मानवाधिकार एवं पर्यावरण (Human Right and Environment)
सन् 1972 में स्टाकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की घोषणा ने इस बात पर जोर दिया कि प्राकृतिक एवम् मानव निर्मित पर्यावरण संरक्षण आधारभूत मानवाधिकार के उपभोग के लिए आवश्यक है। नागरिकों एवम् समुदायों को यह निर्देश दिया गया कि वे इस तथ्य को व्यक्तिगत स्तर एवम् सामूहिक स्तर पर स्वीकार करे कि उन्हें भूमण्डलीय स्तर पर स्वच्छ पर्यावरण का संरक्षण एवम् पृथ्वी के स्रोतों की सुरक्षा करनी चाहिए। इस बात पर वृढ़ता पूर्वक ढंग से विश्वास किया गया कि यदि कठोर कदम उठाये जाने की प्रस्तावना नहीं की जती, तो जो विचित्र ढंग से आबादी में और वृद्धि हो जाती तथा गरीबी उन्मूलन तथा विकास के सारे प्रयास निष्फल हो जाते। इतने पर भी, रासायनिक चक्र जैसे, जल, कार्बन, आक्सीजन, फास्फोरस, सल्फर आदि उन तत्त्वों के बीच नाजुक सन्तुलन को कायम रखना दिनों-दिन कठिन हो जाता, जिन्हें सूर्य ऊर्जा से शक्तिमान बनाया जाता है। यह अनुभव किया गया कि अज्ञानता, पृथ्वी के पर्यावरण को पहुँचाई जा रही अत्यधिक एवम् अप्रतिरोध्य कर हानि के लिए उत्तरदायी होती जिस पर हमारा जीवन और मानव जाति का कल्याण निर्भर करता था।
इस सन्दर्भ के कुछ सार्थक कदम उठाये गये जिसमें सन् 1997 की पृथ्वी शिखर (Earth Summit) का आयोजन प्रमुख रहा यह शिखर रियो डी जेनेरिबो में 12 दिनों तक चला और इसमें सभी राष्ट्र, राजनैतिक आदर्श धर्म, भाषा एवम् सांस्कृतिक मतभेदों को मानवता एक सामान्य बन्धन में विश्व के लोगों को एक होने के निष्कर्ष पर सहमत हुए। सम्मेलन का प्रमुख शब्द अन्तिम आक्सीमोरन के रूप में निर्दिष्ट किये गये आलोचकों एक शब्द होने योग्य विकास था। भूमि शिखर सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य स्वतः अपनी और आगामी पीढ़ियों के लिए ग्रह (Planet) को विनष्ट किये बगैर ही आर्थिक लाभ के लिए पौधों का शोषण करने के एक मार्ग की खोज करना था। यह औद्योगीकृत शब्द के आराम की प्रेरित करने के लिए विकासशील विश्व को समर्थ बनाते समय, जीवन के इसके स्तर को गिराये बिना ही मैत्रीभाव में पर्यावरण सम्बन्धी तकनीक में और विकास करने के लिए मार्ग खोजने में विकसित विश्व की सहायता कर रहा था। दुर्भाग्यवश, भूमि शिखर सम्मेलन निश्चयात्मक नहीं थी । अतएव सन् 1992 में स्टाक होम से सन् 1992 में रियोडि जेनेरियो में हुए शिखर सम्मेलन के साथ ही साथ 22 मार्च सन् 1997 की तिथि पर बम्बई में हुए सम्मेलन की ओर ध्यान दिया जाना आवश्यक है जिसमें मैलपन, गन्दगी, परिधानों, कुपोषण शरीर के किसी भाग में अत्यधिक रक्त का संचय, अत्यधिक आबादी या जनसंख्या, अपर्याप्त मकान का होना, स्वच्छता में कमी, गन्दी बस्ती, अपर्याप्त आधारभूत सुख सुविधायें, प्रदूषित हवा एवम् जल की समस्याओं पर गम्भीरता पूर्वक ढंग से विचार किया गया।
क्या हम सभी लोगों को उस चतुर्थिक पर्यावरण सम्बन्धी अधोगपति (degradtation) से मुक्ति प्राप्त हो गयी है जो जीवन का स्वीकारणीय स्तर ग्रहण कर चुका है ?
हमसे बहुत से लोगों ने इस तरह का प्रश्न करना ही बन्द कर दिया है। इसलिए पर्यावरण सम्बन्धी समस्या क्या है और वास्तव में यह कितनी बड़ी है ? वास्तव में इन मुद्दों पर विचार करने के पश्चात् यह पाया जाता है कि पारिस्थितिकी सम्बन्धी आपदा का सामना करना पड़ता है।
जान नैसबिट्ट एक सुविख्यात लेखक एवम् भविष्य वक्ता हमें इस बात की जानकारी देता है किस इस प्रकार के विलाप उपहास्पद है। हम सभी में अनेक लोग नैसबिट्टस बेस्ट सेलर “मेगाट्रेन्ड्स 200″ से सुपरिचित है जहाँ वह 10 वर्षों के भविष्य को देखता है और चारों ओर सुखद परिणामों के साथ भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था में सुधार को देखता है। न केवल प्रश्नगत लेखक बल्कि उसके साथ ही साथ बहुत से लोग उपर्युक्त की ही भाँति विश्व की तश्वीर देखते हैं। इतने भी जान नैसविट्ट यह मानते हैं कि पीड़ा देने वाले पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ होगी बल्कि भूण्डल स्तर पर सभी की एक राय यह बन चुकी है कि हम सभी को साथ-साथ पर्यावरण पर कार्य करना चाहिए कि कैसे हम स्थिति में सुधार ला सकते हैं। हम सभी एक कमरे में बैठकर श्रोता गणों के बीच सैतव्य की तलाश नहीं कर सकते हैं, निश्चित तौर पर एक मत होने की स्थिति की आवश्यकता न केवल राज्य सरकार स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर है बल्कि नैसरपिट्ट यह पोषणीय मानता है कि हमारे लिए (Mega Hoaz) के समान निश्चित तौर पर भूमण्डल स्तर पर प्रश्नगत मुद्दे पर एक मत होने की आवश्यकता है।
यदि हम सभी एक क्षण के लिए प्राचीन मानव गाथा की ओर मुड़े उदाहरणार्थ उन सभी लोगों के द्वारा यथास्थिति का संरक्षण जो सर्वाधिक लाभ प्राप्त करते हैं। आम जनता सबूत चाहती है और केवल मात्र इतने से ही उन्हें दिलाया जा सकता है कि हम सभी पर्यावरण सम्बन्धी समस्या का अनुभव कर रहे हैं क्योंकि यह सदैव सामान्य बात ही होगी। हमारे प्रिय अर्थशास्त्रियों में से एक जान के नीथगिलब्रेथ “सुविधाजनक सामाजिकगुण” को निर्देशित करते हैं। वह जिन नीतिशास्त्र सम्बन्धी विनिश्चयों की व्याख्या करते हैं, उनमें सम्पुष्टि करने की एक प्रबल प्रवत्ति होती है जिसके आधार पर प्रभावशाली नागरिक इसे विश्वास करने योग्य मानकर अपनी सहमति प्रदान करते हैं।
यह एक सहज अनुभूति की है बात कि जीवन से बढ़कर और कोई दूसरी वस्तु नहीं होती कीमत लाभ विश्लेषण जीवन की विशेषता पर अध्यारोही प्रभाव रख पाने में असफल हो जाते हैं। कैसे “ताजी वायु” श्वसन क्रिया करने के सामान्य कार्य ने मानव जाति के जीवन को कम कर दिया है। विशाल आबादी केन्द्रों के प्रस्थानों का परिणाम देने वाली, जल प्रवाह को बढ़ाने वाली वस्तु, आदत सम्बन्धी अधोपतन, विशाल जलवायु सम्बन्धी परिवर्तनों के पर्याप्त साक्ष्य है जो पर्यावरण विशेषज्ञों की इस प्रतिपादना का समर्थन करते हैं। कि हम सभी के ऊपर ए पारिस्थितिकी आपदा है। यह स्थिति बहुत जटिल है और किसी भी एक समूह को इसके लिए उत्तरदायी नहीं बहराया जा सकता है। समाचार माध्यम या लोक प्रिय जो जनता की राय बनाने में इतनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, पर्यावरण सम्बन्धी समस्या को नहीं समझते हैं। यद्यपि विज्ञान विशेषज्ञों ने अनेक खोज की है, लेकिन वे भी पर्यावरण सम्बन्धी वास्तविकताओं की जन मानस की जानकारी देने में विशेष रुचि नहीं प्रदर्शित नहीं करती। कानून भी पर्यावरण सम्बन्धी समस्या को हल करने का प्रख्यापन किया है किन्तु उसे अभी तक वांछित सफलता नहीं मिल सकी है। जहाँ पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी उन व्यापारिक स्कूलों एवम् व्यापारिक क्षेत्रों के बजाय, जीवन विज्ञान सम्बन्धी विभागों से विद्यार्थियों को उपलब्ध करायी जाती है जो कि आवश्यक है, कारण कि यदि पर्यावरण सम्बन्धी समस्या का समाधान किया जाता है, तो इसका हल ढूढ़ने का कार्य व्यापार समुदाय पर छोड़ दिया जायेगा। दुर्भाग्यवश, व्यापार समुदाय को इस बात से विश्वस्त किया जाता है कि वास्तविक समस्या पैदा होती है और यह निश्चित है कि इसका सामाना करने के लिए वाणिज्य एवम् उद्योग को घुमान की कोई आर्थिक प्रेरणा नहीं है। विद्वांन पर्यावरण विचार पर्यावरण सम्बन्धी अध: पतन के दुष्परिणाम को भली भाँति ढंग से समझते हैं और इस समस्या के निदान के लिए कुछ स्वीकारणीय हल प्रस्तुत करते हैं कारण कि वे सामान्यतया, सुधारात्मक कार्यवाही के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं रखते हैं।
पृथ्वी के पर्यावरण के पुनर्निर्माण में तत्काल खतरा अनभिज्ञता से पैदा होता है। अतएव, विश्व स्तर पर जन-जन में पर्यावरण के संरक्षण के सन्दर्भ में यह जाग्रति पैदा करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक मानव अपनी सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व के बारे में गम्भीर पूर्वक विचार तथा यथा सम्भव अपने क्रिया कलापों में सुधार करें। प्रायः हमारे पर्यावरण के संरक्षण के लिए इस प्रकार के कदम उठाये जाने की आवश्यकता है जिससे कि प्रदूषण में कमी आये। यद्यपि ग्रीन पीस, सीरिया क्लब, विल्डरनेस सोसाइटी, औकूबान सोसाइटी एवम् दूसरे अन्य संगठनों के बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं किन्तु दुर्भाग्यवश इन्हें राजनैतिक औद्योगिक एवम् आर्थिक नीतियों का समर्थन नहीं मिल सका है। यह सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब तक जनता पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए आम जनता का सरकार पर दबाव नहीं डालेगी, तब तक इस दिशा में यथोचित कदम नहीं उठायेगी।
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