“मानवाधिकार एवं पर्यावरण अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर है।” कथन स्पष्ट कीजिए।
परिचयः हमारे लिए यह अपरिहार्य है कि पर्यावरण का बुद्धिमानी से ध्यान रखा जाये। इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि विकास इस प्रकार किया जाय किस मौलिक आवश्यकताओं (जिनका आरम्भ गरीबी दूर करने से हो) की पूर्ति हो तथा पर्यावरण का ह्रास भी न हो। पर्यावरण के मासले में विश्व में एकरूपता नहीं है। राष्ट्र की स्थिति पर्यावरण के मामले में भिन्न-भिन्न है, अतः कोई एक हल सभी स्थानों के लिये उपयुक्त नहीं होगा।
यह कहना अनुचित होगा कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के सामान्य सिद्धान्तों तथा नियमों की दूषण तथा पर्यावरणहास की समस्याओं के लिये कोई उपयोगिता नहीं है। उदाहरण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत किसी राज्य के कार्य कलापों की एक सीमा यह है कि उससे अन्य राज्यों के क्षेत्र पर कोई क्षति नहीं पहुँचनी चाहिये। इसी प्रकार यह भी नियम है कि किसी राज्य को अपने क्षेत्र के ऐसे उपयोग की अनुमति नहीं देनी चाहिये जिससे अन्य राज्यों के हितों को नुकसान पहुँचे। इन सिद्धान्तों से यह स्पष्ट होता है कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने राज्य क्षेत्र में ऐसा कोई कार्य न करे जिससे उस क्षेत्र के बाहर पर्यावरण सम्बन्धी क्षति पहुँचे।
यहाँ पर ट्रेल स्मेल्टर आर्बीट्रल अवार्ड (Trail Smelter Arbitral Award) का उल्लेख वांछनीय होगा। यह वाद कनाडा के ट्रेल स्मेल्टर क्षेत्र में सल्फर डाइआक्साइड बुएँ से अमेरिका के वाशिंगटन राज्य को क्षति पहुँचने से सम्बन्धित था। न्यायाधिकरण (Tribunal) ने निर्णय दिया कि ट्रेल स्मेल्टर के आचरण के लिये अन्तर्राष्ट्रीय विधि में कनाडा जिम्मेदार था। न्यायाधिकरण ने निर्णय ने निर्णय में यह भी कहा कि दो राज्यों के मध्य सन्धि दायित्वों के अतिरिक्त कनाडा का यह दायित्व था कि वह यह देखे कि उसका आचरण अन्तर्राष्ट्रीय विधि के दायित्वों के अनुरूप हो। इस वाद से यह सिद्ध हो जाता है कि अपने क्षेत्र के परे प्रदूषण करने के लिये राज्य अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वाधीन है। वाद में यह नियम मानवीय पर्यावरण के 1972 स्टाकहोम घोषणा में अंगीकार कर लिया गया।
पर्यावरण एक ऐसा विषय है जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय विधि के मान्यतायें या विकास यथेष्ठ नहीं है। यह आवश्यक है कि राज्य विधि में भी इसका समुचित विकास हो । राज्य विधि में भी इसका विकास हुआ है यह बात हाल के वाद एम. सी. मेहता बनाम भारतीय संघ (M.C. Mehta v. Union of India) से स्पष्ट होती है। इस वाद में एम.सी. मेहता नामक एक एडवोकेट ने लोक हित में एक प्रार्थना पत्र द्वारा उच्चतम न्यायालयय से प्रार्थना की थी कि संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उपयुक्त रिटय जारी करके आदेश दे कि पर्यावरण के सम्बन्ध में सिनेमाघरों में मुफ्त सूचना स्लाइडों द्वारा दी जाय, रेडियो तथा दूरदर्शन के माध्यम से सरकार लोगों को पर्यावरण के विषय में सूचनायें देकर अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करें। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि प्रजातान्त्रिक प्रणाली में सूचना प्रणाली का आधार है। नागरिकों को सूचित करना सरकार का दायित्व है। उच्चतम न्यायालय ने याची की प्रार्थना स्वीकार करते हुए सरकार को आदेश जारी किये। न्यायालय ने कहा कि उसने सरकार तथा अन्य सम्बन्धित दलों की बातों तथा दलीलों को भी सुना क्योंकि सारे विश्व तथा हमारे देश में यह सामान्यतः स्वीकार किया जाता है कि पर्यावरण का संरक्षण तथा इसे प्रदूषण से स्वतन्त्र रखना पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिये आवश्यक है। 3 जून 1992 को आरम्भ होने वाली पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit) अथवा पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन भी इसी पर आधारित है।
1972 के संयुक्त राष्ट्र मानवीय पर्यावरण सम्मेलन, स्टाकहोम के पूर्व पर्यावरण संरक्षण का हल अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमयों में खण्डश; करने का प्रयास किया गया था। उदाहरण के लिए बाह्य अन्तरिक्ष (Outer space) सन्धि, 1967 के अनुच्छेद 9 में प्रावधान है कि सन्धि के पक्षकार बाह्य अन्तरिक्ष में अध्ययन करवायंगे जिससे बाह्य अन्तरिक्ष में भेजी वाली वस्तुओं के पृथ्वी पर विपरीत पर्यावरण परिवर्तन से बचा सके। इसी प्रकार कूडा-कर्कट तथा अन्य सामान्य के ढेर करने से सामुद्रिक दूषण से बचाव सम्बन्धी अभिसमय (Convention on the Prevention of Marine Pollution by Dumping of Wastes and other Matter, 1972) अनुच्छेद 1 में अभिसमय के राज्य पक्षकारों का व्यक्तिगत तथा सामूहिक दायित्व है कि वे सामुद्रिक पर्यावरण के दूषण के सभी स्त्रोतों पर प्रभावशाली नियन्त्रण को बढ़ावा देने तथा समुद्र में कूड़ा-करकट तथा अन्य सामान के ढेर करने से होने वाले प्रदूषण को रोकने का भरसक प्रयास करेंगे। इस सम्बन्ध में अन्य सन्धियाँ निम्नलिखित हैं-
आणविक अस्त्रों के परीक्षणों की निषिद्धि की सन्धि, 1963
लैटिन अमेरिका आणविक अस्त्रों की निषिद्धि की सन्धि,
आणविक अस्त्रों के गैर प्रसार की सन्धि, 1968
आणविक अस्त्रों के समुद्र तल पर रखने की निषिद्धि की सन्धि, 1971
खुले समुद्र पर तेल प्रदूषण से क्षति द्वारा हस्तक्षेप से सम्बन्धित ब्रूसल-अभिसमय 1969
तेल प्रदूषण से नुकसान के लिये सिविल दायित्व सम्बन्धी ब्रूसल-अधिसमय, 1969
Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com
इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..