासिस्टवाद के दर्शन की शोध में बहुत परिश्रम किया गया है। यह प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुआ है। फासीवाद आतंक पर आश्रित शक्ति है।’ पुनः कहते हैं— ‘यदि फासीवाद का कोई आधार तत्व है तो वह कवेल यही कि शक्ति ही एक मात्र सर्वगुण है और उसे सुरक्षित रखने के लिये या उसकी वृद्धि करने के लिये जिन बातों की आवश्यकता हो उन्हें ही नैतिक मूल्य माना जा सकता है।”

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Anjali Yadav

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