राजनीति विज्ञान / Political Science

मानव अधिकारों के अनुपालन के विभिन्न उपाय

मानव अधिकारों के अनुपालन के विभिन्न उपाय
मानव अधिकारों के अनुपालन के विभिन्न उपाय

मानव अधिकारों के अनुपालन के विभिन्न उपाय

अधिकारों के साथ-साथ उनके अनुपालन के उपायों का विवरण यदि किसी अधिनियम में न किया जाय तो ऐसे अधिकारों का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता है। इसलिए मानव अधिकारों के अनुपालन हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विभिन्न एजेन्सियों के माध्यम से अनेक उपाय किये गये हैं। जिनका विवरण निम्न है-

(1) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अधीन प्रवर्तन के उपाय- मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए एवं मानवाधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग को नियुक्त किया गया है जिसमें वर्तमान में कुछ 53 सदस्य है। 2012 में कमीशन के सदस्य के रूप में भारत का निर्वाचन चौथी बार किया गया है। कमीशन के सदस्यों का निर्वाचन तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए किया जाता है। कमीशन प्रतिवर्ष पाँच या छ: सप्ताहों के लिए सत्र करता है जिसमें बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता है। इस कमीशन के निबन्धन बड़े ही व्यापक हैं। इनके अन्तर्गत कमीशन मानवाधिकारों से सम्बन्धित किसी भी विषय पर कार्य कर सकता है। कमीशन या तो महासभा के अनुरोध पर या स्वयं की पहल पर अध्ययन करता है तथा अपनी रिपोर्ट एवं संस्तुतियाँ आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् को प्रेषित करता है। आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् में संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव 1235 (22) सन् 1967 में पारित कर कमीशन को यह क्षमता प्रदान कर दी कि वह मानवाधिकारों के सकल उल्लंघनों से सम्बन्धित सूचनाओं का परीक्षण करे तथा इस प्रयोजन से उन परिस्थितियों का अध्ययन करे जिससे मानवाधिकारों के उल्लंघन का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता हो। इस शक्ति का प्रयोग करते हुये कमीशन मानवाधिकारों के अभिकथित उल्लंघनों के सम्बन्ध में विशिष्ट राष्ट्रों के विरुद्ध लोक जाँच करता है।

अपने कार्यों में सहायता प्राप्त करने हेतु कमीशन को उप-कमीशन, समिति, विशिष्ट कार्यकारी दल आदि नियुक्त करने की अधिकारिता होती है। कमीशन को प्रतिवर्ष मानवाधिकारों के उल्लंघन के सम्बन्ध में हजारों शिकायतें प्राप्त होती हैं जिनकी प्रतियों को वह टीका टिप्पणी हेतु सम्बन्धित राष्ट्रों को भेजता है। अल्पसंख्यकों से सम्बन्धित शिकायतों को कमीशन मानवाधिकारों *के अलपसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव को रोकने एवं संरक्षण के उप-कमीशन के पास उसकी रिपोर्ट प्राप्त करने हेतु भेजता है।

(2) आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की प्रसंविदा, 1966 के अन्तर्गत प्रवर्तन के उपाय – आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्रसंविदा के अनुच्छेद 16 के पैरा 1 के अन्तर्गत प्रसंविदा के राष्ट्र पक्षकारों ने संकल्प लिया है कि वे मानवाधिकारों के सम्मान एवं अनुपालन में किये गए उपायों एवं हुई प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। अतः इस प्रसंविदा के अन्तर्गत प्रवर्तन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के माध्यम से किया जाता है। ऐसी सभी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पास भेजी जाती हैं जो उन्हें आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् को विचार हेतु भेजता है। इसके अतिरिक्त महासचिव ऐसी रिपोर्टों की प्रतिलिपि या रिपोर्ट का संगत पूर्ण भाग ऐसी विशिष्ट एजेन्सियों को रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु भेजता है जिसके कि सम्बन्धित राष्ट्र भी सदस्य हैं तथा मामला उनके संवैधानिक संलेखों के अन्तर्गत उनके उत्तरदायित्वों के अन्तर्गत आता है। आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् राष्ट्र पक्षकारों द्वारा तथा विशिष्ट ऐजेन्सियों द्वारा भेजी गयी रिपोर्टों के अध्ययन एवं संस्तुतियाँ भेजने हेतु मानवाधिकार कमीशन को भेज सकती है। कमीशन की संस्तुति आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् को प्राप्त हो जाने के बाद प्रसंविदा के राष्ट्र पक्षकार एवं विशिष्ट एजेन्सियाँ संस्तुति के सम्बन्ध में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् को भेज सकते हैं न कि सीधे कमीशन को। आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् इन संस्तुतियों, रिपोर्टों, सूचनाओं एवं मानवाधिकारों के अनुपालन में हुई प्रगति के सारांश आदि को महासभा को भेजती है। आर्थिक, सामाजिक परिषद् द्वारा इस प्रकार अपनी रिपोर्ट एवं संस्तुति महासभा को भेजना ही मानवाधिकारों से सम्बन्धित प्रसंविदा के प्रवर्तन का एकमात्र उपाय है।

(3) नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा 1966 के अन्तर्गत प्रवर्तन के उपाय- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के अन्तर्गत मानवाधिकारों के सम्मान, प्रोन्नति, अनुपालन एवं इनके उल्लंघन को रोकने हेतु एक मानवाधिकार समिति की स्थापना की व्यवस्था की गयी है जिसमें उच्च नैतिक चरित्र एवं मानवाधिकारों के क्षेत्र में स्वीकृत क्षमता (विधिक अनुभव वाले अधिमान्य) वाले राष्ट्र पक्षकारों को राष्ट्रीयता वाले 18 सदस्य होते हैं जिनका निर्वाचन उनकी वैयक्तिक हैसियत में होता है तथा वे अपने राष्ट्र द्वारा नामांकित किये जाते हैं। इस समिति में एक राष्ट्र की राष्ट्रीयता वाला एक से अधिक व्यक्ति नहीं हो सकता है। समिति के सदस्यों का निर्वाचन चार वर्षों की अवधि के लिए होता है। यदि किसी सदस्य को उसके राष्ट्र द्वारा पुनः नामांकित किया जाता है तो उसका निर्वाचन अगली अवधि के लिए पुनः भी हो सकता है परन्तु प्रथम चुनाव के बाद नौ सदस्य के कार्यकाल की अवधि दो वर्ष के अन्त में समाप्त हो जायेगी तथा इन नौ सदस्यों को समिति के अध्यक्ष द्वारा अनुच्छेद 30 के पैरा 4 में दिये गये तरीके लॉटरी के माध्यम से चुना जायेगा। से नागिरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्गत बनायी गयी अट्ठारह सदस्यीय समिति प्रसंविदा द्वारा स्वीकृत मानव अधिकारों का प्रवर्तन निम्न प्रकार से करती है-

(i) रिपोर्ट प्रस्तुत करने की विधि द्वारा- इस संविदा के अनुच्छेद 40 के अन्तर्गत राष्ट्र पक्षकारों ने यह संकल्प लिया है कि वे प्रसंविदा के स्वीकृत अधिकारों के प्रवर्तन के उपाय तथा इन अधिकारों के उपभोग के बारे में प्रगति की रिपोर्ट देते रहेगे। ऐसी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महासचिव को भेजी जाती है जो उन्हें महासभा को विचारार्थ प्रेषित कर देता है। महासभा इन रिपोर्ट को समिति के पास अध्ययन विचार करने हेतु भेज देती है। इन रिपोर्ट में राष्ट्र पक्षकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि अपनी रिपोर्ट में उन कारणों एवं कठिनाइयों का उल्लेख अवश्य करें जिनके कारण प्रसंविदा के प्रावधानों के प्रवर्तन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि समिति ऐसी सलाह देती है तो ऐसी रिपोर्ट की प्रतिलिपियों को महासचिव सक्षम अधिकारिता वाली विशिष्ट एजेन्सियों को पारेषित कर सकता है। राष्ट्र पक्षकारों द्वारा भेजी गयी रिपोर्टों का समिति अध्ययन करती है तथा टीका-टिप्पणी सहित अपनी रिपोर्ट राष्ट्र पक्षकारों को पारेषित करती है। समिति राष्ट्र पक्षकारों की रिपोर्टों की प्रतिलिपियाँ तथा अपनी रिपोर्ट आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् को भी भेजती है। राष्ट्र पक्षकार समिति की रिपोर्ट एवं टीका-टिप्पणी पर अपनी टीका-टिप्पणी एवं प्रतिक्रियाएं समिति के पास भेज सकते हैं। इस प्रकार सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा का प्रवर्तन मानवाधिकार समिति के परिवीक्षण में होता है। समिति मानवाधिकारों के प्रवर्तन हेतु राष्ट्र पक्षकारों द्वारा किये गये उपायों एवं प्राप्त हुई प्रति का परीक्षण भी करती है।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय संसूचना विधि द्वारा- सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा 1966 में प्रसंविदा के प्रवर्तक का एक अन्य उपाय अन्तर्राष्ट्रीय संसूचनीय विधि है। यदि प्रसंविदा का कोई राष्ट्र पक्षकार यह समझता है कि कोई अन्य राष्ट्र पक्षकार प्रसंविदा के उपबन्धों का ढंग से प्रवर्तन नहीं कर रहा है तो वह इस आशय की संसूचना मानवाधिकार समिति को भेज सकता है। परन्तु यह प्रणाली ऐच्छिक या वैकल्पिक है तथा पारिस्परिक पर आधारित है। यह प्रणाली तभी लागू होती है जब कोई राष्ट्र पक्षकार यह स्वीकार करने की घोषणा करता है कि मानवाधिकार समिति ऐसी संसूचना पर विचार करने हेतु सक्षम है कि अन्य राष्ट्र जिसने मानवाधिकार समिति की इस सक्षमता को स्वीकार किया है, प्रसंविदा के अन्तर्गत अपने दायित्व को पूरा नहीं कर रही है। ऐसी स्थिति में ही मानवाधिकार समिति मामले पर विचार कर सकती है। इसके अतिरिक्त समिति ऐसे मामले पर तभी विचार कर सकती है जब घरेलू उपाय पूरे कर लिए गये हों। इन दोनों ही शर्तों के पूरा होने पर समिति संसूचनाओं का परीक्षण बन्द कमरे में करती है। इस परीक्षण में सम्बन्धित राष्ट्र पक्षकार अपने प्रतिनिधि भेजने के हकदार होते हैं तथा वे परीक्षण के दौरान मौखिक या लिखित निवेदन कर सकते हैं। प्रसंविदा में स्वीकृत मानवाधिकार एवं मौखिक स्वतन्त्रताओं के सम्मान के आधार पर समिति सम्बन्धित राष्ट्र पक्षकारों को मामले के मित्रतापूर्ण हल हेतु अपने सत्यप्रयत्न अर्पित करती है। समिति सम्बन्धित राष्ट्र पक्षकारों से प्रासंगिक सूचना प्राप्त करने को भी कह सकती है।

(iii) प्रवर्तन के अन्य तरीके- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा राष्ट्र पक्षकारों को अपने मामलों का निस्तारण अपने मध्य अन्य विद्यमान सामान्य या विशेष करारों के आधार पर करने से निषिद्ध नहीं करती है। इस प्रसंविदा के अनुच्छेद 44 में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि मानवाधिकारों के क्षेत्र में प्रसंविदा का प्रतिकूल प्रभाव अन्य घटक संलेखों तथा संयुक्त राष्ट्र एवं विशिष्ट एजेन्सियों के अभिसमयों में उपबन्धित प्रक्रियाओं पर नहीं पड़ेगा।

(4) नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, 1966 के ऐच्छिक प्रोटोकॉल के अन्तर्गत व्यक्तिगत संसूचना प्रणाली- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के ऐच्छिक प्रोटोकाल के अन्तर्गत प्रवर्तन के उपायों का एक ढंग व्यक्तिगत संसूचना प्रणाली भी है जो इस प्रसंविदा के उन्हीं राष्ट्र पक्षकारों को उपलब्ध है जो ऐच्छिक प्रोटोकॉल के भी पक्षकार हैं। ऐच्छिक प्रोटोकॉल की प्रस्तावना में यह स्पष्ट किया गया है। कि सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की प्रसंविदा के प्रयोजनों की और अधिक प्राप्ति के लिए यह उपयुक्त होगा कि प्रसंविदा के भाग 4 में स्थापित मानवाधिकार समिति उन व्यक्तियों से संसूचना या शिकायत स्वीकार करे जो यह दावा करते हैं कि प्रसंविदा द्वारा स्वीकृत उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तथा इस उददेश्य से वर्तमान ऐच्छिक प्रोटोकॉल में राष्ट्र पक्षकारों ने अनुच्छेद 1 से 14 तक रखना स्वीकार किया है।

ऐच्छिक प्रोटोकॉल के अन्तर्गत व्यक्तिगत संसूचना प्रणाली का प्रयोग निम्नलिखित शर्तों के अध्ययन ही किया जाता है-

(i) ऐच्छिक प्रोटोकॉल की व्यक्तिगत संसूचना प्रणाली केवल उन्हें राष्ट्रों के व्यक्तियों को उपलब्ध है जो सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा एवं ऐच्छिक प्रोटोकॉल दोनों ही के पक्षकार है। ( ऐच्छिक प्रोटोकॉल का अनुच्छेद)

(ii) ऐसे व्यक्ति की संसूचना प्रसंविदा में स्वीकृत एवं उल्लिखित अधिकारों के सम्बन्ध में होनी चाहिए। (ऐच्छिक प्रोटोकॉल का अनुच्छेद 2)

(iii) ऐच्छिक प्रोटोकॉल के अन्तर्गत निवेदित संसूचना गुमनाम नहीं होनी चाहिए और न प्रसंविदा में स्वीकृत अधिकारों का दुरुपयोग तथा न ही प्रसंविदा के उपबन्धों से असंगत होना चाहिए। (ऐच्छिक प्रोटोकॉल का अनुच्छेद)

(iv) किसी व्यक्ति की संसूचना पर मानवाधिकार समिति तब तक कोई विचार नहीं। करेगी जब तक वह यह अभिसंस्थित नहीं कर लेती कि सम्बन्धित मामले में किसी अन्य अन्तर्राष्ट्रीय जाँच या निस्तारण की प्रक्रिया के अन्तर्गत कहीं विचार तो नहीं किया जा रहा है अथवा सम्बन्धित मामला कहीं अन्यत्र विचाराधीन तो नहीं है। (अनु० 5 (2क))

(v) मानवाधिकार समिति को संसूचना भेजने से पूर्व यह आवश्यक है कि उस व्यक्ति द्वारा सभी स्थानीय या घरेलू उपाय समाप्त या पूरे कर लिए गये हों। (ऐच्छिक प्रोटोकॉल का अनु० 5 (2-ख))

(5) मृत्युदण्ड की समाप्ति के उद्देश्य से किये गये नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के द्वितीय ऐच्छिक प्रोटोकॉल के अन्तर्गत प्रवर्तन के उपाय- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के द्वितीय प्रोटोकॉल को 1991 से लागू किया। इस द्वितीय ऐच्छिक प्रोटोकाल को अपवर्जित रूप से मृत्युदण्ड की समाप्ति के उद्देश्य से अपनाया गया है जिसमें इस प्रोटोकॉल के राष्ट्र पक्षकारों ने होगी तथा मानवाधिकारों का क्रमिक विकास होगा। द्वितीय ऐच्छिक प्रोटोकॉल मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 3 एवं सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के अनुश्छेद 6 के प्रावधानों का विस्तार एवं प्रसार करता है जिनमें जीवन के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में वर्णित किया गया है। यह प्रोटोकाल मृत्युदण्ड की समाप्ति पर बल देता। है तथा कहता है कि प्रत्येक पक्षकार राष्ट्र मृत्यु दण्ड समाप्त करने के उपाय करेगा तथा 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों तथा गर्भवती महिलाओं को फाँसी नहीं देगा। चूँकि द्वितीय ऐच्छिक प्रोटोकाल सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा से आवश्यक रूप से जुड़ा हुआ है इसलिए इसके उपबन्धों के प्रवर्तन का तन्त्र भी मानवाधिकार समिति है। द्वितीय ऐच्छिक प्रोटोकाल के अन्तर्गत मानवाधिकार समिति निम्नलिखित तीन ढंग अपनाती है –

  1. (i) रिपोर्ट प्रस्तुत करने की प्रणाली;
  2. (ii) अन्तर्राज्यीय संसूचना प्रणाली; एवं
  3. (iii) व्यक्तियों द्वारा संसूचना प्रणाली ।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि द्वितीय ऐच्छिक प्रोटोकाल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा से अनिवार्य रूप से सम्बद्ध है ।

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Anjali Yadav

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