समाजिक अनुसंधान की विभिन्न अध्ययन पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
समाजशास्त्र में भी विषय-वस्तु का अध्ययन कुछ विशिष्ट पद्धतियों की सहायता से किया जाता है। जो पद्धतियाँ संख्याओं एवं माप को महत्व देती हैं उन्हें हम गत्यात्मक पद्धति कहते हैं। इन पद्धतियों में सामाजिक सर्वेक्षण का प्रमुख स्थान है। अवलोकन (सहभागी अवलोकन को छोड़कर) प्रश्नावली, अनुसूची तथा साक्षात्कार गणनात्मक पद्धतियां मानी जाती हैं। इन पद्धतियों द्वारा सूचना संकलन करने के पश्चात सारणीयन किया जाता है तथा सांख्यिकी विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। गुणात्मक पद्धतियाँ केवल गुणों को महत्व देती हैं संख्याओं को नहीं। इस प्रकार अनुसंधान वर्तमान स्थिति की व्याख्या तथा विवेचना प्रस्तुत करता है।
समाजशास्त्र में अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। प्रमुख विद्धानों के विचार निम्नांकित हैं-
(अ) चैपिन (Chapin) के अनुसार समाजशास्त्र में तीन प्रमुख पद्धतियाँ प्रयोग की जाती हैं-
- ऐतिहासिक पद्धति (Historical method),
- सांख्यिकीय पद्धति (Statistical method) तथा
- क्षेत्र कार्य अवलोकन पद्धति दृष्टिकोण (Field work observation method)
(ब) एलवुड (Ellwood) के अनुसार समाजशास्त्र की निम्नांकित पांच प्रमुख पद्धतियाँ है-
- मानवशास्त्रीय अथवा तुलनात्मक पद्धति (Anthropological or comparative method)
- ऐतिहासिक पद्धति (Historical method),
- सर्वेक्षण पद्धति (Sarvey method),
- निगमन पद्धति (Deductive method), तथा
- दार्शनिक पद्धति (Philosophical method)।
(स) हैट (Hatt) के अनुसार समाजशात्र की पाँच प्रमुख पद्धतियाँ है-
- सामान्य ज्ञान पद्धति (Common sense method),
- ऐतिहासिक पद्धति (Historical method),
- अजायबघर अवलोकन पद्धति (Museum observation method)
- प्रयोगशाला या प्रायोगिक पद्धति (Laboratory or experimental method) तथा
- सांख्यिकीय पद्धति (Statistical method)।
विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक अनुसंधान की विभिन्न अध्ययन पद्धतियों की व्याख्या अपने अपने शब्दों में की है। लेकिन मुख्य रूप से सामाजिक अनुसंधान की अध्ययन पद्धतियों को दो भागों में बाँटा गया है।
सामाजिक अनुसंधान की विधियाँ (Methods of Social Research)
सामाजिक घटनाओं के अध्ययन की अनेक विधियों समय-समय पर अपनाई गई है। ‘ये विधियाँ बहुत-सी बातों में एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं। इनका चुनाव अनुसंधान के उद्देश्य, विषय तथा साधनों पर निर्भर करता है मोटे तौर पर हम इन्हें दो भागों में बांट सकते हैं-
- गुणात्मक विधियाँ (Qualitative Methods)
- संख्यात्मक विधियाँ (Quantitative Methods)
(1) गुणात्मक विधियाँ (Quantitative Methods)- इन विधियों के अन्तर्गत विभिन्न तथ्यों का अध्ययन गुणात्मक रूप से किया जाता है। प्राचीन काल में केवल गुणात्मक विधियों का ही उपयोग होता था। गुणात्मक विधियों का आधार तर्कशास्त्र है। विभिन्न घटनाओं का निरीक्षण करके तर्कशास्त्र की आगमन तथा निगमन विधियों के आधार पर हम विभिन्न प्रकार के निष्कर्ष निकालते है। गुणात्मक विधियों बहुत निश्चित घटनाओं पर आधारित होती है तथा उन्हीं सिद्धांतों का तर्कसम्मत उपयोग, विभिन्न घटनाओं में किया जाता है।
विवरणात्मक साक्षात्कार, वैज्ञानिक अध्ययन तथा अवलोकन विधियों द्वारा गुणात्मक अध्ययन किया जाता है। विवरणात्मक साक्षात्कार में सम्बन्धित लोगों से उनके प्रभाव, भावनायें तथा प्रतिक्रियाएं एक कहानी के रूप में सुने जाते हैं। वैयक्तिक अध्ययन प्रणाली में कुछ विशेष इकाइयों को सुनकर उनका विस्तृत अध्ययन किया जाता है तथा उसके आधार पर विभिन्न निष्कर्ष निकाले जाते है। अवलोकन विधि में विभिन्न घटनाओं का गुणात्मक अवलोकन किया जाता है तथा उसके आधार पर निश्चित नियमों का निर्माण किया जाता है।
सामाजिक अनुसंधान में गुणात्मक विधियों का उपयोग विशेष रूप से होता है। इसका कारण यह है कि सामाजिक तथ्य स्वभाव से अमूर्त तथा जटिल होते हैं। हम उनको जानते हैं परन्तु उनकी निश्चित माप नहीं बता सकते। सामाजिकता, रूढ़िवादिता, रहन-सहन के स्तर से क्या भाव व्यक्त होता है यह हम जानते तो हैं परन्तु उसकी ठीक-ठीक माप क्या है, इसका अनुमान हम नहीं हैं लगा सकते। अतएव अधिकांश अनुसंधान व्यक्ति प्रधान होता है तथा वैवयिक गवेषणा सम्भव नहीं होती है। यही कारण है कि सामाजिक अनुसंधान में गुणात्मक विधियों का उपयोग अधिक होता है।
(2) संख्यात्मक विधियाँ (Quantitative Methods)- इसे सांख्यिकीय विधि कहते हैं। इसके अनुसार विभिन्न तथ्यों की एक निश्चित माप दी जाती है। उसके अतिरिक्त जहाँ गुणात्मक विधियाँ थोड़ी सी व्यक्तिगत इकाइयों पर आधारित हो सकती है। वहाँ सांख्यिकीय विधियों में एक पर्याप्त संख्या में इकाइयों का होना आवश्यक है। सांख्यिकीय विधि के उपयोग की पहली शर्त यह है कि घटना को संख्यात्मक रूप से नापा जा सके। कुछ घटनायें तो ऐसी होती हैं जिनकी प्रत्यक्ष माप होती हैं जैसे परिवार का आकार, लोगों की आय-व्यय, बीमारी आदि के आँकड़े। परन्तु अन्य घटनायें ऐसी होती हैं जिनकी प्रत्यक्ष माप सम्भव नहीं होती, जैसे किसी व्यक्ति की पसन्दगी की माप या रहन-सहन के स्तर की माप इत्यादि। ऐसी घटनाओं को भी उचित पैमाने द्वारा मापने का प्रयास किया जाता है। इसके लिये विभिन्न प्रकार के समाजमिति (Sociometry) पैमानों का विकास किया गया है। नृतत्वशास्त्र (Anthropology) मनोविज्ञान (Psychology) इत्यादि में भी इस प्रकार के पैमानों का उपयोग बढ़ता जा रहा है।
संख्यात्मक माप के अतिरिक्त सांख्यिकीय तथा तार्किक विधियों में विवेचन विधि भी भित्र होती है। सम्बन्धों की खोज करने, प्रवृत्तियों का पता लगाने तथा नियमों का अनुसंधान करने के लिये हमें माध्य, विचलन, सह-सम्बन्ध, सह-विचलन, कारक विवेचन इत्यादि क्रियायें करनी पड़ती हैं। ये क्रियायें गणितीय है तथा गणित के नियमों पर आधारित हैं सांख्यिकीय अध्ययन सामूहिक होता है तथा इकाइयों की निजी विशेषताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। वास्तव में सांख्यिकीय अनुसंधान में व्यक्ति की कोई स्थिति ही नहीं होती। उसमें केवल तयों का ही अध्ययन होता है तथा किसी विशेष इकाई से हमारा सम्बन्ध उस तथ्य तक ही सीमित रहता है।
सांख्यिकीय विधियाँ अधिक शुद्ध तथा व्यक्तिगत प्रभाव से परे होती हैं। इस प्रकार से वैषयिक अनुसंधान के अधिक उपयुक्त होती हैं। यदि रहन-सहन के दर्जे की कोई निश्चित एवं प्रमाणिक माप बना दी जाये तो किसी भी एक व्यक्ति के रहन-सहन के स्तर का पता लगाने में सब लोग एक ही निष्कर्ष पर पहुँचेंगे। परन्तु इस माप के अभाव में सभी लोगों की राय भिन्न-भिन्न हो सकती है। यही कारण है कि सभी विज्ञानों में सांख्यिकीय विधियों का उपयोग बढ़ता जा रहा है।
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