राजनीति विज्ञान / Political Science

राष्ट्रवाद का अर्थ एंव राष्ट्रवाद के रूप | Meaning and forms of nationalism in Hindi

राष्ट्रवाद का अर्थ एंव राष्ट्रवाद के रूप | Meaning and forms of nationalism in Hindi
राष्ट्रवाद का अर्थ एंव राष्ट्रवाद के रूप | Meaning and forms of nationalism in Hindi

राष्ट्रवाद का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी रूपों का वर्णन कीजिए।

आधुनिक समय में “राष्ट्रवाद’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1798 में एक जर्मन विचारक आदम विशॉट ने किया। 1789, 1830 और 1848 की फ्रांसीसी क्रान्तियों के सन्दर्भ में वह 19वीं शताब्दी की वैधानिक और राजनीतिक विचारधारा का अभिन्न अंग बन गया।

राष्ट्रवाद दो शब्दों का योग है— राष्ट्र + वाद का अर्थ जाति धर्म संस्कृति, भाषा, परम्पराओं आर्थिक, भौगोलिक एवं राजनीतिक एकता से है। “वाद” का अर्थ विचार या विचार समूह अथवा एक समान विचारों की संगठित अभिव्यक्ति है। इस प्रकार राष्ट्रवाद भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति आर्थिक, राजनीतिक एकता के विचार या विचारों के समूह को कहते हैं दूसरे शब्दों में जब एक क्षेत्र में निवास करने वाले, एक संस्कृति वाले, एक प्रकार के भाषा-भावी एवं समान परम्परा वाले व्यक्ति राजनीतिक स्वरूप प्राप्त करने हेतु संघर्षरत होते हैं तो वह राष्ट्रवाद कहलाता है। इस दृष्टि से राष्ट्रवाद से अभिप्राय उस भावना से है जो एक राष्ट्र के निवासियों को एकता के सूत्र में आबद्ध करती है तथा उनको दूसरे राष्ट्रों से भिन्न करती है वस्तुतः राष्ट्रीयता की भावना है। जिसके द्वारा राष्ट्र प्रेम की अभिव्यक्ति होती है।

राष्ट्रवाद एक मनोदशा है जिसमें व्यक्ति की सर्वोच्च निष्ठा अपने राष्ट्र राज्य के प्रति होती है इसी प्रकार यह एक मानसिक अवस्था व स्थिति है। जिसमें कुछ लोग अपनी समान संस्कृति सहित निकट सहयोग से एक निश्चित क्षेत्र में रहते हैं तथा अपनी विशेष स्थिति व एक सामान्य भाग्य के प्रति समान आस्था रखते हैं।

हान्स कोन के अनुसार, “राष्ट्रवाद वह विशेष मन स्थिति है जिसमें व्यक्ति राष्ट्र-राज्य के प्रति सर्वोच्च निष्ठा का अनुभव करता है। कुछ लोग इसे देशप्रेम एवं जातीयता का सम्मिश्रण मानते हैं।”

प्रो. ग्रास के अनुसार “राष्ट्रवाद एक भावात्मक राजनीतिक संकल्पना है जिसका आधार विभिन्न प्रकार की एकताएँ एवं समानताएँ हैं, जिसका सम्बन्ध मुख्यतः राजनीतिक शक्ति की प्राप्ति या विकास से है।”

बेंयड शेफर के अनुसार, “राष्ट्र कहलाने के लिये एक निश्चित भू-भाग समान इतिहास और उद्गम तथा अपने उज्जवल और गौरवमय भविष्य में आस्था का होना आवश्यक है।”

सारतः राष्ट्रवाद में एक सामान्य राजनीतिक भावना निहित है। इस सन्दर्भ में प्रो. बार्कर का दृष्टिकोण प्रशंसनीय है जिसमें एक राष्ट्र के सभी अवयव तत्त्वों का उल्लेख है। उनके अनुसार, “राष्ट्र उन लोगों का एक समूह है जो एक निश्चित क्षेत्र के वासी होते हैं जो सामान्यतः विभिन्न प्रजातियों के होते हैं, पर एक सामान्य इतिहास के दौर से निकलने के कारण समान विचारों व भावनाओं को अर्जित करते व उनसे संप्रेषित होते हैं, जो सम्पूर्ण रूप में व मुख्यतया, यद्यपि वर्तमान से अधिक भूतकाल में एक सामान्य, धार्मिक विश्वास रखते हैं जो सामान्यतः एक नियम के अधीन अपने विचारों वे भावनाओं के वाहन के रूप में एक भाषा का प्रयोग करते हैं तथा जो इसके अतिरिक्त एक सामान्य इच्छा और स्वरूप की अभिव्यक्ति के लिए पृथक राज्य की कामना करते हैं।

राष्ट्रवाद के रूप

राष्ट्रवाद के रूपों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित किया जा सकता हैं-

(1) रूढ़िवादी राष्ट्रवाद – रूढ़िवादी राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के अनुसार राष्ट्रवाद से उस निष्ठा का बोध होता है जो किसी राष्ट्र के लोग अपने राष्ट्र की परम्पराओं के प्रति रखते हैं। रूढ़िवादी राष्ट्रवाद के अनुसार राष्ट्र का एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व होता है उसकी निजी परम्परा होती है इस परम्परा का सम्मान व संरक्षण करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बताया जाता है। उसके अनुसार, परम्परागत संस्थाओं और प्रथाओं की राष्ट्रीय उपयोगिता होती है। अतः उन्हें बनाए रखने के लिए राष्ट्र के नागरिकों को सब कुछ करने व अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तैयार रहने की बात की जाती है। इसप्रकार के राष्ट्रवाद के अंतर्गत जो कुछ पुराना एवं पारम्परिक हैं। वह ही राष्ट्रीय है तथा उसकी रक्षा की जानी चाहिए। ऐसे राष्ट्रवाद में अपना राष्ट्र एवं अपने राष्ट्र के हित अन्य राष्ट्रों के हितों की अपेक्षा सर्वापरित होते हैं। रूढ़िवादी राष्ट्रवाद, एकाधिकारी राष्ट्रवाद का रूप धारण कर लेता है तथा व्यक्ति मात्र साधन बन जाता है।

( 2 ) उदारवादी राष्ट्रवाद – उदारवादी दृष्टिकोण अनुसार राष्ट्रवाद की कल्पना उस रूप में की जाती है, जिसके अनुसार प्रत्येक राष्ट्र अन्य राष्ट्रों के प्रति सहिष्णुता की भावना रखता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है। और उसका यह अधिकार होता है कि वह अपना सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक उत्थान अपने ढंग से कर सके। किसी भी राष्ट्र द्वारा अपनी विशिष्टता दूसरे पर लादने का प्रयत्न करना अनुचित व मानव जाति की सर्वतोमुखी उन्नति की दृष्टि से अनुपयोगी है इसप्रकार उदारवादी राष्ट्रवाद राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रतीक बन जाता है। उसके अनुसार प्रत्येक राष्ट्र को अधिकार है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता का उपभोग करते हुए अपनी उन्नति अपने ढंग से कर सके।

( 3 ) जनवादी राष्ट्रवाद- उदारवादी दृष्टिकोण के अनुसार राष्ट्रवाद का जो रूप बना, उसका परिमार्जन जनवादी दृष्टिकोण द्वारा हुआ उदारवादी दृष्टिकोण पर आधारित राष्ट्रवाद यद्यपि राष्ट्रवाद के नाम पर राष्ट्र की सरकार को व्यक्ति के अधिकारों से खिलवाड़ करने का अधिकार प्रदान नहीं करता, तथापि उसके व्यावहारिक रूप में व्यक्ति से उसका तात्पर्य सर्वसाधारण से न होकर केवल कुछ गिने-चुने लोगों से होता है। जनवादी दृष्टिकोण पर आधारित राष्ट्रवाद व्यक्ति के सही रूप को लेकर चलता है। वह कुछ गिने-चुने लोगों को नहीं, सर्वसाधारण को राष्ट्र का प्रतीक मानता है। जनवादी राष्ट्रवाद रूढ़िवादी नहीं करता। वह इस बात में भी विश्वास नहीं करता कि राष्ट्र का नेतृत्व कुलीनों को ही करना चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार सम्पूर्ण जनता ही वास्तविक राष्ट्र है और उसके अधिकारों की रक्षा व हितों का सम्पादन ही सम्पूर्ण जनता ही वास्तविक राष्ट्र है और उसके अधिकारों की रक्षा व हितों का सम्पादन ही सच्चा राष्ट्रवाद है।

(4) एकाधिकारवादी सर्वाधिकारवादी या पूर्णाधिकारीवादी राष्ट्रवाद – एकाधिकारवादी दृष्टिकोण के अनुसार राष्ट्रवाद के जिस रूप का प्रतिपादन किया जाता है, उसके अनुसार व्यक्ति को अपना सब कुछ राष्ट्र के लिए बलिदान कर देना ही राष्ट्रवाद है इस दृष्टिकोण के अनुसार राष्ट्र साध्य व व्यक्ति केवल साधन मात्र है, राष्ट्र की उन्नति में ही व्यक्ति की उन्नति तथा उसका कलयाण है तथा राष्ट्र सब कुछ व व्यक्ति तथा समाज कुछ नहीं है। इस दृष्टिकोण पर आधारित राष्ट्रवाद, व्यक्ति के अधिकारों के स्थान पर उसकी कर्तव्य-परायणता पर अधिक बल देता है राष्ट्रवाद के इस स्वरूप का प्रतिपादन व प्रयोग प्रगतिवादी व प्रतिक्रियावादी, दोनों ही उद्देश्यों के लिए किया गया है। उदाहरणार्थ इटली में मैजिनी ने राष्ट्रवाद के जिस रूप का प्रतिपादन किया, वह प्रगतिवादी एकाधिकारी राष्ट्रवाद था, जिसे सभी सम्बद्ध थे। दूसरी ओर जर्मनी का एकाधिकारवादी राष्ट्रवाद प्रतिक्रियावादी था, क्योंकि उसका स्वरूप आन्तरिक दृष्टि से नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से भी अधिनायक था, क्योंकि नागरिक से राष्ट्र के प्रति निष्ठा की माँग का उद्देश्य गौण रूप से राष्ट्रीय हित-साधन था व मुख्य रूप से अधिनायक व उसके दल का हित साधन तथा अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से उसका उद्देश्य विश्व बन्धुत्व अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग न होकर मात्स्य न्याय व अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता था ।

(5) मार्क्सवादी राष्ट्रवाद- मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार राष्ट्रवाद का स्वरूप आर्थिक व्यवस्था तथा वर्ग संघर्ष की सम्पत्ति है मार्क्सवादियों के दृष्टिकोण के अनुसार उदारवादी, जनवादी, एकाधिकारवादी राष्ट्रवाद तो राष्ट्रवाद नहीं है। उनकी दृष्टि में इन सभी प्रकार के राष्ट्रवादों का ध्येय राष्ट्रीय हित साधन न होकर वर्ग विशेष का हित साधन होता है। इन दृष्टिकोणों पर आधारित राष्ट्रवाद में, राष्ट्रवाद के नाम पर बहुसंख्यक श्रमिक वर्ग के हितों की अपेक्षा व उनका बलिदान किया जाता है यही कारण है कि मार्क्सवादी राष्ट्रवाद के प्रतिपोषक संसार के श्रमिकों को सचेत करते हैं कि वे इस प्रकार के झूठे राष्ट्रवाद के भुलावे में न आयें तथा यही कारण है कि मार्क्स तथा ऐंग्लस को साम्यवादी घोषणा पत्र में हम यह कहते हुए पाते हैं कि समाज की वर्तमान दशा में श्रमिकों की कोई मातृभूमि नहीं होती, वर्तमान राष्ट्र सम्बन्धी कल्पना में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। और न कोई उन्हें राष्ट्रीय सम्प्रभुत्ता प्राप्त है कि मजदूरों को राष्ट्रों के बीच • उचित स्थान प्राप्त नहीं है और न उन्हें राष्ट्रीय सम्प्रभुता प्राप्त है। राष्ट्रों के बीच उचित स्थान प्राप्त करने के लिए उन्हें राष्ट्रवाद के वर्तमान स्वरूप को छोड़कर उस स्वरूप को अपनाना पड़ेगा, जो पूंजीवादी न होकर समाजवादी या साम्यवादी होगा। तथा जिसके अनुसार राष्ट्र विविध असमान तथा प्रतियोगी वर्गों का समूह न होकर, एक इकाई होगा, जो वर्गविहीन होगा और जिसमें सभी पारस्परिक सहयोगपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकेंगें चूँकि मार्क्सवाद की नीति स्वरूप में अन्तर्राष्ट्रीय व लक्ष्य में समाजवादी है” अतः मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार सामाज के ऐसे स्वरूप के प्रति निष्ठा रखने और उसकी स्थापना करने के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहना जरूरी है। जिसके अन्तर्गत सब योग्यतानुसार कार्य कर सकेंगे और आवश्यकतानुसार प्राप्त कर सकेंगे।

विचारधारा के आधार पर राष्ट्रवाद राजनीतिक (राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति) सांस्कृतिक आधार पर (सांस्कृतिक लक्ष्यों की आकांक्षा) सजातीय (अपनी जाति, नस्ल आदि को बनाए रखने की इच्छा) में विभाजित किया जा सकता है। कुछ भी हो राष्ट्रवाद का अस्तित्व है ही। यह संस्कृति का एक अटूट अंग है, स्व अस्तित्व एवं स्व-सम्मान का एक तत्व स्वयं अन्तर्राष्ट्रीय भी राष्ट्रवाद को स्वीकार करता है तथा अन्तर्राष्ट्रवाद के दायरे में अभिव्यक्ति की चाहत रखता है।

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Anjali Yadav

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