‘राज्य क्षेत्र’ क्या है? अन्तर्राष्ट्रीय विधि में राज्यक्षेत्र पाने एवं खोने के विभिन्न ढंग का वर्णन कीजिए।
राज्य क्षेत्र (State territory) – राज्य के पास राज्यक्षेत्र का होना राज्यक्षेत्र के लक्षणों में से एक है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक राज्य निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत औपचारिक रूप से भू-मण्डल के निश्चित क्षेत्र के अन्तर्गत स्थापित होता है। राज्य क्षेत्र का अर्थ धरती के उस भू-भाग से है जिस पर किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता होती है। किसी राज्य का अस्तित्व बगैर राज्य क्षेत्र के सम्भव नहीं है। राज्य क्षेत्र का यह महत्व होता है कि इस क्षेत्र में राज्य की सत्ता उच्चतम होती है। परन्तु इस सत्ता का उपभोग अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार किया जाना चाहिए। राज्य अपने इस क्षेत्र में अपवर्जित सत्ता (exclusive authority) का प्रयोग कर सकता है। यह नियम अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली का मूलभूत नियम है। इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 2 (4) उल्लेखनीय है। इसके अनुसार, अन्य सदस्य राज्य अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में किसी राज्य की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतन्त्रता से अपने को प्रतिविरत रखेंगे।
अन्तर्राष्ट्रीय विधि उस क्षेत्र के अन्तर्गत प्रश्नगत राज्य द्वारा एक निश्चित राज्य क्षेत्र पर उसकी प्रभुत्व सम्पन्नता को मान्यता देता है जिस राज्यक्षेत्र पर राज्य का अनन्य नियंत्रण तथा अधिकारिता होती है, उसे राज्य का राज्यक्षेत्र कहा जाता है। ओपेनहाइम के अनुसार राज्यक्षेत्र भूमण्डल (globe) के उस निश्चित भाग को कहते हैं, जो राज्य के प्रभुत्व सम्पन्नता के अध्यधीन होती है। इस प्रकार राज्य का राज्यक्षेत्र उस राज्य की सम्पत्ति होती है। राज्य अपने राज्यक्षेत्र के ऊपर सर्वोच्च प्राधिकार, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने के हित में अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों द्वारा प्रतिपादित कुछ सामान्य नियमों के अध्यधीन होती है।
किसी राज्य के क्षेत्र में न केवल भूमि शामिल होती है वरन् राष्ट्रीय या आन्तरिक जल (जैसे-नदियाँ, झीलें आदि) तथा सामुद्रिक पेटी (maritime Belt or Territorial Sea) भी शामिल होता है। सामुद्रिक पेटी तथा पार्श्ववर्ती पेटी के जेनेवा-अभिसमय, 1958 के अनुच्छेद 5 के अनुसार, सामुद्रिक पेटी की आधार-रेखा (base-line) से भूमि की ओर का पानी राज्य के आन्तरिक पानी के अन्तर्गत आता है। यही बात समुद्र-विधि पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, 1982 के अनुच्छेद 8 में स्वीकार की गयी है। इस अभिसमय पर 10 दिसम्बर, 1982 को मान्टेगो बे (जमैका) में हस्ताक्षर किये गये थे । अतः राज्यक्षेत्र में भू-राज्यक्षेत्र (Land territory), राष्ट्रीय जल (National Water), राज्यक्षेत्र समुद्र (Territorial Sea), राज्यक्षेत्र के ऊपर वायुमण्डल (Air Space) तथा पृथ्वी के नीचे उप- -भूमि (Subsoil under-earth) को शामिल रहती है।
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राज्य क्षेत्र को प्राप्त करने का ढंग
एक राज्य द्वारा राज्यक्षेत्र के अर्जन का तात्पर्य राज्यक्षेत्र पर प्रभुत्व सम्पन्नता के अर्जन से है। राज्य उस राज्यक्षेत्र को अर्जित कर सकता है, जो पहले से ही किसी अन्य राज्य के प्रभुत्व सम्पन्नता के अधीन हो या जो किसी राज्य से सम्बन्धित न हो, अर्थात् राज्यक्षेत्र स्वामिहीन (res-nullius) हो। जब अर्जन ऐसे राज्य क्षेत्र का किया जाता है जो किसी अन्य राज्य का है तो ऐसे अर्जन को व्युत्पन्न ढंग (derivative mode) कहा जाता है, जिसमें अर्जन से एक राज्य का राज्यक्षेत्र बढ़ जाता है तथा अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र की हानि होती है। जब अर्जित किया हुआ राज्यक्षेत्र किसी राज्य का नहीं होता तो अर्जन को मूल ढंग (original mode) कहा जाता है, जिसमें एक राज्य के राज्यक्षेत्र का विस्तार होता है किन्तु अन्य राज्य के राज्यक्षेत्र की हानि नहीं होती है। उक्त दोनों ढंग का अर्जन सामान्य स्वामित्व के क्षेत्र (res-communis), अर्थात् उस क्षेत्र से भिन्न है, जिसे विधिपूर्वक अर्जित नहीं किया जा सकता, जैसे खुला समुद्र या बाह्य अन्तरिक्ष ऐसे क्षेत्रों पर स्वामित्व नहीं हो सकता। अन्तर्राष्ट्रीय विधि में राज्य क्षेत्र को निम्न तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है-
(1) कब्जा या दखल (Occupation)- कब्जा या दखल को आवेशन या अधिभोग भी कहते हैं। जिस प्रदेश पर किसी अन्य राज्य का अधिपत्य नहीं होता यदि कोई राज्य वहाँ अपना अधिपत्य स्थापित कर लेता है तो उसे कब्जे से अभिसंज्ञात करते हैं। ओपेनहाइम के अनुसार, “आवेशन एक ऐसा कार्य है जिसके द्वारा कोई राज्य अपने या उस प्रदेश पर प्रभुत्वसम्पन्नता प्राप्त कर लेता है, जिस पर उस समय किसी दूसरे राज्य की प्रभुत्वसम्पन्नता नहीं है।” क्षेत्र प्राप्त करने का यह एक मौखिक ढंग है क्योंकि प्रभुत्वसम्पन्नता किसी अन्य राज्य से प्राप्त नहीं की जाती। आवेशन केवल किसी राज्य द्वारा ही किया जा सकता है। यह राज्य कृत्य होता है तथा यह राज्य की सेवा में किया जाता तथा इसे करने के पश्चात् राज्य द्वारा इसकी अभिस्वीकृति की जानी चाहिए। यह बात निर्धारित करने में किसी प्रदेश पर किसी राष्ट्र का आवेशन है अथवा नहीं, यह देखा जाता है कि प्रदेश पर उसका प्रभावशाली रूप से आधिपत्य है अथवा नहीं।
(2) भोगाधिकार (Prescription) – चिरभोग द्वारा भी किसी प्रदेश पर अधिकार हो सकता है। यदि कोई राज्य प्रदेश पर बहुत समय तक लगातार अपना अधिकार बनाये रहे तो उस प्रदेश पर उसकी वास्तविक प्रभुत्वसम्पन्नता रहती है तथा वह प्रदेश उस राज्य का हो जाता है। स्टार्क के शब्दों में- चिरभोग किसी प्रदेश पर शान्तिपूर्वक बहुत समय तक वास्तविक प्रभुत्वसम्पन्नता के फलस्वरूप होता है। परन्तु यह नोट करना आवश्यक है कि किसी अभिसमय या सन्धि की उपस्थिति में केवल प्रशासनिक कार्यों द्वारा चिरभोग से किसी प्रदेश को प्राप्त नहीं किया सकता है।
चिरभोग द्वारा कोई राज्य किसी क्षेत्र को तभी प्राप्त कर सकता है जबकि कुछ शर्तों पूरी हों। ये शर्तें निम्नलिखित हैं-.
(क) कोई राज्य किसी क्षेत्र को चिरभोग द्वारा तभी प्राप्त कर सकता है जबकि उस क्षेत्र पर उसने किसी अन्य राज्य की प्रभुत्व सम्पन्नता स्वीकार नहीं की हो। यदि ऐसा राज्य सम्बन्धित क्षेत्र पर शासन करते हुए उस पर किसी अन्य राज्य की प्रभुत्वसम्पन्नता को स्वीकार करता है तो वह चिरभोग द्वारा उक्त क्षेत्र को प्राप्त नहीं कर सकता है।
(ख) कब्जा शान्तिपूर्वक तथा अवरोधरहित होना चाहिए।
(ग) कब्जा सार्वजनिक (Public) होना चाहिए।
(घ) कब्जा कुछ निश्चित समय तक होना चाहिए।
(3) अनुवृद्धि या क्षेत्र-वृद्धि (Accretion) – अनुवृद्धि द्वारा नवीन क्षेत्र तब प्राप्त होता है जबकि प्राकृतिक कारणों द्वारा किसी राज्य में कोई प्रदेश मिल जाता है जो पहले किसी अन्य राज्य का था। इसके लिए कोई औपचारिक कार्य तथा घोषणा की आवश्यकता नहीं है। यह दृष्टव्य आवश्यक है कि अनुवृद्धि द्वारा राज्य क्षेत्र की प्राप्ति क्षेत्र की नई रचनाओं से होती है। यह रचनायें प्राकृतिक अथवा कृत्रिम हो सकती हैं जैसे सामुद्रिक पेटी में किसी नये द्वीप का उभरना। वह कृत्रिम तब होते हैं जब वह मानवीय कार्य के परिणामस्वरूप होते हैं जैसे नदी या समुद्र पर घाट या बाँध आदि बनाना। चूँकि कोई राज्य प्राकृतिक क्षेत्र का परिवर्तन इस प्रकार नहीं कर सकता है कि उससे दूसरे राज्य या राज्यों को हानि पहुँचे, अतः कृत्रिम रचना या क्षेत्र की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि पड़ोसी राज्य से इसके पूर्व करार या समझौता हो।
(4) अध्यर्षण (Cession) – अध्यर्पण एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के निश्चित राज्य क्षेत्र पर सम्प्रभुता का हस्तान्तरण है। अध्यर्पण या तो युद्ध के परिणामस्वरूप दबाव द्वारा हो सकता है या ऐच्छिक रूप से भी हो सकता है। अध्यर्पण सामान्यत: क्षेत्र हस्तान्तरण करने वाले राज्य के मध्य करार द्वारा होता है। अध्यर्पण तभी वैध होगा जब प्रदेश के सम्बन्ध में राज्य की प्रभुत्व सम्पन्नता का अध्यर्पण दूसरे राज्य को हो जायेगा। जब कोई क्षेत्र या प्रदेश किसी राज्य को हस्तान्तरित हो जाता है तो इससे ऐसे क्षेत्र या प्रदेश में रहने वाले व्यक्तियों की निजी सम्पत्ति पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। इससे राज्य को निजी सम्पत्ति में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं प्राप्त होता है।
(5) पट्टे द्वारा अधिकार (Lease)- कभी-कभी पट्टे द्वारा एक राज्य दूसरे राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लेता है। कोई भी राष्ट्र अपने प्रदेश का कुछ भाग दूसरे राज्य के नाम पर पट्टा लिखकर उसे कुछ समय के लिय दे सकते हैं। अत: इस प्रकार उस अवधि के लिए सम्बन्धित प्रदेश पर सार्वभौतिकता के कुछ अधिकारों का हस्तान्तरण हो जाता है। पट्टे द्वारा सम्बन्धित प्रदेश पर पूरी का हस्तान्तरण नहीं होता। इसका एक अच्छा उदाहरण माल्टा द्वारा ब्रिटेन को अपने एक द्वीप का कुछ वर्षों के लिए पट्टा करना है। इसी प्रकार, पनामा नहर के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्ष में शाश्वत काल के लिए पट्टा (Lease in perpetuity) प्रदान किया गया था।
(6) गिरवी ( Pledge) – कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ भी उत्पन्न होती हैं जब कोई राज्य दूसरे से रुपये आदि के लिए अपने प्रदेश के कुछ भाग को गिरवी रख दे। इस प्रकार भी सम्बन्धित प्रदेश की प्रभुसत्ता के कुछ भाग का हस्तान्तरण हो जाता है। उदाहरण के लिए, 1768 में जेनेवा के गणतन्त्र (Republic of Geneva) ने कारसिका (Corsica) के द्वीप को फ्रांस को गिरवी रखा था।
(7) जनमत संग्रह (Plebiscite) – यद्यपि अन्तर्राष्ट्रीय विधि में राज्य क्षेत्र प्राप्त करने के तरीकों में जनमत संग्रह के विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु आधुनिक लेखकों ने जनमत द्वारा भी राज्य को प्राप्त करने के सम्बन्ध में अपना मत प्रकट किया है। इसका एक अच्छा उदाहरण वेस्ट इंरियन का मामला है। वेस्ट ईरियन (West Trian) के प्रदेश पर नीदरलैण्ड तथा इण्डोनेशिया दोनों ने ही अपने-अपने दावे प्रस्तुत किये थे। संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह निश्चित हुआ कि जनमत करवाया जाय। अत: दक्षिण ईरियन के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में जनमत करवाया गया तथा वहाँ के लोगों ने अपना मत इण्डोनेशिया के पक्ष में दिया। इस प्रकार दक्षिणी-ईरियन अब इण्डोनेशिया राज्य का एक भाग है।
राज्य द्वारा राज्य-क्षेत्र या किसी भाग को खोना (Loss of State Territory)
एक राज्य को जिस प्रकार कुछ तरीकों से प्राप्त किया जाता है, उसी प्रकार एक राज्य प्रदेश को खो देता है, तभी दूसरे को वे प्राप्त होते हैं। प्रो० ओपेनहाइम के अनुसार, राज्य के क्षेत्र निम्नलिखित ढंग से खोये जा सकते हैं-
(i) अध्यर्पण (Cession)- जिस प्रकार एक राज्य किसी क्षेत्र को अध्यर्पण द्वारा प्राप्त कर सकता है, उसी प्रकार दूसरा राज्य उससे वंचित हो जाता है।
(ii) प्राकृतिक कारण (Operation of Nature)- प्राकृतिक कारणों द्वारा भी एक राष्ट्र अपने प्रदेश को खो बैठता है। उदाहरण के लिए भूकम्प द्वारा समुद्र का किनारा या द्वीप या पूरे भाग का लोप हो सकता है। इसी प्रकार नदियों के बहाव में परिवर्तन होने के कारण भी क्षेत्र का कुछ भाग घट सकता है। नदियों में मोड़ आ जाने से एक नया प्रदेश पैदा हो जाता है; उसी प्रकार, दूसरा राज्य जब अपना प्रदेश खो देता है, तो उसे प्राकृतिक कार्य ही कहा जाता है। अर्थात् प्रकृति के कार्यों द्वारा किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ भी सकता है तथा घट भी सकता है।
(iii) अधीनता (Subjugation) – यह प्रदेश प्राप्त करने की विजय की विधि के समकक्ष है। जब एक राज्य की विजय होती है, तो दूसरे की हार सुनिश्चित है। विजय द्वारा एक राज्य दूसरे प्रदेश पर अधिकार प्राप्त करता है, तो पराजय द्वारा वह अपना क्षेत्र खो भी देता है। विजय द्वारा कोई राज्य किसी क्षेत्र को प्राप्त कर सकता है, इसके अन्तर्गत अधीनता द्वारा सम्बन्धित राज्य अपने प्रदेश को खो बैठता है।
(iv) चिरभोग (Prescription) – जब किसी एक राज्य के क्षेत्र पर किसी दूसरे राज्य का दीर्घकाल तक आधिपत्य रहता है तो आधिपत्य रखने वाला राज्य चिरभोग द्वारा उसे प्राप्त कर लेता है तथा जिस राज्य का क्षेत्र वह पहले था, वह उसे खो बैठता है।
(v) विप्लव या क्रान्ति (Revolt) – यह एक भिन्न प्रक्रिया है। किसी राज्य को कोई प्रदेश प्राप्त नहीं होता, वरन् क्रान्ति के द्वारा नये राज्य का जन्म होता है। क्रान्ति के फलस्वरूप नया राज्य जन्म लेता है, तो यह कहा जा सकता है कि पहले वाले राज्य ने अपना देश प्रदेश खो दिया। अन्तर्राष्ट्रीय इतिहास में इस प्रकार से बहुत से राज्यों का जन्म हुआ है; उदाहरण के लिए 1579 में नौदरलैण्ड क्रान्ति द्वारा स्पेन के साथ से निकल गया। बंगलादेश क्रान्ति करके 1971 में स्वतन्त्र हो गया तथा पाकिस्तान ने इस प्रकार वह क्षेत्र खो दिया।
(vi) त्याग (Dereliction) – दखल के समान त्याग की विधि भी होती है। जिस प्रकार एक राज्य दूसरे राज्य को प्राप्त करता है, तो दूसरा राज्य अपने क्षेत्र को खो देता है। इस खोने की प्रक्रिया को ही ‘त्याग’ से अभिसंज्ञात किया जाता है।
(vii) औपनिवेशिक राज्यों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना – वर्तमान समय में अनेक राज्य जो पहले उपनिवेश थे अब स्वतन्त्र हो गये हैं। जिन राज्यों के राज्य उपनिवेश थे उन्होंने यह क्षेत्र खो दिये।
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